लुई बॉडी डिमेंशिया : एक परिचय

लुई बॉडी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है जिसके बारे में जानकारी बहुत कम है और जो अकसर पहचाना नहीं जाता। नतीजन, परिवार वाले यह नहीं जान पाते कि आगे क्या क्या होगा, देखभाल की  तैयारी  कैसे करें, और किन बातों के प्रति सतर्क रहें। इस पृष्ठ पर:

लुई बॉडी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) क्या है (What is Lewy Body Dementia)|

lewy body in neuron
  • लुई बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body Dementia, LBD) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया (मनोभ्रंश) है*1 |
  • इस डिमेंशिया में हुई मस्तिष्क की हानि को दवाई से पलटा नहीं जा सकता (इर्रिवर्सिबल, irreversible)| व्यक्ति का मस्तिष्क फिर से सामान्य नहीं हो सकता|
  • मस्तिष्क की हानि समय के साथ बढ़ती जाती है (प्रगतिशील डिमेंशिया, प्रगामी डिमेंशिया, progressive dementia)|
  • अंतिम चरण में लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति सब कामों के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं|
  • इस डिमेंशिया की खास पहचान है कि मस्तिष्क के कुछ न्यूरान (neuron, कोशिका/ सेल) में “लुई बॉडी” नामक असामान्य गुच्छे  पाए जाते हैं| इस असामान्य संरचना के कारण ये सेल ठीक काम नहीं करते|
  • यह असामान्य संरचना मस्तिष्क के कई भागों में पाई जाती है| इन में अकसर वे क्षेत्र भी मौजूद हैं जो पार्किंसन रोग में प्रभावित होते हैं|
  • लुई बॉडी डिमेंशिया अन्य डिमेंशिया रोगों के साथ भी मौजूद हो सकता है, खासकर अल्ज़ाइमर के साथ (मिश्रित डिमेंशिया)|

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जानकारी की कमी (Information/ awareness about LBD is very low)|

  • आम लोगों ने डिमेंशिया या अल्ज़ाइमर का नाम तो शायद सुना हो, पर वे लुई बॉडी डिमेंशिया के बारे में नहीं जानते|
  • डॉक्टरों में भी लुई बॉडी डिमेंशिया के बारे में कम जानकारी है, और इस को पहचानने का, और इसका इलाज करने का बहुत कम अनुभव है।
  • कुछ मुख्य बिंदु:
    • “लुई बॉडी” संरचना (असामान्य प्रोटीन डिपॉजिट का गुच्छा) सबसे पहले 1912 में एक पार्किंसन के रोगी में पहचाना गया|
    • “लुई बॉडी” संरचना से संबंधित डिमेंशिया का रोग निदान सिर्फ 1990 के दशक से शुरू हुआ है| निदान प्रणाली और मापदंड पर अब भी चर्चा जारी है|
    • यह डिमेंशिया कितने लोगों को है, इस पर भी विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है|
    • विशेषज्ञों का कहना है इस से ग्रस्त कई व्यक्तियों को सही रोग निदान नहीं मिलता, और लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को कई बार पार्किंसन रोग का या अल्ज़ाइमर रोग का निदान दिया जाता है|

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लुई बॉडी डिमेंशिया के लक्षण (Symptoms of Lewy Body Dementia)|

  • लुई बॉडी डिमेंशिया में पाए जाने वाले कुछ विशिष्ट लक्षण:
    • सोच-विचार की क्षमताएं कम होती हैं और रोज-रोज बहुत बदलती हैं| इन क्षमताओं  में  स्पष्ट और बड़े-बड़े उतार-चढ़ाव नजर आते हैं |
    • विभ्रम, खास तौर से दृष्टि विभ्रम : ऐसी चीजें देखना जो मौजूद नहीं हैं (दृष्टि विभ्रम, चाक्षुष मतिभ्रम, visual hallucinations), ऐसी चीजें सुनना जो हैं नहीं (श्रवण मतिभ्रम, auditory hallucinations)। विभ्रम करीब 80% रोगियों में पाया जाता है, और अधिकतर यह दृष्टि विभ्रम होता है|
    • पार्किन्सन लक्षण: कंपन (ट्रेमर), जकड़न, पैर घसीटना, धीमापन और गति में बदलाव, झुक का चलना, बारीक काम में दिक्कत (जैसे कि लिखना, सुई पिरोना), चेहरे पर भाव की कमी|
    • नींद से जुड़ा विकार: नींद में ही सपनों पर अमल करना, जैसे कि सोते-सोते जोर से हँसना, चिल्लाना, हाथ-पैर मारना, बिस्तर से गिर जाना—यानि कि, REM नींद संबंधित व्यवहार विकार|
  • अन्य लक्षण: याददाश्त की समस्या, प्रॉब्लम सुलझाने में दिक्कत, तर्क करने में दिक्कत, निर्णय ठीक से न ले पाना, दूरी का अंदाज़ा न लगा पाना, वस्तुओं को पहचान न पाना, समय और जगह की पहचान न रहना, वगैरह| लुई बॉडी डिमेंशिया में याददाश्त की समस्या अल्ज़ाइमर जितनी नहीं देखी जाती|

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रोग निदान संबंधित शब्दावली (Terms used while diagnosing)|

रोग-निदान के समय डॉक्टर अलग-अलग नामों का इस्तेमाल करते है, जिससे कई परिवार वाले कन्फ्यूज हो सकते हैं। इस पर छोटा सा परिचय:

  • कुछ डॉक्टर इस डिमेंशिया को कभी “डिमेंशिया विद लुई बॉडीज” कहते हैं और कभी “लुई बॉडी डिमेंशिया” बुलाते हैं|
  • कुछ डॉक्टर एक निदान प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं जिस में वे लुई बॉडी डिमेंशिया नाम के अंतर्गत दो अलग रोग निदान पहचानते हैं| ये हैं पार्किंसंस वाला डिमेंशिया (Parkinsonian dementia) और डिमेंशिया विद लुई बॉडीज (Dementia with Lewy Bodies)|
diagnosis of LBD as parkinsonian dementia or dementia with lewy bodies

लुई बॉडी डिमेंशिया: कुछ अन्य तथ्य (Some other facts about Lewy Body Dementia)|

parkinson man
एक अनुमान के अनुसार पार्किंसंस वाले व्यक्तियों में से करीब 1/3 व्यक्तियों को आगे जा कर डिमेंशिया हो सकता है|

इस डिमेंशिया के होने की संभावना: पर अब तक उपलब्ध जानकारी :

  • इसकी संभावना उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है और इस के अधिकांश केस 50+ आयु के लोगों में हैं|
  • महिलाओं के मुकाबले यह पुरुषों में अधिक पाया जाता है|
  • पार्किंसंस वाले लोगों में इस की ज्यादा संभावना होती है|

इस डिमेंशिया की प्रगति: 

  • इस में  मस्तिष्क में हो रही हानि समय के साथ बढ़ती है| अंतिम अवस्था में व्यक्ति पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो सकता है|
  • यह 2 से 20 साल तक चल सकता  है| (प्रारंभिक अवस्था या  निदान से लेकर मृत्यु तक का फासला औसतन 5 से 7 साल का है|

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लुई बॉडी डिमेंशिया और उपचार (Lewy Body Dementia Treatment)|

medicine pill
  • वर्तमान में, दवा से लुई बॉडी डिमेंशिया न तो रुक सकता है, न ही उसकी प्रगति धीमी करी जा सकती हैं|
  • ऐसे में व्यक्ति को लक्षणों से राहत देना अहम हो जाता है, ताकि व्यक्ति को कम दिक्कतें हों|  इस के लिए दवाई, घर और वातावरण में बदलाव, और देखभाल और बातचीत के बेहतर तरीके इस्तेमाल करे जाते हैं|
  • कुछ दवाएं अल्ज़ाइमर या पार्किंसन रोग में कारगर हो सकती हैं पर लुई बॉडी केस में लक्षणों को बिगाड़ सकती हैं|
    • कई बार लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को अल्ज़ाइमर का गलत निदान मिल सकता है। इस स्थिति में डॉक्टर अल्ज़ाइमर की दवाई देंगे|
    • पार्किन्सन लक्षणों से राहत देने के लिए डॉक्टर पार्किंसन रोग में दी जाने वाली दवाई दे सकते हैं|
    • लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति में ऐसी कुछ दवाओं से नुकसान हो सकता है|
  • रोग निदान के बारे में थोड़ा सा भी शक हो तो डॉक्टर से बात करें|
  • सतर्क रहें कि दवा से नुकसान तो नहीं हो रहा। व्यवहार संबंधी दवा (ऐन्टी साइकाटिक, anti-psychotic) के दुष्प्रभाव के प्रति खास तौर से सतर्क रहें|

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लुई बॉडी डिमेंशिया: मुख्य बिंदु (Salient Points about Lewy Body Dementia)|

  • लुई बॉडी डिमेंशिया एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है। यह ठीक नहीं हो सकता और समय के साथ व्यक्ति की हालत खराब होती जाती है|
  • इस के बारे में जानकारी बहुत कम है|
  • इस की खास पहचान है मस्तिष्क की कोशिकाओं में “लुई बॉडी” नामक असामान्य संरचना की उपस्थिति|
  • लक्षण:
    • विशिष्ट लक्षण हैं  दृष्टि विभ्रम, सोचने-समझने की क्षमता कम होना, और इन का रोज-रोज बहुत भिन्न होना, पार्किंसन लक्षण, जैसे कंपन, जकड़न, धीमापन, पैर घसीटना, इत्यादि, और  नींद में व्यवहार संबंधी समस्याएँ|
    • अन्य डिमेंशिया लक्षण भी प्रकट होते हैं|
  • अभी इस को रोकने या धीमे करने के लिए कोई दवाई नहीं है| इलाज और देखभाल में व्यक्ति को लक्षणों से कुछ राहत देने की कोशिश रहती है|
  • सही रोग निदान मिलने में दिक्कत हो सकती हैं|
  • कुछ आम-तौर डिमेंशिया में इस्तेमाल होने वाली दवाओं से लुई बॉडी डिमेंशिया वाले लोगों को नुकसान हो सकता है। सतर्क रहना जरूरी हैं|
  • लुई बॉडी डिमेंशिया से संबंधित कुछ खास संसाधन हैं। अधिक जानने के लिए और वर्तमान जानकारी के अपडेट पाने के लिए इन से संपर्क करें। कुछ ऑनलाइन समुदाय भी हैं जहाँ लोग इस से संबंधित अनुभव और सुझाव बांटते हैं। आप यदि इस डिमेंशिया से ग्रस्त हैं, या इस से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, तो इन में अनुभव और सुझाव बाँट सकते हैं|

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(नोट्स: अधिक जानकारी के लिए लिंक, और चित्रों के लिए श्रेय)|
*1अन्य प्रमुख डिमेंशिया और उन पर प्रकाशित पोस्ट हैं : अल्ज़ाइमर रोग (सबसे आम डिमेंशिया रोग), संवहनी डिमेंशिया (वैस्कुलर डिमेंशिया), और फ्रंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया)।

और देखें:

लुई बॉडी डिमेंशिया और संबंधित विकारों के लिए कुछ शब्द/ वर्तनी:

  • लेवी बॉडीज़ , लेवी बॉडीज़ के साथ डिमेंशिया, लुई बाड़ी, लुई बाड़िज़, लुई बाड़िज़ वाला डिमेंशिया , लेवी बॉडीज़ वाला डिमेन्शिया, पार्किंसंस, पार्किंसन, पार्किन्सन|
  • Lewy Body Dementia (LBD), Dementia with Lewy Bodies (DLB), Parkinsonian Dementia, Parkinson’s Disease

चित्रों का श्रेय: कोशिका में लुई बॉडी का चित्र: Marvin 101 (Own work) [CC BY-SA 3.0] (Wikimedia Commons) पार्किन्सन के व्यक्ति का चित्र: By Sir_William_Richard_Gowers_Parkinson_Disease_sketch_1886.jpg: derivative work: Malyszkz [Public domain], via Wikimedia Commons.

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डिमेंशिया: निदान, उपचार, बचाव

किसी व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं, ये सिर्फ डॉक्टर बता सकते हैं, और वह भी सिर्फ उचित जांच के बाद. यदि आप किसी व्यक्ति में डिमेंशिया के लक्षण देखें, तो सही रोग-निदान (diagnosis) के लिए डॉक्टर से सलाह करें. डॉक्टर निर्धारित करेंगे कि व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं, और है तो किस रोग के कारण है, और उपचार क्या है.

इस पृष्ठ पर:

  • डिमेंशिया किसी को भी हो सकता है.
  • शुरू की अवस्था में ही निदान (early diagnosis) क्यों ज़रूरी है.
  • किस से सलाह करें>.
  • निदान (Diagnosis)
  • निदान-संबंधी समस्याएँ (Problems related to diagnosis)
  • निदान के बाद (After the diagnosis)
  • उपचार, शोध (Treatment and research)
  • बचाव (risk reduction)
  • आनुवंशिकी (यदि किसी करीबी रिश्तेदार को डिमेंशिया हो)(Genetics risk if close relatives have dementia)
  • इन्हें भी देखें.

डिमेंशिया किसी को भी हो सकता है

पूरे पोस्ट के लिए यहाँ क्लिक करें : डिमेंशिया: निदान, उपचार, बचाव

किसी व्यक्ति को डिमेंशिया (मनोभ्रंश) है या नहीं, ये सिर्फ डॉक्टर बता सकते हैं, और वह भी सिर्फ उचित जांच के बाद। यदि आप किसी व्यक्ति में डिमेंशिया के लक्षण देखें, तो सही रोग-निदान (diagnosis) के लिए डॉक्टर से सलाह करें। डॉक्टर निर्धारित करेंगे कि व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं, और है तो किस रोग के कारण है, और उपचार क्या है।

क्या आप डिमेंशिया की गंभीरता पहचानते हैं, और इस से बचने की लिए क्या करें, यह जानना चाहते हैं? देखें:डिमेंशिया/ अल्जाइमर से कैसे बचें: चित्रण और प्रस्तुति

इस पृष्ठ पर:

डिमेंशिया किसी को भी हो सकता है।

डिमेंशिया किसी को भी हो सकता है। यह जात-बिरादरी, भाषा, प्रान्त, मज़हब, अमीरी-गरीबी, सामाजिक स्तर, नर-मादा, किसी का भी भेद-भाव नहीं करता। इसकी संभावना उम्र के साथ बढ़ती ज़रूर है, और 65 साल के बाद ज्यादा है, पर कुछ लोगों को डिमेंशिया 30, 40, या 50 की उम्र में भी हो सकता है।

लोगों में एक आम धारणा है कि बुद्धिमान और सक्रिय लोगों को डिमेंशिया नहीं होगा। वे कहते हैं, “हम तो रोज शब्द-पहेली (crossword)/ सू-डो-कू (sudoku) करते हैं, हमें डिमेंशिया नहीं होगा”। पर यह धारणा गलत है। कई ऐसे व्यक्ति, जो जिन्दगी भर शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रहे हैं, वे आज डिमेंशिया से ग्रस्त हैं।

मीडिया में डिमेंशिया को अकसर बुजुर्गों के रोग के तौर से पेश किया जाता है, या भूलने की बीमारी कहा जाता है। यह गलत है, और इससे व्यक्ति और आस-पास वालों की लक्षणों के प्रति सतर्कता कम हो सकती है। डॉक्टर भी इस भ्रम में हो सकते हैं, जिससे निदान मिलने में भी देर हो सकती है।

भारत में, क्योंकि डिमेंशिया के प्रति जागरूकता कम है, हमें डिमेंशिया के लक्षणों के प्रति अधिक सतर्क रहना चाहिए ताकि हम शुरुआती अवस्था में ही इसे पहचान सकें और इसका निदान करवा सकें, और व्यक्ति की देखभाल के लिए अपने-आप को ढाल सकें।

कुछ जाने-माने डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति: अमरीकन प्रेसिडेंट रोनाल्ड रीगन, इंग्लेंड की पूर्व प्रधान मंत्री मार्गरेट थैचेर । और भारत से: तेजी बच्चन (अमिताभ बच्चन के माँ), जोर्ज फर्नांडीस, अटल बिहारी वाजपई, नानी पालखीवाला, उद्योगपति श्रीचंद परमानंद हिंदुजा, सीमा देव।

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शुरू की अवस्था में ही निदान (early diagnosis) क्यों ज़रूरी है।

डिमेंशिया के लक्षणों को शुरुआती चरण में न पहचान पाना एक आम समस्या है। याददाश्त में प्रॉब्लम हो भी तो इसे बढ़ती उम्र का नतीजा समझा जाता है, और व्यक्ति या परिवार डॉक्टर से सामान्य चेक-उप के वक्त इसका ज़िक्र तक नहीं करते। यह डर हो भी कि शायद समस्या गंभीर है, फिर भी डॉक्टर के पास जाने में संकोच होता है। अन्य समस्याओं में भी–जैसे कि कन्फ्यूशन, उदासीनता, चरित्र में बदलाव–लोग यह नहीं सोचते कि यह किसी बीमारी के कारण हैं, और डॉक्टर से सलाह नहीं करते। सोचते हैं, डॉक्टर कुछ नहीं कर पायेंगे।

प्रारंभिक अवस्था में निदान का सबसे बड़ा फायदा यह है कि कुछ रोग ऐसे हैं जिन में डिमेंशिया जैसे लक्षण होते हैं, पर इन रोगों का इलाज है (reversible causes), और इलाज करने से लक्षण दूर हो जाते हैं। यदि डॉक्टर के पास जाएँ, तो व्यक्ति की स्थिति फिर से सामान्य हो सकती है। ऐसे रिवर्सबल रोग के उदाहरण: थाइरोइड हार्मोन की कमी, अवसाद, तनाव, वगैरह। इस विषय पर विस्तृत चर्चा के लिए कुछ लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में हैं।

अधिकाँश डिमेंशिया इर्रिवर्सिब्ल है, यानि कि दवाई से रोग के कारण हुई हानि ठीक नहीं हो सकती। फिर भी, इन में से कुछ डिमेंशिया ऐसे हैं जिन में प्रारंभिक अवस्था में कुछ ऐसी दवाएं हैं जो रोग तो नहीं दूर कर सकतीं, पर प्रकट लक्षण कम कर सकती हैं, जिससे व्यक्ति को (और परिवार को) राहत मिल सकती है, और व्यक्ति का जीवन पहले से अधिक सामान्य हो सकता है। शायद याददाश्त थोड़ी बेहतर हो जाए, तो कुछ तो आराम मिले। निदान को टालते रहने से व्यक्ति और परिवार इस राहत से वंचित रहते हैं। अधिकांश ऐसी दवाएं प्रारंभिक अवस्थी में ज्यादा कारगर होती हैं। इसलिए डॉक्टर से सलाह कर लेनी चाहिए। निदान हो, तो व्यक्ति को कुछ तो राहत मिलने की संभावना है।

अगर डिमेंशिया किसी ऐसे रोग की वजह से है जो लाइलाज है, और जिसमे राहत भी संभव नहीं, फिर भी निदान होने से परिवार वाले स्थिति को समझ पायेंगे। वे आगे के बारे में सोच सकते हैं और देखभाल की योजना बना सकते हैं।

अकसर लक्षण प्रकट होने के बाद भी व्यक्ति और परिवार निदान करवाने की कोशिश नहीं करते।

याददाश्त में समस्या होना कई प्रकार के डिमेंशिया का एक शुरुआती लक्षण है। परन्तु कई लोग याददाश्त के कमज़ोर होने को उम्र-बढ़ने का सामान्य भाग समझते हैं, और इसलिए डॉक्टर से चेक-अप के दौरान इसका ज़िक्र नहीं करते और न ही सलाह लेते हैं। कुछ अन्य लोग, जिन्होंने डिमेंशिया के बारे में सुना है, वे डर के मारे किसी को अपनी समस्या के बारे में नहीं बताते क्योंकि डिमेंशिया की समाज में जानकारी अधूरी है, और कई लोग इसे मानसिक रोग या पागलपन कह देते हैं, और इसका होना शर्मनाक समझा जाता है। इसलिए, कई डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों का शुरुआती समय में निदान नहीं होता, और परिवार वाले व्यक्ति को डॉक्टर के पास तभी जाते हैं जब डिमेंशिया मध्य या अग्रिम अवस्था में होता है और इसके लक्षणों के कारण इतनी तकलीफ होने लगती है कि उन्हें नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता।

डिमेंशिया के अन्य प्रारंभिक लक्षण भी हो सकते हैं, जैसे कि व्यक्तित्व में बदलाव , बोलने में दिक्कत होना, सामाजिक तौर-तरीके भूल जाने, चलने या संतुलन में दिक्कत, लोगों से कटे कटे रहना, वगैरह। यह भी हो सकता है कि याददाश्त सही रहे, पर अन्य लक्षण नज़र आएँ। यदि व्यक्ति और परिवार वाले सतर्क हों, तो वे डॉक्टर से सलाह कर के सही निदान पा सकते हैं।

जब शुरू में व्यक्ति कठिनाई महसूस करते हैं, तो वे घबरा जाते हैं, या शर्म महसूस करते हैं, क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि उन्हें क्या हो रहा है। या तो वे औरों से बच कर रहने लगते हैं और सहमे सहमे रहते हैं, या बात बात पर गुस्सा करते हैं या शक करते हैं कि अन्य लोग ही कुछ कर रहे होंगे जिससे उन्हें प्रॉब्लम हो रही हैं। यह भी एक कारण है जिसकी वजह से व्यक्ति डॉक्टर के पास जाने की नहीं सोचते। डिमेंशिया की जागरूकता फैलेगी तो यह समस्या कम होगी।

जब व्यक्ति और परिवार यह नहीं जानते कि व्यक्ति की दिक्कतें किसी बीमारी के कारण हैं, तो वे रहने का, बातचीत करने का, और मदद करने का तरीका नहीं बदलते, और व्यक्ति से उम्मीद की जाती है कि वे एक सामान्य स्वस्थ बुज़ुर्ग की तरह अपने सब काम कर पाएंगे और बातों को समझ पाएंगे। जब यह नहीं होता, तो सभी परेशान हो जाते हैं, और परिवार का माहौल बिगड़ने लगता है। लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं, या दुखी रहते हैं। परन्तु यदि सही समय पर व्यक्ति का निदान हो जाए, तो परिवार वाले भी अपने तरीके बीमारी की समस्याओं के अनुरूप बदल पाते हैं और घर में तनाव कम हो जाता है। देखभाल के सही तरीके सीखना और उपयोग में लाना तभी हो सकता है जब परिवार समझे कि व्यक्ति को डिमेंशिया है, और फिर उस के लिए बोलचाल और अन्य तरीके बदले।

स्पष्ट है कि इस तरह निदान देर से करने से व्यक्ति और परिवार, दोनों को नुक्सान होता है। अच्छा यही होगा कि परिवार वाले सतर्क रहें, और अगर लक्षण देखें तो डॉक्टर से जांच करा लें। शुरू की अवस्था में निदान हो जाए तो सालों का तनाव बच सकता है।

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किस से सलाह करें।

अगर आप देखें कि कोई व्यक्ति डिमेंशिया जैसे लक्षण दिखा रहा है, तो आप फैमिली डॉक्टर या GP से सलाह कर सकते हैं। डॉक्टर कुछ जांच करेंगे, और यदि ज़रूरी हो, तो विशेषज्ञ के पास भेज देंगे। पर अफ़सोस, कई डॉक्टर भी डिमेंशिया के बारे में अधिक नहीं जानते और बढ़ती उम्र के लोगों की समस्या को यह कह कर टाल देते हैं कि उम्र बढ़ेगी तो यह सब तो होगा ही। कुछ तो हंस कर मजाक भी उड़ा देते हैं। या अगर व्यक्तित्व में बदलाव है तो उसे घर का अंदरूनी मामला कह देते हैं या मानसिक रोग का निदान दे देते हैं। कम उम्र में शुरू होने वाले डिमेंशिया को पहचानने में अकसर देर होती है, क्योंकि डॉक्टर भी इसी भ्रमित ख़याल में रहते हैं कि डिमेंशिया सिर्फ बुजुर्गों में पाया जाता है।

यदि आप डॉक्टर की बात से संतुष्ट न हों, या आप देखें कि डॉक्टर आपकी बात को गंभीरता से नहीं ले रहा, तो अन्य किसी डॉक्टर के पास जाएँ। ऐसे डॉक्टर को ढूँढें जिन्हें डिमेंशिया का अनुभव हो। आप सीधे विशेषज्ञ के पास भी जा सकते हैं।

स्पष्ट निदान पाने के लिए अनेक टेस्ट ज़रूरी हैं, और अकसर ये विशेषज्ञ ही करेंगे। विशेषज्ञ यह भी बताएंगे कि डिमेंशिया किस रोग के कारण है। आप किसी भी अस्पताल के न्यूरोलॉजी (neurology) विभाग के बाह्य रोगी विभाग (OPD) से सम्पर्क करके मिलने का समय ले सकते हैं। अन्य डिपार्टमेंट जहाँ आपके उचित विशेषज्ञ मिल सकते हैं: मनोचिकित्सा (साईकाइट्री, psychiatry), जीरियाट्रिक्स (geriatrics)। कुछ अस्पतालों में मेमोरी क्लिनिक भी होते हैं। अगर आपके शहर में ARDSI का चैप्टर है, तो आप उनसे भी सम्पर्क कर सकते हैं। कुछ संस्थाओं में भी मेमोरी क्लिनिक हो सकते हैं, जहाँ सलाह मिल सकती है।

कभी कभी लक्षण वाले व्यक्ति यह नहीं मानते कि उन्हें कोई प्रॉब्लम है, और डॉक्टर के पास जाने से साफ़ इंकार कर देते हैं। ऐसे में परिवार वाले डॉक्टर से मिल कर निवेदन कर सकते हैं कि डिमेंशिया की जांच उस व्यक्ति के सामान्य, नियमित चेक-अप में जोड़ दी जाए, और जब व्यक्ति को अन्य चेक-उप के लिए डॉक्टर के पास ले जाएँ, तब डॉक्टर डिमेंशिया के टेस्ट भी कर लें।

कोविड स्थिति के कारण अस्पतालों और डॉक्टरों तक पहुँचने में विभिन्न चुनौतियां हो सकती हैं और अस्पताल/ क्लिनिक में कोविड संक्रमण का जोखिम भी है। ऐसे में प्रारंभिक परामर्श के लिए टेलीमेडिसिन का उपयोग किया जा सकता है। स्थिति को बेहतर ढंग से समझाने के लिए वीडियो परामर्श का उपयोग करने का प्रयास करें, और हो सके तो समस्याओं को प्रदर्शित करने के लिए वीडियो क्लिप शामिल करें। टेलीकंसल्टेशन से अधिक अंदाजा पड़ पायेगा कि क्या डॉक्टर के पास जाना आवश्यक है, क्या कुछ परीक्षणों की आवश्यकता है, इत्यादि। टेलीमेडिसिन पर अधिक विस्तृत चर्चा यहां उपलब्ध है: डिमेंशिया देखभाल और कोविड 19 (COVID 19) (भाग 3): दवा खरीदना, टेस्ट करवाना, टेलीमेडिसिन से सलाह लेना, अस्पताल जाना

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निदान (Diagnosis)।

डिमेंशिया के निदान में कई कदम है, और अनेक टेस्ट होते हैं। सिर्फ एकाध सवाल पूछ कर डिमेंशिया का निदान नहीं किया जा सकता। डिमेंशिया का निदान सिर्फ डॉक्टर कर सकते हैं। यह एक क्लिनिकल (चिकित्सकीय) निदान है। यह निदान डॉक्टर व्यक्ति की सही प्रकार से जांच करने के बाद ही कर सकते हैं।

निदान करने के लिए डॉक्टर के लिए सबसे प्रमुख जानकारी है व्यक्ति का इतिहास और यह समझना कि व्यक्ति को किस किस प्रकार की समस्याएँ हैं और वे कौन सी दवाइयाँ ले रहे हैं, और क्या वे अपने काम कर पा रहे हैं या नहीं। परिवार वालों को सब फाइल और मेडिकल रिकॉर्ड पेश करने के लिए तैयार रहना चाहिए और लक्षण समझाने के लिए और उनके उदाहरण देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

डॉक्टर लक्षणों से पीड़ित व्यक्ति से कई सवाल पूछेंगे, जैसे कि तारीख क्या है, अपना नाम और पता बताएं, कुछ छोटे जोड़ने/ घटाने के सवाल। वे व्यक्ति से कुछ छोटे काम भी करायेंगे, जैसे कि कोई चित्र को कॉपी करना, चित्र पहचानना, एक सूची में दिए गए शब्द याद करके दोहराना। इन सबसे डॉक्टर उस व्यक्ति की संज्ञानात्मक बाधकता (cognitive impairment) का अंदाजा लगाएंगे। आपने जो लक्षण बताए हैं, और इस सवाल-जवाब का नतीजा देख कर, वे आगे के टेस्ट के बारे में तय करेंगे।

रक्त के टेस्ट करके डॉक्टर अन्य चीज़ों को देखेंगे, जैसे कि थाइरोइड हार्मोन (thyroid hormones) की कमी, विटामिन B12 की कमी, वगैरह।

दिमाग का स्कैन (MRI, PET scans, CT scans) करके डॉक्टर चेक करेंगे कि सामान्य दिमाग की तुलना में क्या इस व्यक्ति के दिमाग में कहीं कोई विकार है, या कुछ अधिक सिकुडन है, या अन्य कोई समस्या है जो लक्षणों का कारण हो सकती है। वे यह भी देखेंगे कि दिमाग के कौन से भाग सक्रिय हैं, और कौन से नहीं।

डॉक्टर यह समझने की कोशिश करेंगे कि प्रस्तुत लक्षण के क्या क्या कारण हो सकते हैं। यह कारण डिमेंशिया वाले रोग हैं, या अन्य रोग।

इन सब जांच के बाद ही डॉक्टर निदान करेंगे, और रोग के बारे में जानने पर, आगे क्या हो सकता है, परिवार वालों को यह अंदाजा मिलेगा।

परिवार वालों को डॉक्टर से अन्य संसाधन के बारे में भी पूछ लेना चाहिए, जैसे कि सपोर्ट ग्रुप, डिमेंशिया समर्थन संस्थाएं, सेवाएं देने वाली एजेंसी, कॉउसेलोर, इत्यादि। डॉक्टर का ध्यान अकसर सिर्फ दवाई और इलाज पर होता है, और वे बिना पूछे शायद यह जानकारी न दें।

कभी कभी निदान डिमेंशिया का नहीं, बल्कि मंद संज्ञानात्मक बाधकता (mild cognitive impairment) का होता है। यह डिमेंशिया नहीं है। मंद संज्ञानात्मक बाधकता से पीड़ित कुछ व्यक्ति सुधार दिखाते हैं या उसी स्तर पर रहते हैं, पर कुछ को डिमेंशिया हो सकता है। क्योंकि मंद संज्ञानात्मक बाधकता वाले व्यक्तियों में आगे बढ़कर डिमेंशिया होने की संभावना ज्यादा होती है, इसलिए इस निदान की स्थिति में अगला चेक-अप कब कराएं, यह डॉक्टर की सलाह से तय कर लेना चाहिए।

यह नोट करें कि जीन परीक्षा (genetic testing) निदान का भाग नहीं है, न ही कोई ऐसा खून का टेस्ट है जिससे अल्ज़ाइमर (Alzheimer’s Disease) का पक्का निदान हो सके। निदान के वक्त डॉक्टर यह देखते हैं कि क्या व्यक्ति को डिमेंशिया है (किसी भी रोग से होने वाला ऑल-कौज़ डिमेंशिया) (all-cause dementia, dementia that may be caused by anything) और यह भी देखने की कोशिश करते हैं कि डिमेंशिया का कौन सा कारक रोग है: अल्ज़ाइमर रोग (Alzheimer’s Disease), संवहनी मनोभ्रंश (नाड़ी-संबंधी, Vascular dementia), फ्रंटो-टेम्पोरल (Frontotemporal dementia), लुई बॉडी (Lewy Body Dementia), पार्किन्सन (Parkinson’s), इत्यादि)। कई बार डॉक्टर डिमेंशिया किस विशिष्ट रोग के कारण है, यह स्पष्ट रूप से नहीं बताते। यह बताना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि रोग की पक्की पहचान सिर्फ मरने के बाद मस्तिष्क खोल कर देखने से हो सकती है, उस से पहले का निदान मात्र एक अनुमान है।

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निदान-संबंधी समस्याएँ (Problems related to diagnosis)।

भारत में डिमेंशिया का सही और पूरा निदान मिलना इतना आसान नहीं है, क्योंकि डिमेंशिया के बारे में कई डॉक्टरों को भी ठीक से जानकारी नहीं है, और उनका डिमेंशिया के निदान का अनुभव भी कम है। ऊपर से डिमेंशिया का निदान किसी एक टेस्ट या स्कैन से पक्की तरह से तय नहीं किया जा सकता। व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं, और अगर है तो किस रोग के कारण है, और साथ में अन्य कौन कौन सी समस्याएं हैं, यह सब जान पाना पेचीदा काम है।

निदान में भूल-चूक कई प्रकार की हो सकती हैं। नीचे देखें कुछ उदाहरण (यह पूरी सूची नहीं है)।

  • लक्षण को अनदेखा करना। डिमेंशिया के आरम्भ में, जब लक्षण मंद होते हैं, तो आस-पास के लोग ही नहीं, डॉक्टर भी लक्षण यह कह कर टाल देते हैं कि यह तो बुढापे का सामान्य अंश है।
  • किसी (डिमेंशिया से भिन्न) रोग का निदान देना। यह खासकर तब होता है जब व्यक्ति की स्थिति और प्रारंभिक लक्षण आम स्थिति और लक्षण से अलग है। अधिकांश डिमेंशिया बड़ी उम्र में ही होता है, और शुरुआती चिह्न है याददाश्त की समस्या। इसलिए अगर डिमेंशिया 40-50 या उससे भी कम उम्र में हो, या जब शुरू के लक्षण उत्तेजना या अनुचित व्यवहार हों तो डॉक्टर शायद डिमेंशिया को न पहचान पाएँ। वे शायद कह दें कि समस्या मनोवैज्ञानिक है, या स्ट्रेस का प्रभाव है।
  • रोग ऐसा है जो इलाज से सुधर सकता है (reversible/ treatable cause), पर निदान किसी इर्रिवर्सबिल डिमेंशिया (irreversible dementia) का हो। डिमेंशिया के लक्षण कई कारण से पैदा हो सकते हैं। इन में ऐसे कारण भी हैं जो इलाज से ठीक हो सकते हैं, जैसे कि अवसाद (depression), थाइरोइड हार्मोन में कमी (hypothyroidism), कुछ प्रकार के संक्रमण (infections), और विटामिन B12 की कमी (vitamin B12 deficiency), वगैरह। जांच ठीक से न हो या पूरे न हो तो डॉक्टर गलत निदान दे सकते हैं, और इस गलत निदान के कारण व्यक्ति का सही इलाज नहीं होगा। व्यक्ति की समस्या दवाई से ठीक हो सकती थी, पर क्योंकि निदान गलत है, व्यक्ति को तकलीफ होती रहेगी।
  • किस इर्रिवर्सबिल डिमेंशिया (irreversible dementia) के कारण लक्षण हैं, इस पहचान में गलती। डिमेंशिया रोग कई तरह के हैं। डॉक्टर शायद यह तो पहचान पाएँ कि व्यक्ति के लक्षण का कारण कोई ऐसा रोग है जो इर्रिवर्सबिल (irreversible) है, पर इन में से कौन सा irreversible dementia है, यह गलत पहचानें। यह समस्या पैदा कर सकता है, क्योंकि कुछ ऐसी दवाइयाँ है जो एक प्रकार के डिमेंशिया रोग में मदद करती हैं, पर अन्य प्रकार के डिमेंशिया रोग में काम नहीं करतीं, बल्कि नुकसान भी कर सकती हैं। एक उदाहरण है लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को गलती से अल्ज़ाइमर रोग का निदान मिलना।
  • डिमेंशिया लक्षण कई रोगों के कारण हों, पर सिर्फ एक कारण पहचाना जाए। ऐसे में व्यक्ति का इलाज भी उसी पहचाने गए डिमेंशिया रोग के लिए करा जाएगा। हो सकता है कि अन्य रोग दवाई से सुधर सकते थे, जिससे लक्षण में सुधार हो सकता था, पर क्योंकि निदान पूरा नहीं है, व्यक्ति सही इलाज से वंचित रहेंगे। बढ़ती उम्र में अकसर लोगों को अनेक बीमारियां होती हैं। यह सोचना कि लक्षण सिर्फ एक ही कारण से हैं शायद गलत हो। समय के साथ, जब लक्षण बिगड़ते हैं, तब भी यह गलती हो सकती है। शायद लक्षण किसी अन्य रोग के कारण बिगड़ रहे हों पर ये रोग इसलिए न पहचाने जाएँ क्योंकि डॉक्टर और परिवार यह सोचते रहें कि बिगड़ती हालत पहले पहचाने गए रोग के ही कारण हैं।

व्यक्ति की जांच ठीक तरह से हो, और निदान पूरा और सही हो, इसके लिए परिवार वालों को सक्रिय रहना होगा। उन्हें डिमेंशिया के लक्षण और पैदा करने वाले रोगों के बारे में जानकारी होनी चाहिए, और जांच के समय सतर्क रहना चाहिए, और कुछ संदेह हो तो डॉक्टर से प्रश्न पूछने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। डॉक्टर के निदान करने के तरीके से, या निर्णय से संतोष न हो तो अन्य डॉक्टर से सलाह कर लेनी चाहिए। पर ध्यान रखें, निदान सिर्फ डॉक्टर से करवाएं, खुद न सोच लें कि यह तो डिमेंशिया ही है, और डिमेंशिया लाइलाज है तो डॉक्टर के पास जाने के कोई ज़रूरत नहीं।

निदान में दिक्कतें और गल्तियाँ किस प्रकार की हो सकती हैं, इस पर इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण पर अधिक विस्तार से चर्चा है: लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।

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निदान के बाद (After the diagnosis)।

डिमेंशिया का निदान व्यक्ति और परिवार को हिला कर रख देता है, पर सही परामर्श के और समर्थन के साथ, व्यक्ति और परिवार सामान्य जिंदगी बिताने की कोशिश कर सकते हैं। डिमेंशिया है, इसका मतलब यह नहीं कि व्यक्ति अब कुछ नहीं कर पाएंगे। सिर्फ करने के तरीके बदलेंगे औद कुछ सीमायें होंगी, जिन को समझने से व्यक्ति और परिवार अपनी जिंदगी उसके अनुरूप बदल सकते हैं। उचित जानकारी प्राप्त करके और परामर्श प्राप्त करके निदान के साथ समन्वय किया जा सकता है, और आगे की ज़िंदगी नियोजित करी जा सकती है। कुछ डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों ने अपनी ज़िंदगी के बारे में विस्तार से लिखा है, और कुछ ने निदान के प्रति अपनी प्रतिक्रिया का वर्णन भी करा है। निदान से समन्वय कैसे करें, इस पर कुछ पत्रिकाएँ भी हैं।

अकसर डॉक्टर परिवार के साथ निदान पर विस्तार से चर्चा नहीं कर पाते हैं। डिमेंशिया क्या है, आगे क्या-क्या हो सकता है, और देखभाल के लिए क्या करना होगा, परिवार को इस पर शायद जानकारी न दी जाए। अधिक जानकारी और सहायता कहाँ मिलेगी, यह भी शायद पता न चले।

क्योंकि डिमेंशिया का सफर लंबा और कठिन है, परिवारों को अधिक जानकारी और सहायता की जरूरत होगी। डिमेंशिया से जूझ रहे अन्य परिवारों से जुडने से, और साथ ही उचित काउन्सेलिंग से परिवार वाले स्थिति के लिए बेहतर तैयार हो सकते हैं, और व्यक्ति भी अधिक सक्रिय और संतोषजनक जीवन बिता पाएं, इस के लिए व्यक्ति को सहारा दे सकते हैं। निदान मिलने के बाद होने वाली घबराहट से बचा जा सकता है।

अधिक चर्चा के लिए इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण को देखें: लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।

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उपचार, शोध (Treatment and research)।

फिलहाल अधिकांश डिमेंशिया के रोग लाइलाज हैं, पर कुछ दवाइयां हैं जो लक्षणों में आराम पंहुच सकता है। इस विषय पर लिंक के लिए इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण को देखें: लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।

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डिमेंशिया/ अल्जाइमर से कैसे बचें: चित्रण और प्रस्तुति (Presentation on how to reduce your risk of dementia).

बचाव के तरीकों का एक सरल चित्रण देखने के लिए क्लिक करें: डिमेंशिया/ अल्जाइमर से कैसे बचें: चित्रण (Reduce the risk of dementia: infographic)

इस हिंदी प्रेजेंटेशन में देखिये डिमेंशिया किसे हो सकता है, इस के जोखिम कारक क्या हैं, और आप इस की संभावना कम करने के लिए क्या कर सकते हैं। यह प्रस्तुति अब तक के शोध पर आधारित है और इस में अनेक ऐसे कारगर उपाय हैं, जिन से डिमेंशिया की संभावना के साथ-साथ अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना भी कम होगी। यदि प्लेयर नीचे लोड न हो रहा हो तो यहाँ क्लिक करें: डिमेंशिया/ अल्ज़ाइमर से कैसे बचें? Opens in new window


इन विषयों पर अधिक चर्चा नीचे के सेक्शन में देखें
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डिमेंशिया से बचाव (risk reduction)।

वर्तमान जानकारी के अनुसार डिमेंशिया से पक्की तरह से बचे रहने का कोई तरीका नहीं है। परन्तु हम अपने जीवन में कुछ उचित बदलाव कर के डिमेंशिया होने की संभावना कम कर सकते हैं।

वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि अलग अलग कारकों का मस्तिष्क पर क्या असर होता है, और हम अपने मस्तिष्क को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं। एक सम्बन्ध जो अब तक स्पष्ट है वह है कि उम्र बढ़ने से डिमेंशिया की संभावना बढ़ती है। शोध के आधार से वैज्ञानिकों ने कुछ जोखिम कारक (रिस्क फैक्टर, risk factor) पहचाने हैं और उन का मानना है कि इन को कम करने से डिमेंशिया की संभावना भी कम होगी। बचाव शत-प्रतिशत नहीं हो सकता, पर संभावना कम जरूर हो सकती है।

    डिमेंशिया से संबंधित कारकों में एक कारक स्पष्ट है – बढ़ती उम्र। यानि कि, डिमेंशिया की संभावना उम्र बढ़ने के साथ अधिक होती है। पर अन्य भी कुछ आर्यक हैं जिन से शायद डिमेंशिया की संभावना बढ़े। जोखिम कारकों को दो श्रेणियों में बांटा जाता है: अपरिवर्तनीय जोखिम कारक, और परिवर्तनीय जोखिम कारक। अपरिवर्तनीय जोखिम कारक ऐसे कारक हैं जिन के बारे में हम कुछ नहीं कर सकते, हम इन को दूर नहीं कर सकते। उदाहरण: उम्र बढ़ना, परिवार में अन्य खून-के रिश्तेदारों को डिमेंशिया होना, हमारे जीन में ApoE4 अलील का होना, डाउन सिंड्रोम होना, इत्यादि। इस लिए डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि हम परिवर्तनीय कारकों पर ध्यान दें, और ऐसे बदलाव करें जिन से हमारी डिमेंशिया की संभावना कम हो।

    डॉक्टरों के अनुसार, स्वस्थ जीवन शैली अपनाने से हम अपनी डिमेंशिया की संभावना कम कर सकते हैं। हम क्या कर सकते हैं, यह समझने और याद रखने के लिए एक उपयोगी मंत्र है: “What is good for your heart is good for your brain”। जो कदम स्वस्थ हृदय के लिए फायदेमंद हैं, वे स्वस्थ दिमाग के लिए भी अच्छे हैं। इसका मतलब यह नहीं कि डिमेंशिया होगा ही नहीं, पर स्वस्थ हृदय के लिए अपनाई जीवन शैली से डिमेंशिया की संभावना कुछ हद तक कम होगी। कुछ प्रमुख उदाहरण:

    • धूम्रपान बंद करें।
    • अपने वज़न को नियंत्रित रखें, और पौष्टिक भोजन लें, अच्छी मात्रा में ताज़े फल और सब्जी खाएं। मोटापे से बचें। अपने डॉक्टर से मेडिटरेनीयन डाइट (भूमध्यसागरीय आहार ) और DASH डाइट के बारे में पूछें, और सलाह करें कि आपके लिए क्या उचित होगा। मद्यपान कम करें।
    • शरीर में पौष्टिक पदार्थों की कमी न होने दें (जैसे कि विटामिन बी-12)।
    • नियमित व्यायाम करें, शारीरिक रूप से सक्रीय रहें।
    • उचित कदम लेकर हृदय रोग की संभावना कम करें।
    • मानसिक रूप से सक्रिय रहें(जैसे कि नई चीज़ें सीखते रहें)।
    • मेल-जोल और दोस्तियां बनाए रखें, सामाजिक अलगाव न होने दें।
    • मधुमेह (डायबिटीज), उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), उच्च कोलेस्ट्रॉल, नाडी संबंधी समस्याएँ, इत्यादि रोगों के प्रति सतर्क रहे। इन से बचने की कोशिश करें, और यदि यह हों, तो इन्हें दवा और जीवन शैली के बदलाव से नियंत्रण में रखें।
    • अवसाद (डिप्रेशन) के प्रति सतर्क रहें, और इस से बचने के लिए उचित कदम लें।
    • July 2017 की एक रिपोर्ट में एक अन्य महत्वपूर्ण जोखिम कारक को पहचाना गया है: सुनने की शक्ति में कमी होना/ बहरापन। इस समस्या के प्रति सतर्क रहें, और डॉक्टर से सलाह करें।

    और हाँ, सर को चोट से बचाए रखें 🙂 सर पर गंभीर चोट से भी डिमेंशिया हो सकता है। ऐसे खेलों से बचें जिन में सर पर चोट लगने की संभावना अधिक है, वाहन में हेलमेट का प्रयोग करें, संतुलन बेहतर बनाएं और गिरने से बचें, इत्यादि।

    यह भी जानें कि कुछ ऐसी बीमारियाँ हैं जिन का डिमेंशिया के साथ सम्बन्ध है, और जिन के होने पर डिमेंशिया की संभावना ज्यादा होती है। एक उदाहरण है डाउन सिंड्रोम। पार्किन्सन रोग से ग्रस्त व्यक्तियों में भी आगे जाकर करीब एक-तिहाई (1/3) व्यक्तियों में डिमेंशिया हो सकता है। स्ट्रोक के बाद करीब 20% लोगों को छह महीने के अन्दर डिमेंशिया हो जाता है। अवसाद (डिप्रेशन) और डिमेंशिया में भी सम्बन्ध है, और ये दोनों अकसर साथ साथ पाए जाते हैं, हलाकि इन के बीच यह सम्बन्ध किस प्रकार का है, इस पर अभी रिसर्च चल रहा है।

    अन्य भी स्वास्थ्य-संबंधी समस्याएं हैं जिन से डिमेंशिया के लक्षण हो सकते है, और जिन के बारे में सतर्क रहना अच्छा होगा, जैसे कि थाइरोइड हॉर्मोन की कमी। ऊपर ऐसे कुछ विषयों पर चर्चा है।

    हाल में कुछ रिसर्च में पाया गया है कि कुछ संक्रमण (जैसे कि कोविड) का डिमेंशिया के साथ संबंध (कोरीलैशन) है, और यह मानना है कि शायद ऐसे संक्रमणों से डिमेंशिया का जोखिम बढ़ सकता है। जाहिर है, गों को (खासकर बुजुर्गों को) गंभीर संक्रमणों से बचे रहना बेहतर होगा, क्योंकि वैसे भी संक्रमित होने पर उनमें जटिलताओं की संभावना अधिक होती है।

    याद रखें, डिमेंशिया से बचने का कोई पक्का तरीका नहीं है। अखबारों में, पत्रिकाओं में, और अन्य मीडिया में हम कई बार सुनते हैं कि यदि आप फलां तरीका अपनाएँ तो डिमेंशिया नहीं होगा। यह दावा गलत है। हम सिर्फ अपनी जीवन शैली में बदलाव करके अपनी डिमेंशिया की संभावना कम कर सकते हैं, पर हमारी इस कोशिश के बावजूद हमें डिमेंशिया हो सकता है। यह सोचना भी गलत है कि जिन को डिमेंशिया है, वे लोग लापरवाह थे या अस्वस्थ और निष्क्रिय जीवन जी रहे थे।

    डिमेंशिया से बचाव के विषय पर देखें एक विडिओ जिस में इस विषय पर सरल, संक्षिप्त पर सम्पूर्ण तरह से चर्चा है। विडिओ में सब्टाइटल भी हैं। इसे आप यूट्यूब पर देख सकते : dementia se kaise bachen/ jeevan shaili badal kar dementia ka jokhim kam karen (reduce dementia risk) Opens in new window या नीचे दिए गए प्लेयर में देखें।

    डिमेंशिया की संभावना कम कैसे करें, और डिमेंशिया का किस कारक से कैसा सम्बन्ध है, इस विषय पर अधिक चर्चा के लिये इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण को देखें: लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।

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    आनुवंशिकी (यदि किसी करीबी रिश्तेदार को डिमेंशिया हो)(Genetics risk if close relatives have dementia).

    घर में नज़दीकी रिश्तेदार में डिमेंशिया देखने पर घबराहट हो सकती है कि क्या डिमेंशिया अनुवांशिक है? फिलहाल डिमेंशिया के अनेक रोगों की आनुवंशिकी समझने के लिए शोध (रिसर्च) जोरों से चल रहा है। इस विषय पर लिंक्स और कुछ चर्चा और रिपोर्ट देखें हमारे इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण पर। लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।

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    इन्हें भी देखें।

    हिंदी पृष्ठ, इसी साईट से:

    डिमेंशिया के लक्षण किन रोगों के कारण हो सकते हैं, इसके लिए देखें:डिमेंशिया किन रोगों के कारण होता है

    डिमेंशिया से सम्बंधित अन्य रोगों पर हिंदी में विस्तृत पृष्ट देखें:

    इस विषय पर हिंदी सामग्री, कुछ अन्य साईट पर: यह याद रखें कि इन में से कई लेख अन्य देश में रहने वालों के लिए बनाए गए हैं, और इनमें कई सेवाओं और सपोर्ट संबंधी बातें, कानूनी बातें, इत्यादि, भारत में लागू नहीं होंगी।

    इस पृष्ठ का नवीनतम अँग्रेज़ी संस्करण यहाँ उपलब्ध है: Diagnosis, Treatment, Prevention। अंग्रेज़ी पृष्ठ पर आपको विषय पर अधिक सामयिक जानकारी मिल सकती है। कई उपयोगी अँग्रेज़ी लेखों, संस्थाओं और फ़ोरम इत्यादि के लिंक भी हो सकते हैं। कुछ खास उन्नत और प्रासंगिक विषयों पर विस्तृत चर्चा भी हो सकती है। अन्य विडियो, लेखों और ब्लॉग के लिंक, और उपयोगी पुस्तकों के नाम भी हो सकते हैं। इस अँग्रेज़ी पृष्ठ पर डिमेंशिया से बचाव के लिए, और विभिन्न डिमेंशिया रोगों के निदान और उपचार के लिए अनेक उपयोगी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और अँग्रेज़ी वेबसाइट पर जानकारी है।

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    डिमेंशिया किन रोगों के कारण होता है

    डिमेंशिया (मनोभ्रंश) के लक्षण अनेक रोगों के कारण पैदा हो सकते हैं. कुछ लोग इन डिमेंशिया के कारणों (causes of dementia) को डिमेंशिया के प्रकार या डिमेंशिया के किस्म भी कहते हैं (types of dementia), या कभी कभी विशेष रोग के नाम की जगह, “डिमेंशिया” शब्द को रोग के नाम की तरह इस्तेमाल करते हैं. वास्तव में ऐसे अनेक रोग हैं जिनसे डिमेंशिया के लक्षण पैदा हो सकते हैं (लगभग 100). प्रमुख रोग हैं अल्ज़ाइमर (Alzheimer’s Disease), संवहनी मनोभ्रंश (नाड़ी-संबंधी डिमेंशिया, vascular dementia), फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया (fronto-temporal dementia, FTD), लुई बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body dementia, LBD), मिश्रित डिमेंशिया (mixed dementia), इत्यादि.

    अकसर लोग पूछते हैं कि डिमेंशिया और अल्ज़ाइमर में फ़र्क क्या है. अल्जाइमर एक ऐसा रोग है जिससे मस्तिष्क में हानि होती है, और डिमेंशिया के लक्षण होते हैं. यह डिमेंशिया का सबसे आम कारण है, पर डिमेंशिया अन्य रोगों के कारण भी हो सकता है. डिमेंशिया लक्षणों के समूह का नाम है, और अल्जाइमर एक ऐसा रोग है जिससे ये लक्षण हो सकते हैं.

    • डिमेंशिया और उसके लक्षण पैदा करने वाले रोगों के बारे में कुछ प्रमुख तथ्य.
    • डिमेंशिया के ठीक हो सकने वाले कारण (reversible causes)
    • डिमेंशिया के ठीक न हो सकने वाले कारण (irreversible causes)
    • इन्हें भी देखें

    पूरे पोस्ट के लिए यहाँ क्लिक करें : डिमेंशिया किन रोगों के कारण होता है

    डिमेंशिया (मनोभ्रंश) के लक्षण अनेक रोगों के कारण पैदा हो सकते हैं। कुछ लोग इन डिमेंशिया के कारणों (causes of dementia) को डिमेंशिया के प्रकार या डिमेंशिया के किस्म भी कहते हैं (types of dementia)। कभी कभी विशेष रोग के नाम की जगह, “डिमेंशिया” शब्द को रोग के नाम की तरह इस्तेमाल करते हैं। वास्तव में ऐसे अनेक रोग हैं जिनसे डिमेंशिया के लक्षण पैदा हो सकते हैं (लगभग 100)। प्रमुख रोग हैं अल्ज़ाइमर (Alzheimer’s Disease), संवहनी मनोभ्रंश (नाड़ी-संबंधी डिमेंशिया, vascular dementia), फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया (fronto-temporal dementia, FTD), लुई बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body dementia, LBD), मिश्रित डिमेंशिया (mixed dementia), इत्यादि।

    अकसर लोग पूछते हैं कि डिमेंशिया और अल्ज़ाइमर में फ़र्क क्या है। यह कन्फ़्युशन इसलिए भी अधिक है क्योंकि कई लेखों में डिमेंशिया और अल्ज़ाइमर शब्दों को अदल बदल कर इस्तेमाल करा जाता है। वास्तव में अल्जाइमर एक ऐसा रोग है जिससे मस्तिष्क में हानि होती है, और डिमेंशिया के लक्षण होते हैं। यह डिमेंशिया का सबसे आम कारण है, पर डिमेंशिया अन्य रोगों के कारण भी हो सकता है। डिमेंशिया लक्षणों के समूह का नाम है, और अल्जाइमर एक ऐसा रोग है जिससे ये लक्षण हो सकते हैं।

    इस पृष्ठ के सेक्शन:

    डिमेंशिया और उसके लक्षण पैदा करने वाले रोगों के बारे में कुछ प्रमुख तथ्य।

    • व्यक्ति में डिमेंशिया के लक्षण एक या एक से ज्यादा रोगों के कारण पैदा हो सकते हैं।
    • डिमेंशिया एक संलक्षण (लक्षणों के समूह) का नाम है। हर मरीज में सब लक्षण नहीं होंगे; किसी व्यक्ति में कुछ लक्षण नज़र आ सकते हैं, तो किसी अन्य व्यक्ति में कोई और लक्षण नज़र आ सकते हैं। यह तो डॉक्टर ही बता पायेंगे कि व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं।
    • व्यक्ति में डिमेंशिया के कौन से लक्षण प्रकट होते हैं यह इस पर निर्भर है कि रोग के कारण मस्तिष्क के किस भाग में हानि हुई है।
    • व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं, यह तय करने के लिए डॉक्टर प्रश्न पूछेंगे और उचित जांच और टेस्ट करेंगे, और फिर बताएँगे कि व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं। जांच के दौरान वे तय करेंगे कि व्यक्ति के लक्षण किस रोग के कारण हैं।
    • कुछ रोग इलाज से ठीक हो सकते हैं, और इस इलाज के बाद व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है और उनके डिमेंशिया लक्षण पूरी तरह से चले जाते हैं। व्यक्ति फिर से सामान्य हो जाते हैं। इसे रिवर्सिबल डिमेंशिया (reversible dementia) कहते हैं।
    • बाकी रोग (जिनके कारण डिमेंशिया होता है) लाइलाज हैं। इन्हें इर्रिवर्सबिल डिमेंशिया (irreversible dementia) कहते हैं। इलाज से इनमे से कुछ रोगों के प्रकट लक्षण तो कम हो सकते हैं, पर रोग मूल रूप से ठीक नहीं हो पाता। मस्तिष्क में जो हानि हो चुकी है, वह दवाई से वापस पलटती नहीं है, और दवाई का फोकस होता है प्रकट लक्षणों को कम करना और कुछ राहत देना। डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों को आराम पंहुचाने के लिए अधिक कारगर दवाईओं के लिए शोध ज़ारी है।
    • डिमेंशिया के लक्षण किस गति से बढ़ेंगे और कौन से लक्षण ज्यादा गंभीर होंगे, यह इस पर निर्भर है कि उस व्यक्ति का डिमेंशिया किस रोग के कारण है, मस्तिष्क के किस भाग में कितनी हानि हुई है, और हानि किस रफ़्तार से बढ़ रही है। कई प्रकार के डिमेंशिया में मस्तिष्क में हो रही हानि बढ़ती जाती है progressive dementia), पर कुछ डिमेंशिया में हानि एक ही स्तर पर काफी अरसे तक रुकी रहती है, फिर शायद कुछ और हानि हो, और फिर कुछ देर उसी नए स्तर पर रुकी रहे। इसको plateau, या step-wise progression of dementia भी कहते हैं।
    • परिवार वाले इस बात को ले कर भी चिंतित होते हैं कि क्या डिमेंशिया अनुवांशिक है।उनके डिमेंशिया की संभावना के बारे में जानने के लिये यह जानना ज़रूरी है कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति को किस रोग के कारण डिमेंशिया है। फिर परिवार वाले उचित शोध की रिपोर्ट देख सकते हैं।
    • अधिकाँश डिमेंशिया और देखभाल सम्बंधित चर्चा ऐसे डिमेंशिया के प्रकारों के इर्द-गिर्द होती है जिन में इलाज से रोग को पलटा नहीं जा सकता (irreversible)। चर्चा करने वाले यह मान कर चलते हैं कि डिमेंशिया के लक्षण दिखाने वाले व्यक्ति की सही डॉक्टरी जांच हो चुकी है, और यदि डिमेंशिया पैदा करने वाला रोग इलाज से ठीक हो सकता था, तो वह इलाज हो चुका है।

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    डिमेंशिया के ठीक हो सकने वाले कारण (reversible causes)।

    डिमेंशिया के ठीक हो सकने वाले (रिवर्सबल) अनेक कारण हैं। जांच से सही कारण पता चलाने के बाद डॉक्टर इलाज कर सकते हैं और व्यक्ति के डिमेंशिया लक्षण चले जायेंगे।

    अवसाद (depression) एक आम कारण जिसे ठीक करा जा सकता है। अवसाद से होने वाले डिमेंशिया को depressive pseudodementia या depressive dementia कहते हैं। एक अन्य आम कारण है कुछ प्रकार की दवाएं। ऐसे में लक्षण दवा के दुष्प्रभाव या दवा से उत्पन्न शरीर में टॉक्सिन जमा होने से होते हैं। कुछ दवाओं का मस्तिष्क के रसायनों पर होता है, जिस से लक्षण उत्पन्न होते हैं।

    अन्य जाने-माने कारणों में शामिल हैं , थाइरोइड हार्मोन में कमी (hypothyroidism), कुछ प्रकार के संक्रमण (infections), और विटामिन B12 की कमी (vitamin B12 deficiency)। इलेक्ट्रलाइट असंतुलन बुजुर्गों में एक आम समस्या है, और इस से उत्पन्न लक्षण भी डिमेंशिया जैसे होते हैं। निर्जलीकरण और पोषण में कमी से भी लक्षण हो सकते हैं। रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) ऊपर-नीचे होना ऐसे लक्षणों का एक अन्य कारण है। ठीक से न देख पाने या ठीक से न सुन पाने के कारण बदले व्यवहार भी डिमेंशिया जैसे लग सकते हैं।

    इस प्रकार के डिमेंशिया के कुछ कारक रोग ऐसे हैं जो कम पाए जाते हैं, और जिनका रोग निदान कई बार ठीक से नहीं हो पाता। ऐसा एक रोग है सामान्य दबाव हायड्रोसेफ़ेलस(normal pressure hydrocephalus, NPH), जिस में मस्तिष्क में अधिक फ्लूइड भर जाता है और इस कारण लक्षण पैदा होते है। पर शंट लगाकर इस फ्लूइड को निकाला जा सकता है, जिस से व्यक्ति को लक्षणों से राहत मिल सकती है। डाउन सिन्ड्रोम और बैटन डीसीज का भी डिमेंशिया से संबंध है।

    कुछ ऐसे भी रोग हैं जिन में लगता है कि इनका तो मस्तिष्क से कोई सम्बन्ध ही नहीं है, पर फिर भी इन रोगों से डिमेंशिया लक्षण पैदा हो सकते हैं। जैसे कि, कुछ रिसर्च में पाया गया है कि सीलिएक रोग (celiac disease) से भी डिमेंशिया लक्षण हो सकते हैं। एक अन्य उदाहरण है लाइम रोग (Lyme’s disease)।

    क्योंकि डिमेंशिया के लक्षण कभी कभी ऐसे रोगों के कारण पैदा होते है जिनका इलाज संभव है, इसलिए उचित यह है कि यदि कोई डिमेंशिया के लक्षण महसूस कर रहा है तो सही जांच कराई जाए। डॉक्टर व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री और लक्षणों के साथ अनेक जांच करेंगे और तय करेंगे कि लक्षण किस वजह से हो रहे हैं, और क्या उपचार संभव है। लक्षण के एक से अधिक कारक हो सकते हैं, और उपचार से कुछ राहत होने की संभावना है। नाउम्मीद होकर घर बैठे रहने से उस व्यक्ति को, और अन्य परिवार वालों को, नाहक परेशान होती रहेंगे जब कि डॉक्टर के पास रोग का इलाज है।

    Reversible dementia पर अधिक विस्तृत चर्चा के लिए हमारे अँग्रेज़ी पृष्ठ को देखें (लिंक नीचे “इन्हें भी देखें सेक्शन में है)।

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    डिमेंशिया के ठीक न हो सकने वाले कारण (irreversible causes)।

    अधिकाँश डिमेंशिया लाइलाज हैं, यानि कि दवाई से रोग से हुई हानि ठीक नहीं करी जा सकती।अधिकांश रोग प्रगतिशील (progressive) भी होते हैं, और अपकर्षक (degenerative) भी, और समय के साथ मस्तिष्क अधिक नष्ट होता जाता है, और व्यक्ति अधिक लाचार होते जाते हैं।कुछ प्रकार के डिमेंशिया में व्यक्ति में गिरावट चरणों में होती है और व्यक्ति एक ही स्तर पर काफी दिनों तक रहते हैं, पर अधिकांश लोगों में गिरावट लगातार होती रहती है। अग्रिम/ अंतिम चरण में व्याकरी लगभग पूरी तरह दूसरों पर निर्भर होते हैं।

    अल्ज़ाइमर (Alzheimer’s Disease) डिमेंशिया का सबसे आम कारण है, और अनुमान है कि यह 50 से 75 % केस का एक कारण है। यह अक्सर बड़ी उम्र में होता है, और इसके शुरुआती लक्षण अकसर याददाश्त की समस्याएं है। अन्य लक्षण भी पहस होते हैं, जैसे कि बोलने में समस्या, निर्णय लेने में समस्या, वगैरह। इसकी संभावना उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती है। यह अभी लाइलाज है, और इस पर जोर-शोर से शोध चल रहा है। इसमें दिमाग की कोशिकाएं (cells) सिकुड जाती हैं या नष्ट हो जाती हैं, और “प्लाक” के जमा होने के कारण कोशिकाओं के बीच के जोड़ भी नष्ट हो जाते हैं। यदि हिंदी में इस पर जानकारी ढूढ़ रहे हैं तो ध्यान रखें कि Alzheimer एक जर्मनी के डॉक्टर का नाम था, और देवनागरी लिपि में इसे अनेक तरह से लिखा जाता है, और इससे गूगल खोज के रिजल्ट में फ़र्क पड़ सकता है। उदाहरण: अल्ज़ाइमर, अल्जाइमर, अल्ज़ाईमर, एल्ज़ाइमर्ज़, एलसायमर, एल्सायमर, एलसायमरस, एल्जायमर्स, इत्यादि।

    डिमेंशिया का एक अन्य मुख्य कारण है संवहनी डिमेंशिया, खासकर भारत में (20 से 30 %)। इसमें मस्तिष्क की हानि स्ट्रोक, मिनी-स्ट्रोक (TIA), और अन्य नाड़ी-सम्बंधी समस्याओं की वजह से होती है। उक्त रक्तचाप (high blood pressure) और धमनियों का स्थूल होना अकसर इन सब नाड़ी-संबंधी डिमेंशिया का मूल कारण होते हैं। यानि कि, मस्तिष्क में रक्त ठीक से नहीं पहुंचता। लक्षण इस बात पर निर्भर हैं कि मस्तिष्क के किस भाग में रक्त की आपूर्ती में समस्या हुई थी।

    अन्य डिमेंशिया के कारण हैं फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया (fronto-temporal dementia) (करीब 5 से 10 % केस), लुई बॉडी डिमेंशिया (Lewy Body dementia) (5 % से कम केस) और पार्किंसंस रोग (Parkinson’s Disease)। फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया कम उम्र में शुरू हो सकता है, और लक्षण में अकसर भाषा संबंधी समस्याएं, मूड में बदलाव, व्यक्तित्व में बदलाव, अनुचित व्यवहार (जैसे अश्लील व्यवहार), अनुचित निर्णय लेना, और दूसरों के प्रति अरुचि शामिल हैं। याददाश्त की समस्याएं शायद न हों।

    यह भी हो सकता है कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों में डिमेंशिया के लक्षण एक से अधिक रोगों के कारण पैदा होते हैं, जिसे मिक्स्ड डिमेंशिया (मिश्रित डिमेंशिया, mixed dementia) कहा जाता है। अकसर मिक्स्ड डिमेंशिया वाले व्यक्ति को अल्ज़ाइमर और संवहनी डिमेंशिया होता है, पर अन्य डिमेंशिया के प्रकारों के सम्मिश्रण भी संभव हैं।

    अक्सर डिमेंशिया और अल्ज़ाइमर शब्दों को पर्यायवाची शब्दों की तरह से इस्तेमाल करा जाता है, पर यह गलत है। अल्ज़ाइमर रोग डिमेंशिया के लक्षणों का सबसे आम कारण ज़रूर है (50 – 75%), पर हम अन्य कारणों को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते–वे 25 – 50% केस में पाए जाते हैं, जो एक काफी बड़ा हिस्सा है।

    इन चार प्रमुख प्रकार के डिमेंशिया पर हिंदी में अधिक जानकारी के लिए नीचे इन्हें भी देखें सेक्शन को देखें।

    अगर हम यह जानें कि हमारे प्रियजन को कौन सा डिमेंशिया है, तो उस प्रकार के डिमेंशिया के बारे में पढ़ कर हम अंदाजा लगा सकते हैं कि रोग के कौन से लक्षण किस अवस्था में ज्यादा प्रमुख होंगे, और हम उसके अनुसार खुद को देखभाल के लिए तैयार कर सकते हैं।

    उदाहरण के लिए, लक्षणों को ही लें।अल्ज़ाइमर के रोगिओं में जयादातर याददाश्त संबंधी समस्याएँ पहले नज़र आते हैं, पर फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया वाले लोगों में अकसर व्यवहार का बदलाव एक प्रमुख लक्षण होता है, और याददाश्त संबंधी समस्याएं कम नज़र आती हैं। रोग की प्रगति भी अलग अलग होती है। अल्ज़ाइमर में ज्यादातर प्रगति धीमी रहती है। पर संवहनी डिमेंशिया में, जिसमे मस्तिष्क की हानि नाड़ीयों की समस्याओं के कारण होती है, अगर यह समस्याएँ रोकी जा सकें तो रोगी का डिमेंशिया एक ही स्तर पर कई दिनों तक रह सकता है। फिर अगर व्यक्ति को यदि स्ट्रोक हो जाए तो डिमेंशिया के लक्षण रातों-रात बदतर हो सकते हैं। पर यह भी याद रखें कि निश्चित ढंग से नहीं कहा जा सकता कि किसी एक व्यक्ति में रोग किस गति से और कैसे बिगड़ेगा।

    एक पहलू यह है कि रोग कोई भी हो, व्यक्ति के लक्षण उसी व्यापक लक्षणों के समूह से होते हैं जिन्हें डिमेंशिया कहते हैं। इसलिए परिवार वाले अपने प्रियजन की देखभाल के लिए टिप्स अनेक स्तोत्र से पा सकते हैं। अधिकांश जानकारी देखभाल की जानकारी अल्ज़ाइमर के नाम से मिलती है क्योंकि अधिकाँश रोगी अल्ज़ाइमर से ग्रस्त हैं, और विश्व-भर में शोध और चर्चा भी अल्ज़ाइमर पर ही केंद्रित है। राष्ट्रिय संस्थाएं सभी प्रकार के डिमेंशिया का समर्थन भी अल्ज़ाइमर की छत्री के अंतर्गत करती हैं। इन्टरनेट पर डिमेंशिया सम्बंधी जानकारी ढूंढते हुए यह बात याद रखने से जानकारी ढूँढने में आसानी होगी।

    पर यह न समझें कि अल्ज़ाइमर के लिए दी गयी सभी सलाह दूसरे प्रकार के डिमेंशिया में ज्यूं-के-त्यूं काम आ सकती है। व्यक्ति में कौन से लक्षण अधिक पेश हो रहे हैं , और रोग किस तरह से बिगड रहा है, उसे न भूलें। भिन्न डिमेंशिया रोगों के लिए उपचार और सलाह भी अलग हो सकती है। अच्छा होगा कि ऐसे साधन भी ढूँढें जो डिमेंशिया पैदा करने वाले उस रोग से सम्बंधित है जिससे व्यक्ति ग्रस्त है, ताकि अधिक कारगर टिप्स मिलें।

    एक अन्य ज़रूरी बात यह है कि इलाज करने वाले सभी डॉक्टर को मालूम रहना चाहिए कि डिमेंशिया किस रोग के कारण है, क्योंकि कुछ दवाइयाँ ऐसी हैं जो एक तरह के डिमेंशिया के लिए उपयुक्त हैं, पर दूसरे डिमेंशिया में नुकसान कर सकती हैं और रोगी की हालत और खराब हो सकती है। उदाहरण के लिए, लुई बॉडी डिमेंशिया में अल्ज़ाइमर में दी गयी कुछ दवाइयाँ नुकसान कर सकती हैं। नीचे दिए गए लिंक में इस पर अधिक जानकारी है। उचित सपोर्ट ग्रुप में भी इस प्रकार की जानकारी मिल सकती है।

    कुछ प्रकार के रोगों में बाद में डिमेंशिया होने का खतरा रहता है, जैसे कि पार्किंसंस रोग वालों में कई लोगों को अग्रिम अवस्था में डिमेंशिया होने की संभावना रहती है।

    नोट: जैसे जैसे डिमेंशिया पैदा करने वाले रोगों के बारे में जानकारी बढ़ती है, वैसे वैसे विशेषज्ञ उन रोगों के नाम और उनकी श्रेणियों को बदलते रहते हैं। ये साधारण लोगों को कंफ्यूस कर सकता है, और जानकारी खोजने में दिक्कत पैदा कर सकता है। इस पर कुछ अधिक टिपण्णी देखें हमारे अँग्रेज़ी पृष्ठ पर (लिंक नीचे “इन्हें भी देखें सेक्शन में है)।

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    इन्हें भी देखें.

    चार प्रमुख प्रकार के डिमेंशिया के मुख्य बिंदु यहाँ देखें और विस्तृत पोस्ट (चित्रों सहित) यहाँ देखें:

    मुख्य रोगों के अंग्रेज़ी नाम, देवनागरी में:

    इस पृष्ठ पर कई बीमारियों के अंग्रेज़ी नाम हैं। इनको देवनागरी में लिखते समय अलग अलग संगठन हिंदी और अंग्रेज़ी में अलग अलग तरह से पेश करते हैं। कुछ प्रचलित स्पेलिंग (वर्तनी) आपकी सुविधा के लिए, गूगल खोज में सहायता के लिए, पेश हैं।

    • Dementia: डिमेंशिया, मनोभ्रंश, डिमेन्शिया, डिमेंशिया डिमेंश्या, डिमेंटिया, डेमेंटिया।
    • Alzheimer’s Disease: अल्जाइमर, अल्ज़ाइमर, अलजाइमर, अलज़ाइमर, एलसायमरस, अलज़ाईमर, एल्ज़ाइमर्ज़।
    • Lewy Body dementia: लुई बाड़िज़, लुई बॉडी रोग, लुई बॉडी़ज़ वाला रोग,लुई बाड़ी रोग, लेवी बॉडीज़।
    • Vascular dementia: (इसके लिए और इस से संबंधित विकारों के लिए कुछ शब्द) वास्कुलर डिमेंशिया, वैस्क्यूलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी डिमेंशिया, संवहनी मनोभ्रंश, हृदवाहिनी रोग, रक्त-वाहिका रोग,स्ट्रोक, सबकोर्टिकल संवहनी डिमेंशिया, मल्टी-इनफार्ट, मिनी-स्ट्रोक्स, बहु-रोधगलितांश डिमेंशिया, बिंसवान्गर (सबकोर्टिकल वैस्क्यूलर डिमेंशिया), ट्रांसिऐंट इस्कीमिक अटैक्स, अस्थायी स्थानिक अरक्तता दौरे।
    • Fronto-temporal dementia: फ्रोंटो-टेम्पोरल डिमेंशिया, फ्रंटोटेम्पोरल लोबार डिजेनरेशन, पिक्स रोग, फ़्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया।
    • Mixed dementia:मिश्रित डिमेंशिया, मिक्स्ड डिमेंशिया।
    • Parkinson’s Disease: पार्किन्सन-रोग, पार्किंसंस रोग।

    पृष्ठ पर इस (अँग्रेज़ी) रिपोर्ट का ज़िक्र है: डिमेंशिया इंडिया रिपोर्ट 2010 (The Dementia India Report 2010) (PDF फाइल ) (archived copy)Opens in new window

    डिमेंशिया और अल्ज़ाइमर में फ़र्क क्या है, इस पर एक छोटा हिंदी वीडियो देखें, जिसमे सरल तरीके से, रेखा चित्र का इस्तेमाल करके डिमेंशिया और अल्ज़ाइमर के बीच का सम्बन्ध समझाया गया है। यदि वीडियो प्लेयर नीचे लोड न हो रहा हो तो आप इस वीडियो को सीधे यूट्यूब पर भी देख सकते हैं Opens in new window

    हिंदी पृष्ठ, इसी साईट से:

    डिमेंशिया रोगों के बारे में और जानकारी: निदान, उपचार, बचाव।

    इस विषय पर हिंदी सामग्री, कुछ अन्य साईट पर: यह याद रखें कि इन में से कई लेख अन्य देश में रहने वालों के लिए बनाए गए हैं, और इन में कई सेवाओं और सपोर्ट संबंधी बातें, कानूनी बातें, इत्यादि, भारत में लागू नहीं होंगी।

    इस पृष्ठ का नवीनतम अँग्रेज़ी संस्करण यहाँ उपलब्ध है: Diseases that cause dementia Opens in new window। अंग्रेज़ी पृष्ठ पर आपको विषय पर अधिक सामयिक जानकारी मिल सकती है। कई उपयोगी अँग्रेज़ी लेखों, संस्थाओं और फ़ोरम इत्यादि के लिंक भी हो सकते हैं। कुछ खास उन्नत और प्रासंगिक विषयों पर विस्तृत चर्चा भी हो सकती है। अन्य विडियो, लेखों और ब्लॉग के लिंक, और उपयोगी पुस्तकों के नाम भी हो सकते हैं। इस पृष्ठ पर अनेक उपयोगी वेबसाइट के लिंक भी हैं, जो अलग अलग तरह के डिमेंशिया पर जानकारी देते हैं, और डिमेंशिया वाले व्यक्ति और उनके परिवारों को सपोर्ट भी करते हैं।

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    Previous: डिमेंशिया (मनोभ्रंश) क्या है Next: डिमेंशिया के प्रकारों पर अधिक जानकारी

    डिमेंशिया (मनोभ्रंश) क्या है

    डिमेंशिया (Dementia, मनोभ्रंश) किसी विशेष बीमारी का नाम नहीं, बल्कि के लक्षणों के समूह का नाम है, जो मस्तिष्क की हानि से सम्बंधित हैं. “Dementia” शब्द “de” (without) और “mentia” (mind ) को जोड़ कर बनाया गया है.

    [डिमेंशिया नाम पर स्पष्टीकरण: हालाँकि डिमेंशिया (dementia) अँग्रेज़ी का शब्द है, इसका प्रयोग हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में भी होता है, और डॉक्टर निदान (diagnosis) के समय dementia (डिमेंशिया) शब्द का इस्तेमाल करेंगे. इस क्षेत्र के जागरूकता अभियान में, रिपोर्ट्स में, और विशेषज्ञों के इंटरव्यू में भी “डिमेंशिया” शब्द का प्रयोग होता हो. परन्तु यह जानना ज़रूरी है कि हिंदी में पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, और वेबसाइट पर डिमेंशिया के लिए “मनोभ्रंश” शब्द का भी इस्तेमाल होता है (मनो–मन सम्बंधी, भ्रंश–नष्ट होना). यह याद रखें कि डिमेंशिया और मनोभ्रंश एक ही अवस्था के दो नाम हैं. एक अन्य नोट: dementia को देवनागरी में “डिमेंशिया” के अलावा अन्य तरह से भी लिखा जाता है, जैसे कि डिमेन्शिया, डिमेंशिया डिमेंश्या, डिमेंटिया, डेमेंटिया,वगैरह.]

    डिमेंशिया के लक्षण कई रोगों के कारण पैदा हो सकते है. ये सभी रोग मस्तिष्क की हानि करते हैं. क्योंकि हम अपने सब कामों के लिए अपने मस्तिष्क पर निर्भर हैं, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति अपने दैनिक कार्य ठीक से नहीं कर पाते. इन व्यक्तियों की याददाश्त कमजोर हो सकती है. उन्हें आम तौर के रोजमर्रा के हिसाब में दिक्कत हो सकती है, और वे अपना बैंक का काम करने में भी कठिनाई महसूस कर सकते हैं. घर पर पार्टी हो तो उसका आयोजन करना उनके लिए मुश्किल हो सकता है. कभी कभी वे यह भी भूल सकते हैं कि वे किस शहर में हैं, या कौन सा साल या महीना चल रहा है. बोलते हुए उन्हें सही शब्द नहीं सूझता. उनका व्यवहार बदला बदला सा लगने लगता है, और व्यक्तित्व में भी फ़र्क आ सकता है. यह भी हो सकता है के वे असभ्य भाषा का प्रयोग करें या अश्लील तरह से पेश आएँ, या सब लोगों से कटे-कटे से रहें. …

    पूरे पोस्ट के लिए यहाँ क्लिक करें : डिमेंशिया (मनोभ्रंश) क्या है

    डिमेंशिया (Dementia, मनोभ्रंश) किसी विशेष बीमारी का नाम नहीं, बल्कि एक लक्षणों के समूह का नाम है, जो मस्तिष्क की हानि से सम्बंधित हैं। “Dementia” शब्द “de” (without) और “mentia” (mind ) को जोड़ कर बनाया गया है।

    [डिमेंशिया नाम पर स्पष्टीकरण: हालाँकि डिमेंशिया (dementia) अँग्रेज़ी का शब्द है, इसका प्रयोग हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में भी होता है, और अधिकांश डॉक्टर निदान (diagnosis) के समय dementia (डिमेंशिया) शब्द का इस्तेमाल करेंगे। इस क्षेत्र के जागरूकता अभियान में, रिपोर्ट्स में, और विशेषज्ञों के इंटरव्यू में भी “डिमेंशिया” शब्द का प्रयोग होता हो। परन्तु यह जानना ज़रूरी है कि हिंदी में पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, और वेबसाइट पर डिमेंशिया के लिए “मनोभ्रंश” शब्द का भी इस्तेमाल होता है (मनो–मन सम्बंधी, भ्रंश–नष्ट होना)। यह याद रखें कि डिमेंशिया और मनोभ्रंश एक ही अवस्था के दो नाम हैं। एक अन्य नोट: dementia को देवनागरी में “डिमेंशिया” के अलावा अन्य तरह से भी लिखा जाता है, जैसे कि डिमेन्शिया, डिमेंशिया डिमेंश्या, डिमेंटिया, डेमेंटिया,वगैरह।]

    डिमेंशिया के लक्षण कई रोगों के कारण पैदा हो सकते है। ये सभी रोग मस्तिष्क की हानि करते हैं। क्योंकि हम अपने सब कामों के लिए अपने मस्तिष्क पर निर्भर हैं, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति अपने दैनिक कार्य ठीक से नहीं कर पाते। इन व्यक्तियों की याददाश्त कमजोर हो सकती है। उन्हें आम तौर के रोजमर्रा के हिसाब में दिक्कत हो सकती है, और वे अपना बैंक का काम करने में भी कठिनाई महसूस कर सकते हैं। घर पर पार्टी हो तो उसका आयोजन करना उनके लिए मुश्किल हो सकता है। कभी कभी वे यह भी भूल सकते हैं कि वे किस शहर में हैं, या कौन सा साल या महीना चल रहा है। बोलते हुए उन्हें सही शब्द नहीं सूझता। उनका व्यवहार बदला बदला सा लगने लगता है, और व्यक्तित्व में भी फ़र्क आ सकता है। यह भी हो सकता है के वे असभ्य भाषा का प्रयोग करें या अश्लील तरह से पेश आएँ, या सब लोगों से कटे-कटे से रहें।

    साल दर साल डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की स्थिति अधिक खराब होती जाती है, और बाद की अवस्था में उन्हें साधारण से साधारण काम में भी दिक्कत होने लगती है, जैसे कि चल पाना, बात करना, या खाना ठीक से चबाना और निगलना, और वे छोटी से छोटी चीज के लिए भी निर्भर हो जाते हैं। वे बिस्तर पर पड़ जाते है, और उनका अंतिम समय आ जाता है।

    जब व्यक्ति में लक्षण नजर आने शुरू होते हैं तो आस-पास के लोग–परिवार-वाले, दोस्त और प्रियजन, सहकर्मी, पड़ोसी–यह समझ नहीं पाते कि व्यक्ति इस अजीब तरह से क्यों पेश आ रहा है। कभी व्यक्ति परेशान या भुलक्कड़ लगता है, तो कभी सहमा हुआ, तो कभी झल्लाया हुआ, या बेकार गुस्सा करता हुआ। बदला व्यक्तित्व अकसर चरित्र की खामी समझा जाता है। यदि व्यक्ति बुज़ुर्ग हों, तो परिवार वाले अकसर भूलने या अन्य लक्षणों को सामान्य बुढ़ापा समझ कर नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करते हैं, पर डिमेंशिया का होना उम्र बढ़ने का सामान्य अंग नहीं है। यदि व्यक्ति चालीस पचास या उससे भी कम उम्र के हों, तो लक्षणों को तनाव का नतीजा समझा जा सकता है।

    इस पृष्ठ पर:

    डिमेंशिया के लक्षणों के कुछ उदाहरण

    आइये देखें, डिमेंशिया के लक्षणों के कुछ उदाहरण। यह एक सांकेतिक सूची है, और डिमेंशिया से प्रभावित व्यक्ति में, रोग के बढते साथ ज्यादा और अधिक गंभीर लक्षण नज़र आते हैं। याद रखें कि हर व्यक्ति में अलग अलग लक्षण नज़र आते हैं। एक व्यक्ति में यह सब लक्षण हों, यह ज़रूरी नहीं, और यह भी ज़रूरी नहीं कि यदि कोई ये लक्षण दिख रहे है तो उस व्यक्ति को डिमेंशिया है। यह जांच तो डॉक्टर ही कर सकते हैं। यह भी ध्यान में रखें कि कुछ प्रकार के डिमेंशिया में शुरू में व्यक्ति की याददाश्त पूरी तरह से सही सलामत रहती है।

    early dementia patient confused and misplaces watch in fridge
    • ज़रूरी चीज़ें भूल जाना, खासकर हाल में हुई घटनाएँ (जैसे, नाश्ता करा था या नहीं)।
    • पार्टी का आयोजन न कर पाना, छोटी छोटी समस्याओं को भी न सुलझा पाना।
    • साधारण, रोज-मर्रे के काम करने में दिक्कत महसूस करना
    • गलत किस्म के कपडे पहनना, कपडे उलटे पहनना, साफ़-सुथरा न रह पाना।
    • यह भूल जाना कि तारीख क्या है, कौन सा महीना है, साल कौन सा है, व्यक्ति किस घर में हैं, किस शहर में हैं, किस देश में।
    • किसी वस्तु का चित्र देखकर यह न समझ पाना कि यह क्या है।
    • नंबर जोड़ने और घटाने में दिक्कत, गिनती करने में दिक्कत।
    • बोलते या लिखते हुए गलत शब्द का प्रयोग करना, या शब्दों के अर्थ न समझ पाना।
    • चीज़ों को गलत, अनुचित जगह पर रख छोड़ना (जैसे कि घडी को, या ऑफिस फाइल को फ्रिज में रख देना)।
    • कुछ काम शुरू करना, फिर भूल जाना कि क्या करना चाहते थे, और बहुत कोशिश के बाद भी याद न कर पाना।
    • बड़ी रकम को फालतू की स्कीम में डाल देना, पैसे से सम्बंधित अजीब निर्णय लेना, लापरवाही या गैरजिम्मेदारी दिखाना।
    • पैसे के मूल्य को न समझना, जैसे कि हजार रुपए को दस रुपए को एक जैसा समझना।
    • अपने आप में गुमसुम रहना, मेल-जोल बंद कर देना, चुप्पी साधना।
    • छोटी-छोटी बात पर, या बिना कारण ही बौखला जाना, चिल्लाना, रोना, इत्यादि।
    • किसी बात को या प्रश्न को दोहराना, जिद्द करना, तर्क न समझ पाना।
    • बात बेबात लोगों पर शक करना, आक्रामक होना।
    • लोगों की भावनाओं को न समझना या उनकी कद्र न करना।
    • सामाजिक तौर तरीके भूल जाना, और अजीबोग़रीब बातें करना।
    • भद्दी भाषा इस्तेमाल करना, गाली देना, अश्लील हरकतें करना।
    Words for dementia in India indicate childishness and weak brain

    यह समझना बहुत ज़रूरी है कि डिमेंशिया मंदबुद्धि (mental retardation) नहीं है। यह सन्निपात, उन्माद या संकल्प प्रलाप (delirium) नहीं है। यह पागलपन (insanity) नहीं है।यह अम्नीसिया (स्मृति लोप, स्मृति भ्रंश, amnesia) नहीं है।

    अफसोस, भारत में जहाँ हम डिमेंशिया के कई लक्षणों को तो पहचानते हैं, और हमारी भाषाओं में कुछ ऐसे शब्द हैं जो इन लक्षणों से जुड़े हुए हैं (जैसे कि सठियाना), पर लोगों में यह धारणा है कि यह व्यवहार की समस्याएँ हैं, या बुढापे में अकसर पाए जाने वाली आम समस्या। लोग यह नहीं जानते कि यह लक्षण मस्तिष्क के रोग के कारण उत्पन्न हो रहे हैं। वे सोचते हैं कि यह व्यक्ति, जो अजीब तरह से पेश आ रहा है या तो जिद्दी है या पागल है। इसलिए आसपास के लोग उस व्यक्ति को उपचार के लिए डॉक्टर के पास नहीं जाते, और न ही वे व्यक्ति से बातचीत करने का तरीका बदलते हैं। वे डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के सहायता कैसे करें, यह नहीं जानते। बल्कि वे व्यक्ति से निराश हो जाते हैं, या उस पर गुस्सा करते हैं, या उसकी अवहेलना करने लगते हैं। इससे परिवार में संघर्ष बढ़ जाते हैं और व्यक्ति को, तथा अन्य लोगों को, सब को ज्यादा दिक्कत होती है।

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    डिमेंशिया में जो स्मृति की हानि होती है वह उम्र के साथ होने वाले सामान्य स्मृति हानि से फ़र्क है

    memory loss in dementia not same as normal memory loss

    कई लोग डिमेंशिया को “भूलने की बीमारी” कह कर छोटा समझते हैं और टाल देते हैं। कुछ अन्य लोग कोई छोटी सी बात भूलने पर भी घबरा जाते हैं कि भई, उन्हें डिमेंशिया तो नहीं हो गया? एक चाबी इधर से उधर रख दी और ढूँढने पर नहीं मिली तो डिमेंशिया का भय दिमाग को घेर लेता है।सच तो यह है कि हम सब कभी न कभी कुछ न कुछ भूलते हैं, पर डिमेंशिया का भूलना कुछ अलग सा होता है। डिमेंशिया में याददाश्त की समस्याएँ दूसरे रूप की होती हैं।

    एक उदाहरण लें: क्या आप सोचते हैं कि आप कभी इतने भी भुलक्कड़ हो जायेंगे कि आप अपना नाम ही भूल जायेंगा? नहीं तो! पर डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति आगे की अवस्था में अपना ही नाम भूल सकते हैं।

    एक छोटा सा उदाहरण – सामान्य लोग अकसर तारीखें और साल भूल जाते हैं, जैसे कि मुंबई किस साल गए थे। इस तरह का भूलना सामान्य है। पर डिमेंशिया हो तो व्यक्ति शायद यही भूल जाएँ कि वे काभी मुंबई गए थे, या यह भी पूछ लें कि मुंबई क्या है। सामान्य बुढापे से जुड़े भूलने में और डिमेंशिया वाले भूलने में क्या अंतर है, इसपर अधिक चर्चा, उदाहरण, और लिंक हमारे अंग्रेज़ी पृष्ठ पर देखें।

    dementia patient forgets name and covers up by pretending

    शुरू की अवस्था में अकसर डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति अपनी भूलने की समस्या को आस पास के लोगों से छुपा पाते हैं।अगर वे कभी कुछ भूल भी जाएँ, या उलझन में नज़र आएँ, तो लोग उसे नजरंदाज कर देते हैं। बेटा यह सोचता है कि पापा की बढ़ती उम्र है, कुछ भूल गए तो क्या हुआ! शुरू की अवस्था में इन लक्षणों को पहचानने के लिए परिवार वालों को अधिक सतर्क रहना होगा।

    पर जैसे जैसे रोग बढ़ता है, डिमेंशिया के लक्षण ज्यादा स्पष्ट होने लगते हैं, और व्यक्ति का व्यवहार सामान्य नहीं रहा है, यह बात औरों को भी नज़र आने लगती है। डॉक्टर से जांच कराने से पता चल सकता है कि क्या लक्षण किसी रोग के कारण हैं, और उपचार क्या है।

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    डिमेंशिया बुढापे का एक सामान्य और अनिवार्य भाग नहीं है

    बुढापे में भी लोग भूलते हैं, अस्त-व्यस्त हो जाते हैं, कभी कभी चिड़चिड़ा भी जाते हैं, पर डिमेंशिया इस साधारण बढ़ती उम्र की समस्याओं से भिन्न है। कुछ डॉक्टर भी शुरू के लक्षणों की ओर ध्यान नहीं देते, और बस बुढ़ापे का नाम देकर छोड़ देते हैं ।

    डिमेंशिया को हम यह कह कर नहीं टाल सकते कि यह व्यक्ति कुछ तेज़ी के साथ बूढा हो रहा है। जिन रोगों से डिमेंशिया के लक्षण पैदा होते हैं, ये रोग मस्तिष्क की विशेष हानि करते हैं। मस्तिष्क की कोशिकाओं (neurons) को नष्ट करते हैं, और मस्तिष्क के भागों को जोड़ने वाले जालों को भी नष्ट करते हैं। मस्तिष्क के कुछ भाग सिकुड़ जाते हैं। कुछ लोगों में ये बीमारियां बुढ़ापे में नहीं, बल्कि जल्दी शुरू हो जाती हैं, जैसे कि चालीस पचास की उम्र में, या उससे भी पहले।

    हालाँकि डिमेंशिया होने की संभावना उम्र के साथ बढ़ती है, पर उम्र बढ़ने पर डिमेंशिया ज़रूर ही होगा, ऐसा कहना गलत है। कुछ लोगों को वे रोग हो जाएँगे जिन से डिमेंशिया के लक्षण पैदा होते हैं, और दूसरे लोग डिमेंशिया से मुक्त रहेंगे।

    डिमेंशिया के लक्षणों पर, और याददाश्त की कमजोरी पर अधिक जानकारी तथा कुछ उपयोगी लिंक इस पृष्ठ के नीचे, “इन्हें भी देखें” सेक्शन में हैं।

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    हालांकि डिमेंशिया की संभावना उम्र के साथ बढ़ती है, पर डिमेंशिया चालीस पचास या उससे कम उम्र में भी हो सकता है

    डिमेंशिया सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं, उससे पहले (जैसे कि 30, 40 या 50 साल में) भी हो सकता है। इसको जल्दी शुरू होने वाला डिमेंशिया कहते हैं। WHO (वर्ल्ड हेल्थ ऑरगैनाइज़ेशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन) का अनुमान है कि शायद 65 साल से कम उम्र में होने वाला डिमेंशिया, यानि कि जल्दी शुरू होने वाला डिमेंशिया (यंग ऑनसेट डिमेंशिया, यंगर ऑनसेट डिमेंशिया, young onset dementia, younger onset dementia, early onset dementia) अकसर पहचाना नहीं जाता और ऐसे केस शायद 6 से 9 प्रतिशत हैं।

    जब चालीस पचास की उमर के लोग भूलने लगते हैं या बोलने में दिक्कत महसूस करते है या उनके व्यक्तित्व में बदलाव आने लगता है या उन में अन्य डिमेंशिया के लक्षण नज़र आने लगते है तो लोग डिमेंशिया की संभावना के बारे में नहीं सोचते। वे समस्या को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। व्यक्ति को दोष देते हैं या उस बदलाव को तनाव का नतीजा समझते हैं।डॉक्टर भी ऐसी स्थिति में अकसर डिमेंशिया के बारे में नहीं सोचते। इस कारण रोग-निदान (diagnosis) नहीं हो पाता या गलत होता है। यदि व्यक्ति/ परिवार वाले डिमेंशिया के बारे में जानते हों तो वे विशेषज्ञ से सलाह करके उचित निदान पाने की कोशिश कर सकते है।

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    कुछ प्रकार के डिमेंशिया के शुरू के लक्षणों में याददाश्त की समस्याएँ शामिल नहीं हैं

    डिमेंशिया के अनेक लक्षण होते हैं और अनेक कारण भी। हर व्यक्ति में हर लक्षण नहीं पाया जाता। कई लोगों का सोचना है कि भूलना तो डिमेंशिया का एक अनिवार्य अंग है, और डिमेंशिया है तो याददाश्त की समस्या तो होगी ही। यह सच नहीं है।

    कुछ प्रकार के डिमेंशिया ऐसे हैं–जैसे कि फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया(Frontotemporal Dementia)–जिन में पहले लक्षण व्यक्तित्व का बदलाव, बोलने में दिक्कत, चलने में या संतुलन में दिक्कत या अन्य लक्षण हैं, पर याददाश्त सही रहती है।

    डिमेंशिया के प्रति सतर्क रहना हो तो सिर्फ याददाश्त की कमजोरी की ओर ध्यान न दें, अन्य लक्षणों के प्रति भी सतर्क रहें।

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    डिमेंशिया पर एक संक्षिप्त प्रस्तुति.

    इस हिंदी प्रेजेंटेशन में देखिये डिमेंशिया क्या है, इस में मस्तिष्क में कैसी हानि होती है, लक्षण क्या हैं, और समय के साथ क्या होता है, और देखभाल करने वालों को क्या करना होता है। अन्य विषयों पर भी स्लाइड हैं। डिमेंशिया को समझ पायें, इस की सुविधा के लिए कई उदाहरण और चित्र हैं। यदि प्लेयर नीचे लोड न हो रहा हो तो यहाँ क्लिक करें: डिमेंशिया क्या है?(What is Dementia)Opens in new window.


    इन सब विषयों पर, और अन्य उपयोगी विषयों पर अधिक जानकारी के लिए इस वेबसाइट के दूसरे पृष्ठ भी देखें
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    इन्हें भी देखें.

    हिंदी पृष्ठ, इसी साईट से:

    डिमेंशिया के लक्षण किन रोगों के कारण हो सकते हैं, इस पृष्ठ पर: डिमेंशिया किन रोगों के कारण होता है

    इस विषय पर हिंदी सामग्री, कुछ अन्य साईट पर: यह याद रखें कि इन में से कई लेख अन्य देश में रहने वालों के लिए बनाए गए हैं, और इनमें कई सेवाओं और सपोर्ट संबंधी बातें, कानूनी बातें, इत्यादि, भारत में लागू नहीं होंगी।

    इस पृष्ठ का नवीनतम अँग्रेज़ी संस्करण यहाँ उपलब्ध है: What is dementia? Opens in new window. अंग्रेज़ी पृष्ठ पर आपको विषय पर अधिक सामयिक जानकारी मिल सकती है। कई उपयोगी अँग्रेज़ी लेखों, संस्थाओं और फ़ोरम इत्यादि के लिंक भी हो सकते हैं।कुछ खास उन्नत और प्रासंगिक विषयों पर विस्तृत चर्चा भी हो सकती है। अन्य विडियो, लेखों और ब्लॉग के लिंक, और उपयोगी पुस्तकों के नाम भी हो सकते हैं।

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    डिमेंशिया केयर नोट्स के हिंदी वेबसाइट पर आपका स्वागत है

    डिमेंशिया पर कुछआवश्यक जानकारी। कई प्रचलित मिथकों पर स्पष्टीकरण। इस देखभाल संबंधी जानकारी के विभिन्न सेक्शन का परिचय और लिंक। सेक्शन में मौजूद हैं: डिमेंशिया पर जानकारी, देखभाल पर विस्तृत चर्चा और ज़रूरी तरीकों पर जानकारी, इंटरव्यू, समर्थक संस्थाएं, संसाधन, वीडियो, डाउनलोड. …

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    डिमेंशिया क्या है? क्या यह संभव है कि आपका कोई प्रियजन डिमेंशिया से ग्रस्त है, और आपको मालूम ही नहीं? सतर्क रहने के लिए आप को डिमेंशिया के बारे में क्या जानना चाहिए? या हो सकता है कि आपके परिवार में किसी को डिमेंशिया है, और आप समझ नहीं पा रहे कि उनकी देखभाल करें तो कैसे करें, क्योंकि व्यक्ति आपकी बात समझ ही नहीं पाते हैं और अजीब तरह से पेश आ रहे हैं। आइये, डिमेंशिया और संबंधित देखभाल के बारे में कुछ आवश्यक बातें देखें।

    डिमेंशिया किसी विशेष बीमारी का नाम नहीं, बल्कि एक बड़े से लक्षणों के समूह का नाम है (संलक्षण, syndrome)। डिमेंशिया को कुछ लोग “भूलने की बीमारी” कहते हैं, परन्तु डिमेंशिया सिर्फ भूलने का दूसरा नाम नहीं हैं, इसके अन्य भी कई लक्षण हैं–नयी बातें याद करने में दिक्कत, तर्क न समझ पाना, लोगों से मेल-जोल करने में झिझकना, सामान्य काम न कर पाना, अपनी भावनाओं को संभालने में मुश्किल, व्यक्तित्व में बदलाव, इत्यादि। यह सभी लक्षण मस्तिष्क की हानि के कारण होते हैं, और ज़िंदगी के हर पहलू में दिक्कतें पैदा करते हैं। यह भी गौर करें कि यह ज़रूरी नहीं है कि डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की याददाश्त खराब हो–कुछ प्रकार के डिमेंशिया में शुरू में चरित्र में बदलाव, चाल और संतुलन में मुश्किल, बोलने में दिक्कत, या अन्य लक्षण प्रकट हो सकते हैं, पर याददाश्त सही रह सकती है। डिमेंशिया के लक्षण अनेक रोगों की वजह से पैदा हो सकते हैं, जैसे कि अल्ज़ाइमर रोग, लुई बॉडीज वाला डिमेंशिया, वास्कुलर डिमेंशिया (नाड़ी सम्बंधित/ संवहनी मनोभ्रंश),फ्रंटोटेम्पोरल डिमेंशिया, पार्किन्सन, इत्यादि।

    लक्षणों के कुछ उदाहरण। हाल में हुई घटना को भूल जाना, बातचीत करने समय सही शब्द याद न आना, बैंक की स्टेटमेंट न समझ पाना, भीड़ में या दुकान में सामान खरीदते समय घबरा जाना, नए मोबाईल के बटन न समझ पाना, ज़रूरी निर्णय न ले पाना, लोगों और साधारण वस्तुओं को न पहचान पाना, वगैरह। रोगियों का व्यवहार अकसर काफी बदल जाता है। कई डिमेंशिया वाले व्यक्ति ज्यादा शक करने लगते हैं, और आसपास के लोगों पर चोरी करने का, मारने का, या भूखा रखने का आरोप लगाते हैं। कुछ व्यक्ति अधिक उत्तेजित रहने लगते हैं, कुछ अन्य व्यक्ति लोगों से मिलना बंद कर देते हैं और दिन भर चुपचाप बैठे रहते हैं। कुछ व्यक्ति अश्लील हरकतें भी करने लगते हैं। कौन से व्यक्ति में कौन से लक्षण नज़र आयेंगे, यह इस बात पर निर्भर है कि उनके मस्तिष्क के किस हिस्से में हानि हुई है। किसीमे कुछ लक्षण नज़र आते हैं, किसी में कुछ और। जैसे कि, कुछ व्यक्तियों में भूलना इतना प्रमुख नहीं होता जितना चरित्र का बदलाव।

    भारत में ज़्यादातर लोग इन सब लक्षणों को उम्र बढ़ने का स्वाभाविक अंश समझते हैं, या सोचते हैं कि यह तनाव के कारण है या व्यक्ति का चरित्र बिगड़ गया है, पर यह सोच गलत है। ये लक्षण डिमेंशिया या अन्य किसी बीमारी के कारण भी हो सकते हैं, इसलिए डॉक्टर की सलाह लेना उपयुक्त है। अफ़सोस, भारत में डिमेंशिया की जानकारी कम होने के कारण इनमे से कई लक्षणों के साथ कलंक भी जुड़ा है। इसलिए डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति यह सोच कर अपनी समस्याओं को छुपाते हैं कि या उन्हें पागल समझा जाएगा या लोग हंसेंगे कि क्या छोटी सी बात लेकर डॉक्टर के पास जाना चाहते हैं! परिवार वाले इन लक्षणों को बुढ़ापे का नतीजा समझ कर नकार देते हैं। वे यह नहीं सोचते कि सलाह पाने से स्थिति में सुधार हो सकता है। उन्हें यह भी नहीं पता होता है कि व्यक्ति को सहायता की ज़रूरत है। व्यक्ति के बदले हुए व्यवहार को परिवार वाले हट्टीपन या चरित्र का दोष या पागलपन समझते हैं, और कभी दुःखी और निराश होते हैं, तो कभी व्यक्ति पर गुस्सा करने लगते हैं।

    निदान (diagnosis) क्यों ज़रूरी है? अगर कोई व्यक्ति डिमेंशिया के लक्षणों से परेशान हों तो डॉक्टर से सलाह करनी चाहिए। डॉक्टर जांच करके पता चलाएंगे कि यह लक्षण किस रोग के कारण हो रहे हैं। हर भूलने का मामला डिमेंशिया नहीं होता–हो सकता है कि लक्षण किसी दूसरी समस्या के कारण हों, जैसे कि अवसाद (depression)। या हो सकता है कि यह लक्षण ऐसे रोग के कारण हैं जो दवाई से पूरी तरह ठीक हो सकता है। एक उदाहरण है थाइरोइड (thyroid) होरमोन की कमी होना)। कुछ प्रकार के डिमेंशिया ऐसे भी हैं जिनका उपचार तो नहीं, पर फिर भी दवाई से कुछ रोगियों को लक्षणों से कुछ आराम मिल सकता है। यह सब तो डॉक्टर की जांच के बाद ही पता चल सकता है।

    डिमेंशिया किस को हो सकता है? डिमेंशिया शब्द अँग्रेज़ी का शब्द है, परन्तु इससे ग्रस्त व्यक्ति हर देश, हर शहर, हर कौम में पाए जाते हैं। इसकी संभावना उम्र के साथ बढ़ती है। अगर आप बुजुर्गों के किस्से सुनें तो पायेंगे कि परिवार ने जिसे एक अधेढ़ उम्र के व्यक्ति का अटपटा व्यवहार समझा था, वह व्यवहार शायद डिमेंशिया के कारण था। चूंकि डिमेंशिया अँग्रेज़ी का शब्द है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे लिखने के कई तरीके हैं, जैसे कि, डिमेन्शिया, डिमेंशिया डिमेंश्या, डिमेंटिया, डेमेंटिया, इत्यादि। कुछ लोग इसके लिए संस्कृत के शब्द, मनोभ्रंश का इस्तेमाल करते हैं।

    विश्व भर में डिमेंशिया की पहचान पिछले कुछ दशक में ज्यादा अच्छी तरह से हुई है, और अब डॉक्टरों का मानना है कि यह लक्षण उम्र बढ़ने का साधारण अंग नहीं हैं। जो रोग डिमेंशिया का कारण हैं, उन पर शोध हो रहा है ताकि बचाव और इलाज के तरीके ढूंढें जा सकें। आजकल भी, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों और उनके परिवार वालों के आराम के लिए कुछ उपाय मौजूद हैं, जिससे व्यक्ति और उनके परिवार वाले ज्यादा सरलता और सुख से रह सकें, लक्षणों की वजह से हो रही तकलीफें कम हो जाएँ, और घर के माहौल का तनाव कम हो।

    क्या डिमेंशिया भारत में गंभीर समस्या है?कुछ लोग अब भी सोचते हैं कि डिमेंशिया भारत में आम समस्या नहीं है| अफ़सोस, सच तो यह है कि यह भारत में भी एक गंभीर समस्या है| जनवरी 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 60+ की आयु वर्ग में डिमेंशिया का अनुमान 8.44% है, जिसका अर्थ है कि भारत में डिमेंशिया से ग्रस्त लोगों की संख्या करीब एक करोड़ (100 लाख) है। डिमेंशिया बड़ी उम्र के लोगों में अधिक होता है,और जैसे जैसे भारत में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ता जा रहा है, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों का अनुपात भी बढ़ता जाएगा और यह समस्या अनेक परिवारों के जीवन को छूने लगेगी| जानकारी न हो तो परिवार पहचान नहीं पायेंगे कि उनके प्रियजन की समस्याएं इस रोग के कारण है। वे उचित निदान, उपचार और देखभाल नहीं कर पायेंगे। इसलिए डिमेंशिया के बारे में जानना और इस के प्रति सतर्क रहना बहुत जरूरी है।

    डिमेंशिया और बुढ़ापे में फ़र्क है। डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के साथ रहना किसी अन्य स्वस्थ बुज़ुर्ग के साथ रहने से बहुत फ़र्क है। डिमेंशिया की वजह से व्यक्ति के सोचने-करने की क्षमता पर बहुत असर होता है, और परिवार वालों को देखभाल के तरीके उसके अनुसार बदलने होते हैं। व्यक्ति से बातचीत करने का, उनकी सहायता करने का, और उनके उत्तेजित या उदासीन मूड को संभालने का तरीका बदलना होता है। समय के साथ रोग के कारण मस्तिष्क में बहुत अधिक हानि हो जाती है, और व्यक्ति ज़्यादा निर्भर होते जाते हैं। परिवार वालों को देखभाल के लिए दिन भर व्यक्ति के साथ रहना पड़ता है, और इस को संभव बनाने के लिए अपनी अन्य जिम्मेदारियों में समझौता करना पड़ता है।

    डिमेंशिया सिर्फ बुढापे में ही नहीं, पहले भी हो सकता है (जैसे कि 30, 40 या 50 साल में) । कई लोग सोचते हैं कि डिमेंशिया बुढ़ापे की बीमारी है, और सिर्फ बुजुर्गों में पायी जाती है, पर कुछ प्रकार के डिमेंशिया जल्दी शुरू हो सकते हैं। WHO (वर्ल्ड हेल्थ ऑरगैनाइज़ेशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन ) का अनुमान है कि 65 साल से कम उम्र में होने वाले डिमेंशिया (जिसे younger onset या early onset कहते हैं) अकसर पहचाने नहीं जाते और ऐसे केस शायद 6 से 9 प्रतिशत हैं।

    उचित देखभाल रोगियों और परिवार की खुशहाली के लिए बहुत ज़रूरी है। फिलहाल, अधिकांश डिमेंशिया में दवाई की भूमिका सीमित है। भारत में उपलब्ध दवाई न तो मस्तिष्क को दोबारा ठीक कर सकती है, न ही बीमारी को बढ़ने से रोक सकती है। फिर भी कुछ केस में दवाई लक्षणों से कुछ राहत पहुंचा पाती है, इसलिए डॉक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए। क्योंकि डिमेंशिया का सिलसिला कई साल तक चलता है, पर दवाई से रोग कम नहीं होता, इसलिए डिमेंशिया वाले व्यक्ति और परिवार की खुशहाली उचित देखभाल पर निर्भर है। यदि परिवार वाले यह समझ पाएँ कि डिमेंशिया वाले व्यक्ति को किस प्रकार की दिक्कतें हो रही हैं, और वे व्यक्ति से अपनी उम्मीदें उसी हिसाब से रखें और मदद के सही तरीके अपनाएँ तो स्थिति सहनीय रह पाती है, वरना व्यक्ति और परिवार, दोनों के लिए बहुत तनाव बना रहता है। कारगर देखभाल के लिए डिमेंशिया को समझना और सम्बंधित देखभाल के तरीके समझना आवश्यक है।

    इस वेबसाइट, डिमेंशिया केयर नोट्स, हिंदी (dementiahindi.com) पर डिमेंशिया की देखभाल के लिए जानकारी, संसाधन, सलाह, सुझाव, और अनेक परिवारों की कहानियाँ है, जिससे डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल करने वाले डिमेंशिया के रोग को समझ पाएँ, और व्यक्ति की देखभाल कैसे करें, यह सोच पाएँ। वेबसाइट पर विशेष रूप से भारत में रहने वाले परिवारों के लिए जानकारी और सलाह है।

    डिमेंशिया की देखभाल के तरीके अलग हैं। क्योंकि लोग डिमेंशिया और सामान्य बुढापे में अंतर नहीं समझते, इसलिए वे डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति के साथ ऐसे पेश आते हैं जैसे कि व्यक्ति की याददाश्त या अन्य किसी क्षमता में कोई कमी ही नहीं है। वे व्यक्ति से उम्मीद रखते हैं कि वे उनकी बात समझ सकेंगे, और थोड़ी कोशिश करे तो अपना काम भी कर सकेंगे। यह सब डिमेंशिया वाले व्यक्ति के लिए खासी मुश्किल पैदा कर देता है , और वे परेशान हो जाते हैं तो गुस्सा करने लगते हैं , या संकोच करने लगते हैं और मेल-जोल और बातचीत बंद कर देते हैं। परिवार वाले समझ नहीं पाते कि व्यक्ति से बात करें तो कैसे, मदद कब और कैसे करें, और उनकी उत्तेजना या अन्य अजीब व्यवहार को कैसे संभालें।

    परिवार वाले यदि डिमेंशिया की सच्चाई को समझ पायें, और अपने बोलने और मदद करने का तरीका बदल पायें, तो उन को और डिमेंशिया वाले व्यक्ति को, दोनों को आराम पहुंचेगा।

    देखभाल के लिए क्या जानना ज़रूरी है? यदि आप किसी डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं, और दिक्कतों का सामना कर रहे हैं, तो पहले कुछ ऐसी बातें पढ़ें और ऐसे उपाय देखें जिन से आपके देखभाल करने में तुरंत आसानी हो सके। जैसे कि, डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति से बातचीत कैसे करें, मदद कैसे करें, मुश्किल व्यवहार तो कैसे समझें और कम करें। आप पहले इस पृष्ठ को देखें: देखभाल करने वालों के लिए ज़रूरी लिंक

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    • डिमेंशिया क्या है, किन रोगों से होता है, निदान कैसे होता है, इलाज है या नहीं, यह बढ़ता कैसे है, इसका व्यवहार पर क्यों और कैसे प्रभाव पड़ता है, भारत में डिमेंशिया और देखभाल की क्या स्थिति है, इन सब विषयों के बारे में इस सेक्शन के पृष्ठ देखे: : डिमेंशिया के बारे में जानकारी
    • डिमेंशिया के देखभाल का सिलसिला कई साल चलता है (यह एक दशक से ज्यादा भी हो सकता है), और अगर परिवार तनाव से मुक्त रहना चाहे तो देखभाल के लिए सही तरह से प्लान करना होगा। इस सेक्शन में देखभाल के विषय पर अनेक पृष्ठ हैं: देखभाल करने वालों के लिए। कोविड महामारी की वजह से देखभाल में अनेक नई चुनौतियों पर केन्द्रित कुछ ख़ास पोस्ट के लिए भी इस सेक्शन में पृष्ठ हैं।
    • डिमेंशिया के देखभाल करने वालों के कई इंटरव्यू हमारे अँग्रेज़ी साईट पर है। भारत में डिमेंशिया देखभाल संबंधी अनुभव वाले लेखों और ब्लॉग के लिंक भी हैं। इन सबके संशिप्त परिचय इस हिंदी साईट पर यहाँ देखें: डिमेंशिया संबंधी कुछ आवाजें, कुछ इंटरव्यू । इस सेक्शन में समाचार पत्रों इत्यादि में हिंदी में उपलब्ध कुछ लेखों के लिंक भी हैं ।
    • डिमेंशिया समझने के लिए और देखभाल के तरीके जानने के लिए तैयार किये गए वीडिओ आर प्रेजेनटेशन इस सेक्शन में हैं: वीडिओ औरप्रेजेनटेशन
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    कोविड-19 (COVID-19) महामारी की स्थिति से यह स्पष्ट हो गया है कि बुजुर्गों को खास तौर से गंभीर संक्रमण से बचाने की, उनकी प्रतिरक्षक क्षमता को बढ़ाने की और वैक्सीन देने की जरूरत है। बुजुर्ग और उनके सभी परिवार वालों और देखभाल कर्ताओं को सावधान रहना होता है, और देखभाल के तरीकों को भी बदलना होता है। कोविड महामारी से प्राप्त सीख को अब हमें देखभाल के अनेक पहलुओं से जोड़ना होगा। इस साइट पर, जिन-जिन पृष्ठों पर उचित है, इस सीख पर आधारित सुझाव जोड़े गए हैं। । इसके अतिरिक्त, हमने महामारी के आरंभिक दिनों में कोविड में डिमेंशिया देखभाल के अनेक पहलूओं पर कुछ पृष्ठ प्रकाशित करे थे, और उनका बदलती स्थिति के अनुरूप अनेक बार अद्यतन करा था। आप उन्हें इस सेक्शन में देख सकते हैं – कोविड 19 के दौरान डिमेंशिया देखभाल

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