परिवार में डिमेंशिया देखभाल पर बातचीत और निर्णय

परिवार के सभी सदस्यों की डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल के बारे में अपनी अपनी राय है।

देखभाल करने वाले क्या कर सकते हैं:  देखभाल के बारे में पूरे परिवार से बात करें, स्थिति समझाएं, और क्या हो रहा है, वह भी बताते रहें। अन्य परिवार वालों के दृष्टिकोण समझें, मिल कर काम करें, मिल कर निर्णय लें। गलतफहमी न होने दें, बात करने का रास्ता हमेशा खुला रखें, मतभेद पर चर्चा करें।

अच्छा तो यही होगा कि परिवार के सब सदस्य साथ मिल बाँट कर डिमेंशिया (मनोभ्रंश) वाले व्यक्ति की देखभाल के बारे में सोचें और काम करें। अच्छा है यदि सब लोग जानें कि स्थिति क्या है, और सबको एक दूसरे पर भरोसा हो, और देखभाल में क्या करना है, क्या नहीं, इस पर सहमति भी हो।

सच तो यह है कि अधिकाँश परिवारों में लोग जानते नहीं हैं कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल कितनी लंबी चल सकती है और इसमें कितनी चुनौतियाँ होंगी, इसलिए वे सब मिल कर इस पर चर्चा नहीं करते, और न ही कोई योजना बनाते हैं। इस पृष्ठ पर:

इस पृष्ठ के सेक्शन:

परिवारों में देखभाल का कार्यभार बांटना: कुछ आम परिस्थितियाँ

अकसर जब किसी को डिमेंशिया होता है, तो जो परिवार वाले साथ रह रहे हैं, वे ही देखभाल कर्ता बन जाते हैं–चाहे पति/ पत्नी हों, या बच्चे। अगर डिमेंशिया वाले व्यक्ति अकेले रह रहे हैं तो सबसे नज़दीक रहते परिवार वाले व्यक्ति की मदद करने की कोशिश करते हैं।

जब डिमेंशिया अधिक बिगड़ने लगता है और देखभाल का सिलसिला गंभीर होने लगता है, तो देखभाल व्यवस्था में शायद बदलाव हो। देखभाल का काम वे परिवार वाले करने लगते हैं जिनके पास ज्यादा समय है या ज्यादा बड़ा मकान है या जो ज्यादा अमीर हैं। परिवार वाले काम कैसे बांटे, यह सोचने लगते हैं। कुछ परिवारों में बच्चे बारी-बारी से देखभाल का काम लेते हैं, और व्यक्ति हर कुछ महीने एक घर से दूसरे घर ले जाए जाते हैं ताकि अगला बच्चा अपनी बारी निभा सके। व्यक्ति एक ही घर में रहें, तब भी अकसर देखभाल का काम मुख्य रूप से परिवार के एक सदस्य पर होता है, जिसे हम मुख्य देखभाल कर्ता भी कहते हैं (primary caregiver) और अन्य परिवार वाले सिर्फ ज्यादा दिक्कत के टाइम, या इमरजेंसी में मदद करते हैं।

किसी भी परिवार में कई लोग हैं जो डिमेंशिया वाले व्यक्ति के बारे में चिंतित होते हैं। ये सब शायद साथ साथ नहीं रह रहे होते हैं। मुख्य देखभाल कर्ता, व्यक्ति के साथ रहने वाले अन्य परिवारजन, दूसरे घर/ शहर/ देश में रहने वाले परिवारजन, सभी देखभाल में खुद को कुछ हद तक भागीदार समझते हैं, और हिस्सा लेना चाहते हैं। अपने अपने तरीके से, अपनी सीमाओं में, वे काम, खर्च, और जिम्मेदारी बांटने की कोशिश करते हैं।

परन्तु कई परिवार देखभाल के बारे में आपस में खुल कर बात नहीं करते। वे आपस में काम और खर्च कैसे बांटेंगे, उसपर चर्चा नहीं करते। मतभेद होते हैं, मनमुटाव होता है, कभी कभी फूट भी पड़ जाती है। यह खास तौर पर साथ रहने वाले देखभाल कर्ता और दूर रहने वाले देखभाल कर्ता में पायी जाती है (खासकर यदि दूर रहने वालों ने डिमेंशिया वाले व्यक्ति कि कभी भी देखभाल नहीं करी हो) , पर एक ही घर में रहते हुए परिवार वालों में भी हो सकती है। किस प्रकार के प्रॉब्लम होती हैं, और इनकी संभावना कम कैसे करें, इस पर अगले सेक्शनों में चर्चा है।

परिवारों में किस तरह की समस्याएँ आती हैं, किस तरह की गलतफहमी हो सकती है

व्यक्ति के साथ रहने वाले परिवार वाले आपस में बातचीत कम कर देते हैं, और स्थिति खुल कर नहीं बांटते

साथ रहने वाले देखभाल कर्ता अकसर काम में व्यस्त होते हैं, और वे व्यक्ति की स्थिति दूर रहने वालों को नहीं बताते। दूर रहने वालों को पता ही नहीं चलता है कि देखभाल में कितना काम है, या किस प्रकार की दिक्कतें हैं। वे शायद पता चलाने की कोशिश भी नहीं करते।

जब देखभाल कर्ता व्यक्ति के पति/ पत्नी हों, तो स्थिति अकसर और भी चिंताजनक होती है, क्योंकि देखभाल करने वाले अपने बच्चों पर बोझ नहीं बनना चाहते और व्यक्ति की देखभाल करना अपना फर्ज समझते हैं। उन्हें लगता है कि दिक्कतों का जिक्र करने से उनकी गरिमा कम होगी और वे कामचोर समझे जायेंगे।

देखभाल करने वाले और दूर रहने वाले एक दूसरे की नुक्ताचीनी करते हैं और उन के बीच एक नकारात्मक माहौल बन जाता है।

दूर रहने वाले परिवार के सदस्य कई बार देखभाल के स्तर से असंतुष्ट होते हैं। वे देखभाल करने वालों में गलतियाँ निकालने लगता है या कहने लगते हैं, कि मैं होता तो देखभाल ज्यादा अच्छी करता, तुम यह ठीक नहीं कर रहे, व्यक्ति ठीक से नहीं रखे जा रहे हैं। देखो पापा/ अम्मा खुश नहीं लगते। इस तरह की नुक्ताचीनी तब ज्यादा होती है अगर दूर रहने वाले ने व्यक्ति की रोज की देखभाल अकेले कभी नहीं संभाली हो। कभी कभी दूर वाले और भी कई दोष निकालते हैं, जैसे के शहर या देश की अवस्था से सम्बंधित। कभी कभी दूर रहने वाले व्यक्ति के साथ कई वर्ष पहले रहते थे, जब समस्याएँ कम थी या थीं ही नहीं, और यह यकीन नहीं कर पाते कि व्यक्ति को वाकई प्रॉब्लम है। वे सोचते हैं कि व्यक्ति सामान्य है, और यह डिमेंशिया-विमेंशिया सब साथ रहने वालों की मनगढ़ंत कहानी है, गलतियों को छुपाने के लिए।

साथ रहकर देखभाल करने वाले भी दूर वालों की बुराई करते हैं। वे कहते हैं कि देखो, वे तो कुछ नहीं कर रहे। वे उनके हर सुझाव को नकार देते हैं, और दूर रहने वाले कुछ भी कहें, वे उसे शक की नज़र से देखते हैं। वे दूसरों को माँ-बाप संबंधी निर्णयों में भागीदार नहीं समझते और उन्हें स्थिति के बारे में जानकारी देना जरूरी नहीं समझते।

सपोर्ट ग्रुप और अन्य फोरम में ऐसी अनेक कहानियाँ हैं जिनमें लोग बताते हैं कि उनके भाई-बहन ने उन्हें कैसे चोट पहुंचाई, कैसे उनकी बात नहीं सुनी, उनका काम नहीं बांटा, उनका समर्थन नहीं करा, उन्हें समय पर खबर नहीं दी, उनकी बेइज्जती करी, पैसे का लालच दिखाया, वे देखभाल ठीक नहीं करते और हमारे सुझाव नहीं सुनते, वगैरह। कुछ किस्से पास रहकर देखभाल करने वालों के होते हैं, कुछ दूर रहने वाले परिवार के सदस्यों के।

देखभाल संबंधी बड़े निर्णयों पर मतभेद के कारण भाई-बहनों में अनबन हो जाती है।

दूर रहने वाले भाई-बहन जब मिलने आते हैं और डिमेंशिया से ग्रस्त माँ या पिता को देखते हैं, तो स्थिति के बारे में उनका नजरिया साथ रहने वाले भाई-बहनों से अकसर फर्क होता है।

मिलने के लिए आये हुए भाई-बहन जो देखते हैं उससे उन्हें लगता है कि माँ-बाप तो ठीक हैं, वे बात ठीक कर पा रहे हैं, और सक्रिय भी हैं। उन्हें लगता है कि साथ रहने वालों ने जो कहा था, वह बढ़ा-चढ़ा कर कहा था। मिलने पर माँ बाप साथ रहने वालों की शिकायत भी करते हैं, कि उन्हें ठीक खाना नहीं दिया जा रहा, उन्हें घूमने के लिए नहीं ले जाया जाता, उन्हें बाथरूम जाने की भी घर में मनाई है। मिलने वाले सोचते हैं कि माँ-बाप तो ठीक लग रहे हैं, जरूर सच बोल रहे होंगे, और साथ रहने वाले भाई-बहन वाकई माँ-बाप को परेशान करते हैं या उनका निरादर कर रहे हैं।

साथ रहकर देखभाल करने वालों को डिमेंशिया वाले व्यक्ति के इस व्यवहार से चोट पहुंचती है। वे जानते हैं कि देखभाल ठीक हो रही है, और यह शिकायतें गलत हैं। जिस माँ-बाप की वे दिन रात सेवा करते हैं, जब वही उनकी शिकायत करते हैं, जब रोज रोज उन पर चिल्लाने वाले माँ-बाप बाहर वालों के सामने मिश्री की डली जैसे मीठे होते हैं, तो साथ रहकर देखभाल करने वालों को एक सदमा सा लगता है। और ऊपर से, जैसे ही मिलने वाले चले जाते हैं, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति और भी उत्तेजित होते है, और अधिक मुश्किल व्यवहार दिखाते हैं। इस सब से देखभाल करने वाले एकदम अकेला महसूस करते हैं। वे सोचते हैं कि उनकी कोई कद्र नहीं, उनके लिए किसी को कोई आदर या प्यार नहीं।

इस तरह की स्थिति अनेक प्रकार के डिमेंशिया में होती है। व्यक्ति में कई क्षमताओं में कमी होती है पर लोगों से मिलने जुलने के क्षमता में इतनी गिरावट नहीं होती, और कुछ देर के लिए बाहर वालों के सामने वे पहले जैसे पेश आ पाते हैं। यह मिलना जुलना उन्हें थका देता है, और मेहमान या दूर से आये रिश्तेदार के जाता ही व्यक्ति बिलकुल थके और चिड़चिड़ापन दिखाते हैं।

क्योंकि व्यक्ति का रवैया अलग अलग लोगों के सामने अलग होता है, इसलिए परिवार वालों का डिमेंशिया और देखभाल के प्रति नजरिया भी फर्क होता है।

साथ रहने वाले देखभाल कर्ता मदद नहीं मांग पाते।

साथ रहने वाले देखभाल कर्ता औरों से मदद मांगने में संकोच करते हैं। उन्हें लगता है कि दूसरे परिवार वाले सिर्फ गलतियाँ निकालते हैं या वे मदद नहीं करना चाहते। मदद मांगने में उन्हें लगता है कि वे हीन हो रहे हैं। वैसे भी कार्यभार की वजह से वे देखभाल में इतने व्यस्त होते हैं कि अन्य लोगों और परिवार वालों से अलग से हो जाते हैं। देखभाल कर्ता जिस दिन वे बहुत थके हों, बीमार हों, या अन्य कामों में खिंच रहे हों, वे तब भी मदद नहीं मांग पाते।

दूर रहने वाले परिवारजन व्यक्ति या साथ रह रहे देखभाल कर्ता से सम्पर्क नहीं रखते।

दूर रहने वाले यह सोचने लगते हैं कि उनकी कोई कद्र ही नहीं, उनके बोलने को दखलंदाजी समझा जा रहा है। वे सोचते हैं कि साथ रहकर देखभाल जो कर रहे हैं वे अपनी अकड़ में फंसे हुए हैं, और सबको दूर कर रहे हैं।

खर्च बांटे वाले परीवारजन अपने दिए गए पैसों के लिए हिसाब मांगते हैं और इस पर झगड़ा होता है या इससे देखभाल कर्ता हीन महसूस करते हैं।

अकसर दूर रहने वाले परिवारजन खर्च बांटने के लिए नियमित रूप से या किसी विशेष बड़े खर्च के लिए पैसे भेजते हैं, और फिर उम्मीद करते हैं कि पैसे कहाँ खर्च हुए, इसका उन्हें विस्तृत हिसाब मिलेगा। खर्च की सूची मिलने पर प्रश्न भी करते हैं, यह क्या था, क्या यह वस्तु/ सेवा इससे सस्ती नहीं मिल सकती थी, इस खर्च की जरूरत थी क्या? उन्हें लगता है कि देखभाल कर्ता जरूरत से ज़्यादा खुले हाथ से पैसे खर्च करते हैं क्योंकि पैसा उनका नहीं है।

देखभाल में कई तरह के खर्च होते हैं। इनमें से कुछ बाहर रहने वालों को अनावश्यक लग सकते हैं, और हो सकता है कि दूर से लगे कि इसका तो देखभाल से कुछ खास सम्बन्ध नहीं है, यह तो फिजूल खर्च है। देखभाल कर्ता भी इतने ध्यान से हर आईटम का हिसाब और रसीद नहीं रखते, हर खर्च की रसीद मिले, यह भी जरूरी नहीं। हिसाब लिखते हुए वे कुछ खर्च भूल भी जाते हैं। दूर बैठे किसी के सवालों और शक का सामना करना उन्हें बुरा लगता है और वे हीन महसूस करते हैं। उन्हें गुस्सा भी आता है, कि काम तो सब हम कर रहे हैं, तनाव भी सह रहे हैं, यह जवाबदेही क्यों?

पैसे/ ज़मीन-जायदाद के मामलों में नीयत पर शक

डिमेंशिया वाले व्यक्ति अकसर पैसे के मामले ठीक से नहीं संभाल पाते और देखभाल कर्ताओं को उनकी मदद करनी होती है। इस से सम्बंधित बातों पर परिवार वालों के बीच शक और फूट आम है; अन्य परिवार वालों की नीयत में खोट है, यह सोचना आम समस्या है। खास तौर से तब, जब परिवार का एक सदस्य मकान बेचना चाहे, या जब व्यक्ति किसी एक बच्चे के नाम कुछ पैसे या जायजाद कर दे।

कुछ केस में इस शक के माहौल में नौबत कानून-कचेरी तक की आ जाती है।

पुराने झगड़े देखभाल के रास्ते में आने लगते हैं।

हर परिवार में बचपन में भाई-बहनों में कुछ झगड़े होते हैं। ऐसे झगड़े वैसे तो लोग भूल जाते हैं क्योंकि अब वे अपनीअलग अलग गृहस्थियों में हैं, पर जब देखभाल के लिए फिर से मिल कर काम करना पड़ता है, तो वे सब पुराने झगड़े फिर से बड़े दिखने लगते हैं। जब भाई-बहनों के जीवन के स्तर में भी अंतर ज्यादा हो, एक अमीर हो और दूसरा मुश्किल से घर चला रहा हो, कोई रोज-रोज पार्टी वाली जिंदगी बिता रहा हो तो कोई कर्मठ गांधीवादी हो, तो इस तरह के अंतर भी भाई-बहन के बीच आने लगते हैं। इनकी वजह से खुल कर बात करने में, और मिल कर निर्णय लेने में दिक्कत होती है।

परिवार के किसी एक सदस्य पर दूसरों की तुलना कहीं ज़्यादा देखभाल का कार्यभार आ जाता है।

यह अकसर तब ज़्यादा होता है जब डिमेंशिया वाले व्यक्ति की देखभाल एक ही घर में हो रही होती है, और यह खास तौर से डिमेंशिया के अग्रिम/ अंतिम अवस्था में होता है। ऐसे में व्यक्ति एक ही घर में कई महीने/ कई साल रहते हैं, और देखभाल का काम भी बहुत अधिक होता है और तनाव और खर्च भी ज्यादा होता है। अगर ऐसा कार्यभार एक ही बच्चे को संभालना पड़े, तो बहुत मुश्किल हो सकता है।

बुज़ुर्ग देखभाल कर्ता/ व्यक्ति के पति/ पत्नी के साथ मिलजुल के निर्णय करने में दिक्कत।

कुछ स्थिति में मुख्य देखभाल कर्ता डिमेंशिया वाले व्यक्ति के पति/ पत्नी होते हैं, और बच्चे साथ में या पास में होते हैं पर देखभाल का रोजमर्रा का काम वृद्ध पति/ पत्नी संभाल रहे होते हैं/ अकसर व्यक्ति के पति/ पत्नी खुल कर देखभाल पर चर्चा नहीं करते। देखभाल में किस तरह की दिक्कतें हो रही हैं, या ये कितने थक रहे हैं, वे बच्चों को नहीं बताते। बच्चों को शायद पता ही न चले कि स्थिति कितनी बिगड़ रही है।

बच्चों को माँ-बाप से देखभाल के बारे में बात करने में संकोच होता है। उन्हें लगता है कि डिमेंशिया के बिगड़ने की बात को नकारात्मक समझा जाएगा। देखभाल करने वाले माँ बाप भी इन विषयों पर बात करने से साफ़ मना कर देते हैं।

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साथ मिल कर देखभाल की योजना बनाएँ

परिवार वाले मिल कर देखभाल की योजना बनाएं तो सबको देखभाल के बारे में अधिक जानकारी रहेगी और वे सब उसके साथ अधिक संतुष्ट रहेंगे। साथ रहने वाले देखभाल कर्ता अन्य परिवार वालों से मदद ले सकेंगे। दूसरे परिवार वालों को भी लगेगा कि वे भागीदार हैं। सब आपस में सुझाव और उपाय बाँट सकते हैं, और खर्च , कार्यभार, और जिम्मेदारी ज्यादा संतोषपूर्ण बांटी जायेगी।

मिल कर योजना बनाने के लिए यह जरूरी है कि सब परिवार वाले डिमेंशिया की सच्चाई को समझें, यह समझें कि इससे व्यक्ति पर क्या असर होगा, देखभाल में किस तरह के काम करने होंगे, और कार्यभार कितना होगा। साथ रहने वाले देखभाल कर्ता को ज़्यादा अच्छी जानकारी चाहिए, पर कुछ हद तक सभी परिवार वालों को डिमेंशिया और देखभाल समझना चाहिए।

योजना के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू पर नीचे चर्चा है।

(ध्यान रहे कि यदि महानारी जैसी स्थिति हो तो डिमेंशिया वाले व्यक्ति के लिए यात्रा से संक्रमण का खतरा ज्यादा होगा। साथ ही, बार-बार टेस्ट करना, मास्क पहनना या क्वारंटाइन में रखे जाने से व्यक्ति घबरा सकते हैं। यात्रा संबंधी प्रतिबन्ध भी बाधा बन सकते हैं। ऐसे में शायद व्यक्ति अपने बच्चों के बीच एक शहर से दूसरे शहर न जा सकें और देखभाल का काम अधिकाँश रूप में एक ही शहर में किसी एक बच्चे को ही करना होगा। )

यह निर्णय लें कि डिमेंशिया की किस अवस्था में कौन देखभाल करेगा। भारत में कई परिवार ऐसा करते हैं कि माँ-बाप कुछ महीने एक बच्चे के साथ रहें, और फिर कुछ महीने किसी और के साथ। इस पर कुछ सोचने लायक बिंदु:

  • डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की भी कुछ अपनी पसंद नापसंद हो सकती है कि वे किसके साथ रहें, किस शहर में रहें, कहाँ ज़्यादा आराम से रहते हैं, इत्यादि। जिस हद तक हो सके, इसको ध्यान में रखना चाहिए।
  • डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के लिए एक घर से दूसरे घर जाना बहुत तकलीफ का काम हो सकता है। व्यक्ति को तो पहले की समय और स्थान का कन्फ्यूशन रहता है, और इस तरह घर बदलते रहना बहुत मुश्किल होता है। समय के साथ व्यक्ति के लिए इस तरह जगह जगह जाना काबिलीयत के बाहर हो जाएगा और फिर व्यक्ति को दूसरी जगह भेजना मुमकिन नहीं होगा।
  • घर में डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के रहने की व्यवस्था के लिए कई बदलाव करने होते हैं। घर को व्यक्ति के लिए सुरक्षित रखना होता है, और व्यक्ति की सहूलियत के लिए हैंड रेल, साइन वगैरह लगाने होते हैं, चीज़ों को हटाना होता हैं, वगैरह। अगर अटेंडेंट रख रहे हों, तो वे इंतजाम अलग है। घर में और लोग भी होंगे, बच्चों के इम्तहान होंगे,है छोटे बच्चों का रोना होगा, बड़ों की जरूरी ऑफिस पार्टी होंगी। घर में शायद पालतू जानवर हों। डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के लिए तो बहुत कुछ बदलना होगा, क्या परिवार के लोग इसके लिए तैयार हैं? घर छोटा हो तो शायद यह संभव भी न हो।
  • जब व्यक्ति अग्रिम/ अंतिम अवस्था में हो तो उन्हें एक घर/ शहर/ देश से दूसरी जगह ले जाना आसान नहीं रहेगा, और जिस घर में व्यक्ति उस वक्त हों, अकसर उसी घर में व्यक्ति के आखिर के महीने/ साल बीतेंगे। इस अवस्था में देखभाल में काम भी बहुत होता हैं, और तनाव भी, और देखभाल में कई मेडिकल काम भी होते हैं। योजना बनाते वक्त इस अवस्था में देखभाल कौन करेगा, इसका खास खयाल रखना चाहिए।

व्यक्ति को क्या 24×7 वाले केयर होम में रखने की जरूरत होगी, इस पर भी परिवार वालों को चर्चा करने और निर्णय लेने की जरूरत हो सकती है।

खर्च बाँटें। देखभाल कई सालों चलेगी और खर्च भी होता रहेगा, जैसे कि दवा पर, सहायक सेवाओं पर, घर में जरूरी बदलाव पर, और अन्य कई सम्बंधित पहलू पर। ऊपर से देखभाल करने वालों को नौकरी छोड़नी पड़ी, तो उस वजह से आमदनी कम होने की तकलीफ हो सकती है। परिवार वाले मिलकर देखें कि आपस में खर्च कैसे बाँट सकते हैं। जो परिवार वाले दूर रहते हैं, उनके लिए खर्च का ज़्यादा हिस्सा अपने ऊपर लेना उनके देखभाल में योगदान का एक संभव तरीका है।

family conflict over dementia end-of-life decision on tube feeding
कुछ निर्णयों से परिवार में फूट पड़ सकती है।

मेडिकल और नर्सिंग संबंधी पहलू के बारे में निर्णय लें। अलग अलग परिवार वालों की, अच्छी देखभाल क्या है, इस पर अलग अलग राय होती है। आपस में विकल्पों के बारे में सोचें और तय करें कि देखभाल कैसे करेंगे, और कैसे नहीं, वरना इस पर झगड़ा या मन-मुटाव आम है।

अग्रिम/ अंतिम अवस्था की देखभाल से सम्बंधित निर्णयों पर खास ध्यान दें, खासकर उन पहलुओं पर जो ज़िन्दगी के अंतिम चरण से सम्बंधित होते हैं। (End-of-life care discussions) इस अवस्था में यह सोचना होता है कि इलाज करने से व्यक्ति को फायदा होगा या तकलीफ होगी। परिवार वालों को आपस में सोचना चाहिए कि इस अवस्था में उनका उद्देश्य क्या होगा – व्यक्ति को हर हाल में जीवित रखना, या व्यक्ति के आराम और शान्ति को जयादा अहमियत देना। सोचें: खाने की नली डलवाएं या नहीं? ऑपरेशन करवाएं या नहीं? स्ट्रोंग दवाई दें या नहीं? अकसर भाई-बहन की अलग अलग राय होती है, इसलिए पहले से सोच कर रखने से तनाव कुछ कम करा जा सकता है।

देखभाल संबंधी पेचीदा निर्णयों में एक है कि क्या व्यक्ति को घर के बजाए किसी केयर होम में रखा जाए।

व्यक्ति के पैसे से सम्बंधित, उनके टैक्स और इन्वेस्टमेंट और रुपये-जायदाद पर मिल कर निर्णय लें। हो सकता है व्यक्ति के नाम पर पैसे, जायदाद हो, और व्यक्ति पर सही टैक्स जमा करने की और अन्य पैसे और टैक्स संबंधी जिम्मेदारी हो। डिमेंशिया के कारण व्यक्ति की यह सब काम करने की क्षमता कम हो जाती है, इसलिए ऐसे मामले संभालने का काम बच्चों पर आ सकता है। भाई-बहनों को सोचना होगा कि यह काम कौन करेगा, और कोई निर्णय लेना हो तो किस आधार पर लिया जाएगा। यह आपस में तय करना बहुत जरूरी है, क्योंकि कई परिवारों में इस पर मतभेद और शक उन के बीच फूट पड़ने का एक प्रमुख कारण है।

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साथ रहने वाले देखभाल कर्ता के लिए सुझाव।

अगर आप साथ रह रहे देखभाल कर्ता हैं तो शायद आप अपने आप को थका और मायूस पाएँ, सोचें और कोई देखभाल के बारे में चिंतित नहीं है। शायद आप मदद मांगने में संकोच करें, और नतीजन और थके हुए रहें।

आप शायद यह तो चाहते हैं कि परिवार के बाकी लोग भी कार्यभार और जिम्मेदारी बाँटें, पर यह कैसे हो सकता है, यह नहीं सोच पा रहे हों। कुछ सुझाव देखें।

दूर रहने वाले परिवारजनों के नज़रिए और डिमेंशिया/ देखभाल के अज्ञान के प्रति अपना नजरिया बदलें। आपसी अविश्वास और अप्रसन्नता का एक कारण यह है कि आप को लगता है कि दूसरे परिवार वाले आपकी स्थिति और कठिनाइयाँ समझते हुए भी आपकी मदद नहीं कर रहे, उल्टा आपकी निंदा कर रहे हैं या गलतियाँ निकल रहे हैं। यह समझिए के शायद उनकी डिमेंशिया और देखभाल की समझ अधूरी या गलत है, और यह भी जानिए कि डिमेंशिया देखभाल लंबा सफर है और आपको आज नहीं तो कल उनके सहारे की जरूरत पड़ेगी। कुछ ख्याल:

  • दूर रहने के कारण मेरे भाई-बहन पापा की देखभाल नहीं कर पा रहे तो क्या हुआ, शायद वे पापा के बारे में चिंतित हों। मुझे उनकी नीयत पर शक नहीं करना चाहिए, मान लो मैं गलत हूँ, तो?
  • वो यहाँ नहीं हैं उसके लिए दिन रात उन्हें दोष देने से तो मुझे कोई फायदा नहीं होगा।
  • पापा की हालत तो बिगड़ती जायेगी, और मैं अकेले को पूरा काम नहीं संभाल पाऊंगा। उनकी सहायता तो चाहियेगी, अभी से रिश्ता बिगाड़ कर रखा तो आगे क्या होगा!
  • मेरे भाई-बहन आजकल साथ रहकर देखभाल नहीं कर रहे इसका यह मतलब नहीं कि वे देखभाल कर ही नहीं पायेंगे या उन्हें देखभाल को लेकर कोई चिंता ही नहीं।
  • मुझे भी तो देखभाल का काम समझने में टाइम लगा था, और मैं तो यहाँ देखभाल कर रहा हूँ, तब भी मुझे समझने में टाइम लगा। वे तो दूर बैठे हैं, नहीं समझ पा रहे तो इसमें हैरानी की क्या बात है! मुझे उनके अज्ञान से इतना दुखी नहीं होना चाहिए।
  • उनके सुझाव सुनने में हर्ज क्या है। क्या पता कोई एक दो बात काम की निकल आये। इस स्थिति में जो भी काम का मिले, सो अच्छा।
  • वो रोज रोज देखभाल नहीं कर रहे, शायद वे ताजे दिमाग से सोच कर कुछ अच्छा आईडिया दे पायेंगे, उनकी बात सुन लेनी चाहिए।
  • अगर वे देखभाल नहीं भी कर सकते, तब भी वे कुछ तो मदद कर सकते हैं। जो वे कर सकते हैं, मुझे उसके बारे में सोचना चाहिए और उनकी मदद लेनी चाहिए। जो वे नहीं करना चाहते, या नहीं कर सकते, उसके बारे में सोचकर मैं अपना मूड क्यों खराब करूँ!
  • बाद में, जब पापा बिस्तर पर पड़ जायेंगे तब तो देखभाल में कई निर्णय लेने पड़ेंगे। फीडिंग ट्यूब के बारे में, एंटीबायोटिक के बारे में, अस्पताल में रखें या नहीं, उसके बारे में, वेंटिलेटर पर डालें या नहीं, उसके बारे में। अगर मैंने अभी से भाई-बहनों से बातचीत बंद होगी, तो तब हम इन सब पर कैसे डिस्कस करेंगे?
  • अगर वे सही स्थिति समझेंगे, तो अगर मुझे कुछ हो गया, या मुझे विराम चाहियेगा, तो वे ठीक से देखभाल का काम अपने ऊपर ले लायेंगे।

परिवार वालों को डिमेंशिया समझाने के लिए और मिल कर देखभाल योजना बनाने के लिए खास कोशिश करें। डिमेंशिया समझाने में लगे टाइम को व्यर्थ न समझें। यह समझें कि यह तो परिवार के साथ मिलना जुलना है। धैर्य रखें। याद रहे, डिमेंशिया की सच्चाई समझने में टाइम लगता है। अगर लगे कि वे डिमेंशिया को या देखभाल को नहीं समझते, तो उन्हें ऐसी किताबें, वीडियो, और लिंक दें जो अधिकृत स्रोतों से हों, ताकि वे उनपर विश्वास कर पाएँ। आपबीती और किस्से सुनाएँ। अन्य जान पहचान वालों से मिलवाएं जो डिमेंशिया समझते हैं, और उन्हें समझा पायेंगे।

सब परिवारजन एकत्रित होकर देखभाल संबंधी निर्णय पर चर्चा करें, इसके लिए पहल करें। ऊपर के सेक्शन में इस पर कुछ चर्चा है। याद रखें कि कुछ बातें बार बार बताने पर ही समझ आती हैं। हर बार की चर्चा के बाद, अन्य परिवार वाले ज़्यादा सोच पायेंगे कि देखभाल में क्या क्या काम होता है, और किस किस तरह की दिक्कतें आ सकती हैं। वे यह सोचना शुरू करेंगे कि इस देखभाल का असर आपकी और उनकी जिंदगी के किन किन पहलुओं पर पड़ सकता है, जैसे कि नौकरी, बचत, घर कहाँ लें, इत्यादि। काम और खर्च बांटना होगा, और यह कैसे हो सकता है, वे सोचना शुरू कर पायेंगे।

अपने भाई-बहनों को व्यक्ति की, और देखभाल की वास्तविक स्थिति बताते रहें। सम्पर्क बरकरार रखें, और नियमित रूप से जानकारी देते रहें। उतर चढ़ाव का अंदाज़ा दें, ताकि उन्हें इल्म रहे कि देखभाल में अब क्या क्या करना पड़ रहा है, और उन्हें यह न लगे कि उन्हें तो मालूम ही नहीं था कि स्थिति खराब हो रही है। नियमित सम्पर्क और जानकारी से विश्वास भी बना रहता है।

जो अपडेट दें वो न तो बहुत लंबा हो न बहुत छोटा। उतने डीटेल दें जिनसे सही अंदाज़ा पड़े, पर इतना ज़्यादा विस्तार से न बताएं कि सुनने वाला परेशान हो। देखभाल संबंधी समस्याएँ भी बताएं। अपनी प्रॉब्लम छुपाएँ नहीं। पर कोई भी बात बढ़ा चढ़ा कर न बताएं। ऐसा न लगे कि आप निरंतर शिकायत ही कर रहे हैं।

परिवार वालों के कमेन्ट और सुझाव सुनें। अगर वे अच्छा सुझाव दें, तो उनको धन्यवाद दें। यह न सोचें कि यह तो मुझे खुद सोचना चाहिए था। अगर उनका सुझाव उपयोगी नहीं है या असाध्य है, तो उनके साथ बात करें कि उस सुझाव में क्या उपयोगी है, क्या नहीं। सुझावों को निंदा या दोष देने का तरीका न समझें।

परिवार वालों से बात करें तो सिर्फ डिमेंशिया की ही बात न करें। उनके बारे में, उनके काम और सेहत और बच्चों के बारे में पूछें। हो सकता है उनकी जिंदगी में कुछ दिक्कतें हैं जो वे आपके साथ नहीं बाँट रहे, पर जिनकी वजह से वे आपसे कम मिलजुल रहे हैं और मदद नहीं कर रहे। हो सकता है उन्हें भी आपके सुझावों की जरूरत हो। आपस के रिश्ते सिर्फ डिमेंशिया के इर्द गिर्द न रखें।

जब व्यक्ति के डिमेंशिया की देखभाल पर आप सब ने मिल कर योजना बनायी थी, उसके बाद भी देखभाल पर चर्चा होनी चाहिए। इसके लिए पहल करें, औरों को याद दिलाएं कि स्थिति बदल रही है, फिर से चर्चा की जरूरत है।

यह भी ध्यान रखें कि जब आप डिमेंशिया देखभाल पर हाल की स्थिति के बारे में बात करते हैं, तो क्या अन्य परिवार वाले आपकी बातें समझते है और क्या उन्हें विश्वास हो रहा है या नहीं। अगर बातचीत में, आपसी विश्वास में दरार पड़ती नज़र आये तो तुरंत विस्तार से बताएं, स्पष्टीकरण करें, रिश्तों में विश्वास फिर से कायम करने की कोशिश करें। आपको कुछ बुरा लगे, तो उन्हें (आदरपूर्ण तरीके से) बताएं, और उन्हें भी मौका दें कि वे अपने सवाल पूछ सकें। अपनी तरफ से कोशिश करें कि सकारात्मक सम्पर्क बना रहे, और बिना बात परिवार में फूट न पड़े।

परिवार वालों से सम्बन्ध में मेहनत लगती है, अगर बार बार तिरस्कार या निराशा होती रहे, तो प्रयत्न कब बंद करना चाहिए इस पर सतर्क रहें। आप पहले ही देखभाल और अन्य कामों में व्यस्त हैं, तनाव से भी झेल रहे हैं। जरूरी निर्णय भी ले रहे हैं। ऊपर से परिवार वालों को सूचित करना और उनके साथ सकारात्मक सम्पर्क भी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। अगर प्रयत्न के बाद भी दूसरे परिवार वाले बार बार निंदा करें, गल्तियाँ निकालें, मदद करने से इनकार करें, तो यह सोचिये कि आप किस हद तक सम्पर्क बनाने की कोशिश करते रहेंगे। अन्य जान-पहचान वालों से बात करें, परिवार में दरार भरने की कोशिश करें, पर अगर उससे भी काम न बने, तो शायद आप इसी निर्णय पर पहुंचें कि आप अपना ध्यान सिर्फ देखभाल और अपनी अन्य जिम्मेदारियों पर रखेंगे। ऐसी स्थिति में नकारात्मक परिवारजनों से सम्बन्ध बनाए रखने पर टाइम बिताना व्यर्थ है।

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दूर रहने वाले परिवार जनों के लिए सुझाव।

अगर आप दूर रहते हैं, तो स्थिति के बारे में जानकारी पाना या अनुमान लगाना मुश्किल हो सकता है, और शायद आप सोचें कि आपको नजरअंदाज करा जा रहा है और देखभाल के बारे में आप शायद खुश न हों। आप शायद ताल्लुक और भी कम कर देने की सोचें।

आप शायद देखभाल का काम और जिम्मेदारी बांटना चाहते हों, पर यह नहीं सोच पा रहे हों कि यह करें तो कैसे करें। कुछ सुझाव:

देखभाल की स्थिति को, और मुख्य देखभाल कर्ता की बातों को समझने का अपना नजरिया बदलें। देखभाल संबंधी आपका असंतोष और अविश्वास शायद इसलिए हो क्योंकि आपने खुद दिन-रात की देखभाल उन हालत में नहीं संभाली हैं जिनमें मुख्य देखभाल कर्ता अब संभाल रहे हैं। आपको लगता है कि व्यक्ति की हालत को वे बढ़ा चढ़ा कर बता रहे हैं, और बेकार में शिकायत कर रहे हैं या नकारात्मक हैं। पर आप तो व्यक्ति के साथ नहीं रह रहे, इसलिए आपका अनुभव अधूरा है, और उस परिस्थिति में नहीं है। दिन रात 24 घंटे हफ्ते के सातों दिन देखभाल करना एक बात है, कुछ घंटे पापा के साथ गपशप करना दूसरी बात है। कुछ साल पहले की बात और है, हो सकता है अब स्थिति बिगड़ गयी है। सोचिये: मान लीजिए देखभाल कर्ता जो कह रहे हैं, वह सच है, फिर आपका क्या नजरिया होगा?

परिवार में देखभाल पर चर्चा के वक्त सकारात्मक रवैया अपनाइये, और उचित, सोचे-हुए सुझाव दीजिए। मीटिंग के लिए तैयार हो कर जाइए। डिमेंशिया पर जानकारी प्राप्त कीजिये। यह समझने की कोशिश करिये कि डिमेंशिया का व्यक्ति पर किस प्रकार असर हो सकता है, और आगे क्या उम्मीद करी जा सकती है। देखभाल में क्या क्या शामिल है, और किस प्रकार की चुनौतियाँ होती हैं। एक-दो छोटी पत्रिकाओं से स्थिति का अंदाज़ा नहीं पड़ेगा। किताबें पढ़िए, वीडियो देखिये, अन्य देखभाल करने वालों से खुल कर बात कीजिये। शांत होकर सोचने की कोशिश करिये। भारत में डिमेंशिया और देखभाल की स्थिति की क्या वास्तविकता है, इस पर जानकारी प्राप्त कीजिये। फिर आप उचित, कारगर योगदान कर पायेंगे, और सुझाव दे पायेंगे।

काम और खर्च बांटने के उपाय सोचिये। शायद आप देखभाल के काम में हाथ बाँट पाएँ। हो सकता है व्यक्ति कुछ समय आप के साथ रह पाएँ ताकि आप अपनी बारी ले पाएँ। या आप उस घर में कुछ दिन रहें जहाँ देखभाल हो रही है, और कार्यभार संभाल लें जिससे मुख्य देखभाल कर्ता कुछ दिन छुट्टी ले पाएँ। या आप अन्य तरीकों से सपोर्ट दें, जैसे कि वे काम संभालना जो देखभाल कर्ता अपने देखभाल के कार्यभार के कारण नहीं कर पा रहे। या आप खर्च के ज्यादा बड़े अंश की जिम्मेदारी लें।

साथ रह रहे देखभाल कर्ता से सम्पर्क बनाए रखिये और मदद और सुझाव देते रहिये। आपकी भागीदारी सिर्फ योजना बनाने तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। साथ रह रहे देखभाल कर्ता से सम्पर्क बनाए रखने में पहल करें। देखते रहें कि उन्हें और मदद की जरूरत तो नहीं? वे शायद खुद मदद मांगने में संकोच करें। उनके तनाव के स्तर की ओर भी सतर्क रहिये, और सोचिये आप और क्या कर सकते हैं। आप भावनात्मक सपोर्ट भी दे सकते हैं, ताकि जब भी वो अकेला महसूस करें या दुखी हों, उन्हें मालूम हो कि वो फोन उठा कर आप से तो दिल खोल कर बात कर ही सकते हैं।

खार तौर से आपसी गलतफहमी और अविश्वास न होने दें–-कुछ गड़बड़ है, इसका अंदेशा मिलते ही स्पष्टीकरण कर दीजिए ताकि रिश्ते में कोई दरार न पड़े।

जब देखभाल कर्ता बात कर रहे हों, या आप ही स्थिति के बारे में सोच रहे हों, आपको कुछ सुझाव/ कमेन्ट सूझेंगे। इनको व्यक्त करते हुए ध्यान रखिये कि आप सही सकारात्मक और स्नेहपूर्ण रवैया अपनाएँ। ऐसा न लगे कि आप सुझाव के बहाने देखभाल कर्ता के काम में खोट निकाल रहे हैं या उनकी निंदा कर रहे हैं। और मौके पर देखभाल करने वालों के काम की सराहना करना न भूले, उनके काम के महत्त्व को पहचानें और स्वीकारें और जितना स्वाभाविक हो, उतनी प्रशंसा करना न भूलें। दोष देंगे, गलतियाँ निकालेंगे, तो देखभाल कर्ता का तनाव बढ़ेगा, और के सम्पर्क भी तोड़ सकते हैं, जिससे स्थिति और बिगड़ेगी।

अकसर रोज के देखभाल में व्यस्त देखभाल कर्ता यह नोटिस नहीं करते कि अब टाइम आ गया है कि परिवार वाले फिर से मिल कर स्थिति का जायजा ले और नए निर्णय लें। आप भी स्थिति के बारे में सतर्क रहिये, और यदि पूरे परिवार के मिलजुल के कुछ निर्णय लेबल का टाइम है, तो इस में पहल लीजिए।

यदि आपको शक है कि डिमेंशिया व्यक्ति की उपेक्षा हो रही है या उन्हें तंग करा जा रहा है, तो अधिक जानकारी प्राप्त करें। हो सकता है आपको यह खयाल किसी के कुछ कहने से आया हो, पर आपकी समझ अधूरी हो। यह भी हो सकता है कि डिमेंशिया वाले व्यक्ति ने कंफ्यूशन में भ्रमित होकर कुछ गलत कहा हो। कुछ यकीन करने से पहले अधिक जानकारी प्राप्त करें। देखभाल के काम को भी समझें, उसे आसान न सोचें। यह न सोचें कि आप कर रहे होते तो सब ठीक ठाक होता। दूर से स्थिति हमेशा ज़्यादा आसान लगती है।

अगर अधिक जानकारी प्राप्त करने के बाद भी आप को लगता है कि सचमुच साथ रहने वाले देखभाल कर्ता व्यक्ति की देखभाल ठीक से नहीं संभाल पा रहे हैं, तो उनसे झगड़ा न करें। उससे कोई फायदा नहीं होगा। बल्कि सोचें के समस्या हल करने कि लिए दूसरा क्या विकल्प हैं। जल्दबाजी में कुछ न करें। कोई प्रैक्टिकल और कारगर तरीका ढूंढ़ें।

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बच्चों को डिमेंशिया के बारे में बताएं और उन्हें देखभाल में शामिल करें

जब परिवार में किसी को डिमेंशिया होता है, तो परिवार के सभी सदस्यों पर असर पड़ता है। परन्तु परिवार वाले देखभाल संबंधी चर्चों में और निर्णय में अकसर बच्चों को शामिल नहीं करते। या तो वे सोचते हैं कि बच्चे खुद ही समझ जायेंगे और एडजस्ट कर लेंगे, या वे सोचते हैं कि वे बच्चों को व्यक्ति से दूर रखेंगे और बच्चों को कोई फर्क ही नहीं पड़ेगा।

छोटे बच्चे डिमेंशिया से ग्रस्त नाना/ नानी/ दादा/ दादी के व्यवहार के घबरा जाते हैं। जब पहले सामान्य और स्नेहशील व्यक्ति अब या तो कन्फ्यूजड लगे, या बात करना बंद कर दे या चिल्लाने लगे और मारने लगे, तो बच्चे डर जाते हैं कि क्या हो रहा है। जब व्यक्ति बात या प्रश्न दोहराता है, तो बच्चे उल्टा गुस्सा कर सकते हैं या नकल उतार सकते हैं, या सोच सकते हैं कि दादाजी तो पागल हो गए हैं। देखा-देखी, बच्चों का व्यवहार भी बदल सकता है, जो बहुत अफसोस की बात होगी।

यह जरूरी है कि बच्चे समझें कि क्या हो रहा है, और निर्णयों में उनकी राय भी ली जाए। अगर वे बारह-तेरह साल के या उससे बड़े हैं, तो वे स्थिति और भी अच्छी तरह समझ पायेंगे, और शायद व्यक्ति की देखभाल में सहायता भी कर पायेंगे। डिमेंशिया के कारण वे व्यक्ति से दूर होना नहीं शुरू करेंगे।

डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल में घर के वयस्कों का काफी टाइम जाता है, और वे बच्चों के साथ इतना समय नहीं बिता पाते, और बच्चे अगर ये ही न समझें कि इस देखभाल की क्यों जरूरत है, तो उन्हें चोट लगेगी। बाहर वालों की बातें भी सुननी पड़ती है, खासकर भारत में, क्योंकि लोग डिमेंशिया को नहीं समझते, और यह भी बच्चों पर भारी पड़ता है। यह सोचना गलत है कि बच्चों को बताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि बच्चे डिमेंशिया के असर से दूर नहीं हैं, यह उनकी जिंदगी का भी हिस्सा है। अगर आप बच्चों को नहीं बताएँगे, उनका आप पर से भरोसा उठ सकता है, कि घर वाले हम से जरूरी बातें छिपा रहे हैं, जरूर कुछ ज्यादा प्रॉब्लम है।

घर में अगर सब खुल के बात कर सकें तो डिमेंशिया और उसके प्रभाव को समझना ज्यादा आसान है। बच्चों को भी, जितना उचित हो, इनमें शामिल करें। उनसे अगर आप बात नहीं करेंगे, तो वे कैसे समझेंगे कि क्या हो रहा है, और उससे कैसे समझौता करेंगे! शायद वे कुछ और ही समझ कर डर जाएँ। सच्च पता हो तो वे डरेंगे नहीं, हो सकता है वे भी अपने बोलने का ढंग बदल पायेंगे, और व्यक्ति के साथ जितना हो सके, अच्छा समय बिता पाएंगे, और स्नेह दिखा पाएंगे।

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संपर्क बनाए रखना अत्यंत आवशक है

जैसे कि ऊपर की चर्चा से स्पष्ट है, आपस में व्यक्ति और देखभाल पर जानकारी बांटना, खुल कर बात करना और आगे के लिए मिल कर योजना बनाना बहुत जरूरी है। ऐसा करने से आपस में अनबन और झगड़े से बचा जा सकता है। सौभाग्य से टेक्नोलॉजी से आजकल संपर्क बनाए रखना आसान हो गया है। व्यक्ति से घर पर मिलने के अलावा, आप अलग रहते हों तब भी पूरी तरह संपर्क में और सूचित रह सकते हैं। कुछ तरीके:

  • वोइस या वीडिओ चैट, जैसे कि स्काइप, गूगल मीटिंग, ज़ूम, या अन्य ऐसे मंचों पर: अलग अलग जगहों से लोग इन के से बात कर सकते हैं। अलग रहने वाले लोग डिमेंशिया वाले व्यक्ति को देख भी सकते हैं, जिस से उन्हें वास्तविक स्थिति का पता रहे। देखभाल संबंधी पहलूओं और निर्णयों पर चर्चा हो सकती है।
  • कांफ्रेंस कॉल: इसके लिए भी कई मुफ्त वाली और शुल्क वाली सेवाएँ उपलब्ध हैं।
  • व्हाट्सअप ग्रुप: आप परिवार के सदस्यों का ग्रुप बना सकते हैं ताकि लोग इस पर पोस्ट कर सकें और सुविधा अनुसार दूसरों के पोस्ट पढ़ पायें और जानकारी और अपने विचार साझा कर पाएं।
  • अन्य: टेक्नोलॉजी द्वारा उपलब्ध अन्य तरीके भी हैं, जैसे प्राइवेट फेसबुक ग्रुप, मैसेंजर, ईमेल, ईमेल ग्रुप, आदि।

ऐसे तरीके चुनें जिन्हें परिवार के सभी सदस्य इस्तेमाल करना जानते हों और जो उनके लिए सहज और सुविधाजनक हो।

जब कोविड के कारण आवागमन पर प्रतिबन्ध लागू हुए थे, क्वारंटाइन लागू हुए थे, और इन्फेक्शन का जोखिम भी चिंताजनक हिने लगा था, तब परिवार वालों ने संपर्क बनाए रखने के लिए टेक्नोलॉजी का अधिक इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। अब परिवारों को डिजिटल द्वारा जुड़े रतहने की ज्यादा आदत है। कई परिवार विडियो कॉल के लिए उपलब्ध डिजिटल मंच का इस्तेमाल करते हैं – इनमें कई में मुफ्त में उपलब्ध सुविधाएं ऐसे इस्तेमाल के लिए काफी हैं। घर आना-जाना कम हो गया है, खासतौर पर यदि इस के लिए लम्बी यात्रा की जरूरत हो।

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इन्हें भी देखें.

हिंदी पृष्ठ, इसी साईट से:

इस विषय पर हमारे अन्य वेबसाइट से सामग्री: ये सब अंग्रेज़ी पृष्ठ भारत में देखभाल के संदर्भ में लिखे गए हैं।

कुछ उपयोगी इंटरव्यू:

इस पृष्ठ का नवीनतम अँग्रेज़ी संस्करण यहाँ उपलब्ध है: Coordinate caregiving between family members Opens in new window. अंग्रेज़ी पृष्ठ पर आपको विषय पर अधिक सामयिक जानकारी मिल सकती है। कई उपयोगी अँग्रेज़ी लेखों, संस्थाओं और फ़ोरम इत्यादि के लिंक भी हो सकते हैं।

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