डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल से बहुत तनाव पैदा हो सकता है, यह सच विशेषज्ञ भी पहचानते हैं।
देखभाल करने वाले क्या कर सकते हैं: यह समझें कि तनाव और बोझ महसूस करने में वे अकेले नहीं हैं। अपनी देखभाल कैसे करें, इसके लिए टिप्स देखें और अपनी निराशा, गुस्सा, और अन्य दुःख की भावनाओं को संभालने के तरीके सीखें। सपोर्ट ग्रुप में अन्य देखभाल करने वालों से मिल कर एक दूसरे का सहारा प्राप्त करें। मानसिक विराम पाने के तरीके सीखें, सुखद समय खोजें, और तनाव के हद से ज्यादा बढ़ जाने से पहले सहायता मांगें।
डिमेंशिया (मनोभ्रंश) से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल से परिवार वालों को काफी थकान हो सकती है, और तनाव भी। अत्याधिक भार को संभालते संभालते देखभाल करने वाले खुद अपना खयाल रखना भूल जाते हैं, और अपने स्वास्थ्य को नज़रंदाज़ करने लगते हैं। वे अपनी तकलीफ के लिए डॉक्टर के पास जाने का समय नहीं निकाल पाते. वे दूसरों से अगल-थलग भी पड़ जाते हैं, और इस अकेलेपन में लोगों से मदद कैसे ले, वे यह नहीं सोच पाते। कभी-कभी उनका तनाव/ निराशा हद से ज्यादा बढ़ जाता है, और सहन करना मुश्किल हो जाता है।
- देखभाल का काम तनावपूर्ण है, यह सच विशेषज्ञ मानते हैं.
- तनाव कैसे कम करें.
- दोस्तों, सहकर्मियों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों से मदद कैसे लें: कुछ टिप्स.
- सपोर्ट ग्रुप और फोरम के फायदे.
- अधिक तनाव/ अवसाद/ खुद को नुकसान पंहुचाने के खयाल आ रहे हों, उसके लिए हेल्प लाइन/ सहायता.
- इन्हें भी देखें.
देखभाल का काम तनाव पूर्ण है, यह सच विशेषज्ञ मानते हैं
आप शायद सोचते होंगे कि आप कुछ गलत कर रहे हैं, इस लिये आपको थकावट हो रही है, या तनाव है। खुद में कमी देखने से, या खुद को इस तरह छोटा करने से तनाव बढ़ जाता है। सच तो यह है कि यह माना जाता है कि देखभाल का रोल तनाव वाला रोल है, और डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल करना अन्य देखभाल के रोल से अधिक तनाव पैदा करता है।
अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में यह समझाया गया है कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल एक तनावपूर्ण काम है (stressful nature of dementia care)। इन में बताया गया है कि डिमेंशिया देखभाल अन्य देखभाल से फ़र्क है। यह कई साल चलती है, और व्यक्ति में बदलाव भी अन्य बीमारियों के मुकाबले काफी फ़र्क होते हैं।
भारत में देखभाल का रोल नहीं पहचाना जाता, इससे समस्याएँ और भी अधिक हैं। हालाँकि भारत में संयुक्त परिवार की प्रथा है, और बुजुर्गों का आदर होता है, पर इस की वजह से डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की बेहतर देखभाल हो रही है, ऐसा नहीं है। यह इसलिए क्योंकि भारत में लोग डिमेंशिया के बारे में नहीं जानते। वे डिमेंशिया के लक्षणों में और सामान्य उम्र बढ़ने की समस्याओं के बीच का अंतर नहीं पहचान पाते। इसलिए डिमेंशिया वाले व्यक्तियों को, और उनके परिवार वालों को सही समर्थन नहीं मिलता। उलटा डिमेंशिया का होना एक कलंक माना जाता है, और व्यक्ति या परिवार वालों को दोषी समझा जाता है। इस वजह से देखभाल वाले न सिर्फ व्यक्ति की देखभाल करते हैं, उन्हें लोगों की तीखी बातें भी सुननी पड़ती हैं। इससे उनका तनाव बढता है।
डिमेंशिया वाले व्यक्ति की देखभाल करने वालों में मानसिक स्वास्थ्य में काफी गिरावट पाई जाती है। डिप्रेशन (अवसाद) की संभावना ऊँची होती है। अध्ययन में पाया गया है कि करीब 1/5 से 1/3 देखभाल कर्ताओं में देखभाल के कार्य-भार और तनाव के कारण मानसिक बीमारी हो सकती है। आप यदि अपना तनाव के स्तर का अंदाजा लगाना चाहते है, तो नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में प्रस्तुत लिंक देखें।
यदि आपको तनाव महसूस हो रहा है, या आप थके-थके रहने लगे हैं और बोझित महसूस कर रहे हैं, तो पहले तो यह जान लें कि बहुत देखभाल कर्ताओं कों भी ऐसा ही महसूस होता है। आप अकेले नहीं हैं, इस पृष्ठ पर कुछ सुझाव हैं, और साधन भी; उम्मीद है यह आपके कुछ काम आयेंगे।
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तनाव कैसे कम करें
डिमेंशिया वाले व्यक्ति की देखभाल तनावपूर्ण है, खासकर इसलिए क्योंकि देखभाल करता को अनेक रोल और ज़िम्मेदारियाँ निभानी होती हैं। तनाव गंभीर चुनौतियों से भारी स्थितियों में (जैसे कि कोविड 19 / महामारी) बहुत बढ़ जाता है। घर के माहौल में बदलाव और लागू प्रतिबंधनों के कारण देखभाल करने वाले कई ऐसी गतिविधियाँ नहीं कर सकते जो वे पहले कर पाते थे। ऐसे में स्व-देखभाल अब और भी जरूरी है, और देखभाल करने वालीं को इस के लिए ऐसे तरीके खोजने होंगे जो सुरक्षित हैं और आसानी से करे जा सकें।
कुछ सुझाव:
- स्व-देखभाल के लिए उसी तरह योजना बनाएं जैसे कि आप व्यक्ति की देखभाल के लिए बनाते हैं।
- जैसे कि, यह सोच कर रखें कि यदि आप घर से बाहर नहीं जा पाएंगे, और इतने थके या व्यस्त होंगे कि घर पर खाना नहीं बना पाएंगे, तो पौष्टिक खाना पाने के लिए क्या प्रबंध हो सकता है। होम डेलीवेरी एप और खाना बनाने वाले पड़ोसी की जानकारी पास रखें। घर पर कुछ व्यायाम कर पाएं, इस के इए जो जरूरी है, वह रखें, जैसे कि योग मैट , हल्के व्यायाम के लिए वजन, स्ट्रेच बंद, इत्यादि। और अपने लिए घर पर सलाह देने वाले डॉक्टर का संपर्क।
- आर्थिक और कानूनी पहलुओं के लिए भी प्लान करें। टैक्स और कानून संबंधी काम तनाव का एक बड़ा स्रोत हो सकते हैं। इसलिए इन के बारे में पहले से ही सोचें। उदाहरण के लिए, यदि व्यक्ति के कुछ जॉइन्ट अकाउंट हैं तो टैक्स सलाहकार से बात करें कि क्या जब व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता कम होगी तो कुछ प्रकार की कार्यवाही में इन से समस्या हो सकती है। पावर ऑफ अटर्नी इत्यादि जैसे पहलुओं पर सोचें। यह सब व्यवस्था शुरू में ही ठीक कर लें, क्योंकि जब देखभाल बढ़ेगी तो इन के लिए घर से बाहर जाना मुश्किल होने लगेगा।
- यह सोचें कि देखभाल के किन कार्यों से आपको अधिक थकान महसूस होती है, या अधिक तनाव होता है। इन कार्यों को करने का तरीका कैसे बदलें, इसके लिए सलाह लें। या इन कार्यों को करने के लिए अन्य साधन का इस्तेमाल करें।
- देखभाल के काम की वजह से अकेला पड़ जाना तनाव का एक मुख्य कारण है। अन्य लोग आपकी स्थिति और समस्याएँ नहीं समझ पाते, और आप उनसे बात करें भी तो क्या करें, यह सोच कर आप मिलना कम कर देते हैं और अकेले पड़ सकते हैं। सपोर्ट ग्रुप समर्थन का एक मूल्यवान अंग हो सकता हैं। ग्रुप में बातें करके अन्य देखभाल करने वालों से किस्से बाँटें और एक दूसरे के अनुभव से सीखें। अकेलापन कम होगा। शायद आपके शहर में कोई सपोर्ट ग्रुप हर महीने मिलता हो, वरना ऑनलाइन सपोर्ट ग्रुप तो उपलब्ध हैं ही।
- यदि आप भावनात्मक रूप से संसायों का सामना अर रहे हैं तो ध्यान से शायद सुकून मिले, या काउन्सलर से संपर्क करें।
- आप सुझावों के लिए काउंसेलिंग सेवा भी उपलब्ध कर सकते हैं।
- छोटे ब्रेक (विराम) और कुछ देर आराम कर पाने के लिए के लिए समर्थक संस्थाओं का उपयोग करें, जैसे कि डिमेंशिया डे केयर और रिस्पाईट केयर सेंटर।
- दोस्तों, रिश्तेदारों, सहकर्मियों और पड़ोसी से कुछ कामों के लिए मदद लें। देखभाल करने वाले अकसर मदद लेने में हिचकिचाते हैं। वे समझ नहीं पाते कि क्या मदद लें, पर थोड़ी सी मदद मिलने से भी फ़र्क पड़ सकता है। इस विषय पर अधिक चर्चा देखें नीचे के “इन्हें भी देखें” सेक्शन में।
- अपनी सेहत का खयाल रखें। आप स्वस्थ होंगे तो काम भी कर पाएंगे और आपका प्रसन्नचित्त रहना भी ज्यादा आसान होगा। पौष्टिक भोजन खाएं, व्यायाम करें, मेडीटेट करें, वगैरह। इसमें कमी करी तो थकान ज्यादा होगी, तनाव बढ़ेगा, और आप बीमार पड़ सकते हैं।
अपने लिए कुछ समय निकालें और कुछ ऐसा करें जो आपको पसंद हो। किताब पढ़ें, हंसाने वाली फिल्म देखें, दोस्तों से मिलें, गाने सुनें, राम लीला देखने जाएँ, अपनी पसंद की कोई चीज़ खरीदें। दोस्तों के साथ कुछ तनाव-रहित घंटे बिताएं। अपने लिए समय निकालने के लिए लोगों से मदद मांगें, या संस्थाओं की सेवाओं का उपयोग करें।
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दोस्तों, सहकर्मियों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों से मदद कैसे लें: कुछ टिप्स
ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से आसपास के लोग आपकी मदद नहीं करते।
- वे शायद जानते न हों कि आपको मदद चाहिए।
- उन्हें पता नहीं कि मदद कैसे करें। वे शायद सोचते हैं कि मदद देना दखल करना होगा, या उन्हें नहीं पता के आपकी स्थिति में कोई कैसे मदद कर सकता है।
- वे डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति को देख कर घबरा जाते हैं और देखभाल के काम करने की सोच भी नहीं पाते।
इस स्थिति में मदद कैसे मांगें:
- लोगों को डिमेंशिया क्या है, और देखभाल में क्या करना होता है, यह बताएं।
- लोगों को जानने दें कि आपको मदद चाहिए।
- अगर लोग ऐसे सुझाव दें जो काम नहीं आ सकते तब भी उनका धन्यवाद करें। अगर वे बुरा न मानें तो धीरे से बताएं कि उनका सुझाव क्यों लागू नहीं किया जा सकता।
- मदद स्पष्ट रूप से, विशेष कार्यों के लिए ही मांगे, और ऐसे कार्यों के लिए मांगें जो मदद करने वालों के लिए आसान भी हो और सुखद भी, और जिसके लिए उन्हें कुछ ज्यादा सीखना या समझना न पड़े। ऐसी सहायता न मांगें जो मदद करने वाले के लिए मुश्किल हो।
- कई लोग डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति से बात करने में या उनकी मदद करने से घबराते हैं क्योंकि डिमेंशिया का व्यक्ति पर जो असर हो रहा है, वह देखना मुश्किल होता है। ऐसे लोगों से उन कामों के लिए मदद लें जिन में उन्हें व्यक्ति से मिलना न पड़े, जैसे कि घर के बाहर के काम के लिए मदद।
- लोगों को यह भी बता दें कि मोटे तौर पर आपको किस किस्म की मदद की जरूरत पड़ती रहती है। हो सकता है, उन्हें इससे कुछ खयाल आएँ कि वे आपकी मदद कैसे कर सकते हैं।
- लोगों से बात करते हुए शांत और खुश रहें, और ज्यादा दुःखी और शहीदी भाव न रखें। लोग अगर किसी को अधिक तनाव में देखते हैं, तो घबरा जाते हैं और उसकी मदद करने की बजाय उससे कतराने लगते हैं।
- अपनी निराशा या गुस्से के लिए समर्थन उन्ही गिने-चुने लोगों से मांगे जो आपकी स्थिति समझते हों और ऐसी भावनाओं को सुन कर घबराएंगे नहीं, बल्कि आपका समर्थन कैसे करें, यह जानेंगे।
अगर आप बहुत थके हुए हैं या अत्याधिक तनाव का सामना कर रहे हैं, तो हो सकता है कि जो भी मिले आप उससे अपनी रामकहानी सुनाने लगें। अफसोस, इससे लोग समर्थन नहीं कर पाते, उलटा आपसे बचने लगते हैं। अच्छा यही है कि आप लोगों से छोटे, स्पष्ट कामों के लिए स्वाभाविक और सरल तरह से मदद मांगे, और इस तरह अपना काम हलका रखें ताकि आपका तनाव उतना न बढ़े कि उबल कर बाहर आने लगे। कुछ अच्छे दोस्तों से बनाए रखें; कुछ दिन ऐसे होते हैं जब थकान इतनी होती है कि कोई दोस्त न हो तो दिन बहुत ही मुश्किल से कटता है।
मदद किन कार्यों के लिए ले सकते हैं, इसके अंदाज़े के लिए नीचे इन्हें भी देखें” सेक्शन के लिंक देखें।
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सपोर्ट ग्रुप और फोरम के फायदे
भारत में सपोर्ट ग्रुप और केयरगिवर फोरम (support groups and caregiver forums) इतने प्रचलित नहीं हैं, पर ये तनाव कम करने के लिए बहुत ही कारगर होते हैं।
क्योंकि लोग यह नहीं समझते कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल में किस तरह की मुश्किलें होती हैं, और क्योंकि वे डिमेंशिया और सामान्य उम्र बढ़ने में अंतर नहीं जानते, आप अकसर यह पायेंगे कि जब आप लोगों से मिलते हैं तो वे कुछ ऐसा कह देते हैं जो आपको अटपटा लगता है। चाहे उनका इरादा भले ही मदद करने का हो, उनके सुझाव आपकी और व्यक्ति की स्थिति की सच्चाई के अनुरूप नहीं होते। जैसे कि वे कहने लगेंगे कि “भई,इन्हें रोज बाहर ले जाया करो”, या वे कहेंगे, “इन को अकेले घूमने दो, ये कोई बच्चे थोड़े ही हैं?” या वे व्यक्ति की काल्पनिक यादों पर आधारित शिकायतों को सच मान कर आपको डांटना शुरू कर देंगे। ऐसे लोगों से मिलने से आपका तनाव बढ़ता है।
सपोर्ट ग्रुप से मिलना इससे विपरीत होता है, क्योंकि वहाँ सब लोगों को डिमेंशिया देखभाल करने का अनुभव है। वहाँ आप अपनी स्थिति के बारे में खुल कर बात कर सकते हैं, और औरों के अनुभव भी सुन सकते हैं। किस टिप से फायदा हुआ, किससे नहीं, क्या आजमा सकते हैं, इस तरह के चर्चे होते हैं। आप पायेंगे कि आप अकेले नहीं हैं, ऐसे कई लोग हैं जो आप जैसी स्थिति से जूझ रहे हैं। सपोर्ट ग्रुप में बात बात पर “कर्तव्य” पर भाषण नहीं सुनने पड़ेंगे। ऐसे ग्रुप में कुछ बहुत ही रचनात्मक सुझाव भी मिल सकते हैं जिनसे आप अपनी स्थिति को सुधार सकते हैं।
भारत में सपोर्ट ग्रुप कम हैं। हो सकता है कि आपके शहर में सपोर्ट ग्रुप न हो। याद रखें, इन्टरनेट पर ऑनलाइन ग्रुप हैं जिनके द्वारा आप अन्य देखभाल करने वालों के साथ मिल सकते हैं। कुछ ऑनलाइन ग्रुप में आप जो लिखते हैं वे सिर्फ दूसरे देखभाल करने वाले ही देख पायेंगे, और आप किसी दूसरे नाम (छद्म नाम, pseudonym) का इस्तेमाल कर सकते हैं। कुछ साधन उपलब्ध हैं; नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में इनके लिए लिंक हैं।
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अधिक तनाव/ अवसाद/ खुद को नुकसान पहुंचाने के ख़याल आ रहे हों, उसके लिए हेल्प लाइन/ सहायता
हो सकता है कि देखभाल के काम के कारण आपको बहुत तनाव हो, या आप बहुत ही निराश रहने लगें और जिंदगी के प्रति उदासीनता महसूस करें। शायद आपको अपनी ज़िंदगी बे-मतलब लगने लगे, और आप समझ न पा रहे हों कि इन भावनाओं से अकेले कैसे उभरें।
यह सच है कि भारत में डिमेंशिया देखभाल के समर्थन के लिए बहुत कम संस्थाएं हैं, और सहायक सेवाएं नहीं मिल पातीं। ऊपर से देखभाल करने वाले मदद मांगने से हिचकिचाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग मदद करने के बजाय उनकी बुराई करेंगे, देखो यह परिवार अपने फ़र्ज़ को ठीक से नहीं संभाल रहा है। कहने को तो भारत में संयुक्त परिवार की प्रथा है, और यह सोचा जाता है कि परिवार वाले और रिश्तेदार मिल-जुल कर सब काम करते हैं, पर वास्तव में देखभाल करने वालों को अकसर इस प्रकार की सहायता नहीं मिल पाती है। उल्टा परिवारों के बीच देखभाल के निर्णयों को लेकर फूट भी पड़ सकती है। कारण कुछ भी हो, यह हो सकता है कि देखभाल करने वाले अवसाद का शिकार हों, और समझ न पाएँ कि क्या करें।
यदि आप पाएँ कि आप बहुत तनाव या मायूसी महसूस कर रहे हों, तो किसी काउन्सलर (counsellor) या मनोचिकित्सक (psychiatrist) से सलाह करें और सुझाव या इलाज प्राप्त करें।
यह भी हो सकता है कि आप किसी काउन्सलर या मनोचिकित्सक को न जानते हों। या आप घर से बाहर न जा पाते हों, या आप नहीं चाहते हों कि घर के अन्य सदस्यों को पता चले कि आप ऐसे किसी से मदद ले रहे हैं। यह भी हो सकता है कि आपको लगे कि घर की बात आप ऐसे किसी गैर को नहीं बता सकते। इस स्थिति में एक अन्य विकल्प है: आप अपने घर से ही, बिना किसी और को बताए, फोन या ईमेल से कुछ सहायक संस्थाओं से सम्पर्क कर सकते हैं जहाँ प्रशिक्षित काउन्सलर आपकी बात सुनेंगे भी और सलाह भी देंगे, और आपने जो भी उनको बताया है, वह गोपनीय (confidential) रहेगा। कुछ ऐसी सेवाओं की जानकारी नीचे “इन्हें भी देखें सेक्शन में है।
सहायता के लिए संस्थाओं को/ हेल्प लाइन को सम्पर्क करने के लिए बिलकुल हताश हों, इसका इन्तज़ार न करें। जब आपको लगे कि तनाव या अवसाद बढ़ रहा है, आप उसी वक्त फोन करके मदद ले सकते हैं।
आजकल टेलीमेडिसन अधिक उपलब्ध है, और साथ ही काउन्सेलिंग के लिए भी कई फोन/ ऑनलाइन बिकल्प हैं। कई हेल्पलाइन हैं। इसके अतिरिक्त, कई संस्थाएं ऑनलाइन वेबईनार और ग्रुप सेशन करती हैं, और आपको इन से कुछ सहायता मिल सकती है।
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इन्हें भी देखें.
हिंदी पृष्ठ, इसी साईट से:
- लोगों से मदद कैसे लें, यह विस्तार में यहाँ पढ़ें: दोस्त, रिश्तेदार, सहकर्मी डिमेंशिया से जूझ रहे परिवार की मदद कैसे करें।
- साधनों के लिए देखें: आपके शहर में साधन और Informational websites page for online groups Opens in new window.
- हताश होने पर/ डिप्रेशन के लिए कुछ हेल्पलाइन: Helplines when distressed/ depressed Opens in new window.
इस विषय पर हिंदी सामग्री, कुछ अन्य साईट पर: यह याद रखें कि इन में से कई लेख अन्य देश में रहने वालों के लिए बनाए गए हैं , और इनमें कई सेवाओं और सपोर्ट संबंधी बातें, कानूनी बातें, इत्यादि, भारत में लागू नहीं होंगी।
- Australia के राष्ट्रीय संस्थान द्वारा प्रकाशित पत्रिका: विराम लेना (Taking a break)(PDF) Opens in new window.
इस पृष्ठ का नवीनतम अँग्रेज़ी संस्करण यहाँ उपलब्ध है: Caregiver emotions and stressOpens in new window. अंग्रेज़ी पृष्ठ पर आपको विषय पर अधिक सामयिक जानकारी मिल सकती है। कई उपयोगी अँग्रेज़ी लेखों, संस्थाओं और फ़ोरम इत्यादि के लिंक भी हो सकते हैं।
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