भारत में अब कोविड वैक्सीन 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए उपलब्ध है। कोविड संक्रमण से बचाव के लिए डिमेंशिया वाले व्यक्तियों और अन्य परिवार वालों और देखभाल कर्ता को वैक्सीन जरूर लगवाना चाहिए। इस लेख में:
डिमेंशिया वाले लोगों में कोविड के विरुद्ध प्रतिरक्षक क्षमता का विकसित होना ख़ास तौर से जरूरी है.
बड़ी उम्र के लोगों के लिए, और गंभीर बीमारी वाले लोगों के लिए कोविड संक्रमण अधिक गंभीर होता है, इसलिए ऐसे लोगों में संक्रमण के विरुद्ध प्रतिरक्षक क्षमता बहुत जरूरी है। डिमेंशिया (मनोभ्रंश) वाले व्यक्तियों के लिए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
डिमेंशिया (मनोभ्रंश) वाले व्यक्तियों को कोविड का संक्रमण होने का अधिक ख़तरा है क्योंकि वे सुरक्षित रहने के लिए कोविड-अनुरूप उचित व्यवहार को समझ नहीं सकते हैं या उनका पालन नहीं कर पाते हैं। ऊपर से उन्हें अकसर कार्यों में मदद की जरूरत होती है और उनके देखभालकर्ता सहायता के लिए उनके निकट आते हैं और वे कोविड संक्रमण के वाहक हो सकते हैं।
फिर यदि व्यक्ति को संक्रमण हो, तो वे परिवार वालों को शायद बता भी न पायें कि उन्हें तकलीफ हो रही है और इसलिए संक्रमण के प्रारंभिक चरण में उन्हें शायद उपचार न मिल पाए। उपचार में जितनी देर होगी, स्थिति उतनी गंभीर होगी, और जटिलताओं की संभावना बढ़ेगी।
इसके अलावा, उपचार प्राप्त करने में भी डिमेंशिया वाले व्यक्ति अधिक समस्याओं का सामना करते हैं। वे आमतौर पर अस्पताल के वातावरण में अधिक बेचैन और अव्यवस्थित हो जाते हैं, और यदि कोई परिचित देखभाल करने वाला साथ न हो, तो उनकी परेशानी बढ़ जाती है। वे डॉक्टर और नर्स की बात शायद न समझ पायें या आदेशों का पालन न कर पायें, और अपनी आवश्यकताओं या समस्याओं को व्यक्त करने में सक्षम न हों।
प्रतिरक्षा बढाने के लिए एक प्रमुख कदम है कोविड वैक्सीन लगवाना। स्पष्ट है कि डिमेंशिया से ग्रस्त लोगों को कोविड वैक्सीन लगवाने को प्राथमिकता देनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त यह भी जरूरी है कि परिवार के अन्य सदस्य और देखभाल कर्ता भी वैक्सीन लगवा लें ताकि उनके कारण व्यक्ति को कोविड संक्रमण होने का खतरा कम हो।
(यह पृष्ट कोविड और उसके लिए उपलब्ध वैक्सीन के संदर्भ में लिखा गया है, पर इसकी मुख्य बिन्दुएं किसी भी ऐसी गंभीर संक्रमण की स्थिति में भी उपयोगी हो सकती हैं, जहां वैक्सीन उपलब्ध हैं ।)
भारत के टीकाकरण अभियान के अंतर्गत चरणों में पात्र श्रेणियां बढ़ाई गयी थीं । शुरुआत में इस में स्वास्थ्य कर्मचारी और फ्रंट लाइन वर्कर्स थे, पर मार्च 1, 2021 से वैक्सीन की पात्र श्रेणी में अन्य लोग शामिल करे जाने लगे थे। अप्रैल 1, 2021 से 45 से अधिक उम्र के सभी लोग वैक्सीन लगवा सकते थे, और अब कोविड वैक्सीन 18 वर्ष से ऊपर के सभी लोगों के लिए उपलब्ध है । इसलिए डिमेंशिया वाले व्यक्ति, और उनके सभी परिवार वालों और देखभाल कर्ता को वैक्सीन लगवा लेना चाहिए।
टीकाकरण और संबंधित प्रक्रियाओं को जानने के लिए आधिकारिक साइट हैं: www.cowin.gov.in Opens in new window । यहाँ वैक्सीन के लिए पंजीकरण के बारे में अधिक विकल्प और जानकारी देखी जा सकती है, और पंजीकरण हो सकता है। वैक्सीन लेने के लिए पंजीकरण अनिवार्य है, पर इस कदम के लिए कई विकल्प हैं। वाक-इन का विकल्प भी उपलब्ध है ।
वैसे तो आजकल वैक्सीन लगवाने पर कई लेख नजर आते हैं, और इस से सम्बंधित प्रक्रियाएं स्थिति के अनुकूल बदली जा रही हैं, पर कुछ मुख्य पहलू गौर करने लायक हैं, खासकर डिमेंशिया वाले व्यक्ति के केस में:
टीकाकरण संबंधी प्रश्नों और संदेह के लिए कृपया अपने चिकित्सक से परामर्श करें, खासकर यदि वैक्सीन लगवाने वाले व्यक्ति को अन्य बीमारियाँ भी हों। कुछ संभव पहलू – क्या वैक्सीन लेने से पहले कुछ दवाओं को रोकने की आवश्यकता है या कोई उपचार चक्र पूरा करना चाहिए, अन्य वैक्सीन और कोविड वैक्सीन आदि के बीच कितना अंतर होना चाहिए, कौन से साइड इफेक्ट्स के बारे में सतर्क रहना होगा, वगैरह। इस सन्दर्भ में विभिन्न को-मोर्बिडिटी वाले व्यक्तियों की कुछ चिंताओं पर एक उपयोगी हिंदी लेख देखें : कोविड 19 वैक्सीन संबंधी जानकारी: गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों के अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न Opens in new window।
टीकाकरण प्रक्रिया के बारे में स्पष्ट रहें। यह कहाँ, कब और कैसे करवाएंगे, इसे अपनी सुविधा के अनुसार चुनें (जैसे कि, क्या आप वाक-इन करेंगे या अपॉइंटमेंट करने के बाद जायेंगे)। केंद्र के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर लें।
वैसे अच्छा रहेगा कि आप व्यक्ति का नवीनतम पर्चा (प्रिस्क्रीप्शन) साथ रखें, भले ही प्रक्रिया के अनुसार विशिष्ट चिकित्सा प्रमाण पत्र की आवश्यकता न हो।
वैक्सीन के लिए जाने की योजना बनाएं, जैसे कि साथ क्या ले जाना चाहिए (पानी, स्नैक्स, हैंड सैनिटाइज़र, अतिरिक्त मास्क आदि)।
डिमेंशिया वाले व्यक्ति को वैक्सीन के लिए ले जाने के लिए अधिक व्यवस्था की जरूरत हो सकती है, इस लिए सुविधाजनक केंद्र चुने। हो सके तो व्यक्ति को ले जाने से पहले केंद्र के अधिकारियों से अपने सभी प्रश्न पूछ लें। ऐसी व्यवस्था करें जिस से व्यक्ति को केंद्र में लंबे समय तक इंतजार न करना पड़े। यह भी सुनिश्चित करें कि परिवार का कोई सदस्य डिमेंशिया वाले व्यक्ति के साथ हमेशा रहे ताकि व्यक्ति घबराएं नहीं और विचलित या उत्तेजित न हों।
वैक्सीन लगने के बाद डिमेंशिया वाले व्यक्ति की अधिक देखभाल के लिए तैयार रहें क्योंकि इसके कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं। ये अधिकाँश केस में बहुत ही हलके होते हैं पर फिर भी ये व्यक्ति को चिंतित कर सकते हैं। व्यक्ति को अधिक ध्यान और सांत्वना की आवश्यकता हो सकती है। यह भी संभव है कि व्यक्ति इन दुष्प्रभाव (जैसे बुखार, खराश, आदि) के बारे में परिवार के सदस्यों को न बताएं और परिवार वाले उन्हें इन से राहत न दे पायें (जैसे कि बुखार की गोली)।
अगर देखभाल कर्ता वैक्सीन लगवा रहे हों तो ध्यान रखें कि कुछ दिन के लिए वैक्सीन के कारण उत्पन्न दुष्प्रभाव हो सकते हैं, इसलिए डिमेंशिया वाले व्यक्ति की देखभाल के लिए अन्य देखभाल कर्ता उपलब्ध रहना चाहिए।
ध्यान रहे कि सफल टीकाकरण के लिए वैक्सीन की दोनों खुराक लेनी होंगी। दोनों खुराक एक ही किस्म की वैक्सीन की होनी चाहियें , और उनके बीच का अंतराल प्रक्रिया के अनुसार होना चाहिए । निर्धारित अंतराल के बाद बूस्टर डोस भी लगवा लें।
टीकाकरण की पहुँच बढाने के लिए अब ऐसे भी कई विकल्प हैं जिन से लोग अधिक सुविधा से टीका लगवा सकें, जैसे कि अपार्टमेंट काम्प्लेक्स में किसी निजी अस्पताल के या स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारी “कैंप” लगाते हैं। अगर व्यक्ति बहुत कमजोर हैं या उन्हें घर से बाहर ले जाने में संक्रमण का जोखिम बहुत अधिक है, या व्यक्ति शैय्याग्रस्त हैं, तो इन के लिए उचित विकल्प का पता चलाएं।
टीकाकरण के बाद भी, सभी आवश्यक कोविड अनुरूप उपयुक्त व्यवहार का पालन करने की आवश्यकता है, क्योंकि वैक्सीन से संक्रमण की संभावना कम होती है, शून्य नहीं। वैक्सीन लगने के बावजूद भी संक्रमण हो सकता है।
कोविड 19 की स्थिति के कारण डिमेंशिया देखभाल में परिवारों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। नीचे दिए गए स्लाइड-शो में कुछ मुख्य पहलुओं के लिए सुझाव दिए गए हैं। एक स्लाइड से दूसरे स्लाइड पर जाने के लिए दायें या बाएं तरफ के तीर पर क्लिक करें। स्लाइड की सूची:
डिमेंशिया वाले व्यक्ति को कोविड से बचाएं।
देखभाल को कोविड स्थिति के लिए एडजस्ट करें।
कोविड के दौरान चिकित्सीय सहायता प्राप्त करें।
ऐसे देखभाल के तरीके अपनाएं जो संतुलित हैं और कम तनावपूर्ण हैं।
ऐसी व्यवस्था बनाएं जो बिना थकान के लम्बे अरसे तक अपना सकें।
कोविड 19 और सम्बंधित बदलाव की वजह से कई घरों का वातावरण काफी बदला है। कार्यस्थलों में काम करने के तरीके बदल गए हैं, और कुछ प्रकार की गतिविधियाँ और आवागमन में भी काफी बदलाव हुए हैं। अब कई लोग घर पर हैं, कुछ वर्क फ्रॉम होम की वजह से, कुछ नौकरी खोने/ कारोबार के बंद होने की वजह से। घर में अधिक लोग होने की वजह से शायद प्राइवेसी कम हो। दूसरों को घर से काम करने या पढ़ाई करने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। घरेलू काम और खाना पकाने का कार्यभार शायद अधिक हो। कुछ रिपोर्ट के अनुसार कोविड 19 स्थिति के कारण बहस, गुस्सा, और घरेलू हिंसा और उत्पीड़न में वृद्धि हुई है।
ऐसे वातावरण में अगर घर में किसी को डिमेंशिया हो, तो उस व्यक्ति के लिए और उनकी देखभाल करने वालों के लिए चुनौतियां कई गुना बढ़ जाती हैं। पर स्थिति जो भी हो, परिवार वालों को मिल कर उस व्यक्ति की देखभाल करनी होगी।
अच्छा होगा यदि परिवार के सदस्य घर और देखभाल के बारे में सलाह-मशवरा कर के कार्यों को आपस में बाँट लें। व्यक्ति किस देखभाल कर्ता के साथ सहज महसूस करते हैं, देखभाल के कार्यों को बांटते समय इस का ख़याल रहे। देखभाल के तरीकों में इतने बदलाव न करें जिस से व्यक्ति घबरा जाएँ या उन्हें असुविधा हो। अगर देखभाल का कार्यभार एक देखभाल कर्ता पर ज्यादा है, तो परिवार वाले बाकी कामों में अधिक सहायता दे सकते हैं। देखभाल और अन्य कार्यों को आपस में ऐसे बाँटें जो सब के अनुकूल हो और व्यावहारिक भी।
अधिकांश डिमेंशिया देखभाल संबंधी सुझाव इस बात पर केंद्रित होते हैं कि डिमेंशिया वाले व्यक्ति का जीवन कैसे बेहतर बनाया जाए। कुछ देखभाल करने वाले के तनाव को कम करने के लिए युक्तियाँ भी शामिल होती हैं। उदाहरण के लिए, एक आम सुझाव है कि परिवार वाले व्यक्ति को अनेक संज्ञानात्मक क्षमता बढ़ाने वाली गतिविधियों में शामिल करें। पर सच तो यह है कि परिवार वाले देखभाल के साथ-साथ अनेक दूसरे काम भी संभालते हैं। और कोविड 19 से उत्पन्न समस्याओं के कारण उनका कार्यभार और तनाव काफी बढ़ गया है। अगर वे व्यक्ति के साथ की गतिविधियाँ बढ़ाएंगे तो कार्यभार बढ़ सकता है, पर यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो क्या उन्हें अपराध-बोध होगा?
ऐसे समय में संतुलन बनाए रखने के लिए यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं। परन्तु कृपया इन सुझावों को अधिक तनाव का स्रोत न बनने दें। अपने तनाव को कम करने के लिए छोटे छोटे कदम लें जिन से आप को कुछ राहत मिले। अपने साथ सख्ती न करें। यह पहचानें कि आप का कार्यभार अधिक है और थकान स्वाभाविक है। खुद के प्रति सहानुभूति का भाव रखें न कि आलोचना का। बहुत ज्यादा काम करने की कोशिश न करें। आदर्श बनने की कोशिश न करें। कुछ लोग खुद से इतनी उम्मीद रखते हैं और इतना अपराध बोध महसूस करते हैं कि वे अपना कार्यभार हद से ज्यादा बढ़ा देते हैं। इस से उनका तनाव और चिड़चिड़ापन भी बहुत बढ़ जाता है, और घर का माहौल अधिक बिगड़ जाता है।
परिवार के अन्य सदस्यों के साथ काम बांटें। ये देखभाल के काम हों, ऐसा जरूरी नहीं। यदि अन्य परिवार के सदस्य देखभाल करने वाले के बाकी कार्य-भार को अपने ऊपर ले लें तो देखभाल करने वाले को देखभाल के लिए अधिक टाइम और उर्जा मिलेगी।
आवश्यक कार्यों और उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित रखें। कार्य ऐसे चुनें जिन से एक कार्य करने से कई उद्देश्य पूरे हो पायें। जो भी काम किया जा रहा है या करने की जरूरत है, उस पर विचार करें। देखें कि क्या काम एकदम आवश्यक हैं, क्या इतने जरूरी नहीं हैं, और किन कामों की बिलकुल भी जरूरत नहीं है। आवश्यक कार्यों को प्राथमिकता दें, और सोचें कि क्या इन्हें ऐसे संभाला जा सकता है कि एक ही काम करने से कई आवश्यकताएं पूरी हो जाएं। काम ऐसे करें जो व्यक्ति और देखभाल कर्ता, दोनों के लिए कारगर हो। ध्यान रहे, क्या कर सकते हैं, क्या अच्छा है और क्या नहीं, यह हर स्थिति और व्यक्ति के लिए अलग है। इस की कोई स्टैण्डर्ड सूची नहीं है।
एक उदाहरण: डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के हाथ धुलवाते समय व्यक्ति के साथ गपशप करें और खेल भाव अपनाएँ जैसे कि उंगलियों की गिनती वाले कुछ बचपन की कविताएँ कहना, साबुन के बुलबुले बनाना, मज़ाक करना। ऐसा करने से एक आवश्यक काम पूरा हो जाता है और साथ-साथ एक संज्ञानात्मक खेल और मनोरंजन भी।
या मटर छीलते समय व्यक्ति के साथ बैठें, शायद उन्हें छीलने के लिए कुछ फली भी दें। एक घरेलू काम निपट जाता है, और बातचीत और गतिविधि भी हो जाती है। इस तरह के रचनात्मक तरीकों के बारे में सोचें, पर ध्यान रहे, व्यक्ति की सुरक्षा का ख़याल रहे।
याद रखें, उद्देश्य तनाव को कम करना है। यदि माँ के साथ मटर छीलना तनाव बढ़ाता है, तो न करें। कार्यों का चयन इस बात पर आधारित होना चाहिए कि देखभाल करने वाले और व्यक्ति दोनों के लिए ठीक हों, न कि किसी पुस्तक या संसाधन में उनका उल्लेख हो 🙂 ।
देखभाल का कार्यभार तभी बढ़ाएं अगर बहुत आवश्यक हो। परिवर्तन करते समय, जहां उचित हो, वहां मौजूदा कार्यों की जगह ऐसे कार्य करें जो इस स्थिति में अधिक उपयुक्त हैं। जब देखभाल कार्यों या घर के काम की बात आती है, तो हमेशा ऐसा लगता है कि अधिक काम करने की गुंजाइश है। घर की कुछ और अधिक सफाई हो सकती है, व्यक्ति के साथ कुछ और गतिविधियाँ हो सकती हैं। लेकिन यह नजरिया रहे तो काम का कोई अंत नहीं होगा। और इन अतिरिक्त कार्यों के बिना भी सब ठीक-ठाक चल सकता है। दिनचर्या ऐसा हो कि उस से थकान कम से कम हो। दिनचर्या व्यवहारिक हो। आदर्श देखभाल कर्ता बनने की कोशिश में खुद को न फसायें।
यदि डिमेंशिया वाले व्यक्ति अकेले रहते हैं तो देखभाल कर्ता की भूमिका दूर से देखभाल का प्रबंधन करने वाले की है। यह स्थिति विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है क्योंकि देखभाल के रोजमर्रा वाले कार्यों के लिए वे दूसरे लोगों और संस्थाओं पर निर्भर है। यदि डिमेंशिया वाले व्यक्ति के घर में सही इंतजाम नहीं है, तो अन्दर क्या हो रहा है यह देखने के लिए स्काइप जैसा कोई वीडियो संपर्क हो सकता है। इस तरह की स्थिति आमतौर पर ऐसे परिवारों में है जहां वयस्क बच्चे एक घर में हैं और उनके बुज़ुर्ग माता-पिता अकेले दूसरे घर में हैं, चाहे उसी शहर में हों या दूसरे शहर या देश में।
ऐसी स्थिति में, दूर से देखभाल करने वालों को एक बहुत ही सक्रिय भूमिका निभानी होगी, स्थिति के बारे में सूचित रहना होगा, और सब संभव सहारे के स्रोतों से जुड़ा रहना होगा।
वरिष्ठ नागरिकों को संक्रमण का खतरा ज्यादा है, खास तौर पर घर से बाहर जाने पर, इसलिए घर से ही खरीदारी और सब तरह के प्रबंध कर पाने की क्षमता बहुत जरूरी है। परिवार वालों को लोगों से जुड़े रहना चाहिए और जान-पहचान वालों के नेटवर्क का इस्तेमाल कर पाना चाहिए। कई देखभाल करने वाले खुद वरिष्ठ नागरिक होते हैं, और उनकी अपनी भी कई स्वास्थ्य चुनौतयां हैं।
कई वरिष्ठ नागरिक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में सहजता नहीं महसूस करते। वे दूसरों से मदद मांगने में भी झिझकते हैं। इस लिए कोविड 19 जैसी स्थिति में उनकी परेशानी बहुत बढ़ी। पर कई लोगों ने पाया कि टेक्नोलॉजी का उपयोग करना और दूसरों से मदद लेना इतना मुश्किल नहीं था।अच्छी खबर यह है कि ऐसे कई बुज़ुर्ग जो पहले टेक्नोलॉजी से दूर रहते थे, वे अब टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर पाते हैं । बस शुरू में उन्हें हिचकिचाहट की बाधा पार करनी पड़ी और कुछ प्रयत्न करना पड़ा। वैसे भी, पूछने पर पड़ोसी मदद कर सकते हैं, और दोस्त और उनके बच्चे भी। वरिष्ठों के साथ काम करने वाले संगठन जरूरी कार्य करने में मदद करने लगे हैं, और कई संस्थान वरिष्ठों को टेक्नोलॉजी और अन्य आवश्यक कौशल सिखा रहे हैं। साथ ही, आजकल कुछ ऐसे फ़ोरम भी हैं जहां लोग विशिष्ट सहायता मांग सकते हैं।
सामान्य तौर पर, दूसरों पर आश्रित होना और असहाय महसूस करना बहुत ही निराश कर सकता है। यह निश्चित नहीं है कि इस गंभीर संक्रमण का खतरा कब तक रहेगा – और कोविड नहीं तो कुछ और भी आ सकता है। लेकिन कुछ कोशिश करें तो देखभाल करने वाले स्थिति को संभालने के लिए बेहतर तरीके ढूंढ सकते हैं और जरूरी कौशल भी सीख सकते हैं, जैसे कि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल। वे गिने-चुने लोगों से मदद मांगने के तरीके भी ढूँढ़ सकते हैं।
देखभाल कर्ता के लिए स्व-देखभाल आवश्यक है। ऐसे व्यवहारिक तरीके चुनें जो आप रोज कर पायें। किसी भव्य आदर्श स्व-देखभाल प्रोग्राम की उम्मीद में न बैठे रहें, क्योंकि वह आप शायद न कर पायें।। किसी भी गंभीर स्थिति में देखभाल करने वालों को स्व-देखभाल के लिए ज्यादा टाइम निकाल पाना मुश्किल होता है। कुछ सामान्य गतिविधियाँ संभव नहीं रहती, जैसे कि कोविड के शुरुआती दिनों में बाहर टहलना या जॉगिंग के लिए जाना संभव नहीं था, और योग क्लास या जिम जाने के विकल्प उपलब्ध नहीं थे। घर पर व्यायाम कर पायें, यह कुछ लोगों के लिए तो संभव है पर दूसरों के लिए नहीं है। खुद के लिए ज्यादा लम्बा टाइम निकालना शायद न हो पाए। प्राइवेसी कम हो सकती है। एक देखभाल करने वाले ने साझा किया कि वे अपने भीड़ भरे घर के माहौल में निजी विचारों को अपनी डायरी लिखने में सहज महसूस नहीं करती हैं। एक अन्य महिला ने कहा कि दोस्तों से फ़ोन पर बात कर पाने के लिए उन्हें बाथरूम में छुपना पड़ता है ताकि और लोग उनकी बात न सुन पायें।
अपनी स्व-देखभाल के लिए ऐसे छोटे-छोटे काम की पहचान करें जिन में अधिक जगह या सामान की जरूरत नहीं है, और जिन्हें आप भरे हुए, शोर वाले घर में भी आराम से कर सकेंगे ऐसे कार्य चुनें जिन से आपको कुछ राहत मिले और जो आप दिन में कई बार कर सकें। ये छोटी छोटी चीज़ें आपको दिन में कई बार करनी याद रहें, इस के लिए इन्हें अन्य घटनाओं से जोड़ लें।
यहाँ एक उदाहरण है: हर बार जब आप एक कमरे से दूसरे में जाते हैं, तो तीन गहरी साँसें लें। या हर घंटे हेडफ़ोन पर एक गीत सुनें। फोन को अलार्म रिमाइंडर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। रिंग टोन पर ऐसा गाना लगाएं जो आपके चेहरे पर मुस्कान लाए या जिस से आप शांति महसूस करें। कुछ सोचने से आप ऐसी कई छोटी चीज़ें पहचान पायेंगे जो आप बिना ज्यादा इंतज़ाम के, बिना किसी के जाने हुए कर सकते हैं और जिन के लिए अलग अकेले जा कर करने की जरूरत नहीं, जिनमें गोपनीयता की आवश्यकता नहीं है।
दोस्तों के साथ जुड़े रहें। अपने संपर्कों की सूची से रोज कुछ दोस्तों से बात करें, ताकि दोस्तियाँ और रिश्ते बने रहें।
तनाव के लिए हेल्पलाइन:
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से मनोसामाजिक टोल-फ्री हेल्पलाइन पर संपर्क करें: 080-46110007।
एक बहुत ही उपयोगी संसाधन iCall साइकोसोशल हेल्पलाइन (iCall Psychosocial Helpline) है, जो मुफ्त परामर्श प्रदान करता है, और 93702 48501, 99202 41248, 83697 99513 या 92929 87821, ईमेल icall@tiss.edu, और nULTA ऐप (चैट) का उपयोग करके पहुँचा जा सकता है: सोमवार से शनिवार सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक।
डिमेंशिया की सेवा प्रदाता संस्थाएं डे केयर, मेमोरी कैफ़े, और ऐसे अन्य प्रोग्राम चलाती हैं । कोविड महामारी के शुरुआती दिनों में, लॉकडाउन होने पर, उन सब ने ऐसे सब प्रोग्राम निलंबित कर दिए थे जिन में डिमेंशिया वाले व्यक्ति या देखभाल कर्ता उनके केंद्र में कुछ गतिविधि करते थे या कुछ सहायता या समर्थन प्राप्त करते थे। अब जैसे-जैसे फिर से लोग सामान्य जीवन पर लौट रहे हैं, कई सेवाएं फिर से चालू हो गयी हैं पर कई परिवार वाले अब भी संक्रमण होने के भय से ऐसी सेवाओं का उपयोग नहीं कर रहे हैं। कई लोगों ने पाया है कि ऑनलाइन सेवाओं से समय की बचत होती है और थकान और असुवविधा कम होती है। कुछ संगठन ने ऑनलाइन / फोन के माध्यम से अधिक सेवाएं देना शुरू कर दिया है। उदाहरण के लिए, वे अब स्काइप या ज़ूम या अन्य प्लेटफार्म का उपयोग करके ऑनलाइन सपोर्ट ग्रुप मीटिंग करते हैं, और फ़ोन के माध्यम से अधिक जानकारी और सुझाव देते हैं। कुछ लोग इंटरएक्टिव अभ्यासों आदि के लिए सत्र आयोजित करते हैं। कुछ संगठन ऑनलाइन समर्थन तो प्रदान करते हैं, लेकिन मुख्यतः सिर्फ उन जाने-पहचाने परिवारों के लिए जो उनके केंद्र आया करते थे। लेकिन अन्य संगठनों ने ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर अपना काम नहीं बढ़ाया है।
ऑनलाइन / फोन समर्थन का एक फायदा यह है कि समर्थन देने वाली संस्था आपके ही शहर में हों, ऐसा जरूरी नहीं। सहायता ढूँढने वाले परिवार भारत स्थित संस्थाओं के लिए व्यापक खोज कर सकते हैं । अंतरराष्ट्रीय ऑनलाइन सेवाएं भी कुछ प्रकार की जानकारी के लिए उपयोगी होंगी, और अंतर्राष्ट्रीय फोरम में साझा किये गए अनुभव और सुझाव भी मददगार हो सकते हैं। इस तरह की सहायता स्काइप, ज़ूम, सिस्को वेबेक्स, फेसबुक लाइव, यूट्यूब लाइव, ऑनलाइन मंचों, फोन हेल्पलाइन आदि जैसे प्लेटफार्म पर मिल सकती है। कुछ वेबिनार / बैठकें सूचना प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, और टाइप किए गए प्रश्नों का जवाब देती हैं। इस तरह के कुछ प्रोग्राम सार्वजनिक हैं। इनमें कोई भी शामिल हो सकता है / कोई भी देख सकता है,और रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध होती है।
ऑनलाइन माध्यम द्वारा उपलब्ध सहायता का उपयोग करते समय परिवारों को अपनी गोपनीयता के बारे में सावधान रहने की आवश्यकता है। हो सकता है कि वे अपने नाम को उनके सवालों के साथ नहीं जोड़ना चाहें। उदाहरण के लिए, फेसबुक के मुकाबले वे एक ज़ूम प्रोग्राम पसंद कर सकते हैं, क्योंकि फेसबुक लाइव सेशन पर अगर वे कुछ पूछें तो सब देख पायेंगे कि किसने प्रश्न उठाया है। सामान्य तौर पर परिवार ऐसे सत्रों से भी लाभ उठा सकते हैं जहां अन्य लोग सवाल पूछ रहे हैं और उनके मुद्दे पर भी लोगों के सवाल होंगे।
ऑनलाइन / फोन द्वारा सहायता देने वाले संसाधनों की पहचान के लिए परिवार वाले उन संस्थाओं से पूछ सकते हैं जिनके साथ वे पहले से ही संपर्क में थे। वे अन्य डिमेंशिया सेवा प्रदाता/ संस्था से भी उनकी ऑनलाइन/ फ़ोन सेवाओं के बारे में पूछ सकते हैं। भारत के विभिन्न शहरों में डिमेंशिया संस्थाओं की जानकारी इन पृष्ठों पर उपलब्ध है)। एक पाठक से प्राप्त एक उपयोगी टिप: वरिष्ठ नागरिकों (सीनियर सिटीजन) के लिए उपलब्ध हेल्पलाइन भी डिमेंशिया वाले व्यक्ति की देखभाल संबंधी कठिनाइयों के लिए उपयोगी हो सकती हैं। ये हेल्पलाइन परिवारों को जानकारी दे सकती हैं या उन्हें ऐसी संस्थाओं से जोड़ सकती हैं जो उस समस्या के लिए अधिक उपयोगी हैं। अन्य स्रोतों से सहायता न मिले तो इन्हें भी आजमायें।
ध्यान दें कि भले ही कोई संसाधन डिमेंशिया के लिए न हो, वहां भी उपयोगी जानकारी और सहायता मिल सकती है, विशेषकर ऐसी संस्थाएं जो वरिष्ठ नागरिकों, पार्किंसंस रोग, विकलांगता या मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहे व्यक्तियों की मदद करती हैं। इन क्षेत्रों और डिमेंशिया के बीच चुनौतियों और सुझावों/ समाधानों में काफी समानताएं हैं।
डिमेंशिया देखभाल करने वाले परिवारों की मदद कैसे करें.
परिवारों की मदद करने वाले लोग ऊपर लिखी गयी बातों से मदद करने के लिए क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं। यह देखते हुए कि गंभीर संक्रमण से सुरक्षित रहने के लिए घर पर ही ऑनलाइन सेवाएं ले पाना अब प्रचलित हो रहा है, पर उचित संसाधन तक पहुंचना इतना आसान नहीं है, परिवारों की मदद के लिए कुछ सुझाव नीचे देखें:
उपलब्ध हेल्पलाइन और अन्य ऑनलाइन संसाधनों को प्रचारित किया जाना चाहिए। इन की जानकारी व्याप्त की जानी चाहिए ताकि जिन्हें मदद की आवश्यकता है वे इनसे संपर्क करें।
ऑनलाइन सहायता समूह बनाएं, और तनाव के लिए फोन परामर्श दें। विश्वसनीय डॉक्टरों का डेटाबेस उपलब्ध करवाएं। समर्थन सभी परिवारों के लिए उपलब्ध होना चाहिए। सहायता कई भाषाओं में उपलब्ध होनी चाहिए और कई प्रकार के देखभाल करने वालों के लिए उचित होनी चाहिए। यह केवल अंग्रेजी बोलने वाले उच्च-मध्यम वर्गीय शहरी परिवार तक सीमित नहीं होनी चाहिए।
विश्वसनीय स्वास्थ्य संबंधी सहायता कैसे प्राप्त करें, इस पर परिवारों को जानकारी और सहायता देनी चाहिए।
डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों और संसाधनों के नाम और संपर्क की सूचना एकत्रित करके उपलब्ध करवाना एक बहुत उपयोगी कदम होगा। घर पर आकर सलाह देने वाले डॉक्टर की सूची भी बहुत मददगार होगी। और ऐसे डॉक्टर जो टेलीमेडिसिन में नए मरीजों को सलाह देने के लिए तैयार हों। इस तरह की जानकारी से परिवार डॉक्टर की सलाह और अन्य स्वास्थ्य सहायता अधिक आसानी से प्राप्त कर पाएंगे।
एक अन्य क्षेत्र है देखभाल करने वालों को ऑनलाइन संसाधनों का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षण देना।
परिवारों तक पहुँच पाने के तरीके बहुत तकनीकी हों या महंगे उपकरणों और तेज इन्टरनेट पर निर्भर हों, ऐसा नहीं होना चाहिए। रेडियो कार्यक्रम और सस्ते फ़ोन पर चलने वाले सिस्टम भी बहुत कारगर हो सकते हैं।
जागरूकता क्षेत्र में कार्यरत लोग डिमेंशिया व्यक्तियों की कोविड 19 स्थिति में होने वाली समस्याओं के प्रति समाज और अन्य संस्थाओं में संवेदनशीलता पर काम कर सकते हैं। वे कोशिश कर सकते हैं कि डिमेंशिया वाले लोग और उनके देखभाल करने वालों को सहायता की जरूरत है, इस बात को भूला न जाए ।
देखभाल करने वालों की चिंता और चुनौती का एक बड़ा हिस्सा चिकित्सा पहलुओं से संबंधित है। जैसे, जरूरत पड़ने पर, गंभीर संक्रमण के जोखिम की स्थिति में, चिकित्सकीय सहायता कैसे प्राप्त करी जाए, उसके लिए सुरक्षित परिवहन की व्यवस्था करना, और आपात स्थिति में तुरंत सहायता पाना। इसके अलावा, कई लोगों को डर है कि कहीं अस्पताल जाने से उन्हें कोविड न हो जाए! देखभाल कर्ताओं को सोचना होगा कि सलाह और चिकित्सा कैसे पायें, और यदि अस्पताल जाना हो, तो अस्पताल में संक्रमित होने के खतरे से कैसे बचें।
स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं को संभालने के लिए सही जानकारी और उपयुक्त योजना की आवश्यकता होती है। गंभीर संक्रमण के जोखिम (और संबंधित व्यवस्थाओं) के कारण कुछ नई अड़चनें हो सकती हैं। इस संदर्भ में याद करें कि कोविड के प्रारंभिक चरण में 65 से ऊपर के लोगों को घर पर ही रहने की सलाह दी गयी थी। सुझाव था कि आवश्यक कार्यों और स्वास्थ्य प्रयोजनों की वजह के अलावा वे घर पर ही रहें। डॉक्टर की सलाह के लिए टेलीकंसल्टेशन का उपयोग करने की सलाह थी।
कोविड के माहौल में चिकित्सा सहायता के विभिन्न पहलुओं पर नीचे चर्चा की गई है। ध्यान दें कि यदि संक्रमण के खतरे की स्थिति में किसी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को घर से बाहर कुछ जांच या परामर्श आदि के लिए ले जाया जा रहा है, तो उचित सावधानियां बरतनी होंगी। व्यक्ति को मास्क पहने रहना होगा और यह भी ध्यान देना होगा कि वे अपनी आँखें, नाक और मुंह को न छूएं। हाथ की सफाई के लिए हाथ धोना होगा या सैनिटाइज़र का इस्तेमाल करना होगा। इसके लिए साथ जाने वालों को बहुत सतर्क रहना होगा। व्यक्ति उन की बात मानें, इस के लिए उन्हें बार-बार प्यार से समझाते रहना होगा।
दवा की दुकानें खुली हैं, इसलिए दवा लेने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए। आजकल कई दवा की दुकानें होम डिलीवरी भी करती हैं। लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में दवाएं प्राप्त करने में कई लोगों को दिक्कत हुई थी, पर अब स्थिति लगभग सामान्य है। कई मोबाईल एप भी हैं जिनसे दवाएं घर पर मिल सकती हैं। ऑनलाइन दवा खरीदने के लिए नुस्खे को अपलोड करना और व्यक्तिगत जानकारी एप में डालना आवश्यक हैं।
कोविड के शुरुआती दिनों में कई लोगों को दवा मिलने में दिक्कत हुई क्योंकि उनके पास हाल के नुस्खे नहीं थे। वास्तव में, उनके पास कुछ तरह की दवाओं के लिए कोई भी नुस्खा नहीं था – विशेष रूप से सप्लीमेंट या आयुर्वेदिक या कुछ तरह की गैर-एलोपैथी दवाओं के लिए, या ऐसी दवाओं के लिए जिनका उपयोग वे वर्षों से कर रहे थे। कई परिवार डॉक्टरों के साथ नियमित संपर्क में नहीं थे। वे पुराने नुस्खे के साथ ही काम चलाते आ रहे थे और वर्षों तक एक ही दवा लेते जा रहे थे। अपनी सोच-समझ से वे खुद ही दवा की मात्रा (डोज़) को ऊपर-नीचे एडजस्ट करते रहते। यह चिकित्सकीय रूप से उचित नहीं है, लेकिन फिर भी एक वास्तविकता है।
दवा प्राप्त करने में समस्या हो या नहीं, परिवारों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनके पास अपनी दवाओं के लिए नुस्खे हैं। अगर नहीं हैं तो वे इन्हें डॉक्टर से मिल कर या टेलीमेडिसिन द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। टेलीमेडिसिन के लिए नीचे का सेक्शन देखें। दवाओं का, खासकर जरूरी दवाओं का कुछ हफ्तों के लायक स्टॉक रखें। यदि संक्रमण की संभावना बढ़ी हो, तो होम डिलीवरी लेते समय फेस-मास्क और सैनिटाइज़र का उपयोग अवश्य करें। कोविड के शुरू के दिनों में कुछ लोगों ने संक्रमण से बचने के लिए हर होम डेलीवेरी को इस्तेमाल करने से पहले कुछ देर धूप में रखने की आदत डाल ली थी। आजकल शायद ही कोई ऐसा करता है, पर यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो कृपया याद रखें कि अधिकांश दवाओं को घंटों के लिए सीधे धूप में नहीं रखना चाहिए। यह कदम शायद वायरस को मार दे, पर यह दवा को बेकार और बेअसर भी कर सकता है।
घर आकर रक्त परीक्षण (ब्लड टेस्ट) के लिए सैंपल लेने वाली सेवाएं अब आसानी से उपलब्ध हैं। महामारी में ऐसी कई नई सेवाएं भी शुरू हुई थीं । टेस्ट को फोन से बुक करा जा सकता है। टेस्ट के लिए तकनीशियन किस दिन आ पायेगा यह सेवा में स्टाफ की उपलब्धी पर निर्भर होगा।
पड़ोसियों से पूछें कि आपके इलाके के लिए कौन सी सेवा भरोसेमंद है। यदि आप एक अपार्टमेंट परिसर में हों तो सुनिश्चित करें कि सैंपल कलेक्ट करने के लिए आने वाले तकनीशियन को अन्दर आने की अनुमति है। कलेक्शन के समय सुरक्षित रहने के लिए हाथ सैनिटाइज़र, मास्क आदि जैसी सावधानियों का उपयोग करें और तकनीशियन को भी सुरक्षित रखें। बार-बार बुलाने के बजाय, एक बार में ही सब टेस्ट करवाने की सोचें। कुछ जांचों के लिए अस्पताल जाना जरूरी होता है। ये टेस्ट करवाने ज़रूरी हैं या नहीं, इस के लिए डॉक्टर से बात कर लें।
अच्छा यही होगा कि आप डॉक्टर से सलाह करें कि किन-किन परीक्षण और जांच की आवश्यकता है, और यदि संक्रमण का जोखिम अधिक हो, तो यह भी पूछें कि किन परीक्षणों को (और कब तक) स्थगित किया जा सकता है। इस सलाह के लिए आप टेलीमेडिसिन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
ऐसे कई कारण हैं जिन की वजह से डॉक्टर की सलाह की आवश्यकता हो सकती है। उदारहण हैं – नए नुस्खे प्राप्त करने की जरूरत, नए चिंताजनक शारीरिक या मानसिक लक्षण, मूड की समस्याएँ, व्यक्ति की हालत पहले से खराब होना, और अन्य मौजूदा बीमारियों से सम्बंधित समस्याएं, जैसे कि उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, या अन्य कोई फॉलो-अप वगैरह।
अधिकांश अस्पताल और पॉलीक्लिनिक काम तो कर रहे हैं, पर कम कर्मचारियों के साथ। कुछ जगहों ने ओपीडी समय को सीमित कर दिया है। स्वास्थ्य संस्थाओं के लिए जारी विभिन्न एसओपी के अनुसार सुरक्षा के लिए बार बार क्लिनिक और अस्पतालों में मशीनों और बाकी जगह को साफ करते रहना होता है, और इस की वजह से हर मरीज़ के लिए अधिक टाइम लगता है। यह नेत्र, दांत, और अन्य उन स्पेशियलटीज़ में अधिक हैं जिन में अधिक करीब का संपर्क होता है या किसी मशीन का इस्तेमाल होता है। साथ ही, अस्पताल आने-जाने में भी चुनौतियाँ हो सकती हैं।
महामारी के शुरू में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने गैर-आपातकालीन स्थितियों के लिए टेलीमेडिसिन के उपयोग की सिफारिश की थी। इसके लिए मंत्रालय ने व्यापक दिशानिर्देश भी जारी किए। कई डॉक्टर और अस्पताल अब टेलीमेडिसिन द्वारा भी सलाह दे रहे हैं। कुछ डॉक्टर और मरीज़ तो इसके आदी हो गए हैं, पर कई अब भी इस तरह की सलाह के साथ सहज नहीं हैं। नीचे देखें टेलीमेडिसिन का कारगर इस्तेमाल करने की लिए कुछ प्रमुख बिंदु।
अधिकांश अस्पतालों और क्लिनिक में टेलीमेडिसिन की सुविधा के लिए अड्वान्स में पैसे देने होते हैं, और सलाह फोन या वीडियो पर ली जा सकती है। पिछले एक-दो साल से इस प्रणाली का उपयोग करने के कारण अपॉइन्टमेंट लेने, पैसे का भुगतान करने इत्यादि का सिस्टम अब ठीक चल रहा है, पर कुछ जगह अब भी इसमें दिक्कतें होती हैं।
कोशिश करें कि टेलीमेडिसिन द्वारा सलाह उसी डॉक्टर से लें जिस के पास आप व्यक्ति के लिए नियमित रूप से जाते हैं और जो आपको जानता है। किसी नए डॉक्टर से सलाह करने के मुकाबले यह अधिक अच्छा है। इसके कई कारण हैं।
आपके परिचित डॉक्टर को या तो व्यक्ति का केस याद होगा या उन्हें कुछ मुख्य बातें याद दिलाने से केस याद आ सकता है। उनके पास केस की फाइल मौजूद हो सकती है। इसके विपरीत यदि नए डॉक्टर से सलाह करें तो व्यक्ति की केस हिस्ट्री देनी होगी। केस समझाते समय यह सोचना होगा कि किस पहलू को प्राथमिकता दें। यह मुश्किल काम है। हो सकता है आपके पास सारा डेटा भी न हो, खासकर अगर पहले वाले डॉक्टर ने केस फाइल अपने पास ही रखी थी।
परिचित डॉक्टर के आपको उपयुक्त सलाह देने की अधिक संभावना है। नया डॉक्टर संकोच कर सकता है या केस लेने से मना भी कर सकता है। डॉक्टर कह सकता है कि, “क्या करना है यह तो आपको ही तय करना होगा”, या “मैं ऐसे कुछ नहीं कह सकता। यदि आप चिंतित हैं, तो कृपया अस्पताल जाएँ।”
टेलीकंसल्टेशन के लिए तैयार होने के लिए व्यक्ति की केस हिस्ट्री, सबसे नया प्रिस्क्रिप्शन, टेस्ट रिपोर्ट, उनकी वर्तमान समस्या और सवालों को इकट्ठा करने की आवश्यकता है। यह कदम अपने परिचित डॉक्टर से परामर्श कर रहे हों, तब भी फायदेमंद है। यह इसलिए क्योंकि हो सकता है डॉक्टर को केस पूरी तरह से याद न हो और उनके पास केस फाइल न हो। परिवार वाले जितना अधिक तैयार होंगे,उन्हें उतनी ही उपयोगी सलाह मिलेगी।
पुरानी हिस्ट्री के मुख्य बिंदु और नए टेस्ट रिजल्ट डॉक्टर के पास सलाह करने से पहले कैसे उपलब्ध करवा सकते हैं, यह पता लगाएं, वर्ना अपॉइंटमेंट का अधिकाँश समय टेस्टरिजल्ट पढ़ कर सुनाने में जा सकता है । कई अस्पताल आपको अपॉइन्ट्मन्ट लेते समय टेस्ट रिजल्ट और अन्य डाक्यमेन्ट अपलोड करने देते हैं, ताकि जब आप डॉक्टर से बात करें, तो डॉक्टर के पास यह जानकारी हो।
याद रखें कि अगर डॉक्टर को लगता है कि उनके पास केस का पर्याप्त डेटा नहीं है या उन्हें व्यक्ति की शारीरिक परीक्षा करने की आवश्यकता है तो वे केस पर सलाह देने से इनकार कर सकते हैं।
“वीडियो” पर परामर्श लेने का प्रयास करें। केवल बोलने या टेक्स्ट करने के मुकाबले यह अधिक कारगर है। वीडियो पर आपको और डिमेंशिया वाले व्यक्ति को देखने पर डॉक्टर को केस पहचानने में आसानी होगी। वे सलाह देने में अधिक सहज होंगे। यदि डिमेंशिया व्यक्ति को वीडियो कॉल में शामिल करना चुनौतीपूर्ण है, तो आप व्यक्ति की तस्वीर साझा कर सकते हैं। या डॉक्टर को व्यक्ति के वीडियो क्लिप दिखा सकते हैं। कुछ डॉक्टर व्हाट्स-अप वीडियो फॉरवर्ड देखने को तैयार होते हैं।
टेली-कंसल्टेशन का दायरा सीमित है। सरकार ने अपनी गाइडलाइन में बताया है कि टेलीमेडिसिन के माध्यम से कौन सी दवा दी जा सकती हैं और कौन सी नहीं। गाइडलाइन में बताया गया है कि नया केस है, या मौजूदा परिचित केस है पर उस में नई चिकित्सकीय समस्या है तो डॉक्टर क्या दे सकते हैं। यह भी बताया गया है कि पहले से परिचित केस की पुरानी बीमारी का फॉलोअप है, तो उस में डॉक्टर क्या दे सकते हैं।
पर डॉक्टर को परिवार को यह बताने में सक्षम होना चाहिए कि जिस समस्या के लिए आपने संपर्क करा है, क्या वह इमरजेंसी स्थिति है और क्या आपको अस्पताल जाना चाहिए।
सुनिश्चित करें कि टेली-कंसल्टेशन के बाद परचा (प्रिस्क्रीप्शन ) ऐसे रूप में मिले जो केमिस्ट या ऑनलाइन फार्मेसी स्वीकार करे। पर्चे में डॉक्टर का नाम, संपर्क और रजिस्ट्रेशन नंबर, रोगी का नाम, पर्चे की तिथि, दवा का नाम और इसके सामान्य (जेनेरिक) नाम और इसकी ताकत और खुराक सब स्पष्ट होने चाहियें।
अस्पताल जाना, जैसे कि आपातकालीन स्थिति में या आवश्यक चिकित्सा प्रक्रिया के लिए.
संक्रमण के जोखिम के माहौल में किसी क्लिनिक या अस्पताल पर जाना एक कठिन निर्णय हो सकता है। लोग डरते हैं कि अस्पताल में संक्रमित होने का खतरा ज्यादा है। परन्तु कई परिस्थितिओं में अस्पताल जाना बेहतर है और टालना नहीं चाहिए न ही देरी करनी चाहिए, क्योंकि कुछ मामलों में देरी से स्थिति बिगड़ सकती है।
यदि ऐसे लक्षण हैं जो कोविड 19 के हो सकते हैं, तो परिवार को कोविड हेल्पलाइन से संपर्क करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। साथ ही, आजकल कई जगह घर से ही कोविड का टेस्ट करा जा सकता है। कई अस्पताल भी कोविड के लिए प्रारंभिक सलाह ऑनलाइन और फोन पर देते हैं, और उनके कोविड देखभाल के लिए “पैकेज ” भी हैं। देर न करें, देर करने से इलाज कम कारगर हो सकता है। हेल्पलाइन सवालों का जवाब देगी और मार्गदर्शन करेगी कि आपको क्या करना चाहिए।
यदि कोई चोट लगी है या दुर्घटना हुई है, या कोई अन्य आपातकाल स्थिति है, जैसे कि हार्ट अटैक या स्ट्रोक तो अवश्य अस्पताल तुरंत जाएँ। देरी न करें, संकोच न करें। हो सके तो ऐसा अस्पताल चुनें जहां सब सुविधाएं और स्पेशलिटी उपलब्ध हैं।
कुछ प्रोसीजर आवश्यक हैं, जैसे डायलिसिस, कीमोथेरेपी, आदि। इन के लिए निर्धारित टाइम टेबल के हिसाब से अस्पताल जाने की आवश्यकता होती है। अस्पताल के सम्बंधित विभाग के साथ संपर्क रखें। आने-जाने और ट्रीटमेंट करवाने का इन्तजाम करें।
यदि कोई ऐसे महत्वपूर्ण चेकअप हैं जो सिर्फ अस्पताल में या क्लिनिक में हो सकते हैं, जिनके लिये जरूरी मशीन और उपकरण के लिए अस्पताल जाना जरूरी है, और आप सोच रहें हैं कि अस्पताल जाएँ या नहीं, तो टेलीमेडिसिन से डॉक्टर से सलाह करने से निर्णय में आसानी होगी।
यदि अस्पताल जाना हो तो क्या प्लान करें और खुद को कैसे सुरक्षित रखें? उदाहरण के तौर पर, कितने देखभालकर्ता व्यक्ति के साथ (वाहन में, या अस्पताल में या डॉक्टर के कक्ष में ) जा सकते हैं – अस्पतालों में इस पर कुछ प्रतिबन्ध हैं। कैसे जाएँ ,यह भी चुनौती हो सकती है। यदि कोविड (या अन्य किसी गंभीर संक्रमण) की लहर चल रही है और आप के पास निजी वाहन नहीं हैं, या उनके ड्राइवर उपलब्ध नहीं हैं, तो अस्पताल कैसे जाएँ? क्या टैक्सी, ऑटो, सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध और सुरक्षित हैं? आने-जाने के वक्त, और अस्पताल में भी संक्रमण का खतरा है। यह भी हो सकता है कि आपको अस्पताल जल्दी में जाना पड़े, और उस समय सब जानकारीऔर संसाधन ढूँढने का समय न हो, इसलिए पहले से क्या जानना होगा? इमरजेंसी यकायक कभी भी पैदा हो सकती है। इसका पहले से नहीं पता। इन पहलूओं के लिए कुछ सुझाव नीचे देखें।
पहले से पता कर लें कि कौन से अस्पताल सुरक्षित है और आपकी संभावित जरूरतों के लिए अधिक उपयुक्त हैं। कुछ अस्पताल सामान्य इमरजेंसी केस लेने से इनकार कर रहे हैं अगर उन्हें शक है कि व्यक्ति को शायद कोविड है या व्यक्ति ने वैक्सीन नहीं लगवाया है। कुछ अस्पताल केस लेने से पहले जिद्द कर रहे हैं कि आप हालिया टेस्ट रिपोर्ट देकर साबित करें कि व्यक्ति को कोविड नहीं है। इसलिए पहले से जानना अच्छा है कि कौन से अस्पताल किस तरह के केस लेते हैं और वहाँ कौन सी औपचारिक्ताएं हैं। यदि संभव हो, तो जाने से पहले अस्पताल को फ़ोन करके पुष्टि कर लें कि वे आपके प्रियजन जैसे केस ले रहे हैं या नहीं।
अस्पताल के हेल्पलाइन नंबर को जानें। इसके अलावा, एम्बुलेंस या अस्पताल आने-जाने के लिए अन्य साधन, जैसे कि टैक्सी के नंबर अपने पास रखें। एंबुलेंस और पुलिस सहायता भी संभव हैं। अस्पताल आने जाने के इन साधनों के बारे में सूचित रहें।
यदि कोविड की लहर चल रही है और उस के कारण कुछ क्षेत्र “कंटेनमेंट ज़ोन” घोषित हुए हैं, तो वहाँ शायद कुछ प्रतिबन्ध और व्यवस्था लागू हों और अनुमति के लिए प्रक्रियाएँ हों।
अस्पताल की तत्काल यात्रा के लिए तैयार रहें। महत्वपूर्ण मेडिकल डेटा अपने साथ एकत्रित करके रखें। इसके अलावा, आवश्यक फोन नंबर और हाथ सैनिटाइजर और मास्क जैसे सामान भी तैयार रखें।
एम्बुलेंस या टैक्सी या अन्य वाहन में आते जाते वक्त बीमारी न लगे, इस के लिए सावधानी बरतें। उदाहरण हैं, मास्क पहनना, हैण्ड सैनीटाइजर का इस्तेमाल, सतह पोंछना, आँख/ मुंह/ नाक न छूना वगैरह। व्यक्ति और देखभाल कर्ता, दोनों की अस्पताल की तत्काल यात्रा के लिए तैयार रहें। महत्वपूर्ण मेडिकल डेटा और आवश्यक फोन नंबर और हाथ सैनिटाइजर और मास्क जैसे सामान ले जाना न भूलें।
इस बात पर विचार करें कि प्राथमिक देखभाल कर्ता अस्वस्थ हों तो डिमेंशिया वाले व्यक्ति की देखभाल कौन करेगा। इस के लिए उसे किस जानकारी और सामान की जरूरत होगी।
(इस पोस्ट का प्रकाशन पहली बार मई 2020 में हुआ था, और इसे नियमित रूप से बदलती स्थिति के अनुसार अपडेट करा जाता है। )
कोविड 19 महामारी से उत्पन्न स्थिति में डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति को इस वायरस से बचाना परिवार वालों के कार्यों का सिर्फ एक पहलू है (इस के लिए भाग 1 देखें)। व्यक्ति को देखभाल की जरूरत होती है, जैसे कि दैनिक कार्यों में सहायता देना, और उनको स्वस्थ और सक्षम रखने के लिए कदम उठाना, जैसे कि गतिविधियों का कारगर इस्तेमाल। पर कोविड 19 महामारी के कारण हुए बदलावों की वजह से देखभाल में भी कुछ परिवर्तनों की जरूरत है।
व्यक्ति की देखभाल सुचारू रूप से चलती रहे, इस के लिए अकसर परिवार वाले अपनी स्थिति के अनुसार एक व्यवस्था का इस्तेमाल करते हैं, पर महामारी शुरू होने पर अधिकांश परिवारों में यह व्यवस्थाअस्त-व्यस्त हो गयी थी। एक तरफ व्यक्ति को कोविड 19 से बचाने के लिए कई बदलाव जरूरी थे, और ऊपर से नए एसओपी (मानक प्रचालन प्रक्रिया) के कारण घर के लोगों के आने-जाने और काम करने के तरीके बदल गए हैं। ये बदलाव सिर्फ एक-दो दिन की बात नहीं हैं, महामारी का लोगों के रहने और काम करने पर असर अब भी कई पहलुओं में नजर आ रहा है। । वैसे भी, कोविड 19 से व्यक्ति को तब तक बचाना होगा जब तक कोविड 19 का खतरा ख़त्म न हो जाए। और कुछ इस प्रकार के बदलाव तब भी जरूरी होते हैं जब किसी भी गंभीर संक्रमण का खतरा हो।
महामारी के आरंभिक दिनों में अचानक संक्रम के खतरे और बहुत सारे प्रतिबंधनों के कारण सब कुछ बहुत अस्त-व्यस्त हो गया था जिस से डिमेंशिया देखभाल में अनेक चुनौतियाँ पेश हुईं। अब लोग फिर से सामान्य जीवन पर लौट रहे हैं, पर देखभाल में अब भी की चुनौतियाँ हैं, क्योंकि कोविड के कारण हुए बदलावों का अब भी असर है। यह जरूरी है कि परिवार वाले परिस्थिति के अनुसार ऐसे देखभाल के तरीके अपनाएं जिन से जरूरी काम ठीक चलते रहें, व्यक्ति और बाकी परिवार वालों को परेशानी न हो, और लम्बे अरसे तक भी अपनाने पर भी इस नई व्यवस्था से थकान और तनाव न हो|
कोविड 19 और सम्बंधित प्रतिबन्ध और एसओपी से उत्पन्न चुनौतियों का असर.
मार्च 2020 में लागू करे गए लॉकडाउन को चरणबद्ध रूप से “अनलॉक” करा गया था, और काम, आवागमन, और अन्य अनेक पहलुओं के लिए एस ओ पी (मानक प्रचालन प्रक्रिया ) भी बनाए गए थे, और साथ ही आवश्यक सावधानियों पर भी दिशा-निर्देश जारी करे गए थे। हालांकि अब संक्रमण के फैलाव की स्थिति इतनी चिंताजनक नहीं है, पर इस सब से उत्पन्न कई बदलाव अब हमारे जीवन का एक अंग बन गए हैं, जैसे कि मास्क का इस्तेमाल, वर्क फ्रॉम होम की प्रणाली, कई कार्य/ व्यवसाय में “स्टेगर्ड टाइम”, अनेक सुविधाएं ऑनलाइन उपलब्ध होना, ऑनलाइन खरीदारी का बहुत बढ़ जाना, इत्यादि। कुछ से सुविधाएं बढ़ी हैं, पर कुछ से घर में देखभाल के माहौल में काफी बदलाव हुए हैं।
इस पोस्ट का प्रकाशन पहली बार मई 2020 में हुआ था, जब परिवार अचानक हुए लॉकडाउन और एक अनजान गंभीर संक्रमण से जूझने की कोशिश कर रहे थे। तब से बदलती स्थिति के अनुसार इसे नियमित रूप से अपडेट करा गया है, और इस पर उन बिंदुओं पर चर्चा है जो अब भी प्रासंगिक और उपयोगी हैं। कुछ उदाहरण:
घर में अधिक भीड़ और चहल-पहल: अब “वर्क फ्रॉम होम” बहुत आम प्रथा बन गई है, और अब भी कई लोग घर से ही अधिकांश काम या पढ़ाई कर रहे हैं और कई परिवार के सदस्य अब भी दिन भर घर पर ही हैं। घर से काम करने वाले फ़ोन पर जोर जोर से बात कर रहे हैं, या एक दूसरे को चुप रहने के लिए बोल रहे हैं – बिना काम वाले लोग टीवी पर लगे रहते हैं या गप्पें मारते रहते हैं। शोर और गतिविधियों का स्तर बढ़ा है। घर में तनाव का माहौल शायद बढ़ा है, और प्राइवेसी कम हुई हो। घर का साइज़ तो उतना ही है, पर अब दिन भर उसमें ज्यादा लोग हैं। आपस में बात-बेबात बहस हो सकती है। घर का काम ज्यादा हो गया है और इस से भी परेशानी हो सकती है। कुछ हेल्पलाइन और विशेषज्ञों के अनुसार इस तरह के माहौल में घरेलू संघर्ष, हिंसा, उत्पीड़न इत्यादि की घटनाएं भी बढ़ती हैं। आर्थिक कठिनाइयाँ भी हो सकती है, जिन के कारण तनाव और भी अधिक होगा।
सहायकों और सेवाओं/ साधनों की कमी: पहले की व्यवस्था में जिन साधनों और सहायकों का उपयोग होता था, वे साधन और सहायक अब शायद उपलब्ध न हों। कुछ सेवाएं और सुवविधाएं कोविड के कारण बंद हो गई थीं और अब तक खुल नहीं पाई हैं, कुछ को इतना आर्थिक नुकसान हुआ कि उनका कारोबार ठप हो गया। उदाहरण, कुछ केस में जिस डे केयर में व्यक्ति पहले कुछ समय के लिए जाते थे, वह डे केयर बंद हो गया और अब भी उपलब्ध नहीं है। संक्रमण के खतरे के कारण कुछ परिवार अब भी बाहर से देखभाल सहायक और घर पर काम करने वाले नहीं रख रहे हैं, और कोशिश कर रहे हैं कि सब काम वे खुद ही करें। कुछ परिवार आर्थिक समस्याओं के कारण अब इन सेवाओं का उपयोग नहीं कर पा रहे।
डिमेंशिया देखभाल के तरीकों में बदलाव: घर के बदले माहौल, परिवार में कोविड से हुई दिक्कतें, अधिक हल-चल और उथल-पुथल, इन सब का डिमेंशिया वाले व्यक्ति की दिनचर्या पर असर हो सकता है। नियमित गतिविधियाँ बदल सकती हैं। दिन का टाइम-टेबल फर्क हो सकता है। ऊपर से दैनिक कार्यों में मदद करने वाले व्यक्ति को कोविड 19 से बचाने के लिए जो सावधानियां लेते हैं (जैसे कि फेस मास्क पहनना) उन से भी व्यक्ति को उलझन हो सकती है।
डिमेंशिया वाले व्यक्ति के लिए आम तौर पर किसी भी नई परिस्थिति से एडजस्ट करना कठिन होता है, इतने सारे बदलावों के साथ,व्यक्ति का परेशान होना और बदले हुए व्यवहार दिखाना स्वाभाविक है। हालांकि कोविड अब कुछ सालों से है, पर डिमेंशिया वाले व्यक्ति इन सब बदलाओं के साथ सहज हो पाए हों, यह जरूरी नहीं। इसलिए वे परेशान और विचलित हो सकते हैं। उनके मूड में उतार-चढ़ाव हो सकता है। उनकी क्षमताएं भी कम हो सकती हैं। इस सब के कारण उनकी देखभाल अधिक मुश्किल हो जाती है। परिवार वालों को चिंताजनक व्यवहार कम करने की कोशिश करनी होगी। उन्हें यह ध्यान देना होगा कि घर में सीमित रहने से और घर के बदले माहौल के कारण व्यक्ति का मूड खराब न हो, बोरियत न हो, और अकेलापन न हो। ये सब डिमेंशिया वाले व्यक्ति के लिए शारीरिक या संज्ञानात्मक गिरावट का कारण बन सकते हैं।
ऐसी स्थिति में कई स्रोतों से एकत्रित कुछ देखभाल टिप्स:
सबसे जरूरी है कि परिस्थिति के आधार पर एक उपयुक्त दैनिक दिनचर्या बनाएं। एक नियमित दिनचर्या डिमेंशिया व्यक्ति की देखभाल का एक जरूरी अंग है, क्योंकि इस से व्यक्ति को आगे क्या होगा उसका पूर्वानुमान रहता है और व्यक्ति अधिक सहज महसूस करते हैं। दिनचर्या परिस्थिति के हिसाब से हो और व्यावहारिक हो । इस में सब जरूरी कार्य शामिल करें। इस कार्यक्रम का रोज इस्तेमाल करने से व्यक्ति को और देखभाल करने वाले को, किसी को भी तनाव या नाराजगी या थकान नहीं होनी चाहिए। इस दिनचर्या को अपनाने का काम ऐसी गति से करें जो व्यक्ति को परेशान न करे और सभी को मान्य हो।
दिनचर्या में उपयुक्त शारीरिक और संज्ञानात्मक गतिविधियां शामिल करें। उन चीजों की तलाश करें जो व्यक्ति का मन लगाएं और उन्हें व्यस्त रखे, उनकी बेचैनी कम करे, और उनकी मानसिक क्षमता बढ़ाए। व्यक्ति अब भी शायद काफी हद तक घर में ही सीमित हों। उन गतिविधियों के बारे में सोचें जो उन्हें पहले करने में मज़ा आता था, और जो उनकी वर्तमान रुचि और क्षमता के अनुकूल हैं। ऐसे कार्यों से दूर रहें जिन से उन्हें असहजता हो या चिड़चिड़ाहट हो। ऐसे काम ही चुनें जो देखभाल करने वाले बिना मुश्किल के कर पायें। उदाहरण के लिए, यदि देखभाल करने वालों के पास इसके लिए समय और ऊर्जा है (और यदि व्यक्ति इसे पसंद करता है) तो देखभाल करने वाले व्यक्ति को अपनी पुरानी यादों, व्यंजनों की विधि आदि का टेप करने या लिखने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। या कुछ ऑनलाइन व्यायाम प्रोग्राम का चयन करें जहां व्यक्ति वीडियो में उन लोगों के साथ “भाग” ले सकते हैं। कई अन्य उपयोगी ऑनलाइन कार्यक्रम भी हैं जैसे कि कुर्सी ताइ-ची, कुर्सी योग, कुर्सी सूर्यनमस्कार आदि जो वरिष्ठों के लिए बनाए गए हैं, और डिमेंशिया वाले व्यक्ति के लिए भी उपयुक्त हैं। ये वरिष्ठ नागरिकों के साथ काम करने वाले संगठनों या डिमेंशिया या पार्किंसंस रोग सम्बंधित संस्थाओं से मिल सकते हैं। उपयोग करने से पहले जाँच करें कि इन में दिखाए गए व्यायाम सुरक्षित और सरल हैं।
व्यक्तियों का मनोरंजन करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करें। व्यक्ति को व्यस्त रखने की और उनका मन लगाए रखने की कोशिश करें (पर उन्हें अधिक उत्तेजित न होने दें)। ऐसे तरीके खोजें जिन से देखभाल करने वालों का कार्यभार न बढ़े। उदाहरण के लिए, पुराने टीवी सीरियल जो दोबारा दिखाए जा रहे हैं । या पुरानी फिल्म क्लिप और गाने, भजन आदि। देखभाल कर्ता के पास समय है तो वे व्यक्ति के साथ बैठ कर कुछ पुरानी यादों को ताजा करने वाले काम भी कर सकते हैं, पर उदास या उत्तेजित करने वाली यादों से दूर रहें । ऐसे तरीके चुनें जो व्यक्ति की पसंद के हिसाब से हैं और उन्हें खुश करती हैं पर थकाती नहीं हैं।
कुछ मेलजोल वाली गतिविधियों को जरूर शामिल करें। कोविड के दौरान एक बड़ी समस्या जो उभरी वह थी अकेलापन, और लोगों से जुडे रहने में दिक्कत। संभावना यह है कि डिमेंशिया वालों के अधिकांश हमउम्र और दोस्त सभी को गंभीर संक्रमणों का अधिक जोखिम है। कोविड की स्थिति में सुधार होने के बावजूद, उनका एक दूसरे के घर आना-जाना कम हो गया है। व्यक्ति को अकेलापन महसूस हो सकता है। मूड पर भी इस का असर हो सकता है । व्यक्ति को अलगाव न महसूस हो और वे सामाजिक रूप से औरों से जुड़े रहें, इस के लिए उपलब्ध तरीकों का उपयोग करें। आजकल लोग रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ जुड़े रहने के लिए फेसटाइम, जूम, स्काइप, व्हाट्सएप आदि जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग कर रहे हैं। ये डिमेंशिया वाले व्यक्तियों के लिए भी कनेक्शन रखने में मददगार हो सकते हैं। कुछ सरल, गैर-तकनीकी चीज़ें भी कारगर हो सकती हैं, जैसे कि बालकनी में बैठ कर आसपास की चहल-पहल देखना।
व्यक्ति भटकें नहीं, इस के लिए अधिक सतर्क रहें। जब भी माहौल में अधिक बदलाव होते हैं, व्यक्ति के भ्रमित और विचलित होने की और भटक जाने की संभावना बढ़ जाती है। परिवार के सभी सदस्यों को सावधान रहना चाहिए कि व्यक्ति बाहर न भटकें और न ही खुद को चोट पहुंचाए।
व्यक्ति को ज्यादा उत्तेजित न होने दें, अधिक उकसाहट से बचें। व्यक्ति को अधिक शोर से, अधिक गतिविधियों और हलचल से दूर रखें। अत्यधिक चहल-पहल, शोर-शराबे से उनकी उत्तेजना बढ़ सकती है। कुछ उदाहरण जिन से उन्हें बचाना अच्छा होगा: हिंसक फिल्में, टीवी पर लूप करती हुई तनाव-पूर्ण खबरें, परिवार के सदस्यों की जोरदार बातचीत। इस के लिए सभी परिवार के सदस्यों को सहयोग देना होगा क्योंकि घर में कौन कहाँ क्या कर रहा है, उस में सब को कुछ एडजस्ट करने की जरूरत हो सकती है ।
(इस पोस्ट का प्रकाशन पहली बार मई 2020 में हुआ था, और इसे नियमित रूप से बदलती स्थिति के अनुसार अपडेट करा जाता है। )
कोविड 19 (नोवल कोरोनावायरस) एक गंभीर संक्रमण (इनफ़ेक्शन) है जो साल 2020 में विश्व भर में फैला था और जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (W H O) ने “पैनडेमिक” (वैश्विक महामारी) के रूप में पहचाना है। भारत में इस के फैलाव को सीमित करने के लिए और इस संक्रमण के इलाज के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इनमें शामिल हैं स्वास्थ्य संसाधनों का क्षमता निर्माण, कोविड 19 के रोगियों को जल्द पहचानना और अलग रखकर उनका इलाज करना। लोगों को इनफ़ेक्शन से बचने के लिए उचित आदतें अपनाने की सलाह दी जाती है, जो अन्य श्वास-संबंधी (हवा से फैलने वाले) संक्रमणों के लिए भी उचित है, जैसे मास्क पहनना और एक दूसरे से दूरी रखना। महामारी के शुरू के दिनों में गतिविधियों और आवागमन पर कड़े प्रतिबंध भी लागू करे गए थे, जिन से लोगों के दैनिक जीवन में अनेक बदलाव हुए और चुनौतियाँ भी पैदा हुईं। अब स्थिति काफी हद तक काबू में है और कोविड वैक्सीन लगवाना भी संभव है, जिस से प्रतिरक्षक क्षमता विकसित होती है। (वैक्सीन पर पोस्ट देखें: डिमेंशिया वाले व्यक्ति , उनके देखभाल कर्ता और कोविड-19 वैक्सीन)।
पिछले कुछ वर्षों में कोविड के फैलाव में उतार चढ़ाव हुए हैं, (जिन्हे हम कोविड वेव या लहर भी कहते हैं) और वायरस का रूप भी बदलता रहा है (इस के कई वेरीअन्ट फैल रहे हैं)। हर बदले प्रकार के लक्षणों और इलाज में कुछ अंतर हैं, और कोविड पर उपलब्ध जानकारी भी पहले से अधिक है। कोविड 19 के क्या लक्षण हैं, डॉक्टर के पास कब और कैसे जाना होगा, इसका इलाज क्या है, इस से कैसे बचें, इस के लिए हेल्पलाइन कौन सी हैं, यह भारत में कितना फैल रहा है, इत्यादि, इन सब विषयों पर जानकारी का सबसे विश्वसनीय स्रोत है स्वास्थ्य मंत्रालय का वेबसाइट। मंत्रालय के साईट पर हिंदी के डॉक्यूमेंट, पोस्टर और वीडियो के लिंक भी हैं।
अब तक उपलब्ध सभी जानकारी के अनुसार कोविड 19 वायरस बुजुर्गों के लिए ज्यादा खतरनाक है, ख़ास तौर से उन बुजुर्गों के लिए जो पहले से ही अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं, जैसे कि उच्च रक्तचाप, दमा, दिल की समस्याएं या मधुमेह। इसे सह-रुग्णता या को-मोरबीडीटीस भी कहते हैं। इसलिए जिन परिवारों में बुज़ुर्ग हैं, उनको बहुत सावधान रहना होगा।
डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति अकसर बड़ी उम्र के होते हैं और उन्हें अन्य बीमारियाँ भी हो सकती हैं। इसलिए कोविड 19 होना उनके लिए अधिक खतरनाक है। ऊपर से, यदि किसी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को कोविड 19 हो जाए (या उन्हें क्वारंटाइन की जरूरत हो), तो अस्पताल में रहना उनके लिए अधिक समस्या पैदा कर सकता है। उन्हें अस्पताल के माहौल से तालमेल बिठा पाने में अधिक दिक्कत होगी। उनके प्रियजन उनके साथ नहीं रह पायेंगे। व्यक्ति के आस-पास सब स्वास्थ्य कर्मचारी मास्क और PPE (personal protective equipment, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) पहने होंगे, और उनके चेहरे भी ठीक से नजर नहीं आ रहे होंगे। कल्पना कीजिये कि पहले से ही अपने माहौल में दिक्कत महसूस करने वाले लोगों के लिए यह सब कितना डरावना होगा! वे समझ नहीं पायेंगे कि उनके चारों ओर यह सब क्यों हो रहा है, और न ही अपनी परेशानी बता पायेंगे। पूछ भी पाए तो उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिल पायेगा। वे अपनी ज़रूरतें और समस्याएं व्यक्त करने में भी दिक्कत महसूस करेंगे।
हालांकि यह पोस्ट डिमेंशिया वाले परिवारों पर केन्द्रित है, यह किसी भी ऐसे परिवार के लिए मददगार हो सकती है जिस में बुज़ुर्ग हैं। इसमें सिर्फ देखभाल संबंधी चर्चा और संसाधन है, कोई चिकित्सा सलाह नहीं है।
एक चेतावनी: कोविड संबंधी अब लगभग सभी प्रतिबन्ध हटा दिए गए हैं, पर फिर भी अभी यह नहीं कहा जा सकता कि कोविड चला गया है, और यदि फिर से कोविड का फैलाव बढ़े और कोविड की लहर चले, तो प्रतिबंध कुछ हद तक वापस लागू हो सकते हैं। ध्यान रहे कि कई लोग, जिन्हें कोविड है, उनमें लक्षण नजर नहीं आते हैं। डिमेंशिया वाले व्यक्ति को कोविड से बचाए रखने के कदम लेते रहना अब भी उचित रहेगा (खासकर बंद जगहों में, अस्पतालों में, वगैरह)। कितना सचेत रहना होगा, यह तय करने के लिए आस-पास कोविड कितना फैल रहा है, इस पर नजर रखे। वैक्सीन लगवा लें, और वैक्सीन लगवा लिया हो, तब भी सावधान रहें।
बुजुर्गों के लिए कोविड 19 अधिक खतरनाक है। इसे पहचानते हुए, भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने शुरू में ही एक दस्तावेज़ जारी किया था : कोविड 19 (COVID 19) के दौरान वरिष्ठ नागरिकों के लिए सलाह Opens in new window। अन्य बातों के अलावा, इस में यह सलाह दी गयी है कि वरिष्ठ नागरिकों को घर के भीतर ही रहना चाहिए, आगंतुकों से बचना चाहिए, स्वच्छता बनाए रखने वाली आदतें अपनानी चाहिए, और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। उनकी देखरेख करने वाले व्यक्तियों को मदद करने से पहले हाथ धोना चाहिए, देखभाल के काम करते समय नाक-मुंह ढके रहना चाहिए, और जिन सतहों का अकसर उपयोग होता है, उन्हें साफ़ करते रहना चाहिए। वरिष्ठ नागरिकों के उचित पोषण और पानी का सेवन सुनिश्चित करना चाहिए। यह डॉक्यूमेंट इस बात पर भी जोर देता है कि देखभाल करने वाले किसी भी लक्षण से पीड़ित हों तो उन्हें वरिष्ठ व्यक्ति के पास नहीं जाना चाहिए।
कोई भी प्रश्न हो या लगे की शायद आपको या किसी प्रियजन को कोविड जैसे कुछ लक्षण हैं, तो बिना देर करे नि:संकोच राष्ट्रीय हेल्पलाइन: 91-11-2397 8046 या टोल फ्री नंबर: 1075 डायल करें। इ-मेल संपर्क है: ncov2019@gov.in, और ncov2019@gmail.com या अपने राज्य की हेल्पलाइन पर संपर्क करें। सभी राज्यों की हेल्पलाइन की सूची यहाँ देखें Opens in new window (archived copy)।
वैसे, इस तरह की सावधानियाँ बरतना और प्रतिरक्षक क्षमता बढ़ाने के लिए वैक्सीन लेना और अन्य कदम उठाना किसी भी गंभीर संक्रामक बीमारी में अच्छा होगा।
डिमेंशिया वाले व्यक्तियों को कोविड 19 से बचाने की ख़ास चुनौतियों पर चर्चा.
कोविड 19 संक्रमण से डिमेंशिया वाले व्यक्तियों की रक्षा करने में कुछ अतिरिक्त चुनौतियाँ हैं।
व्यक्ति को कोविड 19 के बारे में समझना अधिक मुश्किल है। कोविड 19 एक खतरनाक संक्रमण (इन्फेक्शन) है जो आसानी से फैलता है, इसलिए इस में अधिक सावधानी की जरूरत है। डिमेंशिया वाले व्यक्ति शायद इस बात को समझ न पायें या जानकारी याद न रख पायें। वे आस-पास के परिवर्तनों से विचलित या परेशान हो सकते हैं। संक्रमण की जरूरी जानकारी को सरल तरीके से, बार-बार दोहराने की जरूरत हो सकती है। इसके लिए चित्रों / कार्टूनों के इस्तेमाल के बारे में सोचें। या शायद मोटे तौर पर सिर्फ इतना कहना पर्याप्त हो सकता है कि यह एक ऐसी समस्या है जिसके लिए कुछ अधिक सावधानियों की आवश्यकता है। ध्यान रखें, जानकारी से उन्हें टेंशन नहीं होना चाहिए। आप स्वास्थ्य मंत्रालय के वेबसाइट पर उपलब्ध साधनों में से कुछ ऐसे सरल लेख और चित्र चुन सकते हैं जो व्यक्ति के लिए उपयुक्त हैं। ऊपर दिए गए साधन देखें।
देखभाल करने के तरीकों में बदलाव स्वीकारने में दिक्कत, जैसे कि देखभाल कर्ता का मास्क पहनना, बार-बार हाथ धोना, सतह साफ़ करना इत्यादि। व्यक्ति को कोविड 19 से बचाने के लिए उनके पास जाने पर देखभाल कर्ता को मास्क पहनना होगा। ख़ास तौर से दैनिक कार्यों में मदद करते समय, जैसे कि व्यक्ति को नहलाना, खाना खिलाना, इत्यादि। परन्तु मास्क पहनने के कारण देखभाल कर्ता का चेहरा अलग लगता है और शायद पहचाना न जाए, मुस्कराहट और अन्य भाव दिखाई नहीं देते हैं, और मास्क की बाधा के कारण बोली भी अस्पष्ट हों सकती है। वैसे तो अब मास्क पहने हुए लोगों को देखना पहले से ज्यादा आम है, पर यदि ढके चेहरे वाले देखभाल कर्ता के साथ डिमेंशिया वाले व्यक्ति सहज न हों तो कुछ रचनात्मक समाधान खोजें, और व्यक्ति को बार-बार आश्वस्त करने और तालमेल बिठाए रखने पर अधिक ध्यान दें। कार्य पूरा करने के लिए जल्द-बाज़ी न करें। सब्र रखें और जब-तब जरूरी हो, व्यक्ति को याद दिलाएं कि आप कौन हैं, और अगर वे पूछें तो बताएं कि यह मास्क उन की सुरक्षा के लिए है।
पूरे वक्त घर में रहने वाले डिमेंशिया वाले व्यक्ति को कौन सी (और किस हद तक) स्वच्छता सम्बंधित आदतों को अपनाना होगा, इस पर विचार करें। : मास्क पहनना, बार-बार हाथ धोना, सतह साफ़ करना, क्या यह सब उन डिमेंशिया वाले व्यक्ति को भी करना होगा जो सिर्फ घर पर ही हैं? क्या वे यह सब समझेंगे और कर पायेंगे? या क्या बाकी परिवार वाले अधिक सतर्क रहें और पूरी सावधानी बरतें तो व्यक्ति को कोविड 19 से बचाने के लिए पर्याप्त होगा? क्या घर पर सबने वैक्सीन लिया हुआ है या नहीं? आज-कल कोविड का कितना खतरा है? व्यक्ति की उम्र, उनकी अन्य बीमारियाँ, उनका स्वास्थ्य, इत्यादि, के बारे में भी सोचें। इस सब के संदर्भ में तय करें कि किस स्तर की सावधानी उचित होगी – आप अपने डॉक्टर से भी बात कर सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर, डिमेंशिया वाले व्यक्ति मास्क पहनने के लिए शायद ही सहमत हों – क्योंकि यह अजीब और असुविधाजनक लग सकता है। कई परिवारों का अनुभव है कि मास्क पहनने पर जोर देने से व्यक्ति उत्तेजित हो जाते हैं। शायद यह पर्याप्त रहे कि सब परिवार वाले और अन्य घर में आने वाले दूसरे लोग पूरी सावधानी रख रहे हैं।और व्यक्ति से मास्क पहनने को सिर्फ घर के बाहर ही कहा जाए।
यदि व्यक्ति का घर से बाहर निकलना जरूरी हो, तो बहुत ध्यान रखना होगा। कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं जहां डिमेंशिया वाले व्यक्ति को घर के बाहर जाना अनिवार्य है, जैसे कि जब कोई जरूरी काम हो, या स्वास्थ्य के लिए निकलना जरूरी हो। यदि संक्रमण का खतरा है, तो उनका निकलना कम से कम रहे तो बेहतर है। पर यदि उन्हें बाहर निकलना है, तो बहुत सावधान रहना होगा। उनके साथ जा रहे लोगों को पूरे वक्त सतर्क रहना होगा। मास्क ठीक तरह से व्यक्ति के चेहरे पर बना रहे, व्यक्ति बेकार इधर उधर चीज़ें न छूएं, बार-बार उनके हाथों को सैनिटाइज़र से साफ़ करा जाए, इत्यादि। भीड़ वाली या बंद जगहों से बचें, या जाना पड़े तो और भी सतर्क रहें। अस्पताल वगैरह जाना हो तो खास तौर से सतर्क रहें। वैक्सीन लगवा लिया हो, तब भी सावधानी बनाए रखने की जरूरत है। व्यक्ति यदि बाहर के माहौल से घबरा रहे हों तो उन्हें आश्वस्त करते रहना होगा।
भारत में लॉकडाउन का सिलसिला मार्च 2020 में शुरू हुआ था। इसके अंतर्गत जो प्रतिबन्ध लागू करे गए हैं, वे समय के साथ बदलते गए। शुरू में लॉकडाउन बहुत सख्त था, पर फिर ढील दी जाने लगी। खास तौर से उन इलाकों में ढील करी गई जहां कोविड अधिक नियंत्रण में था, जैसे कि कई दिनों से कोई नया केस न नज़र आना। फिलहाल कोविड के केस काफी कम हैं, और अधिकांश लोग सावधानियाँ नहीं बरत रहे हैं, प्रतिबंध भी बहुत ही कम हो गए हैं। पर अब भी कोरोनावायरस के नए वैरिएंट नजर आ रहे हैं, इसलिए खतरा पूरी तरह टला नहीं है। स्थानीय हालात और दिशा-निर्देशों पर नजर रखें।
कुल मिलाकर यूं मानिए, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति को कोविड 19 जैसे किसी भी गंभीर संक्रमण से बचाए रखना और उस स्थिति में उनकी उचित देखभाल करना एक चुनौती है। अनेक परिवर्तनों की जरूरत हो सकती है। इन सब बदलाव से व्यक्ति परेशान और उत्तेजित या मायूस न हों, इसके लिए भी कदम उठाने होंगे। कोविड के कारण हुए प्रतिबंधों और लोगों के आवागमन में रोक के कारण कई डिमेंशिया वाले व्यक्ति बहुत अकेले पड़ गए हैं, और इस से उनकी मनो:स्थिति पर भी असर पड़ा है। स्थिति अब भी पूरी तरह सामान्य नहीं है। दुनिया भर के डिमेंशिया परिवार इस समस्या का सामना कर रहे हैं।
इस सब से कैसे जूझें और फिर से एक “न्यू नॉर्मल” (यानि कि हालिया स्थिति के अनुरूप सामान्य जीवन का नया मापदंड) कैसे स्थापित करें, इस पर कई फ़ोरम में चर्चा होती रहती है। ऑनलाइन फोरम ज्यादातर अंग्रेज़ी में हैं, पर इस विषय पर भारतीय भाषाओं में कुछ वैबीनार भी मिल सकते हैं। आप किसी स्थानीय फोरम, हेल्पलाइन, या संसाधन या सेवा से भी संपर्क कर सकते हैं जो आपकी कुछ सहायता करें। सहायता के लिए सिर्फ डिमेंशिया संसाधन तक सीमित न रहें। वरिष्ठ नागरिकों की या मानसिक तनाव की हेल्पलाइन से भी मदद मिल सकती है।
नोट: यदि डिमेंशिया व्यक्ति अकेले रहते हैं तो उनके लिए यह सब समझना और संभालना कहीं अधिक पेचीदा है। बेहतर यही होगा कि वे किसी रिश्तेदार के घर में रहें।
स्ट्रोक (आघात, पक्षाघात, सदमा, stroke) एक गंभीर रोग है। हम कई बार देखते और सुनते हैं कि किसी को स्ट्रोक हुआ है। इस के बाद कुछ लोग फिर से अच्छे हो पाते हैं, पर अन्य लोगों में पूरी तरह शारीरिक और मानसिक क्षमताएं ठीक नहीं हो पातीं।शायद हम यह भी जानते हैं कि करीब 25%[1] केस में स्ट्रोक जानलेवा सिद्ध होता है। पर स्ट्रोक क्या है, किन बातों से इस के होने का खतरा है, इस से कैसे बचें, इन सब पर जानकारी इतनी व्याप्त नहीं है। अधिकाँश लोग यह भी नहीं जानते कि स्ट्रोक होने के कुछ ही महीनों में कुछ व्यक्तियों को स्ट्रोक-सम्बंधित डिमेंशिया (मनोभ्रंश, dementia) भी हो सकता है। इस पृष्ठ पर स्ट्रोक और डिमेंशिया (stroke and dementia) पर जानकारी पेश है।
स्ट्रोक क्या है, क्यों होता है, और इस के लक्षण क्या हैं।
मस्तिष्क के ठीक काम करने के लिए यह जरूरी है कि मस्तिष्क में खून की सप्लाई ठीक रहे। इस काम के लिए हमारे मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं (खून की नलिकाएं, blood vessels) का एक जाल (नेटवर्क) है, जिसे वैस्कुलर सिस्टम कहते है। ये रक्त वाहिकाएं मस्तिष्क के हर भाग में आक्सीजन और जरूरी पदार्थ पहुंचाती हैं।
स्ट्रोक में इस रक्त प्रवाह में रुकावट होती है. इस के दो मुख्य कारण हैं।
अरक्तक आघात, इस्कीमिया (ischemia): रक्त का थक्का (clot) रक्त वाहिका को बंद कर सकता है। अधिकाँश स्ट्रोक के केस इस प्रकार के होते हैं।[1]
रक्तस्रावी आघात (हेमरेज, haemorrhage) : रक्त वाहिका फट सकती है।
खून सप्लाई में कमी के कुछ कारण का यह चित्रण देखें।
इस रुकावट के कारण हुई हानि इस पर निर्भर है कि मस्तिष्क के किस भाग में और कितनी देर तक रक्त ठीक से नहीं पहुँच पाया। यदि कुछ मिनट तक रक्त नहीं पहुँचता, तो प्रभावित भाग में मस्तिष्क के सेल मर सकते हैं। इस को इनफार्क्ट या रोधगलितांश कहते हैं।
स्ट्रोक के लक्षण अकसर अचानक ही, या कुछ ही घंटों के अन्दर-अन्दर पेश होते हैं।
एक तरफ के चेहरे और हाथ-पैर का सुन्न होना/ उनमें कमजोरी, चेहरे के भाव पर, और अंगों पर नियंत्रण नहीं रहना।
बोली अस्पष्ट होना, बोल न पाना, दूसरों को समझ न पाना।
एक या दोनों आँखों से देखने में दिक्कत।
चक्कर आना, शरीर का संतुलन बिगड़ना, चल-फिर न पाना।
बिना किसी स्पष्ट कारण के तीव्र सर-दर्द होना।
अफ़सोस, कई बार व्यक्ति और आस पास के लोग स्ट्रोक को पहचान नहीं पाते, या पहचानने में और डॉक्टर के पास जाने में देर कर देते हैं, जिस से हानि अधिक होती है।
एक खास स्थिति है “मिनी-स्ट्रोक” (mini stroke, अल्प आघात)। इस में लक्षण कुछ ही देर रहते हैं, क्योंकि रक्त सप्लाई में रुकावट खुद दूर हो जाती है। इस मिनी-स्ट्रोक का असर तीस मिनट से लेकर चौबीस घंटे तक रहता है। इसे ट्रांसिएंट इस्कीमिक अटैक्स (transient ischemic attack, TIA) या अस्थायी स्थानिक अरक्तता भी कहते हैं। व्यक्ति को कुछ देर कुछ अजीब-अजीब लगता है, पर वे यह नहीं जान पाते कि यह कोई गंभीर समस्या है। कुछ व्यक्तियों में ऐसे मिनी स्ट्रोक बार बार होते हैं, पर पहचाने नहीं जाते। कुछ केस में ऐसे मिनी स्ट्रोक के थोड़ी ही देर बाद व्यक्ति को बड़ा और गंभीर स्ट्रोक हो सकता है।
नोट: कुछ लोग स्ट्रोक और दिल के दौरे में कन्फ्यूज होते हैं। स्ट्रोक और दिल का दौरा, दोनों ही रक्त के प्रवाह से संबंधी रोग हैं (हृदवाहिनी रोग, cardiovascular disease)। पर स्ट्रोक में इस नाड़ी संबंधी समस्या का असर दिमाग पर होता है, हृदय पर नहीं। यूं कहिये, स्ट्रोक को हम एक मस्तिष्क का दौरा मान सकते हैं।
इलाज में जितनी देर करें, व्यक्ति की स्थिति उतनी ही बिगड़ती जायेगी। जान भी जा सकती है। इसलिए स्ट्रोक का शक होते ही जल्द से जल्द व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं। डॉक्टर शायद व्यक्ति की जान बचा पायें। सही समय पर इलाज करने से शायद डॉक्टर स्ट्रोक के बाद होने वाली दिक्कतों को भी कम कर पायें। दुबारा स्ट्रोक न हो, इस के लिए सलाह भी मिलेगी।
स्ट्रोक के बाद उचित कदम उठाने से कुछ व्यक्ति तो ठीक हो पाते हैं, पर अन्य व्यक्तियों में कुछ समस्याएँ बनी रहती हैं। उनकी रिकवरी पूरी नहीं होती। स्ट्रोक-पीड़ित कई व्यक्ति बाद में भी कुछ हद तक दूसरों पर निर्भर रहते हैं। उन्हें डिप्रेशन (अवसाद) भी हो सकता है, जिस के कारण वे भविष्य के स्ट्रोक से बचने के लिए कदम उठाने में भी दिक्कत महसूस करते हैं।
एक अन्य आम समस्या है मस्तिष्क की क्षमताओं पर असर। यदि व्यक्ति को बार बार स्ट्रोक (या मिनी-स्ट्रोक) हो, तो क्षमताओं में हानि ज्यादा हो सकती है। व्यक्ति की मानसिक काबिलियत कम हो जाती है। व्यक्ति को डिमेंशिया हो सकता है।
संवहनी डिमेंशिया (वैस्कुलर डिमेंशिया, Vascular dementia) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है। यह आक्सीजन की कमी की वजह से मस्तिष्क के सेल मरने से हो सकता है। इस का एक कारण है बार बार स्ट्रोक या मिनी-स्ट्रोक होना। इस प्रकार के संवहनी डिमेंशिया को स्ट्रोक से सम्बंधित डिमेंशिया के नाम से भी जाना जाता है।
अल्ज़ाइमर सोसाइटी UK की “What is vascular dementia?” [2] पत्रिका के अनुसार स्ट्रोक होने के बाद तकरीबन 20% व्यक्तियों में छह महीने में स्ट्रोक से सम्बंधित डिमेंशिया हो सकता है। एक बार स्ट्रोक हो, तो फिर से स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है, इस लिए डिमेंशिया का खतरा भी बढ़ जाता है।
संवहनी डिमेंशिया पर विस्तृत हिंदी लेख के लिए देखें [3]
स्ट्रोक होने के बाद व्यक्ति को दुबारा स्ट्रोक होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। कुछ स्टडीज़ के अनुसार, इलाज न करें तो अगले पांच साल में फिर स्ट्रोक होने की संभावना 25% है। दस साल में स्ट्रोक होने की संभावना 40% है। इसलिए स्ट्रोक के बाद आगे स्ट्रोक न हो, इस के लिए खास ध्यान रखना होता है। [4]
स्ट्रोक की संभावना कम करने के लिए उपयुक्त दवा लें और उचित जीवन-शैली के बदलाव अपनाएं। उच्च रक्त-चाप (हाइपरटेंशन, हाई बी पी) और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखें। डायबिटीज से बचें, या उस पर नियंत्रण रखें। जीवन-शैली बदलाव करें। उदाहरण हैं: सही और पौष्टिक खाना, वजन नियंत्रित रखना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना (व्यायाम इत्यादि), तम्बाकू सेवन और धूम्रपान बंद करना, तनाव कम करना, और मद्यपान कम करना। डॉक्टर से बात करें, ताकि आपको सही सलाह मिले।
स्ट्रोक कितना व्याप्त और गंभीर है, उस पर कुछ तथ्य/ आंकड़े।
स्ट्रोक एक बहुत आम समस्या है। यह माना जाता है कि हर चार व्यक्तियों में से एक को अपने जीवन-काल में स्ट्रोक होगा।[5]
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्ट्रोक साठ साल और ऊपर की उम्र के लोगों की मृत्यु के कारणों में दूसरे स्थान पर है।
कम उम्र में भी स्ट्रोक का खतरा काफी ज्यादा है। 15 से 59 उम्र वर्ग में मृत्यु के कारणों में स्ट्रोक पांचवे स्थान पर है। [6]
अफ़सोस, भारत में स्ट्रोक का खतरा अन्य कई देशों से ज्यादा है क्योंकि यहाँ के लोगों में हाईपरटेंशन और अन्य रिस्क फैक्टर की संभावना ज्यादा है। ऊपर से यह भी अनुमान है कि भारत में स्ट्रोक का खतरा समय के साथ बढ़ रहा है। [7]
विश्व भर में स्ट्रोक डिसेबिलिटी का एक मुख्य कारण है, और डिसेबिलिटी के कारणों में तीसरे स्थान पर है। [8]
सबसे पहले तो हमें पहचानना होगा कि स्ट्रोक एक आम समस्या हैं, और इसके नतीजे भी बहुत गंभीर हैं। 60% लोग स्ट्रोक से या तो बच नहीं पाते, या बचते भी हैं तो उन की शारीरिक या मानसिक क्षमताएं ठीक नहीं हो पातीं। वे दूसरों पर निर्भर हो सकते हैं। उन्हें डिमेंशिया भी हो सकता है।
हम सब स्ट्रोक और अन्य नाड़ी संबंधी बीमारियों से बचने के लिए अपने जीवन में कई कदम उठा सकते हैं। अपने और अपने प्रियजनों के स्वास्थ्य का ख़याल रखें तो स्ट्रोक और सम्बंधित समस्याओं की संभावना कम होगी। यह मंत्र याद रखें: हृदय स्वास्थ्य के लिए जो कदम उपयोगी है, वे रक्त वाहिका की समस्याओं से बचने के लिए भी उपयोगी हैं।
स्ट्रोक और सम्बंधित विषयों के लिए कुछ उपयोगी शब्दावली:
मिनी-स्ट्रोक और उस में पाए डिमेंशिया से संबंधित कुछ शब्द हैं मिनी-स्ट्रोक, ट्रांसिऐंट इस्कीमिक अटैक्स (transient ischemic attack, TIA) या अस्थायी स्थानिक अरक्तता।
मस्तिष्क में हुई हानि के लिए कुछ उपयोगी शब्द हैं इनफार्क्ट (रोधगलितांश, infarct).
बार-बार के मिनी-स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया के लिए कुछ शब्द हैं मल्टी- इनफार्क्ट डिमेंशिया (multi-infarct dementia), बहु-रोधगलितांश डिमेंशिया।
संवहनी डिमेंशिया के लिए कुछ शब्द/ वर्तनी हैं वास्कुलर डिमेंशिया, वैस्क्युलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी डिमेंशिया, संवहनी मनोभ्रंश, Vascular dementia.
डिमेंशिया का कुछ अन्य रोगों से भी सम्बन्ध है। इन रोगों पर हिंदी में विस्तृत पृष्ठ देखें।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया (मनोभ्रंश) (Frontotemporal Dementia, FTD) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है। यह अन्य प्रकार के डिमेंशिया से कई महत्त्वपूर्ण बातों में फर्क है और इसलिए अकसर पहचाना नहीं जाता। देखभाल में भी ज्यादा कठिनाइयाँ होती हैं। इस पृष्ठ पर उपलब्ध सेक्शन:
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया क्या है (What is Frontotemporal Dementia) (FTD)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया (Fronto-Temporal Dementia, FTD) चार प्रमुख प्रकार के डिमेंशिया (मनोभ्रंश) में से एक है*1।
इस डिमेंशिया में हुई मस्तिष्क की हानि को दवाई से पलटा नहीं जा सकता। यह इर्रिवर्सिबल (irreversible) है। व्यक्ति का मस्तिष्क फिर से सामान्य नहीं हो सकता।
मस्तिष्क की हानि समय के साथ बढ़ती जाती है। यह एक प्रगतिशील डिमेंशिया (प्रगामी डिमेंशिया, progressive dementia)माना जाता है।
अंतिम चरण में फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया वाले व्यक्ति सब कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं।
यह डिमेंशिया अन्य प्रकार के डिमेंशिया से कई महत्त्वपूर्ण बातों में फर्क है।
सभी डिमेंशिया में मस्तिष्क में किसी भाग में क्षति होती है, जिस के कारण लक्षण पैदा होते हैं। फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया में यह क्षति मस्तिष्क के दो खंडों में होती है। ये हैं:
ललाटखंड (अग्र खंड, फ्रंटल लोब, frontal lobe), और
शंख खंड (कर्णपट खंड, टेम्पोरल लोब, temporal lobe)।
प्रभावित खंडों में कुछ असामान्य प्रोटीन इकट्ठा होने लगते हैं, कोशिकाएं मरने लगती हैं, जरूरी रसायन ठीक से नहीं बन पाते, और लोब सिकुड़ने लगते हैं।
इस हानि के कारण व्यक्ति को उन लोब के काम से संबंधित लक्षण होने लगते हैं।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया के लक्षण (Symptoms of Frontotemporal Dementia)।
शुरू के आम लक्षण हैं व्यक्तित्व और व्यवहार में बदलाव, और भाषा संबंधी समस्याएँ। याददाश्त अकसर ठीक रहती है।
व्यक्ति में कौन से लक्षण होंगे यह इस पर निर्भर है कि फ्रंटल और टेम्पोरल लोब में कहाँ-कहाँ और कितनी क्षति हुई है।
व्यक्तित्व/ व्यवहार संबंधित लक्षणों के उदाहरण:
व्यक्ति का मेल-जोल कम हो जाना, व्यक्ति का अपने में ही सिमट जाना।
दूसरों की भावनाओं की परवाह न करना, सहानुभूति न दिखा पाना।
परेशान/ बेचैन रहना, व्यवहार या बात दोहराना, चीजें छुपाना, शक्की होना, उत्तेजित होना, चिल्लाना, आक्रामक होना (दूसरों को मारना)।
रात में अधिक विचलित होना और सो न पाना।
कुछ तरह की चीजों को खाने की खास इच्छा, जैसे कि मिठाई या तली हुई चीजें।
अनुचित , अशिष्ट, अश्लील व्यवहार, समाज में ऐसा व्यवहार करना जो खराब समझा जाता है।
ध्यान न लगा पाना, निर्णय लेने में दिक्कत, पैसे का मूल्य समझने में दिक्कत, सोच-विचार न कर पाना।
भाषा संबंधित लक्षणों के उदाहरण:
सामान्य, रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले शब्दों का अर्थ पूछना, सही शब्द न सूझना और शब्द इस्तेमाल करने के बजाय उस का वर्णन करना।
परिचित लोगों या वस्तुओं को पहचानने में दिक्कत।
शब्द समझ पाना पर वाक्य न समझ पाना, खास तौर से लंबे, उलझे हुए वाक्य।
धीरे-धीरे, झिझक कर बोलना, शब्द उच्चारण में दिक्कत और गलतियाँ, हकलाना, वाक्यों में से छोटे शब्दों को छोड़ देना या व्याकरण में गलती होना।
FTD अन्य रोगों के साथ भी पाया जा सकता है। व्यक्ति को ऐसे अन्य विकार हो सकते हैं जिन से चलने में दिक्कतें भी होने लगती है। गति धीमी हो सकती है, संतुलन में दिक्कत हो सकती है, निगलने में भी दिक्कत होने लगती है, और पार्किन्सन जैसे कुछ लक्षण हो सकते हैं।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया वर्ग में शामिल रोग (Various Medical conditions of Frontotemporal dementia)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया किसी एक विशिष्ट रोग का नाम नहीं है। इस में अनेक रोग शामिल हैं जो मस्तिष्क के फ्रंटल और टेम्पोरल लोब की हानि से संबंधित हैं।
इन रोगों में से सबसे पहले पिक रोग (Pick’s Disease) की पहचान हुई थी। कई लोग अब भी फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया को पिक रोग के नाम से ही बुलाते हैं। इस के अन्य भी कई नाम हैं (नीचे नोट्स देखें)।
अब भी इस पर नई जानकारी प्राप्त हो रही है, और फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया के नए प्रकार पहचाने जा रहे हैं।
इस श्रेणी के रोगों का वर्गीकरण विशेषज्ञ अलग-अलग तरह से करते हैं।
मोटे तौर पर, फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया के प्रकार हैं:
व्यवहार-संबंधी रूप (Behavioural variant Fronto-Temporal Dementia, BvFTD)।
इस में व्यक्तित्व या व्यवहार में बदलाव नज़र आते हैं। उदाहरण: व्यक्ति मिलना जुलना बंद कर सकते हैं, अपने आप में सिमट सकते हैं। या औरों के प्रति निरादर या लापरवाही दिखा सकते हैं। अनुचित व्यवहार कर सकते हैं, आक्रामक हो सकते हैं, या उन्माद दिखा सकते हैं।
भाषा संबंधी रूप (Language variants of frontotemporal dementia), इस में शामिल हैं:
अर्थ -संबंधी डिमेंशिया (सिमैंटिक डिमेंशिया , semantic dementia): बोल सकते हैं, पर शब्द का अर्थ नहीं समझते,बोलते हुए अजीब अजीब शब्दों का प्रयोग करते हैं—उनकी बात का अर्थ नहीं निकलता।
प्रगतिशील गैर-धाराप्रवाह वाचाघात (progressive non-fluent aphasia): बोलने में दिक्कत होती है, और वे धीरे धीरे और बहुत कठिनाई से बोलते हैं।
अन्य रूप, खास रूप, मिश्रित रूप।
FTD अन्य रोगों के साथ भी हो सकता है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार करीब 10 से 20% FTD केस में साथ साथ मोटर न्यूरान संबंधित हानि भी होती है (overlapping motor disorders), जिस से संतुलन में और हिलने/ डुलने/ चलने में समस्या होती है, और पार्किंसन किस्म के लक्षण भी हो सकते हैं।
कुछ उदाहरण: मोटर न्यूरान रोग (motor neurone disease), प्रगतिशील सुप्रान्यूक्लियर अंगघात (progressive supranuclear palsy), कोर्टिको-बैसल अपह्रास (corticobasal degeneration)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया : कुछ महत्वपूर्ण तथ्य (Some important facts about Fronto Temporal Dementia)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया होने की संभावना के संबंध में अब तक उपलब्ध जानकारी:
आयु। हालांकि यह सभी उम्र के लोगों में पाया जा सकता है , पर इसके अधिकांश केस कम उम्र के लोगों में देखे जाते हैं (40 से 65 आयु वर्ग में)।
ध्यान दें, अल्ज़ाइमर रोग की संभावना उम्र के साथ बढ़ती है और अल्ज़ाइमर के अधिकांश केस 65 और उस से अधिक आयु वर्ग में होते हैं।
65 से कम आयु के लोगों में देखे जाने वाले डिमेंशिया केस में यह एक महत्व-पूर्ण डिमेंशिया है।
रिस्क फैक्टर (risk factor): फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया के कारक स्पष्ट रूप से मालूम नहीं । यह माना जाता है कि यह आनुवांशिकी, स्वास्थ्य-समस्या संबंधी, और जीवन-शैली संबंधी कारणों का मिश्रण हैं।
अभी तक सिर्फ एक रिस्क फैक्टर पहचाना गया है: फैमिली हिस्ट्री (family history)–माँ-बाप, भाई-बहन, अन्य पीढ़ियों में अन्य करीबी रिश्तेदार को फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया या अन्य ऐसे किसी रोग का होना (fronto-temporal dementia or other neuro-degenerative diseases)।
इस डिमेंशिया की यह आनुवांशिकी अन्य मुख्य डिमेंशिया के प्रकारों के मुकाबले ज्यादा है। National Institute of Aging (USA) की FTD की विषय-पत्रिका के अनुसार करीब 15 से 40 % केस में कोई आनुवांशिकी (जेनेटिक, हेरिडिटरी, genetic)) कारण पहचाना जा सकता है।
अवधि
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया एक प्रगतिशील प्रकार का डिमेंशिया है और समय के साथ व्यक्ति की हालत बिगड़ती जाती है। अंतिम चरण में व्यक्ति पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर होने लगते हैं।
इस की अवधि हर व्यक्ति में फर्क है, पर आम तौर पर माना जाता है कि शुरू से अंतिम चरण तक 2 से 10 साल लग सकते हैं। औसतन लोग लक्षणों के आरम्भ के बाद करीब 8 साल जीवित रहते हैं।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया रोग-निदान और उपचार (Frontotemporal Dementia Diagnosis and Treatment)।
रोग-निदान: फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया अनेक कारणों से कई बार पहचाना नहीं जाता।
प्रारंभिक लक्षण भूलने की बीमारी से नहीं मिलते, इसलिए परिवार और डॉक्टर उन लक्षणों पर ध्यान नहीं देते। परिवार वाले डॉक्टर से सलाह करने के बारे में नहीं सोचते।
अगर 65 से कम उम्र के व्यक्ति में लक्षण होते हैं, तो लोग डिमेंशिया के बारे में नहीं सोचते। बदले व्यवहार को लोग बदले चरित्र की निशानी या तनाव (स्ट्रेस, stress) का नतीजा समझते हैं।
डॉक्टर और विशेषज्ञों को भी फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया का कम अनुभव होता है।
इन सब कारणों से सही निदान मिलने में देर हो सकती है।
उपचार
अभी तक फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया से हो रही हानि को वापस ठीक करने के लिए कोई दवा नहीं है। हानि की प्रगति को रोकने या धीरे करने के लिए भी कोई दवा नहीं है।
डॉक्टर की कोशिश रहती है कि व्यक्ति को लक्षणों से कुछ राहत दें।
व्यवहार-संबंधी लक्षण चिंताजनक हों तो डॉक्टर ऐसी दवाएं देने की कोशिश करते हैं जिन से व्यवहार में कुछ सुधार हो पाए।
बोलने में दिक्कत हो तो स्पीच थेरपी से कुछ केस में कुछ आराम मिल सकता है।
पार्किंसन किस्म के लक्षण हों तो डॉक्टर शायद कुछ पार्किसन की दवा भी दें।
व्यायाम (एक्सर्साइज) से, और शारीरिक और व्यावसायिक उपचार से भी कुछ आराम हो सकता है (physical and occupational therapy)।
देखभाल में पेश खास कठिनाइयाँ (Special challenges faced in caregiving)।
अन्य डिमेंशिया के मुकाबले फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया में देखभाल में चुनौतियाँ अधिक हैं, और देखभाल ज्यादा मुश्किल और तनावपूर्ण होती है।
निदान के समय व्यक्ति अकसर कमाने वाली उम्र में होते हैं, और उनकी ज़िम्मेदारियाँ ज्यादा होती हैं। बचत राशि अकसर कम होती है। देखभाल करने वाले भी नौकरी नहीं कर पाते। पैसे की मुश्किल आम है। बच्चों की उम्र भी कम होती है, और उनकी पढ़ाई वगैरह की जिम्मेदारी और खर्च ज्यादा होते हैं।
इस डिमेंशिया में अकसर व्यवहार संभालना ज्यादा मुश्किल रहता है।
जवान व्यक्ति के आक्रामक व्यवहार को संभालना ज्यादा कठिन है।
अनुचित व्यवहार के कारण समाज में और रिश्तेदारी में समस्या। इस के बारे में जानकारी इतनी कम है कि आस-पास के लोग रोग-निदान पर यकीन नहीं करते और व्यक्ति के चरित्र को खराब समझते हैं।
देखभाल सेवाएँ और रहने के लिए केयर होम बहुत ही कम हैं। लगभग सभी उपलब्ध सेवाएं और रहने के लिए केयर होम वृद्धों के लिए हैं। ये जवान, ताकतवर रोगियों के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया: मुख्य बिंदु (Salient Points about Frontotemporal Dementia)।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है जो अन्य डिमेंशिया के प्रकार से कुछ मुख्य बातों में बहुत फर्क है। इस वजह से इस का सही रोग-निदान बहुत देर से होता है।
इस के अधिकांश केस 65 से कम उम्र के लोगों में होते हैं।
इस के प्रारंभिक लक्षण हैं व्यक्तित्व और व्यवहार में बदलाव और भाषा संबंधी समस्याएँ।
शुरू में याददाश्त संबंधी लक्षण नहीं होते।
यह प्रगतिशील और ला-इलाज है। अभी इस को रोकने या धीमे करने के लिए कोई दवाई नहीं है।
इलाज और देखभाल में दवा से, व्यायाम से, शारीरिक और व्यावसायिक थेरपी से और स्पीच थेरपी से व्यक्ति को कुछ राहत देने की कोशिश करी जाती है।
इस डिमेंशिया का अब तक मालूम रिस्क फैक्टर (कारक) सिर्फ फैमिली हिस्ट्री है , यानी कि परिवार में अन्य लोगों को यह या ऐसा कोई रोग होना।
इस डिमेंशिया में देखभाल कई कारणों से बहुत मुश्किल होती है, जैसे कि:
पैसे की दिक्कत, बदला व्यवहार संभालना ज्यादा मुश्किल, समाज में बदले व्यवहार के कारण दिक्कत, बाद में व्यक्ति की शारीरिक कमजोरी के संभालने में दिक्कत।
उपयुक्त सेवाएँ बहुत ही कम हैं, और स्वास्थ्य कर्मियों में भी जानकारी बहुत ही कम।
फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया पर विशिष्ट संस्थाएं और ऑनलाइन सपोर्ट कम है। अधिकांश उपलब्ध जानकारी और सपोर्ट अल्ज़ाइमर रोग के लिए तैयार करी गयी है, परन्तु फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया अल्ज़ाइमर रोग से कई महत्त्वपूर्ण बातों में फर्क है और इस लिए कई पहलू हैं जिन पर आम संसाधनों से उपयोगी जानकारी नहीं मिल पाती। यदि आप को या आपके किसी प्रियजन को FTD हो तो जानकारी और सपोर्ट के लिए विशिष्ट FTD संसाधन का भी इस्तेमाल करें।
संवहनी डिमेंशिया ((वैस्कुलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी, vascular dementia) डिमेंशिया के चार प्रमुख प्रकारों में से एक है| यह डिमेंशिया के करीब 20 – 30% डिमेंशिया केस के लिए जिम्मेदार है| इस के बारे में जानने से आप इसे ज्यादा आसानी से पहचान पायेंगे, और इस से बचने के लिए अपनी जिंदगी में उचित बदलाव अपना पायेंगे| इस पृष्ठ पर उपलब्ध सेक्शन हैं:
संवहनी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) क्या है (What is Vascular Dementia)|
संवहनी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है*1
इस डिमेंशिया में मस्तिष्क में हुई हानि को दवा से वापस ठीक नहीं किया जा सकता| यह इर्रिवर्सिबल, (irreversible) है|
Dementia India Report 2010 के अनुसार इर्रिवार्सिब्ल डिमेंशिया के केस में से व्यक्ति को 20-30% संवहनी डिमेंशिया (वैस्क्युलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी, vascular dementia) होता हैं|
अंग्रेज़ी शब्द वैस्कुलर (और हिंदी शब्द ‘संवहनी’) का अर्थ है – रक्त वाहिकाओं (खून की नलिकाएं, blood vessels) से संबंधित|
रक्त वाहिकाओं के द्वारा शरीर के हर भाग में आक्सीजन और जरूरी पदार्थ पहुंचाए जाते हैं|
हमारे मस्तिष्क में भी रक्त वाहिकाओं का एक नेटवर्क होता है (वैस्क्युलर सिस्टम)| मस्तिष्क के ठीक काम करने के लिए मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं का ठीक रहना बहुत ज़रूरी है|
संवहनी डिमेंशिया में मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में समस्या होती है, और इसकी वजह से डिमेंशिया लक्षण पैदा होते हैं| मस्तिष्क के कुछ भागों में खून की सप्लाई (blood supply) में रुकावट हो जाती है| खून ठीक न पहुँचने के कारण उन भागों में कोशिकाएं (सेल, cells) मर जाती हैं| इस के कारण वे भाग ठीक काम नहीं कर पाते, और डिमेंशिया के लक्षण पैदा होते हैं|
संवहनी डिमेंशिया के मुख्य प्रकार हैं:
स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया (Stroke-related dementia), और
स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया (Stroke-related Dementia)|
स्ट्रोक (पक्षाघात) में मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कुछ भागों में कुछ देर के लिए नहीं हो पाता|
यह रक्त वाहिका में बाधा से हो सकता है, जैसे कि रक्त का थक्का (clot) वाहिका को बंद कर दे|
यह वाहिका के फटने से भी हो सकता है|
कई लोग स्ट्रोक के बाद ठीक हो पाते हैं| पर कुछ लोगों में स्ट्रोक से हुई मस्तिष्क की हानि पूरी तरह ठीक नहीं होती, जिस से डिमेंशिया के लक्षण नज़र आ सकते हैं|
अल्ज़ाइमर सोसाइटी UK की “What is vascular dementia?” पत्रिका के अनुसार,
लगभग 20% स्ट्रोक केस में छह महीनों में डिमेंशिया के लक्षण नज़र आ सकते हैं|
एक बार स्ट्रोक हो, तो आगे भी स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है, और इस वजह से डिमेंशिया का खतरा भी बढ़ जाता है|
खून की सप्लाई में कमी के कुछ कारण का चित्रण देखें|
बार-बार मिनी स्ट्रोक से भी हानि होती है|
कुछ लोगों को बहुत छोटे-छोटे स्ट्रोक (मिनी-स्ट्रोक, mini-stroke) हो सकते हैं , जिन का असर 24 घंटे या कम में चला जाता है|
अकसर लोग ऐसे मिनी-स्ट्रोक पहचान नहीं पाते, या उन्हें गंभीर नहीं समझते|
पर कभी-कभी इन से मस्तिष्क में हानि हो सकती है|
ऐसे कई मिनी-स्ट्रोक के बाद कुल मिला कर हुई हानि इतनी हो सकती है कि डिमेंशिया के लक्षण नज़र आने लगते हैं|
मिनी-स्ट्रोक और उस में पाए डिमेंशिया से संबंधित कुछ शब्द:
मिनी-स्ट्रोक: ट्रांसिऐंट इस्कीमिक अटैक्स (transient ischemic attack, TIA) या अस्थायी स्थानिक अरक्तता|
मस्तिष्क में हुई हानि: इनफार्क्ट (रोधगलितांश, infarct)
बार-बार के मिनी-स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया: मल्टी- इनफार्क्ट डिमेंशिया (multi-infarct dementia), बहु-रोधगलितांश डिमेंशिया|
मस्तिष्क में कई छोटी वाहिकाएं हैं जो गहरे भागों (श्वेत पदार्थ) में खून पहुंचाती हैं|
इन में भी हानि हो सकती है, जैसे कि इनका सिकुड़ जाना, अकड़ जाना, इत्यादि। ऐसे में इन में खून का बहाव ठीक नहीं रहता| ऐसे नुकसान के कारक रोगों में उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, और मधुमेह शामिल हैं|
मस्तिष्क के गहरे भागों की छोटी वाहिकाओं में हानि के कारण उत्पन्न डिमेंशिया का नाम है सबकोर्टिकल संवहनी डिमेंशिया (Subcortical vascular dementia)|
संवहनी डिमेंशिया के लक्षण (Symptoms of Vascular Dementia)|
संवहनी डिमेंशिया में व्यक्ति के लक्षण इस बात पर निर्भर होते हैं कि मस्तिष्क के किस-किस भाग में क्षति हुई है, और यह क्षति कितनी गंभीर है|
संवहनी डिमेंशिया में शुरू के आम लक्षण हैं: शारीरिक कमजोरी और मनोदशा (मूड) में अस्थिरता/ उतार-चढ़ाव (mood fluctuations)|
याददाश्त की दिक्कत भी हो सकती हैं, पर यह इतनी नहीं हैं जितनी कि अल्ज़ाइमर (Alzheimer’s Disease) में|
अन्य लक्षण के उदाहरण हैं : काम करने की, या सोचने की गति कम होना, ध्यान लगाने में दिक्कत, निर्णय लेने में या समस्या का हल ढूंढ़ने में दिक्कत, भाषा संबंधी दिक्कत, भ्रम, अवसाद|
स्ट्रोक के केस में शरीर के एक तरफ कमजोरी भी हो सकती है|
हर व्यक्ति के लक्षण मस्तिष्क में हुई हानि के स्थान पर निर्भर हैं|
संवहनी डिमेंशिया में लक्षणों का बढ़ना (Progression of Vascular Dementia Symptoms)|
डिमेंशिया का होना और लक्षणों की प्रगति इस पर निर्भर है कि मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में समस्या किस तरह बढ़ती है|
डिमेंशिया का शुरू होना धीरे धीरे या अचानक हो सकता है|
कुछ लोगों में संवहनी डिमेंशिया के लक्षण धीरे-धीरे नज़र आते हैं|
पर यदि व्यक्ति को स्ट्रोक हो, तो स्ट्रोक के बाद लक्षण अचानक प्रकट हो सकते हैं|
लक्षण का बढ़ना भी अलग-अलग तरह से हो सकता है|
अगर डिमेंशिया स्ट्रोक के कारण हुआ है तो आगे के स्ट्रोक रोक पाने से मस्तिष्क में और अधिक क्षति नहीं होगी और लक्षण बिगड़ेंगे नहीं। पर अगर एक और स्ट्रोक हो जाए, तो लक्षण अचानक बढ़ भी सकते हैं । यानि कि, लक्षण चरणों (स्टेप्स) में बदतर हो सकते हैं|
अगर व्यक्ति को बार-बार स्ट्रोक या मिनी स्ट्रोक हो रहे हैं या मस्तिष्क की कोशिकाएं लगातार नष्ट हो रही हों तो गिरावट भी धीरे-धीरे बढ़ती रहेगी|
सबकोर्टिकल संवहनी डिमेंशिया में लक्षण धीरे-धीरे बढ़ सकते हैं, या भागों में भी बढ़ सकते हैं।
संवहनी डिमेंशिया: उपचार (Treatment of Vascular Dementia)|
संवहनी डिमेंशिया में मस्तिष्क में हुई हानि दवाई से ठीक नहीं हो सकती| (जिन भागों में हानि हुई है वे फिर से सामान्य नहीं हो सकते|
पर हम इस डिमेंशिया के बिगड़ने को रोकने की या धीरे करने की कोशिश कर सकते हैं| हम यह कोशिश कर सकते हैं कि रक्त का प्रवाह ठीक बना रहे और रक्त वाहिकाएं और अधिक खराब न हों|
डॉक्टर सलाह और दवाई देते समय अन्य पहलुओं के साथ-साथ संवहन-संबंधी पहलुओं पर जोर देते है। इन के उदाहरण हैं:
उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह, दिल की समस्याएँ| इनसे बचें या इन्हें नियंत्रित रखें|
जीवन शैली बदलें| धूम्रपान बंद करें, व्यायाम करें, पौष्टिक भोजन लें, वज़न स्वस्थ सीमाओं में रखें, मद्यपान कम करें|
देखभाल के समय भी इन बातों पर विशेष ध्यान देना होता है|
यह भी जरूरी है कि स्ट्रोक के बाद खास तौर से सतर्क रहें कि फिर से स्ट्रोक न हो| डिमेंशिया के लक्षणों के लिए भी सतर्क रहें|
(नोट:अधिकांश डिमेंशिया में लक्षण धीरे-धीरे और लगातार बढ़ते हैं|)
संवहनी डिमेंशिया: मुख्य बिंदु (Salient Points of Vascular Dementia)|
संवहनी मनोभ्रंश एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है, जो डिमेंशिया के 20-30% केस के लिए जिम्मेदार है|
यह अकेले भी पाया जाता है, और अन्य डिमेंशिया के साथ भी मौजूद हो सकता है , जैसे कि अल्ज़ाइमर और लुई बॉडी डिमेंशिया के साथ|
लक्षणों में, और प्रगति संबंधी पहलू में यह अन्य प्रमुख डिमेंशिया से कई तरह से फर्क हैं|
हानि कहाँ और कितनी हुई है, लक्षण इस पर निर्भर हैं|
अल्ज़ाइमर के मुकाबले इसमें याददाश्त की समस्या शुरू में कम पाई जाती है|
लक्षणों की प्रगति धीरे-धीरे भी हो सकती है, या चरणों (स्टेप्स) में भी हो सकती है|
इस की संभावना कम करने के लिए कारगर उपाय मौजूद हैं|
स्वास्थ्य और जीवन शैली पर ध्यान दें तो रक्त वाहिकाओं में समस्याएं कम होंगी| इस से संवहनी डिमेंशिया की संभावना कम होगी, और यदि हो भी तो इसकी प्रगति धीमी कर सकते हैं|
हृदय स्वास्थ्य के लिए जो कदम उपयोगी है, वे रक्त वाहिका समस्याओं से बचने के लिए भी उपयोगी हैं|
श्रेय: (Public domain pictures) मस्तिष्क का चित्र: Henry Vandyke Carter [Public domain], via Wikimedia Commons, मस्तिष्क के वैस्क्यूलर सिस्टम का चित्र: National Institute of Aging.
लुई बॉडी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है जिसके बारे में जानकारी बहुत कम है और जो अकसर पहचाना नहीं जाता। नतीजन, परिवार वाले यह नहीं जान पाते कि आगे क्या क्या होगा, देखभाल की तैयारी कैसे करें, और किन बातों के प्रति सतर्क रहें। इस पृष्ठ पर:
लुई बॉडी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) क्या है (What is Lewy Body Dementia)|
लुई बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body Dementia, LBD) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया (मनोभ्रंश) है*1 |
इस डिमेंशिया में हुई मस्तिष्क की हानि को दवाई से पलटा नहीं जा सकता (इर्रिवर्सिबल, irreversible)| व्यक्ति का मस्तिष्क फिर से सामान्य नहीं हो सकता|
मस्तिष्क की हानि समय के साथ बढ़ती जाती है (प्रगतिशील डिमेंशिया, प्रगामी डिमेंशिया, progressive dementia)|
अंतिम चरण में लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति सब कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं|
इस डिमेंशिया की खास पहचान है कि मस्तिष्क के कुछ न्यूरान (neuron, कोशिका/ सेल) में “लुई बॉडी” नामक असामान्य गुच्छे पाए जाते हैं| इस असामान्य संरचना के कारण ये सेल ठीक काम नहीं करते|
यह असामान्य संरचना मस्तिष्क के कई भागों में पाई जाती है| इन में अकसर वे क्षेत्र भी मौजूद हैं जो पार्किंसन रोग में प्रभावित होते हैं|
लुई बॉडी डिमेंशिया अन्य डिमेंशिया रोगों के साथ भी मौजूद हो सकता है, खासकर अल्ज़ाइमर के साथ (मिश्रित डिमेंशिया)|
जानकारी की कमी (Information/ awareness about LBD is very low)|
आम लोगों ने डिमेंशिया या अल्ज़ाइमर का नाम तो शायद सुना हो, पर वे लुई बॉडी डिमेंशिया के बारे में नहीं जानते|
डॉक्टरों में भी लुई बॉडी डिमेंशिया के बारे में कम जानकारी है, और इस को पहचानने का, और इसका इलाज करने का बहुत कम अनुभव है।
कुछ मुख्य बिंदु:
“लुई बॉडी” संरचना (असामान्य प्रोटीन डिपॉजिट का गुच्छा) सबसे पहले 1912 में एक पार्किंसन के रोगी में पहचाना गया|
“लुई बॉडी” संरचना से संबंधित डिमेंशिया का रोग निदान सिर्फ 1990 के दशक से शुरू हुआ है| निदान प्रणाली और मापदंड पर अब भी चर्चा जारी है|
यह डिमेंशिया कितने लोगों को है, इस पर भी विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है|
विशेषज्ञों का कहना है इस से ग्रस्त कई व्यक्तियों को सही रोग निदान नहीं मिलता, और लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को कई बार पार्किंसन रोग का या अल्ज़ाइमर रोग का निदान दिया जाता है|
लुई बॉडी डिमेंशिया के लक्षण (Symptoms of Lewy Body Dementia)|
लुई बॉडी डिमेंशिया में पाए जाने वाले कुछ विशिष्ट लक्षण:
सोच-विचार की क्षमताएं कम होती हैं और रोज-रोज बहुत बदलती हैं| इन क्षमताओं में स्पष्ट और बड़े-बड़े उतार-चढ़ाव नजर आते हैं |
विभ्रम, खास तौर से दृष्टि विभ्रम : ऐसी चीजें देखना जो मौजूद नहीं हैं (दृष्टि विभ्रम, चाक्षुष मतिभ्रम, visual hallucinations), ऐसी चीजें सुनना जो हैं नहीं (श्रवण मतिभ्रम, auditory hallucinations)। विभ्रम करीब 80% रोगियों में पाया जाता है, और अधिकतर यह दृष्टि विभ्रम होता है|
पार्किन्सन लक्षण: कंपन (ट्रेमर), जकड़न, पैर घसीटना, धीमापन और गति में बदलाव, झुक का चलना, बारीक काम में दिक्कत (जैसे कि लिखना, सुई पिरोना), चेहरे पर भाव की कमी|
नींद से जुड़ा विकार: नींद में ही सपनों पर अमल करना, जैसे कि सोते-सोते जोर से हँसना, चिल्लाना, हाथ-पैर मारना, बिस्तर से गिर जाना—यानि कि, REM नींद संबंधित व्यवहार विकार|
अन्य लक्षण: याददाश्त की समस्या, प्रॉब्लम सुलझाने में दिक्कत, तर्क करने में दिक्कत, निर्णय ठीक से न ले पाना, दूरी का अंदाज़ा न लगा पाना, वस्तुओं को पहचान न पाना, समय और जगह की पहचान न रहना, वगैरह| लुई बॉडी डिमेंशिया में याददाश्त की समस्या अल्ज़ाइमर जितनी नहीं देखी जाती|
रोग निदान संबंधित शब्दावली (Terms used while diagnosing)|
रोग-निदान के समय डॉक्टर अलग-अलग नामों का इस्तेमाल करते है, जिससे कई परिवार वाले कन्फ्यूज हो सकते हैं। इस पर छोटा सा परिचय:
कुछ डॉक्टर इस डिमेंशिया को कभी “डिमेंशिया विद लुई बॉडीज” कहते हैं और कभी “लुई बॉडी डिमेंशिया” बुलाते हैं|
कुछ डॉक्टर एक निदान प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं जिस में वे लुई बॉडी डिमेंशिया नाम के अंतर्गत दो अलग रोग निदान पहचानते हैं| ये हैं पार्किंसंस वाला डिमेंशिया (Parkinsonian dementia) और डिमेंशिया विद लुई बॉडीज (Dementia with Lewy Bodies)|
लुई बॉडी डिमेंशिया: कुछ अन्य तथ्य (Some other facts about Lewy Body Dementia)|
एक अनुमान के अनुसार पार्किंसंस वाले व्यक्तियों में से करीब 1/3 व्यक्तियों को आगे जा कर डिमेंशिया हो सकता है|
इस डिमेंशिया के होने की संभावना: पर अब तक उपलब्ध जानकारी :
इसकी संभावना उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है और इस के अधिकांश केस 50+ आयु के लोगों में हैं|
महिलाओं के मुकाबले यह पुरुषों में अधिक पाया जाता है|
पार्किंसंस वाले लोगों में इस की ज्यादा संभावना होती है|
इस डिमेंशिया की प्रगति:
इस में मस्तिष्क में हो रही हानि समय के साथ बढ़ती है| अंतिम अवस्था में व्यक्ति पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो सकता है|
यह 2 से 20 साल तक चल सकता है| (प्रारंभिक अवस्था या निदान से लेकर मृत्यु तक का फासला औसतन 5 से 7 साल का है|
लुई बॉडी डिमेंशिया और उपचार (Lewy Body Dementia Treatment)|
वर्तमान में, दवा से लुई बॉडी डिमेंशिया न तो रुक सकता है, न ही उसकी प्रगति धीमी करी जा सकती हैं|
ऐसे में व्यक्ति को लक्षणों से राहत देना अहम हो जाता है, ताकि व्यक्ति को कम दिक्कतें हों| इस के लिए दवाई, घर और वातावरण में बदलाव, और देखभाल और बातचीत के बेहतर तरीके इस्तेमाल करे जाते हैं|
कुछ दवाएं अल्ज़ाइमर या पार्किंसन रोग में कारगर हो सकती हैं पर लुई बॉडी केस में लक्षणों को बिगाड़ सकती हैं|
कई बार लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को अल्ज़ाइमर का गलत निदान मिल सकता है। इस स्थिति में डॉक्टर अल्ज़ाइमर की दवाई देंगे|
पार्किन्सन लक्षणों से राहत देने के लिए डॉक्टर पार्किंसन रोग में दी जाने वाली दवाई दे सकते हैं|
लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति में ऐसी कुछ दवाओं से नुकसान हो सकता है|
रोग निदान के बारे में थोड़ा सा भी शक हो तो डॉक्टर से बात करें|
सतर्क रहें कि दवा से नुकसान तो नहीं हो रहा। व्यवहार संबंधी दवा (ऐन्टी साइकाटिक, anti-psychotic) के दुष्प्रभाव के प्रति खास तौर से सतर्क रहें|
लुई बॉडी डिमेंशिया: मुख्य बिंदु (Salient Points about Lewy Body Dementia)|
लुई बॉडी डिमेंशिया एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है। यह ठीक नहीं हो सकता और समय के साथ व्यक्ति की हालत खराब होती जाती है|
इस के बारे में जानकारी बहुत कम है|
इस की खास पहचान है मस्तिष्क की कोशिकाओं में “लुई बॉडी” नामक असामान्य संरचना की उपस्थिति|
लक्षण:
विशिष्ट लक्षण हैं दृष्टि विभ्रम, सोचने-समझने की क्षमता कम होना, और इन का रोज-रोज बहुत भिन्न होना, पार्किंसन लक्षण, जैसे कंपन, जकड़न, धीमापन, पैर घसीटना, इत्यादि, और नींद में व्यवहार संबंधी समस्याएँ|
अन्य डिमेंशिया लक्षण भी प्रकट होते हैं|
अभी इस को रोकने या धीमे करने के लिए कोई दवाई नहीं है| इलाज और देखभाल में व्यक्ति को लक्षणों से कुछ राहत देने की कोशिश रहती है|
सही रोग निदान मिलने में दिक्कत हो सकती हैं|
कुछ आम-तौर डिमेंशिया में इस्तेमाल होने वाली दवाओं से लुई बॉडी डिमेंशिया वाले लोगों को नुकसान हो सकता है। सतर्क रहना जरूरी हैं|
लुई बॉडी डिमेंशिया से संबंधित कुछ खास संसाधन हैं। अधिक जानने के लिए और वर्तमान जानकारी के अपडेट पाने के लिए इन से संपर्क करें। कुछ ऑनलाइन समुदाय भी हैं जहाँ लोग इस से संबंधित अनुभव और सुझाव बांटते हैं। आप यदि इस डिमेंशिया से ग्रस्त हैं, या इस से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, तो इन में अनुभव और सुझाव बाँट सकते हैं|
लुई बॉडी डिमेंशिया और संबंधित विकारों के लिए कुछ शब्द/ वर्तनी:
लेवी बॉडीज़ , लेवी बॉडीज़ के साथ डिमेंशिया, लुई बाड़ी, लुई बाड़िज़, लुई बाड़िज़ वाला डिमेंशिया , लेवी बॉडीज़ वाला डिमेन्शिया, पार्किंसंस, पार्किंसन, पार्किन्सन|
Lewy Body Dementia (LBD), Dementia with Lewy Bodies (DLB), Parkinsonian Dementia, Parkinson’s Disease
चित्रों का श्रेय: कोशिका में लुई बॉडी का चित्र: Marvin 101 (Own work) [CC BY-SA 3.0] (Wikimedia Commons) पार्किन्सन के व्यक्ति का चित्र: By Sir_William_Richard_Gowers_Parkinson_Disease_sketch_1886.jpg: derivative work: Malyszkz [Public domain], via Wikimedia Commons.