अधिकाँश डिमेंशिया लाइलाज हैं, यानि कि दवाई से रोग से हुई हानि ठीक नहीं करी जा सकती| अधिकांश रोग प्रगतिशील भी होते हैं, और समय के साथ मस्तिष्क अधिक नष्ट होता जाता है, और व्यक्ति अधिक लाचार होते जाते हैं| वैसे तो अनेक रोग हैं जिन से डिमेंशिया के लक्षण पैदा हो सकते हैं, पर चार प्रकार मुख्य माने जाते हैं| ये हैं: अल्ज़ाइमर रोग, संवहनी डिमेंशिया (वैस्कुलर डिमेंशिया),लुई बॉडी डिमेंशिया और फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया| डिमेंशिया इंडिया रिपोर्ट 2010 के टेबल 1 के अनुसार डिमेंशिया रोगिओं में आम प्रकार के लाइलाज डिमेंशिया के अनुपात प्रस्तुत हैं|
संवहनी मनोभ्रंश एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है, जो डिमेंशिया के 20-30% केस के लिए जिम्मेदार है|
यह अकेले भी पाया जाता है, और अन्य डिमेंशिया के साथ भी मौजूद हो सकता है , जैसे कि अल्ज़ाइमर और लुई बॉडी डिमेंशिया के साथ|
लक्षणों में, और प्रगति संबंधी पहलू में यह अन्य प्रमुख डिमेंशिया से कई तरह से फर्क हैं|
हानि कहाँ और कितनी हुई है, लक्षण इस पर निर्भर हैं|
अल्ज़ाइमर के मुकाबले इसमें याददाश्त की समस्या शुरू में कम पाई जाती है|
लक्षणों की प्रगति धीरे-धीरे भी हो सकती है, या चरणों (स्टेप्स) में भी हो सकती है|
इस की संभावना कम करने के लिए कारगर उपाय मौजूद हैं|
स्वास्थ्य और जीवन शैली पर ध्यान दें तो रक्त वाहिकाओं में समस्याएं कम होंगी| इस से संवहनी डिमेंशिया की संभावना कम होगी, और यदि हो भी तो इसकी प्रगति धीमी कर सकते हैं|
हृदय स्वास्थ्य के लिए जो कदम उपयोगी है, वे रक्त वाहिका समस्याओं से बचने के लिए भी उपयोगी हैं|
पोस्ट का एक अंश: लुई बॉडी डिमेंशिया: मुख्य बिंदु ।
लुई बॉडी डिमेंशिया एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है। यह ठीक नहीं हो सकता और समय के साथ व्यक्ति की हालत खराब होती जाती है|
इस के बारे में जानकारी बहुत कम है|
इस की खास पहचान है मस्तिष्क की कोशिकाओं में “लुई बॉडी” नामक असामान्य संरचना की उपस्थिति|
लक्षण:
विशिष्ट लक्षण हैं दृष्टि विभ्रम, सोचने-समझने की क्षमता कम होना, और इन का रोज-रोज बहुत भिन्न होना, पार्किंसन लक्षण, जैसे कंपन, जकड़न, धीमापन, पैर घसीटना, इत्यादि, और नींद में व्यवहार संबंधी समस्याएँ|
अन्य डिमेंशिया लक्षण भी प्रकट होते हैं|
अभी इस को रोकने या धीमे करने के लिए कोई दवाई नहीं है| इलाज और देखभाल में व्यक्ति को लक्षणों से कुछ राहत देने की कोशिश रहती है|
सही रोग निदान मिलने में दिक्कत हो सकती हैं|
कुछ आम-तौर डिमेंशिया में इस्तेमाल होने वाली दवाओं से लुई बॉडी डिमेंशिया वाले लोगों को नुकसान हो सकता है। सतर्क रहना जरूरी हैं|
लुई बॉडी डिमेंशिया से संबंधित कुछ खास संसाधन हैं। अधिक जानने के लिए और वर्तमान जानकारी के अपडेट पाने के लिए इन से संपर्क करें। कुछ ऑनलाइन समुदाय भी हैं जहाँ लोग इस से संबंधित अनुभव और सुझाव बांटते हैं। आप यदि इस डिमेंशिया से ग्रस्त हैं, या इस से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, तो इन में अनुभव और सुझाव बाँट सकते हैं|
पोस्ट का एक अंश: फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया: मुख्य बिंदु।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है जो अन्य डिमेंशिया के प्रकार से कुछ मुख्य बातों में बहुत फर्क है। इस वजह से इस का सही रोग-निदान बहुत देर से होता है।
इस के अधिकांश केस 65 से कम उम्र के लोगों में होते हैं।
इस के प्रारंभिक लक्षण हैं व्यक्तित्व और व्यवहार में बदलाव और भाषा संबंधी समस्याएँ।
शुरू में याददाश्त संबंधी लक्षण नहीं होते।
यह प्रगतिशील और ला-इलाज है। अभी इस को रोकने या धीमे करने के लिए कोई दवाई नहीं है।
इलाज और देखभाल में दवा से, व्यायाम से, शारीरिक और व्यावसायिक थेरपी से और स्पीच थेरपी से व्यक्ति को कुछ राहत देने की कोशिश करी जाती है।
इस डिमेंशिया का अब तक मालूम रिस्क फैक्टर (कारक) सिर्फ फैमिली हिस्ट्री है , यानी कि परिवार में अन्य लोगों को यह या ऐसा कोई रोग होना।
इस डिमेंशिया में देखभाल कई कारणों से बहुत मुश्किल होती है, जैसे कि:
पैसे की दिक्कत, बदला व्यवहार संभालना ज्यादा मुश्किल, समाज में बदले व्यवहार के कारण दिक्कत, बाद में व्यक्ति की शारीरिक कमजोरी के संभालने में दिक्कत।
उपयुक्त सेवाएँ बहुत ही कम हैं, और स्वास्थ्य कर्मियों में भी जानकारी बहुत ही कम।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया पर विशिष्ट संस्थाएं और ऑनलाइन सपोर्ट कम है। अधिकांश उपलब्ध जानकारी और सपोर्ट अल्ज़ाइमर रोग के लिए तैयार करी गयी है, परन्तु फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया अल्ज़ाइमर रोग से कई महत्त्वपूर्ण बातों में फर्क है और इस लिए कई पहलू हैं जिन पर आम संसाधनों से उपयोगी जानकारी नहीं मिल पाती। यदि आप को या आपके किसी प्रियजन को FTD हो तो जानकारी और सपोर्ट के लिए विशिष्ट FTD संसाधन का भी इस्तेमाल करें।
स्ट्रोक (आघात, पक्षाघात, सदमा, stroke) एक गंभीर रोग है। हम कई बार देखते और सुनते हैं कि किसी को स्ट्रोक हुआ है। इस के बाद कुछ लोग फिर से अच्छे हो पाते हैं, पर अन्य लोगों में पूरी तरह शारीरिक और मानसिक क्षमताएं ठीक नहीं हो पातीं।शायद हम यह भी जानते हैं कि करीब 25%[1] केस में स्ट्रोक जानलेवा सिद्ध होता है। पर स्ट्रोक क्या है, किन बातों से इस के होने का खतरा है, इस से कैसे बचें, इन सब पर जानकारी इतनी व्याप्त नहीं है। अधिकाँश लोग यह भी नहीं जानते कि स्ट्रोक होने के कुछ ही महीनों में कुछ व्यक्तियों को स्ट्रोक-सम्बंधित डिमेंशिया (मनोभ्रंश, dementia) भी हो सकता है। इस पृष्ठ पर स्ट्रोक और डिमेंशिया (stroke and dementia) पर जानकारी पेश है।
स्ट्रोक क्या है, क्यों होता है, और इस के लक्षण क्या हैं।
मस्तिष्क के ठीक काम करने के लिए यह जरूरी है कि मस्तिष्क में खून की सप्लाई ठीक रहे। इस काम के लिए हमारे मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं (खून की नलिकाएं, blood vessels) का एक जाल (नेटवर्क) है, जिसे वैस्कुलर सिस्टम कहते है। ये रक्त वाहिकाएं मस्तिष्क के हर भाग में आक्सीजन और जरूरी पदार्थ पहुंचाती हैं।
स्ट्रोक में इस रक्त प्रवाह में रुकावट होती है. इस के दो मुख्य कारण हैं।
अरक्तक आघात, इस्कीमिया (ischemia): रक्त का थक्का (clot) रक्त वाहिका को बंद कर सकता है। अधिकाँश स्ट्रोक के केस इस प्रकार के होते हैं।[1]
रक्तस्रावी आघात (हेमरेज, haemorrhage) : रक्त वाहिका फट सकती है।
खून सप्लाई में कमी के कुछ कारण का यह चित्रण देखें।
इस रुकावट के कारण हुई हानि इस पर निर्भर है कि मस्तिष्क के किस भाग में और कितनी देर तक रक्त ठीक से नहीं पहुँच पाया। यदि कुछ मिनट तक रक्त नहीं पहुँचता, तो प्रभावित भाग में मस्तिष्क के सेल मर सकते हैं। इस को इनफार्क्ट या रोधगलितांश कहते हैं।
स्ट्रोक के लक्षण अकसर अचानक ही, या कुछ ही घंटों के अन्दर-अन्दर पेश होते हैं।
एक तरफ के चेहरे और हाथ-पैर का सुन्न होना/ उनमें कमजोरी, चेहरे के भाव पर, और अंगों पर नियंत्रण नहीं रहना।
बोली अस्पष्ट होना, बोल न पाना, दूसरों को समझ न पाना।
एक या दोनों आँखों से देखने में दिक्कत।
चक्कर आना, शरीर का संतुलन बिगड़ना, चल-फिर न पाना।
बिना किसी स्पष्ट कारण के तीव्र सर-दर्द होना।
अफ़सोस, कई बार व्यक्ति और आस पास के लोग स्ट्रोक को पहचान नहीं पाते, या पहचानने में और डॉक्टर के पास जाने में देर कर देते हैं, जिस से हानि अधिक होती है।
एक खास स्थिति है “मिनी-स्ट्रोक” (mini stroke, अल्प आघात)। इस में लक्षण कुछ ही देर रहते हैं, क्योंकि रक्त सप्लाई में रुकावट खुद दूर हो जाती है। इस मिनी-स्ट्रोक का असर तीस मिनट से लेकर चौबीस घंटे तक रहता है। इसे ट्रांसिएंट इस्कीमिक अटैक्स (transient ischemic attack, TIA) या अस्थायी स्थानिक अरक्तता भी कहते हैं। व्यक्ति को कुछ देर कुछ अजीब-अजीब लगता है, पर वे यह नहीं जान पाते कि यह कोई गंभीर समस्या है। कुछ व्यक्तियों में ऐसे मिनी स्ट्रोक बार बार होते हैं, पर पहचाने नहीं जाते। कुछ केस में ऐसे मिनी स्ट्रोक के थोड़ी ही देर बाद व्यक्ति को बड़ा और गंभीर स्ट्रोक हो सकता है।
नोट: कुछ लोग स्ट्रोक और दिल के दौरे में कन्फ्यूज होते हैं। स्ट्रोक और दिल का दौरा, दोनों ही रक्त के प्रवाह से संबंधी रोग हैं (हृदवाहिनी रोग, cardiovascular disease)। पर स्ट्रोक में इस नाड़ी संबंधी समस्या का असर दिमाग पर होता है, हृदय पर नहीं। यूं कहिये, स्ट्रोक को हम एक मस्तिष्क का दौरा मान सकते हैं।
इलाज में जितनी देर करें, व्यक्ति की स्थिति उतनी ही बिगड़ती जायेगी। जान भी जा सकती है। इसलिए स्ट्रोक का शक होते ही जल्द से जल्द व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं। डॉक्टर शायद व्यक्ति की जान बचा पायें। सही समय पर इलाज करने से शायद डॉक्टर स्ट्रोक के बाद होने वाली दिक्कतों को भी कम कर पायें। दुबारा स्ट्रोक न हो, इस के लिए सलाह भी मिलेगी।
स्ट्रोक के बाद उचित कदम उठाने से कुछ व्यक्ति तो ठीक हो पाते हैं, पर अन्य व्यक्तियों में कुछ समस्याएँ बनी रहती हैं। उनकी रिकवरी पूरी नहीं होती। स्ट्रोक-पीड़ित कई व्यक्ति बाद में भी कुछ हद तक दूसरों पर निर्भर रहते हैं। उन्हें डिप्रेशन (अवसाद) भी हो सकता है, जिस के कारण वे भविष्य के स्ट्रोक से बचने के लिए कदम उठाने में भी दिक्कत महसूस करते हैं।
एक अन्य आम समस्या है मस्तिष्क की क्षमताओं पर असर। यदि व्यक्ति को बार बार स्ट्रोक (या मिनी-स्ट्रोक) हो, तो क्षमताओं में हानि ज्यादा हो सकती है। व्यक्ति की मानसिक काबिलियत कम हो जाती है। व्यक्ति को डिमेंशिया हो सकता है।
संवहनी डिमेंशिया (वैस्कुलर डिमेंशिया, Vascular dementia) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है। यह आक्सीजन की कमी की वजह से मस्तिष्क के सेल मरने से हो सकता है। इस का एक कारण है बार बार स्ट्रोक या मिनी-स्ट्रोक होना। इस प्रकार के संवहनी डिमेंशिया को स्ट्रोक से सम्बंधित डिमेंशिया के नाम से भी जाना जाता है।
अल्ज़ाइमर सोसाइटी UK की “What is vascular dementia?” [2] पत्रिका के अनुसार स्ट्रोक होने के बाद तकरीबन 20% व्यक्तियों में छह महीने में स्ट्रोक से सम्बंधित डिमेंशिया हो सकता है। एक बार स्ट्रोक हो, तो फिर से स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है, इस लिए डिमेंशिया का खतरा भी बढ़ जाता है।
संवहनी डिमेंशिया पर विस्तृत हिंदी लेख के लिए देखें [3]
स्ट्रोक होने के बाद व्यक्ति को दुबारा स्ट्रोक होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। कुछ स्टडीज़ के अनुसार, इलाज न करें तो अगले पांच साल में फिर स्ट्रोक होने की संभावना 25% है। दस साल में स्ट्रोक होने की संभावना 40% है। इसलिए स्ट्रोक के बाद आगे स्ट्रोक न हो, इस के लिए खास ध्यान रखना होता है। [4]
स्ट्रोक की संभावना कम करने के लिए उपयुक्त दवा लें और उचित जीवन-शैली के बदलाव अपनाएं। उच्च रक्त-चाप (हाइपरटेंशन, हाई बी पी) और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखें। डायबिटीज से बचें, या उस पर नियंत्रण रखें। जीवन-शैली बदलाव करें। उदाहरण हैं: सही और पौष्टिक खाना, वजन नियंत्रित रखना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना (व्यायाम इत्यादि), तम्बाकू सेवन और धूम्रपान बंद करना, तनाव कम करना, और मद्यपान कम करना। डॉक्टर से बात करें, ताकि आपको सही सलाह मिले।
स्ट्रोक कितना व्याप्त और गंभीर है, उस पर कुछ तथ्य/ आंकड़े।
स्ट्रोक एक बहुत आम समस्या है। यह माना जाता है कि हर चार व्यक्तियों में से एक को अपने जीवन-काल में स्ट्रोक होगा।[5]
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्ट्रोक साठ साल और ऊपर की उम्र के लोगों की मृत्यु के कारणों में दूसरे स्थान पर है।
कम उम्र में भी स्ट्रोक का खतरा काफी ज्यादा है। 15 से 59 उम्र वर्ग में मृत्यु के कारणों में स्ट्रोक पांचवे स्थान पर है। [6]
अफ़सोस, भारत में स्ट्रोक का खतरा अन्य कई देशों से ज्यादा है क्योंकि यहाँ के लोगों में हाईपरटेंशन और अन्य रिस्क फैक्टर की संभावना ज्यादा है। ऊपर से यह भी अनुमान है कि भारत में स्ट्रोक का खतरा समय के साथ बढ़ रहा है। [7]
विश्व भर में स्ट्रोक डिसेबिलिटी का एक मुख्य कारण है, और डिसेबिलिटी के कारणों में तीसरे स्थान पर है। [8]
सबसे पहले तो हमें पहचानना होगा कि स्ट्रोक एक आम समस्या हैं, और इसके नतीजे भी बहुत गंभीर हैं। 60% लोग स्ट्रोक से या तो बच नहीं पाते, या बचते भी हैं तो उन की शारीरिक या मानसिक क्षमताएं ठीक नहीं हो पातीं। वे दूसरों पर निर्भर हो सकते हैं। उन्हें डिमेंशिया भी हो सकता है।
हम सब स्ट्रोक और अन्य नाड़ी संबंधी बीमारियों से बचने के लिए अपने जीवन में कई कदम उठा सकते हैं। अपने और अपने प्रियजनों के स्वास्थ्य का ख़याल रखें तो स्ट्रोक और सम्बंधित समस्याओं की संभावना कम होगी। यह मंत्र याद रखें: हृदय स्वास्थ्य के लिए जो कदम उपयोगी है, वे रक्त वाहिका की समस्याओं से बचने के लिए भी उपयोगी हैं।
स्ट्रोक और सम्बंधित विषयों के लिए कुछ उपयोगी शब्दावली:
मिनी-स्ट्रोक और उस में पाए डिमेंशिया से संबंधित कुछ शब्द हैं मिनी-स्ट्रोक, ट्रांसिऐंट इस्कीमिक अटैक्स (transient ischemic attack, TIA) या अस्थायी स्थानिक अरक्तता।
मस्तिष्क में हुई हानि के लिए कुछ उपयोगी शब्द हैं इनफार्क्ट (रोधगलितांश, infarct).
बार-बार के मिनी-स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया के लिए कुछ शब्द हैं मल्टी- इनफार्क्ट डिमेंशिया (multi-infarct dementia), बहु-रोधगलितांश डिमेंशिया।
संवहनी डिमेंशिया के लिए कुछ शब्द/ वर्तनी हैं वास्कुलर डिमेंशिया, वैस्क्युलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी डिमेंशिया, संवहनी मनोभ्रंश, Vascular dementia.
डिमेंशिया का कुछ अन्य रोगों से भी सम्बन्ध है। इन रोगों पर हिंदी में विस्तृत पृष्ठ देखें।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया (मनोभ्रंश) (Frontotemporal Dementia, FTD) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है। यह अन्य प्रकार के डिमेंशिया से कई महत्त्वपूर्ण बातों में फर्क है और इसलिए अकसर पहचाना नहीं जाता। देखभाल में भी ज्यादा कठिनाइयाँ होती हैं। इस पृष्ठ पर उपलब्ध सेक्शन:
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया क्या है (What is Frontotemporal Dementia) (FTD)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया (Fronto-Temporal Dementia, FTD) चार प्रमुख प्रकार के डिमेंशिया (मनोभ्रंश) में से एक है*1।
इस डिमेंशिया में हुई मस्तिष्क की हानि को दवाई से पलटा नहीं जा सकता। यह इर्रिवर्सिबल (irreversible) है। व्यक्ति का मस्तिष्क फिर से सामान्य नहीं हो सकता।
मस्तिष्क की हानि समय के साथ बढ़ती जाती है। यह एक प्रगतिशील डिमेंशिया (प्रगामी डिमेंशिया, progressive dementia)माना जाता है।
अंतिम चरण में फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया वाले व्यक्ति सब कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं।
यह डिमेंशिया अन्य प्रकार के डिमेंशिया से कई महत्त्वपूर्ण बातों में फर्क है।
सभी डिमेंशिया में मस्तिष्क में किसी भाग में क्षति होती है, जिस के कारण लक्षण पैदा होते हैं। फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया में यह क्षति मस्तिष्क के दो खंडों में होती है। ये हैं:
ललाटखंड (अग्र खंड, फ्रंटल लोब, frontal lobe), और
शंख खंड (कर्णपट खंड, टेम्पोरल लोब, temporal lobe)।
प्रभावित खंडों में कुछ असामान्य प्रोटीन इकट्ठा होने लगते हैं, कोशिकाएं मरने लगती हैं, जरूरी रसायन ठीक से नहीं बन पाते, और लोब सिकुड़ने लगते हैं।
इस हानि के कारण व्यक्ति को उन लोब के काम से संबंधित लक्षण होने लगते हैं।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया के लक्षण (Symptoms of Frontotemporal Dementia)।
शुरू के आम लक्षण हैं व्यक्तित्व और व्यवहार में बदलाव, और भाषा संबंधी समस्याएँ। याददाश्त अकसर ठीक रहती है।
व्यक्ति में कौन से लक्षण होंगे यह इस पर निर्भर है कि फ्रंटल और टेम्पोरल लोब में कहाँ-कहाँ और कितनी क्षति हुई है।
व्यक्तित्व/ व्यवहार संबंधित लक्षणों के उदाहरण:
व्यक्ति का मेल-जोल कम हो जाना, व्यक्ति का अपने में ही सिमट जाना।
दूसरों की भावनाओं की परवाह न करना, सहानुभूति न दिखा पाना।
परेशान/ बेचैन रहना, व्यवहार या बात दोहराना, चीजें छुपाना, शक्की होना, उत्तेजित होना, चिल्लाना, आक्रामक होना (दूसरों को मारना)।
रात में अधिक विचलित होना और सो न पाना।
कुछ तरह की चीजों को खाने की खास इच्छा, जैसे कि मिठाई या तली हुई चीजें।
अनुचित , अशिष्ट, अश्लील व्यवहार, समाज में ऐसा व्यवहार करना जो खराब समझा जाता है।
ध्यान न लगा पाना, निर्णय लेने में दिक्कत, पैसे का मूल्य समझने में दिक्कत, सोच-विचार न कर पाना।
भाषा संबंधित लक्षणों के उदाहरण:
सामान्य, रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले शब्दों का अर्थ पूछना, सही शब्द न सूझना और शब्द इस्तेमाल करने के बजाय उस का वर्णन करना।
परिचित लोगों या वस्तुओं को पहचानने में दिक्कत।
शब्द समझ पाना पर वाक्य न समझ पाना, खास तौर से लंबे, उलझे हुए वाक्य।
धीरे-धीरे, झिझक कर बोलना, शब्द उच्चारण में दिक्कत और गलतियाँ, हकलाना, वाक्यों में से छोटे शब्दों को छोड़ देना या व्याकरण में गलती होना।
FTD अन्य रोगों के साथ भी पाया जा सकता है। व्यक्ति को ऐसे अन्य विकार हो सकते हैं जिन से चलने में दिक्कतें भी होने लगती है। गति धीमी हो सकती है, संतुलन में दिक्कत हो सकती है, निगलने में भी दिक्कत होने लगती है, और पार्किन्सन जैसे कुछ लक्षण हो सकते हैं।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया वर्ग में शामिल रोग (Various Medical conditions of Frontotemporal dementia)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया किसी एक विशिष्ट रोग का नाम नहीं है। इस में अनेक रोग शामिल हैं जो मस्तिष्क के फ्रंटल और टेम्पोरल लोब की हानि से संबंधित हैं।
इन रोगों में से सबसे पहले पिक रोग (Pick’s Disease) की पहचान हुई थी। कई लोग अब भी फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया को पिक रोग के नाम से ही बुलाते हैं। इस के अन्य भी कई नाम हैं (नीचे नोट्स देखें)।
अब भी इस पर नई जानकारी प्राप्त हो रही है, और फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया के नए प्रकार पहचाने जा रहे हैं।
इस श्रेणी के रोगों का वर्गीकरण विशेषज्ञ अलग-अलग तरह से करते हैं।
मोटे तौर पर, फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया के प्रकार हैं:
व्यवहार-संबंधी रूप (Behavioural variant Fronto-Temporal Dementia, BvFTD)।
इस में व्यक्तित्व या व्यवहार में बदलाव नज़र आते हैं। उदाहरण: व्यक्ति मिलना जुलना बंद कर सकते हैं, अपने आप में सिमट सकते हैं। या औरों के प्रति निरादर या लापरवाही दिखा सकते हैं। अनुचित व्यवहार कर सकते हैं, आक्रामक हो सकते हैं, या उन्माद दिखा सकते हैं।
भाषा संबंधी रूप (Language variants of frontotemporal dementia), इस में शामिल हैं:
अर्थ -संबंधी डिमेंशिया (सिमैंटिक डिमेंशिया , semantic dementia): बोल सकते हैं, पर शब्द का अर्थ नहीं समझते,बोलते हुए अजीब अजीब शब्दों का प्रयोग करते हैं—उनकी बात का अर्थ नहीं निकलता।
प्रगतिशील गैर-धाराप्रवाह वाचाघात (progressive non-fluent aphasia): बोलने में दिक्कत होती है, और वे धीरे धीरे और बहुत कठिनाई से बोलते हैं।
अन्य रूप, खास रूप, मिश्रित रूप।
FTD अन्य रोगों के साथ भी हो सकता है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार करीब 10 से 20% FTD केस में साथ साथ मोटर न्यूरान संबंधित हानि भी होती है (overlapping motor disorders), जिस से संतुलन में और हिलने/ डुलने/ चलने में समस्या होती है, और पार्किंसन किस्म के लक्षण भी हो सकते हैं।
कुछ उदाहरण: मोटर न्यूरान रोग (motor neurone disease), प्रगतिशील सुप्रान्यूक्लियर अंगघात (progressive supranuclear palsy), कोर्टिको-बैसल अपह्रास (corticobasal degeneration)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया : कुछ महत्वपूर्ण तथ्य (Some important facts about Fronto Temporal Dementia)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया होने की संभावना के संबंध में अब तक उपलब्ध जानकारी:
आयु। हालांकि यह सभी उम्र के लोगों में पाया जा सकता है , पर इसके अधिकांश केस कम उम्र के लोगों में देखे जाते हैं (40 से 65 आयु वर्ग में)।
ध्यान दें, अल्ज़ाइमर रोग की संभावना उम्र के साथ बढ़ती है और अल्ज़ाइमर के अधिकांश केस 65 और उस से अधिक आयु वर्ग में होते हैं।
65 से कम आयु के लोगों में देखे जाने वाले डिमेंशिया केस में यह एक महत्व-पूर्ण डिमेंशिया है।
रिस्क फैक्टर (risk factor): फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया के कारक स्पष्ट रूप से मालूम नहीं । यह माना जाता है कि यह आनुवांशिकी, स्वास्थ्य-समस्या संबंधी, और जीवन-शैली संबंधी कारणों का मिश्रण हैं।
अभी तक सिर्फ एक रिस्क फैक्टर पहचाना गया है: फैमिली हिस्ट्री (family history)–माँ-बाप, भाई-बहन, अन्य पीढ़ियों में अन्य करीबी रिश्तेदार को फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया या अन्य ऐसे किसी रोग का होना (fronto-temporal dementia or other neuro-degenerative diseases)।
इस डिमेंशिया की यह आनुवांशिकी अन्य मुख्य डिमेंशिया के प्रकारों के मुकाबले ज्यादा है। National Institute of Aging (USA) की FTD की विषय-पत्रिका के अनुसार करीब 15 से 40 % केस में कोई आनुवांशिकी (जेनेटिक, हेरिडिटरी, genetic)) कारण पहचाना जा सकता है।
अवधि
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया एक प्रगतिशील प्रकार का डिमेंशिया है और समय के साथ व्यक्ति की हालत बिगड़ती जाती है। अंतिम चरण में व्यक्ति पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर होने लगते हैं।
इस की अवधि हर व्यक्ति में फर्क है, पर आम तौर पर माना जाता है कि शुरू से अंतिम चरण तक 2 से 10 साल लग सकते हैं। औसतन लोग लक्षणों के आरम्भ के बाद करीब 8 साल जीवित रहते हैं।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया रोग-निदान और उपचार (Frontotemporal Dementia Diagnosis and Treatment)।
रोग-निदान: फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया अनेक कारणों से कई बार पहचाना नहीं जाता।
प्रारंभिक लक्षण भूलने की बीमारी से नहीं मिलते, इसलिए परिवार और डॉक्टर उन लक्षणों पर ध्यान नहीं देते। परिवार वाले डॉक्टर से सलाह करने के बारे में नहीं सोचते।
अगर 65 से कम उम्र के व्यक्ति में लक्षण होते हैं, तो लोग डिमेंशिया के बारे में नहीं सोचते। बदले व्यवहार को लोग बदले चरित्र की निशानी या तनाव (स्ट्रेस, stress) का नतीजा समझते हैं।
डॉक्टर और विशेषज्ञों को भी फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया का कम अनुभव होता है।
इन सब कारणों से सही निदान मिलने में देर हो सकती है।
उपचार
अभी तक फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया से हो रही हानि को वापस ठीक करने के लिए कोई दवा नहीं है। हानि की प्रगति को रोकने या धीरे करने के लिए भी कोई दवा नहीं है।
डॉक्टर की कोशिश रहती है कि व्यक्ति को लक्षणों से कुछ राहत दें।
व्यवहार-संबंधी लक्षण चिंताजनक हों तो डॉक्टर ऐसी दवाएं देने की कोशिश करते हैं जिन से व्यवहार में कुछ सुधार हो पाए।
बोलने में दिक्कत हो तो स्पीच थेरपी से कुछ केस में कुछ आराम मिल सकता है।
पार्किंसन किस्म के लक्षण हों तो डॉक्टर शायद कुछ पार्किसन की दवा भी दें।
व्यायाम (एक्सर्साइज) से, और शारीरिक और व्यावसायिक उपचार से भी कुछ आराम हो सकता है (physical and occupational therapy)।
देखभाल में पेश खास कठिनाइयाँ (Special challenges faced in caregiving)।
अन्य डिमेंशिया के मुकाबले फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया में देखभाल में चुनौतियाँ अधिक हैं, और देखभाल ज्यादा मुश्किल और तनावपूर्ण होती है।
निदान के समय व्यक्ति अकसर कमाने वाली उम्र में होते हैं, और उनकी ज़िम्मेदारियाँ ज्यादा होती हैं। बचत राशि अकसर कम होती है। देखभाल करने वाले भी नौकरी नहीं कर पाते। पैसे की मुश्किल आम है। बच्चों की उम्र भी कम होती है, और उनकी पढ़ाई वगैरह की जिम्मेदारी और खर्च ज्यादा होते हैं।
इस डिमेंशिया में अकसर व्यवहार संभालना ज्यादा मुश्किल रहता है।
जवान व्यक्ति के आक्रामक व्यवहार को संभालना ज्यादा कठिन है।
अनुचित व्यवहार के कारण समाज में और रिश्तेदारी में समस्या। इस के बारे में जानकारी इतनी कम है कि आस-पास के लोग रोग-निदान पर यकीन नहीं करते और व्यक्ति के चरित्र को खराब समझते हैं।
देखभाल सेवाएँ और रहने के लिए केयर होम बहुत ही कम हैं। लगभग सभी उपलब्ध सेवाएं और रहने के लिए केयर होम वृद्धों के लिए हैं। ये जवान, ताकतवर रोगियों के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया: मुख्य बिंदु (Salient Points about Frontotemporal Dementia)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है जो अन्य डिमेंशिया के प्रकार से कुछ मुख्य बातों में बहुत फर्क है। इस वजह से इस का सही रोग-निदान बहुत देर से होता है।
इस के अधिकांश केस 65 से कम उम्र के लोगों में होते हैं।
इस के प्रारंभिक लक्षण हैं व्यक्तित्व और व्यवहार में बदलाव और भाषा संबंधी समस्याएँ।
शुरू में याददाश्त संबंधी लक्षण नहीं होते।
यह प्रगतिशील और ला-इलाज है। अभी इस को रोकने या धीमे करने के लिए कोई दवाई नहीं है।
इलाज और देखभाल में दवा से, व्यायाम से, शारीरिक और व्यावसायिक थेरपी से और स्पीच थेरपी से व्यक्ति को कुछ राहत देने की कोशिश करी जाती है।
इस डिमेंशिया का अब तक मालूम रिस्क फैक्टर (कारक) सिर्फ फैमिली हिस्ट्री है , यानी कि परिवार में अन्य लोगों को यह या ऐसा कोई रोग होना।
इस डिमेंशिया में देखभाल कई कारणों से बहुत मुश्किल होती है, जैसे कि:
पैसे की दिक्कत, बदला व्यवहार संभालना ज्यादा मुश्किल, समाज में बदले व्यवहार के कारण दिक्कत, बाद में व्यक्ति की शारीरिक कमजोरी के संभालने में दिक्कत।
उपयुक्त सेवाएँ बहुत ही कम हैं, और स्वास्थ्य कर्मियों में भी जानकारी बहुत ही कम।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया पर विशिष्ट संस्थाएं और ऑनलाइन सपोर्ट कम है। अधिकांश उपलब्ध जानकारी और सपोर्ट अल्ज़ाइमर रोग के लिए तैयार करी गयी है, परन्तु फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया अल्ज़ाइमर रोग से कई महत्त्वपूर्ण बातों में फर्क है और इस लिए कई पहलू हैं जिन पर आम संसाधनों से उपयोगी जानकारी नहीं मिल पाती। यदि आप को या आपके किसी प्रियजन को FTD हो तो जानकारी और सपोर्ट के लिए विशिष्ट FTD संसाधन का भी इस्तेमाल करें।
संवहनी डिमेंशिया ((वैस्कुलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी, vascular dementia) डिमेंशिया के चार प्रमुख प्रकारों में से एक है| यह डिमेंशिया के करीब 20 – 30% डिमेंशिया केस के लिए जिम्मेदार है| इस के बारे में जानने से आप इसे ज्यादा आसानी से पहचान पायेंगे, और इस से बचने के लिए अपनी जिंदगी में उचित बदलाव अपना पायेंगे| इस पृष्ठ पर उपलब्ध सेक्शन हैं:
संवहनी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) क्या है (What is Vascular Dementia)|
संवहनी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है*1
इस डिमेंशिया में मस्तिष्क में हुई हानि को दवा से वापस ठीक नहीं किया जा सकता| यह इर्रिवर्सिबल, (irreversible) है|
Dementia India Report 2010 के अनुसार इर्रिवार्सिब्ल डिमेंशिया के केस में से व्यक्ति को 20-30% संवहनी डिमेंशिया (वैस्क्युलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी, vascular dementia) होता हैं|
अंग्रेज़ी शब्द वैस्कुलर (और हिंदी शब्द ‘संवहनी’) का अर्थ है – रक्त वाहिकाओं (खून की नलिकाएं, blood vessels) से संबंधित|
रक्त वाहिकाओं के द्वारा शरीर के हर भाग में आक्सीजन और जरूरी पदार्थ पहुंचाए जाते हैं|
हमारे मस्तिष्क में भी रक्त वाहिकाओं का एक नेटवर्क होता है (वैस्क्युलर सिस्टम)| मस्तिष्क के ठीक काम करने के लिए मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं का ठीक रहना बहुत ज़रूरी है|
संवहनी डिमेंशिया में मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में समस्या होती है, और इसकी वजह से डिमेंशिया लक्षण पैदा होते हैं| मस्तिष्क के कुछ भागों में खून की सप्लाई (blood supply) में रुकावट हो जाती है| खून ठीक न पहुँचने के कारण उन भागों में कोशिकाएं (सेल, cells) मर जाती हैं| इस के कारण वे भाग ठीक काम नहीं कर पाते, और डिमेंशिया के लक्षण पैदा होते हैं|
संवहनी डिमेंशिया के मुख्य प्रकार हैं:
स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया (Stroke-related dementia), और
स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया (Stroke-related Dementia)|
स्ट्रोक (पक्षाघात) में मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कुछ भागों में कुछ देर के लिए नहीं हो पाता|
यह रक्त वाहिका में बाधा से हो सकता है, जैसे कि रक्त का थक्का (clot) वाहिका को बंद कर दे|
यह वाहिका के फटने से भी हो सकता है|
कई लोग स्ट्रोक के बाद ठीक हो पाते हैं| पर कुछ लोगों में स्ट्रोक से हुई मस्तिष्क की हानि पूरी तरह ठीक नहीं होती, जिस से डिमेंशिया के लक्षण नज़र आ सकते हैं|
अल्ज़ाइमर सोसाइटी UK की “What is vascular dementia?” पत्रिका के अनुसार,
लगभग 20% स्ट्रोक केस में छह महीनों में डिमेंशिया के लक्षण नज़र आ सकते हैं|
एक बार स्ट्रोक हो, तो आगे भी स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है, और इस वजह से डिमेंशिया का खतरा भी बढ़ जाता है|
खून की सप्लाई में कमी के कुछ कारण का चित्रण देखें|
बार-बार मिनी स्ट्रोक से भी हानि होती है|
कुछ लोगों को बहुत छोटे-छोटे स्ट्रोक (मिनी-स्ट्रोक, mini-stroke) हो सकते हैं , जिन का असर 24 घंटे या कम में चला जाता है|
अकसर लोग ऐसे मिनी-स्ट्रोक पहचान नहीं पाते, या उन्हें गंभीर नहीं समझते|
पर कभी-कभी इन से मस्तिष्क में हानि हो सकती है|
ऐसे कई मिनी-स्ट्रोक के बाद कुल मिला कर हुई हानि इतनी हो सकती है कि डिमेंशिया के लक्षण नज़र आने लगते हैं|
मिनी-स्ट्रोक और उस में पाए डिमेंशिया से संबंधित कुछ शब्द:
मिनी-स्ट्रोक: ट्रांसिऐंट इस्कीमिक अटैक्स (transient ischemic attack, TIA) या अस्थायी स्थानिक अरक्तता|
मस्तिष्क में हुई हानि: इनफार्क्ट (रोधगलितांश, infarct)
बार-बार के मिनी-स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया: मल्टी- इनफार्क्ट डिमेंशिया (multi-infarct dementia), बहु-रोधगलितांश डिमेंशिया|
मस्तिष्क में कई छोटी वाहिकाएं हैं जो गहरे भागों (श्वेत पदार्थ) में खून पहुंचाती हैं|
इन में भी हानि हो सकती है, जैसे कि इनका सिकुड़ जाना, अकड़ जाना, इत्यादि। ऐसे में इन में खून का बहाव ठीक नहीं रहता| ऐसे नुकसान के कारक रोगों में उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, और मधुमेह शामिल हैं|
मस्तिष्क के गहरे भागों की छोटी वाहिकाओं में हानि के कारण उत्पन्न डिमेंशिया का नाम है सबकोर्टिकल संवहनी डिमेंशिया (Subcortical vascular dementia)|
संवहनी डिमेंशिया के लक्षण (Symptoms of Vascular Dementia)|
संवहनी डिमेंशिया में व्यक्ति के लक्षण इस बात पर निर्भर होते हैं कि मस्तिष्क के किस-किस भाग में क्षति हुई है, और यह क्षति कितनी गंभीर है|
संवहनी डिमेंशिया में शुरू के आम लक्षण हैं: शारीरिक कमजोरी और मनोदशा (मूड) में अस्थिरता/ उतार-चढ़ाव (mood fluctuations)|
याददाश्त की दिक्कत भी हो सकती हैं, पर यह इतनी नहीं हैं जितनी कि अल्ज़ाइमर (Alzheimer’s Disease) में|
अन्य लक्षण के उदाहरण हैं : काम करने की, या सोचने की गति कम होना, ध्यान लगाने में दिक्कत, निर्णय लेने में या समस्या का हल ढूंढ़ने में दिक्कत, भाषा संबंधी दिक्कत, भ्रम, अवसाद|
स्ट्रोक के केस में शरीर के एक तरफ कमजोरी भी हो सकती है|
हर व्यक्ति के लक्षण मस्तिष्क में हुई हानि के स्थान पर निर्भर हैं|
संवहनी डिमेंशिया में लक्षणों का बढ़ना (Progression of Vascular Dementia Symptoms)|
डिमेंशिया का होना और लक्षणों की प्रगति इस पर निर्भर है कि मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में समस्या किस तरह बढ़ती है|
डिमेंशिया का शुरू होना धीरे धीरे या अचानक हो सकता है|
कुछ लोगों में संवहनी डिमेंशिया के लक्षण धीरे-धीरे नज़र आते हैं|
पर यदि व्यक्ति को स्ट्रोक हो, तो स्ट्रोक के बाद लक्षण अचानक प्रकट हो सकते हैं|
लक्षण का बढ़ना भी अलग-अलग तरह से हो सकता है|
अगर डिमेंशिया स्ट्रोक के कारण हुआ है तो आगे के स्ट्रोक रोक पाने से मस्तिष्क में और अधिक क्षति नहीं होगी और लक्षण बिगड़ेंगे नहीं। पर अगर एक और स्ट्रोक हो जाए, तो लक्षण अचानक बढ़ भी सकते हैं । यानि कि, लक्षण चरणों (स्टेप्स) में बदतर हो सकते हैं|
अगर व्यक्ति को बार-बार स्ट्रोक या मिनी स्ट्रोक हो रहे हैं या मस्तिष्क की कोशिकाएं लगातार नष्ट हो रही हों तो गिरावट भी धीरे-धीरे बढ़ती रहेगी|
सबकोर्टिकल संवहनी डिमेंशिया में लक्षण धीरे-धीरे बढ़ सकते हैं, या भागों में भी बढ़ सकते हैं।
संवहनी डिमेंशिया: उपचार (Treatment of Vascular Dementia)|
संवहनी डिमेंशिया में मस्तिष्क में हुई हानि दवाई से ठीक नहीं हो सकती| (जिन भागों में हानि हुई है वे फिर से सामान्य नहीं हो सकते|
पर हम इस डिमेंशिया के बिगड़ने को रोकने की या धीरे करने की कोशिश कर सकते हैं| हम यह कोशिश कर सकते हैं कि रक्त का प्रवाह ठीक बना रहे और रक्त वाहिकाएं और अधिक खराब न हों|
डॉक्टर सलाह और दवाई देते समय अन्य पहलुओं के साथ-साथ संवहन-संबंधी पहलुओं पर जोर देते है। इन के उदाहरण हैं:
उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह, दिल की समस्याएँ| इनसे बचें या इन्हें नियंत्रित रखें|
जीवन शैली बदलें| धूम्रपान बंद करें, व्यायाम करें, पौष्टिक भोजन लें, वज़न स्वस्थ सीमाओं में रखें, मद्यपान कम करें|
देखभाल के समय भी इन बातों पर विशेष ध्यान देना होता है|
यह भी जरूरी है कि स्ट्रोक के बाद खास तौर से सतर्क रहें कि फिर से स्ट्रोक न हो| डिमेंशिया के लक्षणों के लिए भी सतर्क रहें|
(नोट:अधिकांश डिमेंशिया में लक्षण धीरे-धीरे और लगातार बढ़ते हैं|)
संवहनी डिमेंशिया: मुख्य बिंदु (Salient Points of Vascular Dementia)|
संवहनी मनोभ्रंश एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है, जो डिमेंशिया के 20-30% केस के लिए जिम्मेदार है|
यह अकेले भी पाया जाता है, और अन्य डिमेंशिया के साथ भी मौजूद हो सकता है , जैसे कि अल्ज़ाइमर और लुई बॉडी डिमेंशिया के साथ|
लक्षणों में, और प्रगति संबंधी पहलू में यह अन्य प्रमुख डिमेंशिया से कई तरह से फर्क हैं|
हानि कहाँ और कितनी हुई है, लक्षण इस पर निर्भर हैं|
अल्ज़ाइमर के मुकाबले इसमें याददाश्त की समस्या शुरू में कम पाई जाती है|
लक्षणों की प्रगति धीरे-धीरे भी हो सकती है, या चरणों (स्टेप्स) में भी हो सकती है|
इस की संभावना कम करने के लिए कारगर उपाय मौजूद हैं|
स्वास्थ्य और जीवन शैली पर ध्यान दें तो रक्त वाहिकाओं में समस्याएं कम होंगी| इस से संवहनी डिमेंशिया की संभावना कम होगी, और यदि हो भी तो इसकी प्रगति धीमी कर सकते हैं|
हृदय स्वास्थ्य के लिए जो कदम उपयोगी है, वे रक्त वाहिका समस्याओं से बचने के लिए भी उपयोगी हैं|
श्रेय: (Public domain pictures) मस्तिष्क का चित्र: Henry Vandyke Carter [Public domain], via Wikimedia Commons, मस्तिष्क के वैस्क्यूलर सिस्टम का चित्र: National Institute of Aging.
लुई बॉडी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है जिसके बारे में जानकारी बहुत कम है और जो अकसर पहचाना नहीं जाता। नतीजन, परिवार वाले यह नहीं जान पाते कि आगे क्या क्या होगा, देखभाल की तैयारी कैसे करें, और किन बातों के प्रति सतर्क रहें। इस पृष्ठ पर:
लुई बॉडी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) क्या है (What is Lewy Body Dementia)|
लुई बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body Dementia, LBD) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया (मनोभ्रंश) है*1 |
इस डिमेंशिया में हुई मस्तिष्क की हानि को दवाई से पलटा नहीं जा सकता (इर्रिवर्सिबल, irreversible)| व्यक्ति का मस्तिष्क फिर से सामान्य नहीं हो सकता|
मस्तिष्क की हानि समय के साथ बढ़ती जाती है (प्रगतिशील डिमेंशिया, प्रगामी डिमेंशिया, progressive dementia)|
अंतिम चरण में लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति सब कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं|
इस डिमेंशिया की खास पहचान है कि मस्तिष्क के कुछ न्यूरान (neuron, कोशिका/ सेल) में “लुई बॉडी” नामक असामान्य गुच्छे पाए जाते हैं| इस असामान्य संरचना के कारण ये सेल ठीक काम नहीं करते|
यह असामान्य संरचना मस्तिष्क के कई भागों में पाई जाती है| इन में अकसर वे क्षेत्र भी मौजूद हैं जो पार्किंसन रोग में प्रभावित होते हैं|
लुई बॉडी डिमेंशिया अन्य डिमेंशिया रोगों के साथ भी मौजूद हो सकता है, खासकर अल्ज़ाइमर के साथ (मिश्रित डिमेंशिया)|
जानकारी की कमी (Information/ awareness about LBD is very low)|
आम लोगों ने डिमेंशिया या अल्ज़ाइमर का नाम तो शायद सुना हो, पर वे लुई बॉडी डिमेंशिया के बारे में नहीं जानते|
डॉक्टरों में भी लुई बॉडी डिमेंशिया के बारे में कम जानकारी है, और इस को पहचानने का, और इसका इलाज करने का बहुत कम अनुभव है।
कुछ मुख्य बिंदु:
“लुई बॉडी” संरचना (असामान्य प्रोटीन डिपॉजिट का गुच्छा) सबसे पहले 1912 में एक पार्किंसन के रोगी में पहचाना गया|
“लुई बॉडी” संरचना से संबंधित डिमेंशिया का रोग निदान सिर्फ 1990 के दशक से शुरू हुआ है| निदान प्रणाली और मापदंड पर अब भी चर्चा जारी है|
यह डिमेंशिया कितने लोगों को है, इस पर भी विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है|
विशेषज्ञों का कहना है इस से ग्रस्त कई व्यक्तियों को सही रोग निदान नहीं मिलता, और लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को कई बार पार्किंसन रोग का या अल्ज़ाइमर रोग का निदान दिया जाता है|
लुई बॉडी डिमेंशिया के लक्षण (Symptoms of Lewy Body Dementia)|
लुई बॉडी डिमेंशिया में पाए जाने वाले कुछ विशिष्ट लक्षण:
सोच-विचार की क्षमताएं कम होती हैं और रोज-रोज बहुत बदलती हैं| इन क्षमताओं में स्पष्ट और बड़े-बड़े उतार-चढ़ाव नजर आते हैं |
विभ्रम, खास तौर से दृष्टि विभ्रम : ऐसी चीजें देखना जो मौजूद नहीं हैं (दृष्टि विभ्रम, चाक्षुष मतिभ्रम, visual hallucinations), ऐसी चीजें सुनना जो हैं नहीं (श्रवण मतिभ्रम, auditory hallucinations)। विभ्रम करीब 80% रोगियों में पाया जाता है, और अधिकतर यह दृष्टि विभ्रम होता है|
पार्किन्सन लक्षण: कंपन (ट्रेमर), जकड़न, पैर घसीटना, धीमापन और गति में बदलाव, झुक का चलना, बारीक काम में दिक्कत (जैसे कि लिखना, सुई पिरोना), चेहरे पर भाव की कमी|
नींद से जुड़ा विकार: नींद में ही सपनों पर अमल करना, जैसे कि सोते-सोते जोर से हँसना, चिल्लाना, हाथ-पैर मारना, बिस्तर से गिर जाना—यानि कि, REM नींद संबंधित व्यवहार विकार|
अन्य लक्षण: याददाश्त की समस्या, प्रॉब्लम सुलझाने में दिक्कत, तर्क करने में दिक्कत, निर्णय ठीक से न ले पाना, दूरी का अंदाज़ा न लगा पाना, वस्तुओं को पहचान न पाना, समय और जगह की पहचान न रहना, वगैरह| लुई बॉडी डिमेंशिया में याददाश्त की समस्या अल्ज़ाइमर जितनी नहीं देखी जाती|
रोग निदान संबंधित शब्दावली (Terms used while diagnosing)|
रोग-निदान के समय डॉक्टर अलग-अलग नामों का इस्तेमाल करते है, जिससे कई परिवार वाले कन्फ्यूज हो सकते हैं। इस पर छोटा सा परिचय:
कुछ डॉक्टर इस डिमेंशिया को कभी “डिमेंशिया विद लुई बॉडीज” कहते हैं और कभी “लुई बॉडी डिमेंशिया” बुलाते हैं|
कुछ डॉक्टर एक निदान प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं जिस में वे लुई बॉडी डिमेंशिया नाम के अंतर्गत दो अलग रोग निदान पहचानते हैं| ये हैं पार्किंसंस वाला डिमेंशिया (Parkinsonian dementia) और डिमेंशिया विद लुई बॉडीज (Dementia with Lewy Bodies)|
लुई बॉडी डिमेंशिया: कुछ अन्य तथ्य (Some other facts about Lewy Body Dementia)|
एक अनुमान के अनुसार पार्किंसंस वाले व्यक्तियों में से करीब 1/3 व्यक्तियों को आगे जा कर डिमेंशिया हो सकता है|
इस डिमेंशिया के होने की संभावना: पर अब तक उपलब्ध जानकारी :
इसकी संभावना उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है और इस के अधिकांश केस 50+ आयु के लोगों में हैं|
महिलाओं के मुकाबले यह पुरुषों में अधिक पाया जाता है|
पार्किंसंस वाले लोगों में इस की ज्यादा संभावना होती है|
इस डिमेंशिया की प्रगति:
इस में मस्तिष्क में हो रही हानि समय के साथ बढ़ती है| अंतिम अवस्था में व्यक्ति पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो सकता है|
यह 2 से 20 साल तक चल सकता है| (प्रारंभिक अवस्था या निदान से लेकर मृत्यु तक का फासला औसतन 5 से 7 साल का है|
लुई बॉडी डिमेंशिया और उपचार (Lewy Body Dementia Treatment)|
वर्तमान में, दवा से लुई बॉडी डिमेंशिया न तो रुक सकता है, न ही उसकी प्रगति धीमी करी जा सकती हैं|
ऐसे में व्यक्ति को लक्षणों से राहत देना अहम हो जाता है, ताकि व्यक्ति को कम दिक्कतें हों| इस के लिए दवाई, घर और वातावरण में बदलाव, और देखभाल और बातचीत के बेहतर तरीके इस्तेमाल करे जाते हैं|
कुछ दवाएं अल्ज़ाइमर या पार्किंसन रोग में कारगर हो सकती हैं पर लुई बॉडी केस में लक्षणों को बिगाड़ सकती हैं|
कई बार लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को अल्ज़ाइमर का गलत निदान मिल सकता है। इस स्थिति में डॉक्टर अल्ज़ाइमर की दवाई देंगे|
पार्किन्सन लक्षणों से राहत देने के लिए डॉक्टर पार्किंसन रोग में दी जाने वाली दवाई दे सकते हैं|
लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति में ऐसी कुछ दवाओं से नुकसान हो सकता है|
रोग निदान के बारे में थोड़ा सा भी शक हो तो डॉक्टर से बात करें|
सतर्क रहें कि दवा से नुकसान तो नहीं हो रहा। व्यवहार संबंधी दवा (ऐन्टी साइकाटिक, anti-psychotic) के दुष्प्रभाव के प्रति खास तौर से सतर्क रहें|
लुई बॉडी डिमेंशिया: मुख्य बिंदु (Salient Points about Lewy Body Dementia)|
लुई बॉडी डिमेंशिया एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है। यह ठीक नहीं हो सकता और समय के साथ व्यक्ति की हालत खराब होती जाती है|
इस के बारे में जानकारी बहुत कम है|
इस की खास पहचान है मस्तिष्क की कोशिकाओं में “लुई बॉडी” नामक असामान्य संरचना की उपस्थिति|
लक्षण:
विशिष्ट लक्षण हैं दृष्टि विभ्रम, सोचने-समझने की क्षमता कम होना, और इन का रोज-रोज बहुत भिन्न होना, पार्किंसन लक्षण, जैसे कंपन, जकड़न, धीमापन, पैर घसीटना, इत्यादि, और नींद में व्यवहार संबंधी समस्याएँ|
अन्य डिमेंशिया लक्षण भी प्रकट होते हैं|
अभी इस को रोकने या धीमे करने के लिए कोई दवाई नहीं है| इलाज और देखभाल में व्यक्ति को लक्षणों से कुछ राहत देने की कोशिश रहती है|
सही रोग निदान मिलने में दिक्कत हो सकती हैं|
कुछ आम-तौर डिमेंशिया में इस्तेमाल होने वाली दवाओं से लुई बॉडी डिमेंशिया वाले लोगों को नुकसान हो सकता है। सतर्क रहना जरूरी हैं|
लुई बॉडी डिमेंशिया से संबंधित कुछ खास संसाधन हैं। अधिक जानने के लिए और वर्तमान जानकारी के अपडेट पाने के लिए इन से संपर्क करें। कुछ ऑनलाइन समुदाय भी हैं जहाँ लोग इस से संबंधित अनुभव और सुझाव बांटते हैं। आप यदि इस डिमेंशिया से ग्रस्त हैं, या इस से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, तो इन में अनुभव और सुझाव बाँट सकते हैं|
लुई बॉडी डिमेंशिया और संबंधित विकारों के लिए कुछ शब्द/ वर्तनी:
लेवी बॉडीज़ , लेवी बॉडीज़ के साथ डिमेंशिया, लुई बाड़ी, लुई बाड़िज़, लुई बाड़िज़ वाला डिमेंशिया , लेवी बॉडीज़ वाला डिमेन्शिया, पार्किंसंस, पार्किंसन, पार्किन्सन|
Lewy Body Dementia (LBD), Dementia with Lewy Bodies (DLB), Parkinsonian Dementia, Parkinson’s Disease
चित्रों का श्रेय: कोशिका में लुई बॉडी का चित्र: Marvin 101 (Own work) [CC BY-SA 3.0] (Wikimedia Commons) पार्किन्सन के व्यक्ति का चित्र: By Sir_William_Richard_Gowers_Parkinson_Disease_sketch_1886.jpg: derivative work: Malyszkz [Public domain], via Wikimedia Commons.
अल्जाइमर रोग (Alzheimer’s Disease, AD) सबसे ज्यादा पाया जाने वाला डिमेंशिया है (50-75%)। इस पर जानकारी अन्य डिमेंशिया रोगों से ज्यादा आसानी से मिलती है। इस पृष्ठ पर प्रस्तुत है इस पर एक सरल परिचय और कुछ उपयोगी चित्र, और हिंदी साइट और वीडियो के लिंक भी हैं|
अल्ज़ाइमर रोग क्या है (What is Alzheimer’s Disease).
अल्ज़ाइमर रोग सबसे ज्यादा पाया जाने वाला डिमेंशिया है*1 |
इस डिमेंशिया में मस्तिष्क में हुई हानि को दवा से वापस ठीक नहीं किया जा सकता| यह इर्रिवर्सिबल (irreversible) है|
Dementia India Report 2010 के अनुसार इर्रिवार्सिब्ल डिमेंशिया के केस में से 50 – 75% लोगों को अल्ज़ाइमर रोग होता है|
अल्ज़ाइमर रोग अन्य डिमेंशिया के साथ-साथ भी पाया जाता है, जैसे कि वैस्कुलर डिमेंशिया के साथ। इस को मिश्रित डिमेंशिया (मिक्स्ड डिमेंशिया) कहते हैं|
अल्ज़ाइमर रोग सबसे पहले डॉक्टर अलोइस अल्झाइमर ने पहचाना था| इस लिए यह रोग उन के नाम से जाना जाता है। पर यह रोग नया नहीं है। इस के लक्षण तो हम सदियों से देखते आ रहे हैं, बस हम यह नहीं जानते थे कि ये लक्षण मस्तिष्क में हो रहे बदलाव के कारण हैं।
अल्ज़ाइमर रोग में मस्तिष्क में हो रही हानि की खास पहचान हैं बीटा-एमीलायड प्लैक और न्यूरोफिब्रिलरीटैंगल| सरलता के लिए इन्हें अकसर सिर्फ प्लैक और टैंगिल भी बुलाया जाता है|
इन असामान्य खण्डों की वजह से मस्तिष्क के सेल (कोशिकाएं, न्यूरोन) मरने लगते हैं|
सेल एक दूसरे को सन्देश ठीक से नहीं पहुंचा पाते|
मस्तिष्क सिकुड़ने लगता है|
हानि अकसर मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस भाग में शुरू होती है, और धीरे धीरे सभी भागों में फैलने लगती है|
जैसे-जैसे हानि बढ़ती है, मस्तिष्क के अनेक भाग भी ठीक काम नहीं कर पाते|
अल्ज़ाइमर रोग के लक्षण (Symptoms of Alzheimer’s Disease).
अकसर हिप्पोकैंपस क्षेत्र अल्ज़ाइमर में सबसे पहले प्रभावित होता है। इस क्षेत्र का सम्बन्ध सीखने और याददाश्त से है।
अल्ज़ाइमर रोग में शुरू का आम लक्षण है याददाश्त की समस्या। इस लिए इस रोग को कई लोग भूलने की बीमारी कहते हैं|
यह स्मृति-लोप की समस्या बहुत धीरे-धीरे बढ़ती हैं| यह विशेष तौर से हाल में हुई बातों को याद करने की कोशिश करते वक्त नजर आती है|
अन्य शुरू के लक्षण हैं डिप्रेशन (यानि कि अवसाद), अरुच और उदासीनता|
मस्तिष्क ठीक काम नहीं कर पाता, इसलिए अन्य लक्षण भी नजर आते हैं| कुछ उदाहरण पेश हैं:
जगह और समय क्या है, यह ठीक से मालूम नहीं होना| भटकने की समस्या आम है| |
साधारण रोज-रोज के काम करने में दिक्कत होना, काम बहुत धीरे-धीरे करना या उन में मदद की जरूरत होना|
ध्यान लगाने में दिक्कत|
नई चीजें न सीख पाना |
अपनी बात बताने में दिक्कत| दूसरों की बातें समझने में दिक्कत| भाषा की दिक्कत,| लिखने में दिक्कत|
चीजें पहचानने में दिक्कत| चित्रों को पहचान ना पाना| दूरी का अंदाजा ठीक से नहीं लगा पाना|
सोचने में और तर्क करने में दिक्कत| हिसाब करने में दिक्कत| समस्याएँ ना सुलझा पाना| निर्णय लेने में दिक्कत |
व्यक्तित्व और मूड में बदलाव, जैसे कि दूसरों से दूर रहने लगना, चिड़चिड़ा होना |
भ्रम होना|
अल्ज़ाइमर रोग में कई उप-प्रकार हैं, जिन में कुछ असामान्य अल्ज़ाइमर रोग (Atypical Alzheimer’s Disease) भी हैं, और इन में लक्षण सामान्य अल्ज़ाइमर रोग से कुछ अलग होते हैं। [ऊपर]
समय के साथ अल्ज़ाइमर रोग का बढ़ना (Progression of Alzheimer’s Disease).
अल्ज़ाइमर रोग एक प्रगतिशील रोग है। इस में समय के साथ-साथ हानि बढ़ती रहती है, और लक्षण भी उसी प्रकार गंभीर होते जाते हैं। शुरू में अकसर सिर्फ हिप्पोकैम्पस में हानि होती है, पर यह हानि फैलती जाती है।
अल्ज़ाइमर में मस्तिष्क के सेल (न्यूरोन) में हानि
रोग का व्यक्ति पर असर किस रफ्तार से और किस तरह बढ़ेगा यह हर केस में फर्क होता है। अंतिम चरण तक पहुँचते पहुँचते व्यक्ति सभी कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं। व्यक्ति का चलना फिरना, बोल पाना, यहाँ तक कि खाना निगल पाना, सभी बहुत मुश्किल हो जाता है| वे पूरे समय बिस्तर पर ही रहते हैं।
अल्ज़ाइमर रोग में मस्तिष्क में किस प्रकार हानि होती है, और समय के साथ यह कैसे बढ़ती है, यह देखने के लिए कुछ चित्रण पेश हैं , National Institute on Aging USA के सौजन्य से|
अल्ज़ाइमर रोग: कुछ अन्य तथ्य (Some other facts about Alzheimer’s Disease).
बढ़ती उम्र और अल्ज़ाइमर होने की संभावना में सम्बन्ध है|
अल्ज़ाइमर की संभावना उम्र के साथ बढ़ती है, और खास तौर से 65 साल और अधिक होने के बाद ज्यादा होती है। अधिकांश केस 65 और उससे ज्यादा आयु वाले लोगों में पाए जाते हैं|
एक जरूरी तथ्य यह है कि अल्ज़ाइमर रोग 65 से कम उम्र के लोगों में भी हो सकता है। इस को यंगर ऑनसेट अल्ज़ाइमर रोग (Younger Onset Alzheimer’s Disease, YOAD) या अर्ली ऑनसेट अल्ज़ाइमर रोग कहते हैं (Early Onset Alzheimer’s Disease, EOAD)|
अल्ज़ाइमर के कारक पर उपलब्ध जानकारी :
अल्ज़ाइमर रोग किसी को भी हो सकता है। इस का कोई स्पष्ट कारक नहीं मालूम है।
उम्र के साथ-साथ अल्ज़ाइमर रोग की संभावना बहुत बढ़ती है| उम्र बढ़ने को इस रोग का सबसे प्रमुख कारक माना जाता है|
यदि परिवार में किसी को अल्ज़ाइमर है, तो बच्चों में अल्ज़ाइमर की संभावना ज्यादा होती है। इस आनुवंशिकता को ठीक से समझने के लिए अभी रिसर्च चल रहा है।
अवधि:
यह रोग प्रगतिशील है और ला-इलाज भी, और इस की अवधि शुरू के लक्षण से लेकर व्यक्ति के मौत तक है। यह अवधि हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग है| ये अवधि कुछ साल से लेकर एक या दो दशक तक की हो सकती है।
कुछ अनुमान के अनुसार प्रारंभिक लक्षण से अंत तक व्यक्ति को औसतन आठ साल लगते हैं|
बचाव:
अल्ज़ाइमर से बचने का कोई पक्का तरीका अब तक मालूम नहीं है। इस पर जोर-शोर से शोध चल रहा है।
अब तक की समझ के हिसाब से कुछ चीजें हैं जिन्हें अपनाने से इसकी संभावना कम होगी|
स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, जैसे कि नियमित व्यायाम और पौष्टिक भोजन |हृदय स्वास्थ्य में इस्तेमाल तरीके अल्ज़ाइमर रोग से बचाव के लिए भी अपना सकते हैं|
सक्रिय और सकारात्मक जीवन बिताना, और अर्थपूर्ण काम करना|
अवसाद, यानि कि डिप्रेसन से बचना|
ऐसे काम करना जिन से मस्तिष्क सक्रिय रहे|
लोगों से मिलना-जुलना| सामाजिक गतिविधियों में भाग लेना|
कुछ स्वास्थ्य समस्याओं से खास तौर बचना, जैसे कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रोल, और हृदय रोग। यह समस्याएँ हों तो इन को नियंत्रण में रखना|
अल्ज़ाइमर रोग-निदान और उपचार (Diagnosis and Treatment of Alzheimer’s Disease).
अल्ज़ाइमर रोग-निदान के लिए कोई एक विशिष्ट टेस्ट नहीं है। विशेषज्ञ अल्ज़ाइमर का डायग्नोसिस पूरी चिकित्सीय जाँच के बाद ही दे सकते हैं। वे व्यक्ति के लक्षण समझने की कोशिश करते हैं, व्यक्ति की अन्य बीमारियों की जानकारी प्राप्त करते हैं, फैमिली मेडिकल हिस्ट्री लेते हैं, और परिवार वालों से भी बात करते हैं। खून के टेस्ट, मानसिक अवस्था के लिए टेस्ट, याददाश्त और सोचने-समझने के लिए टेस्ट, ब्रेन स्कैन, इत्यादि, ये सब इस चिकित्सीय मूल्यांकन का भाग हैं।
रोग-निदान में गलतियाँ हो सकती है। कुछ उदाहरण पेश हैं|
लक्षण धीरे धीरे बढ़ते हैं| कई बार इन्हें बुढ़ापे की आम समस्या समझ कर नजरअंदाज कर दिया जाता है|
यदि व्यक्ति में अल्ज़ाइमर रोग सामान्य तरह से पेश नहीं हो, तो यह शायद न पहचाना जाए| उदाहरण है कम उम्र में अल्ज़ाइमर होना|
क्योंकि अल्ज़ाइमर रोग के बारे में अन्य डिमेंशिया रोगों से ज्यादा जानकारी और जागरूकता है, इसलिए कभी-कभी मिलते-जुलते लक्षण देखने पर, बिना पूरी जाँच करे, व्यक्ति को अल्ज़ाइमर का रोग-निदान मिल सकता है। व्यक्ति को कोई दूसरी बीमारी है, यह शायद पहचाना न जाए। इस स्थिति में:
व्यक्ति को अन्य मौजूद बीमारी का इलाज नहीं मिल पाता है|
कुछ दवा जो अल्ज़ाइमर रोग में कारगर हैं, वे अन्य रोगों में नुकसान भी कर सकती हैं|
अच्छा यही होगा कि परिवार वाले संतोष कर लें कि रोग-निदान के समय सब जाँच हुई है|
रोग-निदान जितनी जल्दी हो, उतना अच्छा है, ताकि व्यक्ति उपलब्ध दवा का लाभ उठा सकें, और व्यक्ति और परिवार वाले, सब आगे के लिए योजना बना पाएँ|
इसका पूरा उपचार अब तक उपलब्ध नहीं है|
वर्तमान में, दवा से अल्ज़ाइमर रोग न तो रुक सकता है, न ही उसकी प्रगति धीमी करी जा सकती हैं|
हालांकि मस्तिष्क में हो रही हानि के लिए कोई दवा नहीं है, पर ऐसी कुछ दवा हैं जिन से अल्ज़ाइमर के रोगियों को कुछ राहत मिल सकती है|
ये दवाएं लक्षणों में कुछ सुधार लाने के लिए इस्तेमाल होती हैं। यह कुछ लोगों में कारगर होती हैं, पर सब में नहीं, और यह शुरू की अवस्था में ज्यादा कारगर होती हैं।
दवा के अतिरिक्त, अन्य भी कई तरीके हैं जिन से व्यक्ति की सहायता करी जा सकती है| उदाहरण हैं घर और वातावरण में बदलाव, और देखभाल और बातचीत के बेहतर तरीके इस्तेमाल करना। व्यक्ति की खुशहाली के लिए इन्हें अपनाना बहुत जरूरी है| [ऊपर]
उपलब्ध जानकारी और सपोर्ट पर कुछ कमेन्ट (Available information and resources: some comments).
डिमेंशिया अनेक रोगों की वजह से हो सकता है, और इन में से अल्ज़ाइमर रोग पर सब से ज्यादा चर्चा होती है। डिमेंशिया समर्थन पर काम करने वाली संस्थाओं के नाम में अकसर अल्ज़ाइमर शब्द होता है, जैसे कि “अल्ज़ाइमर असोसिअशन” या “अल्ज़ाइमर सोसाइटी”। भारत में राष्ट्रीय स्तर के संगठन के नाम में भी अल्ज़ाइमर शब्द है: Alzheimer’s and Related Disorders Society of India (ARDSI)। लेखों में, खबरों में, अन्य जागरूकता के लिए करे गए कार्यक्रमों में, सब में अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया दोनों शब्दों का अदल-बदल कर इस्तेमाल होता है। इस कारण यह नाम भी कई लोग पहचानते हैं| पर इस में क्या लक्षण हैं, और उन का व्यक्ति और परिवार पर क्या असर होता है, इस पर जानकारी कम है।
कई लोग अल्ज़ाइमर को भूलने की बीमारी समझते हैं या इसे वृद्धों की बीमारी के रूप में ही जानते हैं। लोग यह नहीं जानते कि व्यक्ति को बहुत तरह की दिक्कतें होती हैं और समय के साथ-साथ व्यक्ति पूरी तरह लाचार हो जाते हैं, या यह कम उम्र में भी हो सकता है। यानि कि, नाम की पहचान तो है, पर इस रोग का किस-किस पर और कितना गंभीर असर होता है, इस के बारे में कई गलत धारणाएँ हैं।
परिवार में यदि किसी को अल्ज़ाइमर है, तो देखभाल की जरूरत होती है, और व्यक्ति की सहायता का काम समय के साथ बढ़ता जाता है। देखभाल कई साल करनी होती है| इस के लिए परिवार को सही जानकारी, सलाह और सेवाओं की जरूरत होती है। पर भारत में ऐसी बहुत ही कम संस्थाएं और सेवाएं हैं जो उचित जानकारी और सहायता दे सकती हैं।
अफ़सोस, कुछ लोग अल्ज़ाइमर रोग से संबंधित आशंका और भय का फायदा उठाते हैं। वे अपनी संस्था या सेवा के लिए दावा करते हैं कि वे अल्ज़ाइमर रोगियों को उचित सहायता और सेवा प्रदान कर पायेंगे| वे कभी-कभी यह भी गलत दावा करते है कि वे अधिकृत संस्थाओं से जुड़े हैं। पर वास्तव में उनकी जानकारी बहुत ही सीमित होती है। किसी के भी दावे पर विश्वास करने से पहले ऐसे दावों की पुष्टि करनी जरूरी है।
अंग्रेजी में खोज रहे हों तो कुछ उपयोगी खोज शब्द: Alzheimer’s Disease, beta amyloid plaque, neurofibrillary tangles, young onset Alzheimer’s Disease, early-onset Alzheimer’s Disease, mixed dementia, Atypical Alzheimer’s disease, Posterior cortical atrophy (PCA), Logopenic aphasia, और Frontal variant Alzheimer’s disease.
श्रेय: (Public domain pictures) neuron death picture: 7mike5000 [CC BY-SA 3.0], via Wikimedia Commons, hippocampus: By Derivative work: Looie496 (File:Gray739.png) [Public domain], via Wikimedia Commons, Pictures of brain changes in AD, and brain shrinkage: By National Institute on Aging [Public domain], via Wikimedia Commons, brain lobes image: Henry Vandyke Carter [Public domain], via Wikimedia Commons.
यूट्यूब पर डिमेंशिया (मनोभ्रंश) और संबंधित देखभाल पर, और डिमेंशिया के कुछ निजी अनुभव पर हिंदी में कुछ वीडियो उपलब्ध हैं। इस सूची के लिए सुझाव हों, तो हमें ई-मेल करके बता दें।
मूविंग पिक्चर्स इंडिया से डिमेंशिया और देखभाल पर दस लघु फिल्में (सामग्री हिन्दी, अंग्रेजी और कन्नड में, और हिन्दी सब्टाइटल उपलब्ध).
बैंगलोर और उसके आसपास देखभालकर्ताओं, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और शिक्षाविदों के इंटेरव्यू से बनी ये 10 लघु फिल्में डिमेंशिया और घर पर देखभाल से संबंधित अनेक विषयों का परिचय देती हैं। ये फिल्में मिश्रित भाषा में हैं – अंग्रेजी, हिन्दी और कन्नड – और इन में तीनों भाषाओं में सब्टाइटल उपलब्ध हैं (जो आप सेटिंग्स के विकल्पों से चूँसकते हैं)। चूंकि ये भारत में बनाई गयी हैं, इन की सामग्री सांस्कृतिक रूप से (भारत के बाहर बनी फिल्मों के मुकाबले) प्रासंगिक और व्यावहारिक है। प्रत्येक फिल्म 5 से 7 मिनट लंबी है।
Living well with dementia – Hindi version: UK में निवासी एशिया के लोगों के लिए डिमेंशिया पर विस्तृत वीडियो.
यह 35 मिनट लंबा हिंदी वीडियो है, और इसमें डिमेंशिया और देखभाल के अनेक पहलूओं पर व्यापक जानकारी है। चित्रों और मॉडल द्वारा डिमेंशिया के कारण हो रहे मस्तिष्क में बदलाव समझाए गए हैं। डिमेंशिया का व्यक्ति और परिवार पर असर समझाया गया है। प्रभावित परिवारों ने अपने अनुभाव बांटे हैं और विशेषज्ञों के इंटरव्यू भी हैं। पर यह ध्यान रखें, यह वीडियो UK में निवासी एशियंस के लिए बनाए गया है, और उपलब्ध सहायक सेवाओं का वर्णन भी सिर्फ UK के संदर्भ में है। भारत में स्थित अधिकाँश परिवारों को उस तरह की सहायता और समर्थक सेवाएँ नहीं मिल पाएंगी। फिर भी, डिमेंशिया और सम्बंधित देखभाल के अनुभव समझने के लिए यह वीडियो बहुत कारगर है।
वीडियो हिंदी में है, पर उसमे सबटाइटल अँग्रेज़ी में हैं।
डिमेंशिया क्या है: अल्ज़ाइमर सोसिएटी से साउथ एशियन परिवारों के लिए एक इनफोर्मेशन प्रोग्राम.
यह नौ मिनट का वीडियो डिमेंशिया के कई पहलूओं पर जानकारी देता है। “What Is Dementia? – Hindi – Information Programme for South Asian Families” नामक इस वीडियो में बताया गया है कि डिमेंशिया का लोगों पर क्या असर होता है, और इसके होते हुए भी ज़िंदगी भरपूर तरह जीने के लिए क्या कर सकते हैं। इसमें परिवार वालों के लिए कुछ उपयोगी टिप्स भी हैं। वीडियो “What Is Dementia? – Hindi – Information Programme for South Asian Families ” यूट्यूब पर देखें Opens in new window, या नीचे दिए गए प्लेयर का इस्तेमाल करें।
एल्ज़ाइमर्ज़ पर कुछ लघु फ़िल्में अँग्रेज़ी में, पर हिंदी सबटाईटल के साथ.
Aboutalz ने एल्ज़ाइमर्ज़ पर कई छोटी छोटे फ़िल्में (pocket films) बनायी हैं जो हैं तो अँग्रेज़ी में, पर जिन से अनेक भाषाओं के सबटाईटल भी हैं। हिंदी सबटाईटल वाली फ़िल्में यूट्यूब पर उपलब्ध हैं, इन्हें यहाँ देखें:।
डिमेंशिया का सफर और देखभाल के अनुभव: एक बेटी के दो हिंदी वीडियो.
ये दो हिंदी वीडियो भारत में स्थित स्वप्ना किशोर (Swapna Kishore) के निजी अनुभव हैं।
वीडियो माँ का डिमेंशिया का सफर में स्वप्ना अपने माँ के डिमेंशिया लक्षण के बारे में बात करती हैं, और बतातीं हैं कि समय के साथ ये लक्षण कैसे बढ़े और माँ को किस प्रकार की तकलीफें हुईं। वीडियो “माँ का डिमेंशिया का सफर” यूट्यूब पर देखें Opens in new window, या नीचे दिए गए प्लेयर का इस्तेमाल करें।
इस उर्दू वीडियो में एक परिवार की कहानी है, जिसमे बुज़ुर्ग पिता को डिमेंशिया हो जाता है। डिमेंशिया पर कुछ जानकारी भी दी गयी है। हालांकि कहानी भारत में स्थित नहीं है, फिर भी भारत में रहने वालों को शायद कुछ उपयोगी जानकारी मिले। वीडियो “याददाश्त का सफर” यूट्यूब पर देखें Opens in new window, या नीचे दिए गए प्लेयर का इस्तेमाल करें।
डिमेंशिया/ देखभाल जानकारी वाले वेबसाइट. अल्जाइमर (Alzheimer’s Disease) की राष्ट्रीय या प्रांतीय संस्थाएं. अन्य डिमेंशिया रोगों की राष्ट्रीय/ अंतर-राष्ट्रीय संस्थाएं. फोरम. कई साईट में केयरगिवर मैनुअल डाउनलोड के लिए उपलब्ध. …
इन्टरनेट पर डिमेंशिया (मनोभ्रंश)/ अल्ज़ाइमर सम्बंधित अधिकांश जानकारी अँग्रेज़ी में है। इस प्रकार की जानकारी विभिन्न देशों के अल्ज़ाइमर / डिमेंशिया संस्थाओं द्वारा उनके वेबसाइट पर उपलब्ध है। कई साईट Alzheimer’s Disease के राष्ट्रीय या प्रांतीय संस्थाओं के हैं। अन्य प्रकार के डिमेंशिया के भी राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय वेबसाइट हैं, जैसे कि फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया (Fronto Temporal Dementia, FTD) या लुई-बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body Dementia, LBD)। इन में खास डिमेंशिया रोग (FTD, LBD, इत्यादि) और सम्बंधित देखभाल पर जानकारी और सलाह मौजूद है। कई साईट पर देखभाल कर्ताओं के लिए उपयोगी डाउनलोड भी हैं। कुछ साईट पर ऑनलाइन समुदाय (कम्यूनिटी, caregiver community) भी हैं जहाँ देखभाल करने वाले आपस में समस्याओं और सुझावों का आदान प्रदान कर सकते हैं।
कुछ अल्ज़ाइमर संगठनों ने अल्ज़ाइमर/ डिमेंशिया जानकारी हिन्दी और अन्य कई भाषाओं में भी उपलब्ध कराई है। अपने देश के प्रवासियों की सुविधा के लिए कुछ राष्ट्रों की Alzheimer’s Association ने कुछ सरल पत्रिकाएँ अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित करी हैं। उदाहरण के तौर पर, ऑस्ट्रेलिया में ऐसे कई लोग रहते हैं जो अँग्रेज़ी के अलावा अन्य भाषाएँ बोलते हैं। उनकी सुविधा के लिए ऑस्ट्रेलिया के डिमेंशिया संगठन के वेबसाइट पर डिमेंशिया जानकारी अनेक भाषाओं में उपलब्ध है। इन भाषाओं में हिंदी और कुछ अन्य भारतीय भाषाएँ भी हैं। अन्य देशों के Alzheimer’s Association वेबसाइट पर भी कुछ हिंदी पत्रिकाएँ हैं।
अन्य देशों द्वारा उपलब्ध कराई गयी जानकारी डिमेंशिया के लक्षण और उपचार को समझने के लिए बहुत उपयोगी हैं। देखभाल पर भी अच्छी जानकारी है। पर इन पत्रिकाओं में जानकारी उस देश में रहने वालों के लिए है, और सहयोगी सेवाओं पर चर्चा करते हुए इन में यह माना गया है कि डिमेंशिया से जूझ रहे परिवारों को उचित और पर्याप्त सहायता मिल पायेगी। यह जानकारी जिन देशों के लिए लिखी गयी है वहाँ डिमेंशिया की जागरूकता अधिक है, और उपलब्ध सहायता भी ज्यादा और अनेक किस्म की है। भारत में स्थित परिवारों के लिए आज-कल के हालत में यह सच नहीं है।
भारत में भी कुछ अल्ज़ाइमर/ डिमेंशिया और देखभाल जानकारी हिंदी में इन्टरनेट पर उपलब्ध है। यह जानकारी भारत में रहने वालों के लिए लिखी गयी है।
हिंदी में जानकारी आपको इन लिंक पर मिल सकती हैं: [अस्वीर्करण.]
अन्य देशों के Alzheimer’s Association द्वारा हिंदी में प्रकाशित डिमेंशिया जानकारी: (यह सूचना अन्य देशों के लिए तैयार की गयी है। इनमें लिखी गयी कानूनी, इंशोरेंस, और चिकित्सा प्रणालियों संबंधी जानकारी शायद भारत में लागू न हो। जागरूकता और सहायक सेवाओं और संस्थाओं की जानकारी भी भारत में लागू नहीं होगी):
Alzheimer’s Society U K : The dementia guide – Hindi Opens in new window (PDF फाइल ) इस पृष्ठ पर दिए गए लिंक द्वारा आप डिमेंशिया देखभाल पर हिंदी में एक गाईड डाउनलोड कर सकते हैं। यह अल्जाइमर सोसाइटी U K से उपलब्ध एक विस्तृत गाईड है। इसमें कुछ चैप्टर डिमेंशिया समझने में और देखभाल के तरीके जानने में सहायक होंगे, पर अन्य चैप्टर इंग्लैंड के संदर्भ में हैं, और भारत में देखभाल करने वालों के लिए मददगार नहीं हैं।
Scotland के राष्ट्रीय संस्थान द्वारा: Dementia Opens in new window (PDF फाइल ) यह Equal Opportunity, Scotland के Multi-Lingual Dementia Information Pack: Providing information, Raising Awareness में उपलब्ध एक पत्रिका है (PDF फाइल)।
Alzheimer’s Association USA द्वारा: अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया Opens in new window इस पृष्ठ पर अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया पर कुछ जानकारी है, जैसे कि स्मृतिलोप और अल्ज़ाइमर के अन्य लक्षण, अल्ज़ाइमर और मस्तिष्क, अल्ज़ाइमर के जोखिम कारक, अल्ज़ाइमर का निदान करना, देखभाल करना, इत्यादि।
भारत से हिंदी में डिमेंशिया और सम्बंधित जानकारे वाले वेबसाइट:
यह वेबसाइट, “Dementia Hindi”, खासतौर पर भारत में रहने वालों के लिए बनाया गया है। इस वेबसाइट पर लगभग 40 विस्तृत पृष्ठ हैं जिनमे डिमेंशिया और सम्बंधित देखभाल पर चर्चा है। वीडियो और प्रेसेंटेशन भी हैं। कृपया हमारे मेनू के विकल्प देखें। यह सब पृष्ठ भारत की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लिखे गए हैं। वेबसाइट के मुख्य सेक्शन हैं:
डिमेंशिया के बारे में जानकारी : डिमेंशिया क्या है, किन रोगों से होता है, निदान कैसे होता है, इलाज है या नहीं, यह बढ़ता कैसे है, इसका व्यवहार पर क्यों और कैसे प्रभाव पड़ता है, भारत में डिमेंशिया और देखभाल की क्या स्थिति है।
देखभाल करने वालों के लिए : देखभाल के लिए ज़रूरी जानकारी, जैसे कि देखभाल के लिए प्लान करना, बातचीत कैसे करें, दैनिक कामों में मदद करना, मुश्किल व्यवहार संभालना, घर में सहायक बदलाव करना, व्यक्ति को शांत और सुखी रखना, देखभाल का तनाव कम करना, दूर से देखभाल करना, इत्यादि।
कोविड लॉकडाउन के बाद से कुछ अन्य प्रकार के हिन्दी संसाधन भी उपलब्ध हुए हैं।
जब कोविड-19 लॉकडाउन शुरू हुआ, तो लगभग सभी व्यक्तिगत डिमेंशिया सेवाएं बंद हो गईं, परिवारों को समर्थन दे पाने के लिए धीरे धीरे कई संगठनों ने ऑनलाइन या फोन हेल्पलाइन शुरू किए। ये अब भी काफी हद तक उपलब्ध हैं। चूंकि ऑनलाइन संसाधनों तक कोई भी व्यक्ति पहुंच सकता है, परिवार अधिक जानने, लोगों से जुड़ने, समर्थन प्राप्त करने आदि के लिए स्थानीय संगठनों तक सीमित नहीं हैं। कई तरह के वेबईनार और पैनल डिस्कशन भी अब अधिक होते हैं, और ईवेंट खतम होने के बाद भी ऑनलाइन उपलब्ध रहते हैं। ऐसे भी सेशन होते हैं जिनमें परिवार वाले या डिमेंशिया वाले व्यक्ति ऑनलाइन माध्यम से अन्य लोगों के साठ गतिविधियों में जुड़ पाते हैं।
हालांकि अब भी ये ज्यादातर अंग्रेजी में ही हैं, इनमें कई बार हिन्दी में प्रश्न पूछना या किसी विषय पर जानकारी प्राप्त करना संभव होता है। कुछ सेशन तो अंग्रेजी और हिन्दी, दोनों भाषाओं में होते हैं।
इन नए संसाधनों से लाभ उठाने के लिए, परिवारों को इस्तेमाल किए जा रहे तकनीकी प्लेटफॉर्म से परिचित होने की जरूरत है। सौभाग्य से, अधिकांश परिवारों ने जितना सोचा था उससे कहीं अधिक आसानी से ऑनलाइन मोड को अपना लिया है।
फेसबुक और कुछ अन्य माध्यमों द्वारा ससहायता और समर्थन के लिए अनलाइन समुदाय उपलब्ध हैं। इनमें से कई दूसरे देशों से है, और कुछ भारत से भी हैं। इसके अतिरिक्त आजकल कुछ समुदाय व्हाट्सप्प पर भी मिलते हैं।, इनमें ज्यादातर चर्चा अंग्रेजी में होती है।आप इनके बारे में हमारे अंगरजी साइट पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
एक विकल्प है कि टेक्नॉलजी की सहायता से देखभाल करते वाले और स्वयंसेवक और विशेषज्ञ अपने छोटे छूटे समुदाय बनाएं। आजकल कुछ लोग ऐसे समुदाय व्हाट्सप्प, फेसबुकइत्यादि द्वारा बना लेते हैं।
उदाहरण के तौर पर, एक ऐसी स्थिति हो सकती है जब कोई संगठन एक सपोर्ट ग्रुप मीटिंग करता है और फिर स्वयंसेवक एक व्हाट्सएप समूह बनाते हैं है ताकि मीटिंग में उपस्थित देखभाल कर्ता संपर्क में रह सकें। इस तरह के छोटे समूहों में गतिविधि का स्तर और साझा की गई जानकारी की गुणवत्ता और उपयोगिता बहुत भिन्न होती हैं। ऐसे समूहों पर बातचीत में जानकारी साझा करना, प्रश्न और सुझाव, ऐसी सेवाओं का विवरण जिसे किसी ने उपयोगी पाया है, व्यक्तिगत कहानियों को साझा करना, और अनौपचारिक रूप से मिलना शामिल हो सकता है। ऐसे कुछ समूह बहुत सक्रिय और उपयोगी रहते हैं, कुछ नहीं।
यदि आप ऐसे समूह का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो आप अपने परिचित किसी स्वयंसेवक से ऐसे समूह की स्थापना और समन्वय करने के लिए कह सकते हैं। या आप अन्य देखभाल करने वालों के साथ जुड़ कर जानकारी साझा करने और संपर्क में रहने के लिए अपना समुदाय बना सकते हैं।
एक अन्य संभावना है कि आप खुद ही ऐसा फोरम बनाएं और उसे माडरेट करें। ऐसा करने की सोच रहे हों तो कुछ बातों का खास खयाल रखना होता है।
सुनिश्चित करें कि एक या अधिक जानकार, जिम्मेदार विशेषज्ञ सक्रिय रूप से फोरम में भाग लेंगे, और ग्रुप को उपयोगी बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इससे सदस्यों द्वारा भ्रामक जानकारी साझा करने की संभावना कम हो जाती है। साथ ही, प्रश्नों के बेहतर और अधिक विश्वसनीय उत्तर पाने में भी मदद मिलती है।
सुनिश्चित करें कि आप समूह की गोपनीयता सेटिंग्स और नियमों के बारे में स्पष्ट हैं। इस बात से सावधान रहें कि समूह के सदस्य दूसरे सदस्यों की गोपनीयता का सम्मान करें। सावधान रहें कि आप फोरम में क्या साझा करते हैं, क्योंकि हो सकता है फोरम में कुछ ऐसे सदस्य हैं जिन से आप वह बात न कहना चाहें। फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि अन्य सदस्य आपका नाम / फोन नंबर जान सकते हैं। कोई भी आपके द्वारा पोस्ट किए गए संदेश को फॉरवर्ड कर सकता है या उसका स्क्रीनशॉट लेकर साझा कर सकता है।
किसी भी ऑनलाइन फोरम का चिकित्सकीय सलाह के लिए उपयोग न करें। अगर कोई किसी दवा या वैकल्पिक चिकित्सा की सिफारिश करता है, तो यह न मानें कि जानकारी सही है। ध्यान से मूल्यांकन करें और अपने डॉक्टर से भी पूछें। यदि आप समूह को मॉडरेट कर रहे हैं, तो सदस्यों को यह दावा न करने दें कि कोई विशिष्ट दवा या वैकल्पिक चिकित्सा समस्या को पक्की तरह ठीक कर सकती है।
कुछ फ़ोरम में, यूजर कई अप्रासंगिक पोस्ट करते हैं। नतीजतन, सदस्य शायद महत्वपूर्ण पोस्ट न देख पाएं/ उन पर पर ध्यान न दें क्योंकि उनकी स्क्रीन चुटकुलों और कहानियों से भरी है। यह समस्या अकसर व्हाट्सएप ग्रुप में देखी जाती है। सदस्यों से निवेदन करें कि पोस्ट सिर्फ डिमेंशिया और दहभाल से ही संबंधित हों, और उचित माडरैशन करें।
उपयोगी अँग्रेज़ी पुस्तकों पर जानकारी के लिए हमारे अँग्रेज़ी पृष्ठ को देखें: Books Opens in new window।
अस्वीकरण: ये लिंक सिर्फ यहाँ आपकी सुविधा के लिए दिए गए हैं। हम इन लिंक पर उपलब्ध जानकारी की विश्वसनीयता, सटीकता, समयबद्धता और वास्तविकता के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं।
शुरू की अवस्था में डिमेंशिया (मनोभ्रंश) से ग्रस्त व्यक्ति इतने सामान्य नज़र आते हैं कि आस-पास के लोग अकसर भूल ही जाते हैं कि इस व्यक्ति को कोई ऐसी बीमारी है जिसके कारण इसके मस्तिष्क को हानि पंहुच चुकी है, और यह हानि बढ़ रही है. निदान को जानने के बावजूद, व्यक्ति के परिवार वाले और अन्य लोग व्यक्ति के अप्रत्याशित व्यवहार या काम में हो रही दिक्कतों को देख कर यह नहीं सोचते कि यह शायद यह सब रोग के कारण हैं. उल्टा लोग सोचते हैं कि यह व्यक्ति ज़िद्द कर रहा है, या पूरी तरह कोशिश नहीं कर रहा, या व्यक्ति उनसे नाराज़ है या उन्हें दुःख पंहुचाना चाहता है. इसलिए परिवार वाले चिड़चिड़ा जाते हैं या मायूस हो जाते हैं, और उनकी भावनाओं को देख, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति अधिक परेशान हो जाते हैं. अगर घर-बाहर के माहौल से व्यक्ति को अपने काम करने में दिक्कत हो रही हो, तो उससे भी व्यवहार में फ़र्क पड़ सकता है.
डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति कभी कभी अजीब तरह से क्यों पेश आते हैं, देखभाल करने वाले यह समझ सकें, इसके लिए इस पृष्ठ पर कुछ तथ्य दिए गए हैं. इस पृष्ठ का उद्देश्य आपको बस अंदाजा देना है. यहाँ कोई पूरी सूची नहीं है, न ही किसी व्यक्ति की हर समस्या को समझने का तरीका है. व्यक्ति पर उसके रोग के कारण क्या बीत रही है, और व्यक्ति अजीब व्यवहार क्यों दिखा रहा है, यह तो उसको समीप के परिवार वाले ही अंदाजा लगा सकते है. ऐसे भी कई संसाधन और समुदाय हैं (support groups) जहाँ व्यक्ति का व्यवहार रोग के कारण किस किस प्रकार से बदल सकता है, इस विषय पर चर्चा होती है. आप इनसे और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
डिमेंशिया में मस्तिष्क में हानि होती है.
डिमेंशिया का काम करने की काबिलीयत पर असर.
डिमेंशिया का व्यक्ति की भावनाओं पर असर.
घर-बाहर का वातावरण, अन्य लोगों के साथ मिलना जुलना, और उनकी उम्मीदें, इन सब का भी व्यक्ति के व्यवहार पर असर पड़ता है.
व्यक्ति डिमेंशिया में क्या अनुभव करते हैं: कुछ आपबीती
शुरू की अवस्था में डिमेंशिया (मनोभ्रंश) से ग्रस्त व्यक्ति इतने सामान्य नज़र आते हैं कि आस-पास के लोग अकसर भूल ही जाते हैं कि इस व्यक्ति को कोई ऐसी बीमारी है जिसके कारण उनके मस्तिष्क को हानि पंहुच चुकी है, और यह हानि बढ़ रही है। निदान को जानने के बावजूद, व्यक्ति के परिवार वाले और अन्य लोग व्यक्ति के अप्रत्याशित व्यवहार या काम में हो रही दिक्कतों को देख कर यह नहीं सोचते कि यह शायद किसी रोग के कारण हैं। उल्टा लोग सोचते हैं कि यह व्यक्ति ज़िद्द कर रहे हैं, या पूरी तरह कोशिश नहीं कर रहे हैं, या व्यक्ति उनसे नाराज़ हैं या उन्हें दुःख पंहुचाना चाहते हैं। इसलिए परिवार वाले चिड़चिड़ा जाते हैं या मायूस हो जाते हैं, और उनकी भावनाओं को देख, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति अधिक परेशान हो जाते हैं। अगर घर-बाहर के माहौल से व्यक्ति को अपने काम करने में दिक्कत हो रही हो, तो उससे भी व्यवहार में फ़र्क पड़ सकता है।
डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति कभी कभी अजीब तरह से क्यों पेश आते हैं, देखभाल करने वाले यह समझ सकें, इसके लिए इस पृष्ठ पर कुछ तथ्य दिए गए हैं। इस पृष्ठ का उद्देश्य आपको बस व्यक्ति की दिक्कतों के बारे में अंदाजा देना है। यह समझने पर परिवार वाले सोच सकते हैं कि घर के माहौल में, और व्यक्ति की मदद करने में किस तरह के बदलाव संभव हैं जिन से व्यक्ति सुरक्षित भी रहें, और जितना ओ सके, अपने काम भी खुद कर पाएं। यह भी देख सकें कि व्यक्ति खुद को और दूसरों को नुकसान न पहुंचाएं, इस के लिए क्या करा जा सकता है। यहाँ कोई पूरी सूची नहीं है, न ही किसी व्यक्ति की हर समस्या को समझने का तरीका है। व्यक्ति पर उनके रोग के कारण क्या बीत रही है, और व्यक्ति अजीब व्यवहार क्यों दिखा रहे हैं, यह तो उनके समीप के परिवार वाले ही अंदाजा लगा सकते है। ऐसे भी कई संसाधन और समुदाय हैं (support groups) जहाँ व्यक्ति का व्यवहार रोग के कारण किस किस प्रकार से बदल सकता है, इस विषय पर चर्चा होती है। आप इनसे और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
डिमेंशिया का व्यक्ति के व्यवहार पर क्या असर हो सकता है, यह समझने के लिए हमें यह स्वीकार करना होगा कि डिमेंशिया के लक्षण ऐसे रोगों के कारण होते हैं जिन में मस्तिष्क की हानि होती हैं। व्यवहार का बदलाव इस हानि की वजह से होता है। किस व्यक्ति में कौन से लक्षण नज़र आते हैं, यह इस बात पर निर्भर है कि मस्तिष्क के किस भाग में और कितनी हानि हुई है।
हमारे मस्तिष्क में करोड़ों कोशिकाएं हैं जो निरंतर एक दूसरे को सन्देश भेजती हैं और इसी के कारण हम बातें समझ सकते हैं और अपने सब कार्य कर पाते हैं।
मस्तिष्क के भिन्न भिन्न भाग अलग अलग काम करे में उत्तीर्ण हैं।
डिमेंशिया पैदा करने वाले रोग मस्तिष्क पर असर करते हैं। मस्तिष्क के किस भाग में कितनी हानि हुई हैं, और यह हानि समय के साथ कैसे बढ़ेगी, यह इस पर निर्भर है कि डिमेंशिया किस रोग के कारण है।
चित्र का सौजन्य: National Institute on Aging/National Institutes of Health
समय के साथ रोग के कारण मस्तिष्क की हानि बढ़ती जाती है। लक्षण भी उसी प्रकार बढते हैं।
इस बढ़ती हानि को समझने के लिए नीचे दिए गए चित्र देखें। इन में अल्जाइमर से ग्रस्त व्यक्तियों के मस्तिष्क दिखाए गए हैं। अल्जाइमर रोग डिमेंशिया के लक्षण पैदा करने वाले रोगों में सबसे प्रमुख रोग है (चित्र National Institutes of Health के सौजन्य से हैं)।
चित्रों में देखें: प्री -क्लीनिकल अल्जाइमर रोग; शुरुआती और मंद अल्जाइमर रोग; और गंभीर अग्रिम अवस्था का अल्जाइमर रोग।
चित्र का सौजन्य: National Institute on Aging/National Institutes of Health
डिमेंशिया अनेक रोगों के कारण हो सकता है।
रोग के बढ़ने का असर हर व्यक्ति में अलग तरह से प्रकट होता है। किसी व्यक्ति में मस्तिष्क के किसी भाग में ज्यादा हानि होती है, तो किसी और में हानि किसी अन्य भाग में होती है।
हर व्यक्ति अलग समस्याओं का सामना करता है जैसे कि, किसी को बोलने में ज्यादा दिक्कत होती है, तो किसी को चलने में।
समय के साथ, व्यक्ति की सभी क्षमताओं पर असर पड़ने लगता है।
चित्र का सौजन्य: National Institute on Aging/National Institutes of Health
रोग के बिगड़ने से मस्तिष्क की हानि बढ़ती जाती है।
जैसे जैसे मस्तिष्क के भागों में हानि बढ़ती है, वैसे वैसे उस भाग से सम्बंधित क्षमताएं कम होती जाती हैं। दिन के जरूरी काम करना मुश्किल होता जाता है। बातचीत में दिक्कत होने लगती है, उठने/ बैठने में दिक्कत बढ़ जाती है, खाना चबाने में भी दिक्कत हो सकती है, व्यक्तित्व बदलने लगता है, सोचने और समझने पर असर होने लगता है, वगैरह। स्थिति बिगड़ती रहती है।
अग्रिम अवस्था में व्यक्ति सब कामों के लिए पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं और उनका बोल पाना भी अकसर बंद हो जाती है।
हरेक काम के लिए हमें कई छोटे कदम लेने होते हैं। इन सूक्ष्म कदमों में से कोई एक कदम भी छूट जाए तो काम अधूरा रह जाता है।
यदि रोग के कारण व्यक्ति किसी एक कदम को पूरा करने में नाकाम हों, या वे कदम भूल जाएँ, तो व्यक्ति वह काम अकेले, बिना सहायता के नहीं कर सकेंगे।
हर काम के लिए शरीर के विभिन्न अंगों को समन्वय से काम करना होता है। उदाहरणतः गैस स्टोव जलाने कि लिए लाइटर को बर्नर के पास ले जाकर नॉब को घुमाना होता है, और ठीक उसी वक्त लाइटर का बटन दबाना होता है।
जैसे जैसे रोग बढ़ता है, व्यक्ति के शरीर के विभिन्न अंगों का आपस में ताल-मेल भी कम हो जाता है।
व्यक्ति बारीकी और पेचीदगी वाले काम करने में दिक्कत महसूस करते हैं, और अपनी कोशिश में नाकाम होने पर निराश और परेशान हो जाते हैं। दुर्घटना भी हो सकती है।
हम सभी के काम करने की क्षमता पर हमारे मूड, स्वास्थ्य की स्थिति,और ऊर्जा में होती ऊँच-नीच का असर पड़ता है, पर हम इस बात से ज्यादा चिंतित नहीं होते। हैं
डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों में कोई भी कार्य करते समय यह उतार-चढ़ाव काफी स्पष्ट नज़र आता है, और वे कई बार कुछ कार्य बिलकुल ही नहीं कर पाते। कुछ प्रकार के डिमेंशिया में, जैसे कि लुई बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body Dementia), ऐसे उतार चढ़ाव ज्यादा पाए जाते हैं।
जब हम डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति से बात करते हैं, तो अकसर पाते हैं कि उन्हें जो बात एक दिन अच्छी तरह से और सही याद होती है, वह दूसरे दिन बिलकुल याद नहीं होती है। या जो काम वे आज कर पाते हैं वे अगले दिन नहीं कर पाते। यदि हम यह जानते हों कि ऐसे उतार चढ़ाव डिमेंशिया में अकसर पाए जाते हैं तो हम इन्हें आलस या जिद्दीपन्न नहीं समझेंगे, और इनसे परेशान नहीं होंगे।
डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति अनेक कारणों से घबरा सकते हैं या कंफ्यूस हो सकते हैं, जैसे कि याददाश्त की कमजोरी, शोर से घबरा जाना, लोगों को पहचान नहीं पाना, चेहरे की भावनाओं को समझ नहीं पाना, समय और जगह के बारे में कन्फ्यूज होना, वस्तुओं को नहीं पहचानना, वगैरह।
इससे अनेक समस्याएँ पैदा हो सकती हैं, जैसे कि
अपने घर का रास्ता भूल जाना।
अपने ही घर को पराया समझना, और बेटा बेटी, पोता पोती को ही नहीं पहचानना या बेटी को अपनी पत्नी समझ लेना।
घर पर होते हुए भी यह ज़िद्द करना कि उन्हें “घर” जाना है।
बार बार बाथरूम जाने की फरमाइश करना, पर बाथरूम को न पहचान पाना।
व्यक्ति को अकसर बात करने में दिक्कत होती ही। उन्हें सही शब्द नहीं सूझते, या वे उलटे या अजीबो-गरीब शब्द का प्रयोग करते हैं। आप कुछ कहें, तो भी उन्हें शायद यह न समझ आए कि आप किस वस्तु की बात कर रहे हैं, या किस काम के बारे में बात कर रहे हैं।
वे अपनी जरूरत नहीं बता पाते।
कुछ व्यक्ति कभी कभी अपनी जरूरत खुद ही नहीं समझा पाते, जैसे कि क्या उन्हें भूख या प्यास लगी है, क्या उन्हें ठंड लग रही है या गर्मी, वगैरह।
अगर व्यक्ति किसी तकलीफ में हों, या उनकी तबीयत खराब हो, तब भी वे यह बात परिवार वालों को नहीं बता पाते।
तकलीफ में होने के कारण व्यक्ति के काम करने की क्षमता पर और भी असर पड़ता है, पर क्योंकि व्यक्ति ने किसी को अपनी तबीयत खराब होने के बारे में नहीं बताया है, इसलिए आस पास के लोग समझ नहीं पाते कि व्यक्ति आज फ़र्क तरह से क्यों पेश आ रहे हैं। देखभाल वाले यह नहीं जान पाएंगे कि व्यक्ति को आराम या उपचार की जरूरत है।
डिमेंशिया के कई प्रकारों में व्यक्ति हाल ही में हुई घटनाओं को भूल जाते हैं। ऐसे में वे जब कुछ याद करने की कोशिश करते हैं तो कभी कभी अपनी यादों के बीच की दरारों को (बिना जाने) काल्पनिक घटनाओं से भर देते हैं।
व्यक्ति कई बार लोगों को और जगहों को पहचान नहीं पाते, अपने घर और परिवार वालों को भी नहीं।
कई व्यक्तियों के लिए नई बातें समझना और याद करना मुश्किल हो जाता है।
नए काम सीखना, नए उपकरण इस्तेमाल करना, नई जगहों में रस्ते समझना, इन सब में व्यक्ति को बहुत कठिनाई हो सकती है। नए लोगों से मिलने से, नई जगह जाने से, उन को तनाव भी हो सकता है। वे घबरा या बौखला सकते हैं, या सहम कर खुद में सिकुड सकते हैं।
कई प्रकार के डिमेंशिया में समाज में कैसे बात करते हैं, यह काबिलीयत रोगियों में काफी देर तक बनी रहती है।
बाहर वालों के बीच, व्यक्ति कभी कभी प्रश्नों को टाल कर अपनी याददाश्त की समस्याओं को छुपा पाते हैं।साधारण, छोटी मोटी मुलाकातों में व्यक्ति मेहमानों को सामान्य लगते हैं।
डिमेंशिया के कुछ प्रकार में, जैसे कि फ्रंटोटेम्पोरल में (Fronto Temporal Dementia) व्यक्ति के मस्तिष्क में उस भाग में हानि होती है जो व्यवहार का नियंत्रण करता है।
उस भाग में भी हानि हो सकती है जिससे व्यक्ति औरों की भावनाओं को समझ पाते हैं या उनकी कद्र कर पाते हैं।
मस्तिष्क की हानि के कारण ये रोगी यह भूल सकते हैं कि लोगों के साथ सभ्यता से कैसे पेश आएँ।
वे अपने आवेग को नहीं संभाल पाते। वे अश्लील हरकतें कर सकते हैं, गालियाँ दे सकते हैं, कपड़े उतार सकते हैं, और पुरुष रोगी औरतों के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश भी कर सकते हैं। व्यक्ति लोगों की भावनाओं को भी शायद न समझ पाएँ, और उनकी कद्र न करें। वे शायद अजीब ढंग से बात करें या कटे कटे रहें।
ऐसे व्यवहार से अकसर लगता है कि व्यक्ति का चरित्र बदल गया है, और व्यक्ति अब “बुरा आदमी” है। परिवार वालों को शर्मिंदगी भी उठानी पड़ सकती है, और आस पास के लोग खतरा या घिन्न महसूस कर सकते हैं। व्यवहार मस्तिष्क की हानि के कारण है, इस पर लोग शायद यकीन न करें।
कुछ प्रकार के डिमेंशिया में (जैसे कि लुई बॉडी), विभ्रम (hallucinations) एक आम लक्षण है। लोग ऐसी वस्तुएँ देखते हैं जो मौजूद नहीं हैं।
मिथ्या विश्वास (delusions) और व्यामोह (भ्रान्ति, संविभ्रम, paranoia) भी कई डिमेंशिया में आम लक्षण हैं।
कभी कभी व्यक्ति जब ऐसी चीज़ देखते हैं जो मौजूद नहीं है, तो संदर्भ के कारण पहचान जाते हैं कि उन्हें भ्रम हो रहा है, पर कभी कभी वे उसे सच्चाई भी मान सकते हैं और डर सकते हैं या कुछ गलती कर सकते हैं। जैसे कि अगर व्यक्ति गाड़ी चला रहे हैं और उन्हें लगे कि सामने एक कि बजाय चार सड़क हैं, तो एक्सीडेंट भी हो सकता है।
मिथ्या विश्वास–जो सच नहीं है उसको सच मानना– के कारण वे लोगों को चोर या कातिल कह सकते हैं। भ्रान्ति के कारण वे भयभीत या आक्रामक हो सकते हैं। सब पर शक कर सकते हैं। सच क्या है, झूठ क्या, यह उन्हें समझाना बहुत कठिन हो सकता है।
बार बार कोई बात दोहराना या कोई क्रिया करना भी डिमेंशिया का एक आम लक्षण है।
ऐसे दोहराने वाला व्यवहार कई कारणों से हो सकता है, जैसे कि भूल जाना कि यह बात पहले बात कही थी, बोरियत होना, घबराहट, दुष्चिन्ता, व्यग्रता, उत्तेजना, अपनी असली जरूरत न बता पाना, वगैरह।
कुछ उदाहरण: एक बात बार बार दोहराना, एक ही प्रश्न बार बार पूछना, एक काम बार बार करते रहना। कई बार यह दोहराना किसी को नुकसान नहीं पंहुचाता।
परन्तु कुछ ऐसे व्यवहार से समस्या हो सकती है, जैसे कि अगर व्यक्ति बार बार नाश्ता मांगे और खा भी ले, या दवाई बार बार ले ले। यह व्यवहार थका भी सकता है, जैसे के सूटकेस बार बार पैक और अनपैक करना।
कई डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति शाम या रात के आते ही बेचैन और परेशान होने लगते हैं। इसको “sundowning” (सनडाउनिंग या सूरज डूबने पर होने वाली क्रिया) कहते हैं। इसके कारण सही तरह से तो मालूम नहीं हैं, पर विशेषज्ञों का मानना है कि कारण अनेक हैं, जैसे कि दिन के अंत की थकावट, बाथरूम जाने की ज़रूरत, अँधेरे से घबराहट, शरीर के “body clock” में गडबड, वगैरह।
शाम आते ही व्यक्ति परेशान लगने लगते हैं। वे उत्तेजित हो सकते हैं, बेचैन हो सकते हैं, चहल-कदमी करने लगते हैं। या मायूस हो जाते हैं। या चिल्लाने लगते हैं या बडबडाने लगते हैं।वे चैन से बैठ नहीं पाते, सो नहीं पाते। कई बार यह सिलसिला रात को देर तक चलता है, और व्यक्ति और परिवार वाले दोनों थक जाते हैं।
डिमेंशिया वाले व्यक्ति स्वयं को असुरक्षित समझ सकते हैं।
ऐसे में व्यक्ति चिपकू से हो जाते हैं, देखभाल कर्ता पर जरूरत से ज़्यादा निर्भर रहने लगते हैं। या उलट कर वे देखभाल करने वाले से ही डरने लगते हैं और हमले या दुर्व्यवहार के डर में रहते हैं और खुद को बचाने की कोशिश में लगे रहते हैं। वे देखभाल करने वाले पर हमला भी कर सकते हैं।
कुछ लोग चीज़ें छुपाने लगते हैं या बेवजह जमा-खोरी करने लगते हैं। जो वे जमा कर रहे हैं, वे वस्तु मूल्यवान हो, ऐसा ज़रूरी नहीं, पर अगर कोई उनकी छुपाई या जमा करी हुई वस्तु को छेड़े, तो वे एकदम उत्तेजित हो सकते हैं। वे औरों पर चोरी का या बुरे इरादों का इलज़ाम भी लगा सकते हैं। यह भी कह सकते हैं कि उनके साथ दुराचार हुआ है या उनकी अपेक्षा करी गयी है।
असुरक्षित महसूस करने वाले रोगी कभी कभी देखभाल कर्ता के पीछे पीछे चलते रहते हैं, उसे अकेला नहीं छोड़ते (trailing, shadowing)। यदि देखभाल करने वाले के पीछे नहीं रह पाते तो बेचैन और परेशान हो जाते हैं, बार बार आवाज़ देते हैं, बुलाते हैं, उत्तेहोत भी हो सकते हैं। देखभाल करने वालों के लिए बाहर जाना तो दूर, बाथरूम तक जाना भी मुश्किल हो सकता है।
बात-बेबात व्यक्ति बड़े अजीबो-गरीब तरह से पेश आ सकते हैं। वे शायद बिलकुल ही अपने-आप में सिकुड जाएँ, और परिवार वालों से कह दें, मुझे अकेला छोड़ दो। या शायद वे बहुत विचलित हो जाएँ, उग्र हो जाएँ, गुस्सा दिखाएँ, चिल्लाएं, जब कि परिवार वालों को लगे कि भई ऐसा तो कुछ नहीं हुआ था, ये इतना क्यों बौखला रहे हैं!
डिमेंशिया वाले व्यक्ति की भावनाएं अनेक बातों से प्रभावित हो सकती हैं। आस-पास के लोग शायद इन बातों के असर को पहचान न पाएँ। इस विषय पर अगले सेक्शन में अधिक चर्चा है।
डिमेंशिया के कारण व्यक्ति की भावनाओं पर कई तरह से असर हो सकते हैं।
हमारे मस्तिष्क के कुछ भागों का काम है भावनाओं को पैदा करना और उनपर संयम रखना। यदि डिमेंशिया के कारण मस्तिष्क के इन भागों की हानि हुई है, तो व्यक्ति अपनी भावनाओं को संभाल नहीं पाते। अन्य लोगों के चेहरे और हाव-भाव से उनकी भावनाएँ जान पाने के काम के लिए भी हम अपने मस्तिष्क के कुछ भागों का इस्तेमाल करते हैं। यदि यह भाग ठीक काम न कर रहे हों, तो व्यक्ति यह नहीं जान पाते कि और लोग क्या महसूस कर रहे हैं। वे लोगों के प्रति उदासीन हो जाते हैं, और कटे कटे रहते हैं। इस प्रकार के डिमेंशिया में ऐसा लगता है कि व्यक्ति को औरों की कोई चिंता ही नहीं और वे कुछ भी महसूस नहीं कर रहे हैं।
आस पास के लोगों से कैसे बात करें, बड़ों से क्या कहें, छोटों से क्या कहें, क्या उचित है और क्या नहीं, यह भी हमारे मस्तिष्क द्वारा ही संचालित होता है। कुछ प्रकार के डिमेंशिया में (जैसे कि फ्रंटोटेम्पोरल), मस्तिष्क की हानि के कारण व्यक्ति का व्यवहार बहुत बदल जाता है। वे गाली देने लगते हैं, अश्लील भाषा का इस्तेमाल करते हैं, भद्दी हरकतें भी कर सकते हैं। आस पास वाले सोच सकते हैं कि इस डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति का चरित्र बिगड गया है। परन्तु यह बदलाव मस्तिष्क के कुछ भागों की हानि की वजह से हुआ है।
यह भी हो सकता है कि व्यक्ति इसलिए उत्तेजित या मायूस हों क्योंकि उनकी क्षमताएं बदल रही हैं और उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि उनके साथ यह क्या हो रहा है, या वे अपनी इस बिगड़ती हालत से दुखी हैं। उन्हें लग सकता है कि उनका अस्तित्व ही कुछ कम हो रहा है और वे बार बार अपने आप को असमंजस में पाते हैं और अपना काम ठीक से नहीं कर पाते या आस पास क्या हो रहा है, वे नहीं समझ पाते।
जब व्यक्ति देखते हैं कि वे साधारण काम भी ठीक से नहीं कर पा रहे, तो उन्हें निराशा होती है, और कभी शर्म आती है तो कभी गुस्सा आता है। वे यह नहीं समझ पाते या याद रख पाते हैं कि उन्हें डिमेंशिया है, डिमेंशिया का मतलब क्या है, और इसका उनपर क्या असर हो रहा है।
याददाश्त की कमजोरी की वजह से व्यक्ति बात बात पर औरों पर शक करने लगते हैं। अगर उन्हें यह याद नहीं रहा है कि उन्होंने खाना खाया था, तो वे सोचते हैं कि उन्हें भूखा मारा जा रहा है, और वे बार बार खाना मांगते हैं और बाहर वालों से शिकायत भी करते हैं कि घर वालें उनकी देखभाल ठीक से नहीं कर रहे हैं। वे सोच सकते हैं कि परिवार वाले उनकी जायदाद हड़पने की कोशिश कर रहे हैं और उनकी जान को खतरा है।
जगह और मौके की पहचान खोने की वजह से वे कभी कभी अनुचित व्यवहार भी करते हैं, जैसे कि खुले आम कपडे उतारना।
कभी कभी व्यक्ति की निराशा या उसका गुस्सा सीमा पार कर देता है और रोगी अत्यधिक उत्तेजित हो जाते हैं और बिलकुल ही काबू के बाहर हो जाते हैं। इसे “catastrophic behaviour” भी कहते हैं और इस स्थिति में व्यक्ति को संभालना बहुत ही मुश्किल होता है।
क्योंकि भावनाओं पर नियंत्रण रखने का काम भी मस्तिष्क ही करता है, और उस भाग में भी हानि हो सकती है, तो जब व्यक्ति उत्तेजित हो जाते हैं तो उन्हें उस उत्तेजना से उन्हें उभारना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। किसी भी तीव्र भावना से ब्यक्ति को उभारना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, चाहे वे बहुत गुस्से में हों या बहुत दुखी हों।
डिमेंशिया का व्यक्ति पर क्या प्रभाव होता होगा, यह समझने के लिए हमें शायद कुछ पल उनकी स्थिति में अपने आप को डालना होगा।
सोचिये, अगर आपको यही नहीं पता कि आज क्या तारीख है या कौन सा साल है, या आपके पास जो ये अजनबी से लोग हैं ये क्यों कह रहे हैं कि यह आपके परिवार वाले हैं, तो आपको कैसा लगेगा! आप बोलना चाहते हैं तो सही शब्द नहीं सूझता। मदद मांगते हुए डर भी लगता है, और शर्म भी आती है। आप सोचते है, कहीं मैं पागल तो नहीं हो रहा? या सोचते हैं, यह सब लोग झूट बोल कर मुझे बेवक़ूफ़ क्यों बना रहे है? और इस घबराहट को आप किसी के साथ बाँट भी नहीं पाते। आपको हर काम करने में ज्यादा समय लग रहा है, हर काम में दिक्कत हो रही है, पर आस-पास के लोग आपसे पहले जैसी ही बात करने की और काम करने की उम्मीद रखते हैं, और जब आप नहीं कर पाते, तो वे झल्ला जाते हैं।
यदि आप इस तरह अपने आप को डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के स्थान में रख कर कुछ देर कल्पना करेंगे, तब व्यक्ति की हालत समझने में आपको आसानी होगी, और उसके साथ से कैसे पेश आएँ, यह सोचने में भी आसानी होगी।
घर-बाहर का वातावरण, अन्य लोगों के साथ मिलना जुलना, और उनकी उम्मीदें, इन सब का भी व्यक्ति के व्यवहार पर असर पड़ता है.
एक गलती जो आम है वह है यह सोचना कि बदला व्यवहार एक एकाकी समस्या है, जिसे अलग से सुलझाना है। हम यह नहीं समझ पाते कि व्यवहार के अनेक कारक होते हैं, और सिर्फ व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराना गलत है। अगर हम यह समझ पाएँ कि व्यवहार अंदरूनी हालत और बाहर की परिस्थिति दोनों के कारण होता है, और व्यवहार एक प्रतिक्रिया है, तब हम सोच पायेंगे कि हम परिस्थिति में क्या बदल सकते हैं जिससे व्यवहार पर असर पड़े।
व्यक्ति का वातावरण व्यवहार का एक महत्वपूर्ण कारक है। यदि घर ऐसा है कि व्यक्ति को एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने में दिक्कत हो, या अपनी जरूरत की वस्तुएँ न मिल रही हों, या बाथरूम के रास्ते में अँधेरा हो, तो व्यक्ति बेचैन होंगे। घर में ऐसे परिवर्तन हों जिनसे व्यक्ति अधिक स्वतंत्र और सक्षम महसूस करें, और सुरक्षित भी, तो व्यक्ति कम उत्तेजित या निराश होंगे।
आसपास के लोगों की उम्मीदों का और प्रतिक्रियाओं का व्यक्ति पर असर होता है। यदि परिवार वाले यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि व्यक्ति उनकी बातें समझेंगे और निर्देश याद रखेंगे, या सोचते हैं कि व्यक्ति पहले जैसे ही सब काम कर पायेंगे, तो यह अनुचित उम्मीदें व्यक्ति पर दबाव डालेंगी। परिवार वाले भी चिड़चिड़ाहट / गुस्सा/ निराशा महसूस करेंगे और व्यक्ति इसको भांप जायेंगे और इससे भी उनका व्यवहार बदलेगा। व्यक्ति भावुक हो सकते हैं, उत्तेजित हो सकते हैं, उदासीन हो सकते हैं। अगर परिवार वाले डिमेंशिया की सच्चाई समझें और स्वीकारें, तो व्यक्ति से इस किस्म की उम्मीदें नहीं रखेंगे और व्यक्ति को उन के कारण तनाव नहीं होगा, और व्यवहार भी फ़र्क होगा।
डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के व्यवहार को समझने के लिए सभी पहलुओं पर गौर करें। डिमेंशिया के कारण व्यक्ति को हो रही दिक्कतें, व्यक्ति को क्या कोई अन्य बीमारी है या दर्द/ तकलीफ है, घर में चलने की और काम करने की व्यवस्था के व्यक्ति के अनुकूल है, व्यक्ति कार्य कैसे करते हैं, औरों से बातचीत और मिलने-जुलने में किस तरह की स्थितियाँ होती हैं, व्यक्ति पर कोई अनुचित दबाव तो नहीं, और लोग व्यक्ति के साथ कैसे पेश आए रहे हैं, वगैरह। व्यवहार हमेशा किसी संदर्भ में होता है, और न तो एकाकी में समझा जा सकता है न ही बदला जा सकता है। यह मत सोचें कि समस्या सिर्फ व्यक्ति तक ही सीमित है और दवाई से, विनती करने से, समझाने से, डांटने से, व्यवहार फिर सामान्य हो जाएगा। पूरी तरह समझें, तब देखें कि आप क्या बदल सकते हैं जिससे व्यक्ति का व्यवहार बदले, और आप अपनी उम्मीदें कैसे अधिक वास्तविक बना सकते हैं।
कोविड जैसी उच्च तनाव की स्थिति का भी व्यक्ति पर असर पड़ता है, क्योंकि कोविड जैसेई स्थिति में घर एण्ड बाहर बहुत बदलाव हुते हैं, दैनिक दिनचर्या बदल जाती है, और इन सब से व्यक्ति का व्यवहार भी बदल सकता है। ऐसे में अनेक पहलुओं के बारे में सोचना होता है, जैसे कि व्यक्ति को संक्रमण से कैसे बचाए रखें और घर और देखभाल में किस तरह के परिवर्तनों से व्यक्ति पर स्थिति का असर कम करा जा सकता है।
व्यक्ति डिमेंशिया में क्या अनुभव करते हैं: कुछ आपबीती.
यदि हम डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के अनुभव जान पाएँ, यदि उनके नज़रिए से देख पाएँ कि उन्हें किस तरह की दिक्कतें हो रही हैं, उन को क्या डर लगता है, किस बात से वे हताश होते है, इत्यादि, तो हम देखभाल करते वक्त अधिक संवेदनशील हो पायेंगे, और अधिक कारगर भी, क्योंकि हम सोच पायेंगे कि देखभाल में क्या क्या अंतर लाएं। कुछ डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों ने अपने निजी अनुभव पुस्तकों, ब्लॉग, और वीडियो के माध्यम से बांटे हैं। यह सब अनुभव उन लोगों के हैं जो डिमेंशिया के प्रारंभिक अवस्था में हैं, पर ऐसी आपबीती से भी डिमेंशिया होना कैसा लगता है, इसकी जानकारी मिलती है।
डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों की आपबीती अँग्रेज़ी की पुस्तकों, ब्लॉग, और वीडियो में उपलब्ध हैं: लिंक के लिए इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण को देखें।
जब देखें कि डिमेंशिया वाले व्यक्ति का व्यवहार अजीब है, तो नीचे दिए गए पॉइंट याद करने से स्थति से जूझने में आसानी होगी।
व्यक्ति के मस्तिष्क को हानि पंहुच चुकी है। आप इस हानि को देख नहीं सकते, पर यह हानि वास्तविक है। जैसे कि आप किसी हृदय-रोगी का दिल नहीं देख सकते पर फिर भी आपको याद रहता हैं कि हृदय-रोगी भारी वज़न नहीं उठा सकते, वैसे ही आपको याद रखना होगा कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति को समझने और सोचने में दिक्कत होती है।
अधिकांश लोग जब कुछ काम करते हैं या कुछ कहते हैं, तो वे जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं और अपने किसी इरादे से ही काम करते हैं। इसलिए अगर किसी ने आपसे कोई बुरी बात कही है तो आप उसे उसके लिए जिम्मेवार समझते हैं। पर यदि किसी को डिमेंशिया है, तो ऐसा मानना ठीक नहीं होगा, क्योंकि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के काम किसी स्पष्ट इरादे से हों, यह जरूरी नहीं। क्योंकि व्यक्ति ठीक से सोच-समझ नहीं पाते, उनका व्यवहार साधारण तर्क द्वारा नहीं समझा जा सकता।
डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति अगर काम धीरे कर रहे हैं, या चकराए हुए लग रहे हैं और हमारी बात नहीं समझ रहे, तो वे यह व्यवहार आपको परेशान करने के लिए नहीं कर रहे। उनका दिमाग उनका साथ नहीं दे रहा, और उन को हर काम में दिक्कत हो रही है। यदि किसी का दिमाग उसका साथ न दे, तो उसे भी ऐसे ही दिक्कत होगी।
हो सकता है कि यदि आज व्यक्ति रोज से ज्यादा परेशान हैं, तो उसका कोई ऐसा कारण है जो व्यक्ति आपको बता नहीं पा रहे हैं।
अगर व्यक्ति परेशान या उत्तेजित हैं, तो आपको इससे यह समझना चाहिए कि व्यक्ति को मदद की जरूरत है।
आपका दिमाग ठीक है, इसलिए आप रोगी की स्थिति समझ सकते हैं। पर डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति (जिसके मस्तिष्क में हानि हो चुकी है) आपकी बात कैसे समझे? व्यक्ति से यह उम्मीद रखना तो गलती होगी।
यह तो आपको ही सीखना होगा कि व्यक्ति से बातचीत कैसे करें, उनकी मदद कैसे करें, और उन के बदले व्यवहार को कैसे संभालें। डिमेंशिया के कारण व्यक्ति नई चीज़ें नहीं सीख सकते, यह तो डिमेंशिया का माना हुआ लक्षण है, इसलिए स्थिति को संभालने के लिए तौर-तरीके बदलने की जिम्मेवारी आपकी ही है।
यदि व्यक्ति ऐसा अनुचित व्यवहार कर रहे हैं जो आरों को अटपटा लगे, या अभद्र या अश्लील हरकतें कर रहे हैं, या औरों के प्रति विमुख/ उदासीन हैं, तो यह भी डिमेंशिया के कारण है, क्योंकि व्यक्ति के मस्तिष्क के उस भाग में हानि है जो नियंत्रित करती है कि हम समाज में कैसे आपस में मिल-जुल कर रहें। आखिर भावनाओं का नियंत्रण भी तो मस्तिष्क द्वारा ही होता है।
शायद हमारे व्यवहार भी व्यक्ति पर किसी किस्म का जोर डाल रहा हो, जैसे कि हमारी निराशा, चिड़चिड़ाहट, चेहरे पर दबा गुस्सा या दुःख। शायद हमारी व्यक्ति से जो उम्मीदें हैं वे अनुचित हैं, और व्यक्ति का तनाव इससे बढ़ रहा है।
शायद घर की व्यवस्था व्यक्ति की ज़रूरतों और काबिलीयत के अनुकूल नहीं है। शायद इस कारण व्यक्ति को काम करने में दिक्कत हो रही है, या घबराहट हो रही है, और इस सब का असर व्यक्ति के व्यवहार पर पड़ रहा है।
डिमेंशिया में बदले व्यवहार को लेकर विशेषज्ञों में अनेक शब्दावली का प्रयोग होता है, और पुस्तकों, लेखों, वीडियो वगैरह में भी अलग अलग शब्दों का इस्तेमाल होता है। कुछ प्रचलित शब्दावली है: Challenging behaviour, difficult behaviour, problem behaviour, behaviours of concern, needs-driven behaviour, neuropsychiatric symptoms, BPSD (Behavioural and Psychological Symptoms of Dementia, Behavioral and Psychiatric Symptoms of Dementia), इत्यादि। कुछ शब्द व्यवहार का औरों पर क्या असर है, इस पर जोर देतें है, तो कुछ व्यवहार के संभव कारणों पर। कोई भी शब्द/ वाक्यांश स्थिति का पूर्णतः वर्णन नहीं करता। फिर भी, इस शब्दावली को जानने से जानकारी प्राप्त करने में आसानी हो सकती है। पर चाहे लोग अलग अलग शब्दावली का इस्तेमाल करें, देखभाल करने वालों को इस बात पर केंद्रित रहना होता है कि इस व्यवहार के द्वारा वे समझें कि व्यक्ति को कुछ दिक्कत हो रही है, और सोचें कि इसके बारे में क्या किया जा सकता है ताकि व्यक्ति और पास के लोग, सब का तनाव और दुःख कम हो और उन्हें आराम पहुंचे।
शब्दावली पर विस्तृत चर्चा हमारे अँग्रेज़ी पृष्ठ पर है।
डिमेंशिया वाले व्यक्तियों के बदले व्यवहार के संभावित कारण समझना, और उनसे किसी को कोई नुकसान न हो, इसके लिए कदम उठाना डिमेंशिया देखभाल का एक बहुत महत्वपूर्ण अंश है। इस हिंदी वेबसाइट पर इस विषय के लिए उपयोगी अनेक पृष्ठ हैं। कुछ खास तौर से उपयोगी प्रासंगिक पृष्ठ हैं:
इस विषय पर हिंदी सामग्री, कुछ अन्य साईट पर: यह याद रखें कि इन में से कई लेख अन्य देश में रहने वालों के लिए लिखे गए हैं, और इनमें कई सेवाओं और सपोर्ट संबंधी बातें, कानूनी बातें, इत्यादि, भारत में लागू नहीं होंगी।
इस पृष्ठ का नवीनतम अँग्रेज़ी संस्करण यहाँ उपलब्ध है: How dementia impacts behaviour Opens in new window। अंग्रेज़ी पृष्ठ पर आपको विषय पर अधिक सामयिक जानकारी मिल सकती है। कई उपयोगी अँग्रेज़ी लेखों, संस्थाओं और फ़ोरम इत्यादि के लिंक भी हो सकते हैं।