भारत में डिमेंशिया (मनोभ्रंश) के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं, और इसलिए समाज में लोग डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के परिवार वालों की स्थिति व दिक्कतों को नहीं समझते। देखभाल करने वाले तितर-बितर हैं, और वे आपस में मिल कर अपने अनुभव नहीं बाँट पाते, और न ही वे समस्याओं और सुझावों का आदान प्रदान कर पाते हैं। क्योंकि डिमेंशिया की जानकारी आम नहीं है, इसलिए परिवार वाले यह नहीं जान पाते कि मरीज की हालत किस तरह से साल दर साल अधिक खराब होती जायेगी, और वे इसके लिए उचित तरह से योजना नहीं बना पाते। देखभाल का काम थका देता है, या व्यक्ति की हालत की वजह से दुखी कर देता है, पर जब परिवार वाले हताश होते हैं, या दुखी होते हैं, या तनाव महसूस करते हैं, तब भी वे किसी से बात करके मन हल्का नहीं कर पाते, क्योंकि लोग उलटा उन्हें कर्तव्य पर भाषण देने लगते हैं।
इन सब कारणों की वजह से देखभाल करने वाले अकसर अपने आप को अकेला पाते हैं। क्योंकि ये एक दूसरे से टिप्स नहीं जान पाते, सब परिवार देखभाल के गुण नए सिरे से सीखते हैं।
इस सेक्शन में हम कुछ देखभाल करने वालों के कुछ किस्से पेश कर रहे हैं–कुछ इंटरव्यू, कुछ अख़बारों में से रिपोर्ट, कुछ अन्य लिंक। इन के द्वारा पाठक अन्य लोगों के अनुभवों को जान पायेंगे, और अपने को अकेला नहीं सोचेंगे। जो परिवार देखभाल के काम में नए नए हैं, वे इन आपबीती कहानियों को पढ़कर कुछ अंदाज़ा लगा पायेंगे कि आगे क्या क्या हो सकता है, और हो सकता है कि वे फिर आगे के लिए ज्यादा तैयार हो पायें।
- आवाज़ें: हिंदी समाचार पत्रों, ब्लॉग, साइट्स, पुस्तकें (Voices: Dementia stories from Hindi newspapers, sites and books).
- आवाज़ें: देखभाल करने वाले, (Voices: Interviews with dementia caregivers).
- विशेषज्ञों और स्वयंसेवकों के इंटरव्यू (Tips and Advice from Healthcare Professionals and Volunteers).