स्ट्रोक (आघात, पक्षाघात, सदमा, stroke) एक गंभीर रोग है। हम कई बार देखते और सुनते हैं कि किसी को स्ट्रोक हुआ है। इस के बाद कुछ लोग फिर से अच्छे हो पाते हैं, पर अन्य लोगों में पूरी तरह शारीरिक और मानसिक क्षमताएं ठीक नहीं हो पातीं।शायद हम यह भी जानते हैं कि करीब 25%[1] केस में स्ट्रोक जानलेवा सिद्ध होता है। पर स्ट्रोक क्या है, किन बातों से इस के होने का खतरा है, इस से कैसे बचें, इन सब पर जानकारी इतनी व्याप्त नहीं है। अधिकाँश लोग यह भी नहीं जानते कि स्ट्रोक होने के कुछ ही महीनों में कुछ व्यक्तियों को स्ट्रोक-सम्बंधित डिमेंशिया (मनोभ्रंश, dementia) भी हो सकता है। इस पृष्ठ पर स्ट्रोक और डिमेंशिया (stroke and dementia) पर जानकारी पेश है।
स्ट्रोक क्या है, क्यों होता है, और इस के लक्षण क्या हैं।
मस्तिष्क के ठीक काम करने के लिए यह जरूरी है कि मस्तिष्क में खून की सप्लाई ठीक रहे। इस काम के लिए हमारे मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं (खून की नलिकाएं, blood vessels) का एक जाल (नेटवर्क) है, जिसे वैस्कुलर सिस्टम कहते है। ये रक्त वाहिकाएं मस्तिष्क के हर भाग में आक्सीजन और जरूरी पदार्थ पहुंचाती हैं।
स्ट्रोक में इस रक्त प्रवाह में रुकावट होती है. इस के दो मुख्य कारण हैं।
अरक्तक आघात, इस्कीमिया (ischemia): रक्त का थक्का (clot) रक्त वाहिका को बंद कर सकता है। अधिकाँश स्ट्रोक के केस इस प्रकार के होते हैं।[1]
रक्तस्रावी आघात (हेमरेज, haemorrhage) : रक्त वाहिका फट सकती है।
खून सप्लाई में कमी के कुछ कारण का यह चित्रण देखें।
इस रुकावट के कारण हुई हानि इस पर निर्भर है कि मस्तिष्क के किस भाग में और कितनी देर तक रक्त ठीक से नहीं पहुँच पाया। यदि कुछ मिनट तक रक्त नहीं पहुँचता, तो प्रभावित भाग में मस्तिष्क के सेल मर सकते हैं। इस को इनफार्क्ट या रोधगलितांश कहते हैं।
स्ट्रोक के लक्षण अकसर अचानक ही, या कुछ ही घंटों के अन्दर-अन्दर पेश होते हैं।
एक तरफ के चेहरे और हाथ-पैर का सुन्न होना/ उनमें कमजोरी, चेहरे के भाव पर, और अंगों पर नियंत्रण नहीं रहना।
बोली अस्पष्ट होना, बोल न पाना, दूसरों को समझ न पाना।
एक या दोनों आँखों से देखने में दिक्कत।
चक्कर आना, शरीर का संतुलन बिगड़ना, चल-फिर न पाना।
बिना किसी स्पष्ट कारण के तीव्र सर-दर्द होना।
अफ़सोस, कई बार व्यक्ति और आस पास के लोग स्ट्रोक को पहचान नहीं पाते, या पहचानने में और डॉक्टर के पास जाने में देर कर देते हैं, जिस से हानि अधिक होती है।
एक खास स्थिति है “मिनी-स्ट्रोक” (mini stroke, अल्प आघात)। इस में लक्षण कुछ ही देर रहते हैं, क्योंकि रक्त सप्लाई में रुकावट खुद दूर हो जाती है। इस मिनी-स्ट्रोक का असर तीस मिनट से लेकर चौबीस घंटे तक रहता है। इसे ट्रांसिएंट इस्कीमिक अटैक्स (transient ischemic attack, TIA) या अस्थायी स्थानिक अरक्तता भी कहते हैं। व्यक्ति को कुछ देर कुछ अजीब-अजीब लगता है, पर वे यह नहीं जान पाते कि यह कोई गंभीर समस्या है। कुछ व्यक्तियों में ऐसे मिनी स्ट्रोक बार बार होते हैं, पर पहचाने नहीं जाते। कुछ केस में ऐसे मिनी स्ट्रोक के थोड़ी ही देर बाद व्यक्ति को बड़ा और गंभीर स्ट्रोक हो सकता है।
नोट: कुछ लोग स्ट्रोक और दिल के दौरे में कन्फ्यूज होते हैं। स्ट्रोक और दिल का दौरा, दोनों ही रक्त के प्रवाह से संबंधी रोग हैं (हृदवाहिनी रोग, cardiovascular disease)। पर स्ट्रोक में इस नाड़ी संबंधी समस्या का असर दिमाग पर होता है, हृदय पर नहीं। यूं कहिये, स्ट्रोक को हम एक मस्तिष्क का दौरा मान सकते हैं।
इलाज में जितनी देर करें, व्यक्ति की स्थिति उतनी ही बिगड़ती जायेगी। जान भी जा सकती है। इसलिए स्ट्रोक का शक होते ही जल्द से जल्द व्यक्ति को अस्पताल ले जाएं। डॉक्टर शायद व्यक्ति की जान बचा पायें। सही समय पर इलाज करने से शायद डॉक्टर स्ट्रोक के बाद होने वाली दिक्कतों को भी कम कर पायें। दुबारा स्ट्रोक न हो, इस के लिए सलाह भी मिलेगी।
स्ट्रोक के बाद उचित कदम उठाने से कुछ व्यक्ति तो ठीक हो पाते हैं, पर अन्य व्यक्तियों में कुछ समस्याएँ बनी रहती हैं। उनकी रिकवरी पूरी नहीं होती। स्ट्रोक-पीड़ित कई व्यक्ति बाद में भी कुछ हद तक दूसरों पर निर्भर रहते हैं। उन्हें डिप्रेशन (अवसाद) भी हो सकता है, जिस के कारण वे भविष्य के स्ट्रोक से बचने के लिए कदम उठाने में भी दिक्कत महसूस करते हैं।
एक अन्य आम समस्या है मस्तिष्क की क्षमताओं पर असर। यदि व्यक्ति को बार बार स्ट्रोक (या मिनी-स्ट्रोक) हो, तो क्षमताओं में हानि ज्यादा हो सकती है। व्यक्ति की मानसिक काबिलियत कम हो जाती है। व्यक्ति को डिमेंशिया हो सकता है।
संवहनी डिमेंशिया (वैस्कुलर डिमेंशिया, Vascular dementia) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है। यह आक्सीजन की कमी की वजह से मस्तिष्क के सेल मरने से हो सकता है। इस का एक कारण है बार बार स्ट्रोक या मिनी-स्ट्रोक होना। इस प्रकार के संवहनी डिमेंशिया को स्ट्रोक से सम्बंधित डिमेंशिया के नाम से भी जाना जाता है।
अल्ज़ाइमर सोसाइटी UK की “What is vascular dementia?” [2] पत्रिका के अनुसार स्ट्रोक होने के बाद तकरीबन 20% व्यक्तियों में छह महीने में स्ट्रोक से सम्बंधित डिमेंशिया हो सकता है। एक बार स्ट्रोक हो, तो फिर से स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है, इस लिए डिमेंशिया का खतरा भी बढ़ जाता है।
संवहनी डिमेंशिया पर विस्तृत हिंदी लेख के लिए देखें [3]
स्ट्रोक होने के बाद व्यक्ति को दुबारा स्ट्रोक होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। कुछ स्टडीज़ के अनुसार, इलाज न करें तो अगले पांच साल में फिर स्ट्रोक होने की संभावना 25% है। दस साल में स्ट्रोक होने की संभावना 40% है। इसलिए स्ट्रोक के बाद आगे स्ट्रोक न हो, इस के लिए खास ध्यान रखना होता है। [4]
स्ट्रोक की संभावना कम करने के लिए उपयुक्त दवा लें और उचित जीवन-शैली के बदलाव अपनाएं। उच्च रक्त-चाप (हाइपरटेंशन, हाई बी पी) और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखें। डायबिटीज से बचें, या उस पर नियंत्रण रखें। जीवन-शैली बदलाव करें। उदाहरण हैं: सही और पौष्टिक खाना, वजन नियंत्रित रखना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना (व्यायाम इत्यादि), तम्बाकू सेवन और धूम्रपान बंद करना, तनाव कम करना, और मद्यपान कम करना। डॉक्टर से बात करें, ताकि आपको सही सलाह मिले।
स्ट्रोक कितना व्याप्त और गंभीर है, उस पर कुछ तथ्य/ आंकड़े।
स्ट्रोक एक बहुत आम समस्या है। यह माना जाता है कि हर चार व्यक्तियों में से एक को अपने जीवन-काल में स्ट्रोक होगा।[5]
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्ट्रोक साठ साल और ऊपर की उम्र के लोगों की मृत्यु के कारणों में दूसरे स्थान पर है।
कम उम्र में भी स्ट्रोक का खतरा काफी ज्यादा है। 15 से 59 उम्र वर्ग में मृत्यु के कारणों में स्ट्रोक पांचवे स्थान पर है। [6]
अफ़सोस, भारत में स्ट्रोक का खतरा अन्य कई देशों से ज्यादा है क्योंकि यहाँ के लोगों में हाईपरटेंशन और अन्य रिस्क फैक्टर की संभावना ज्यादा है। ऊपर से यह भी अनुमान है कि भारत में स्ट्रोक का खतरा समय के साथ बढ़ रहा है। [7]
विश्व भर में स्ट्रोक डिसेबिलिटी का एक मुख्य कारण है, और डिसेबिलिटी के कारणों में तीसरे स्थान पर है। [8]
सबसे पहले तो हमें पहचानना होगा कि स्ट्रोक एक आम समस्या हैं, और इसके नतीजे भी बहुत गंभीर हैं। 60% लोग स्ट्रोक से या तो बच नहीं पाते, या बचते भी हैं तो उन की शारीरिक या मानसिक क्षमताएं ठीक नहीं हो पातीं। वे दूसरों पर निर्भर हो सकते हैं। उन्हें डिमेंशिया भी हो सकता है।
हम सब स्ट्रोक और अन्य नाड़ी संबंधी बीमारियों से बचने के लिए अपने जीवन में कई कदम उठा सकते हैं। अपने और अपने प्रियजनों के स्वास्थ्य का ख़याल रखें तो स्ट्रोक और सम्बंधित समस्याओं की संभावना कम होगी। यह मंत्र याद रखें: हृदय स्वास्थ्य के लिए जो कदम उपयोगी है, वे रक्त वाहिका की समस्याओं से बचने के लिए भी उपयोगी हैं।
स्ट्रोक और सम्बंधित विषयों के लिए कुछ उपयोगी शब्दावली:
मिनी-स्ट्रोक और उस में पाए डिमेंशिया से संबंधित कुछ शब्द हैं मिनी-स्ट्रोक, ट्रांसिऐंट इस्कीमिक अटैक्स (transient ischemic attack, TIA) या अस्थायी स्थानिक अरक्तता।
मस्तिष्क में हुई हानि के लिए कुछ उपयोगी शब्द हैं इनफार्क्ट (रोधगलितांश, infarct).
बार-बार के मिनी-स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया के लिए कुछ शब्द हैं मल्टी- इनफार्क्ट डिमेंशिया (multi-infarct dementia), बहु-रोधगलितांश डिमेंशिया।
संवहनी डिमेंशिया के लिए कुछ शब्द/ वर्तनी हैं वास्कुलर डिमेंशिया, वैस्क्युलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी डिमेंशिया, संवहनी मनोभ्रंश, Vascular dementia.
डिमेंशिया का कुछ अन्य रोगों से भी सम्बन्ध है। इन रोगों पर हिंदी में विस्तृत पृष्ठ देखें।
संवहनी डिमेंशिया ((वैस्कुलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी, vascular dementia) डिमेंशिया के चार प्रमुख प्रकारों में से एक है| यह डिमेंशिया के करीब 20 – 30% डिमेंशिया केस के लिए जिम्मेदार है| इस के बारे में जानने से आप इसे ज्यादा आसानी से पहचान पायेंगे, और इस से बचने के लिए अपनी जिंदगी में उचित बदलाव अपना पायेंगे| इस पृष्ठ पर उपलब्ध सेक्शन हैं:
संवहनी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) क्या है (What is Vascular Dementia)|
संवहनी डिमेंशिया (मनोभ्रंश) एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है*1
इस डिमेंशिया में मस्तिष्क में हुई हानि को दवा से वापस ठीक नहीं किया जा सकता| यह इर्रिवर्सिबल, (irreversible) है|
Dementia India Report 2010 के अनुसार इर्रिवार्सिब्ल डिमेंशिया के केस में से व्यक्ति को 20-30% संवहनी डिमेंशिया (वैस्क्युलर डिमेंशिया, नाड़ी-संबंधी, vascular dementia) होता हैं|
अंग्रेज़ी शब्द वैस्कुलर (और हिंदी शब्द ‘संवहनी’) का अर्थ है – रक्त वाहिकाओं (खून की नलिकाएं, blood vessels) से संबंधित|
रक्त वाहिकाओं के द्वारा शरीर के हर भाग में आक्सीजन और जरूरी पदार्थ पहुंचाए जाते हैं|
हमारे मस्तिष्क में भी रक्त वाहिकाओं का एक नेटवर्क होता है (वैस्क्युलर सिस्टम)| मस्तिष्क के ठीक काम करने के लिए मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं का ठीक रहना बहुत ज़रूरी है|
संवहनी डिमेंशिया में मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में समस्या होती है, और इसकी वजह से डिमेंशिया लक्षण पैदा होते हैं| मस्तिष्क के कुछ भागों में खून की सप्लाई (blood supply) में रुकावट हो जाती है| खून ठीक न पहुँचने के कारण उन भागों में कोशिकाएं (सेल, cells) मर जाती हैं| इस के कारण वे भाग ठीक काम नहीं कर पाते, और डिमेंशिया के लक्षण पैदा होते हैं|
संवहनी डिमेंशिया के मुख्य प्रकार हैं:
स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया (Stroke-related dementia), और
स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया (Stroke-related Dementia)|
स्ट्रोक (पक्षाघात) में मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कुछ भागों में कुछ देर के लिए नहीं हो पाता|
यह रक्त वाहिका में बाधा से हो सकता है, जैसे कि रक्त का थक्का (clot) वाहिका को बंद कर दे|
यह वाहिका के फटने से भी हो सकता है|
कई लोग स्ट्रोक के बाद ठीक हो पाते हैं| पर कुछ लोगों में स्ट्रोक से हुई मस्तिष्क की हानि पूरी तरह ठीक नहीं होती, जिस से डिमेंशिया के लक्षण नज़र आ सकते हैं|
अल्ज़ाइमर सोसाइटी UK की “What is vascular dementia?” पत्रिका के अनुसार,
लगभग 20% स्ट्रोक केस में छह महीनों में डिमेंशिया के लक्षण नज़र आ सकते हैं|
एक बार स्ट्रोक हो, तो आगे भी स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है, और इस वजह से डिमेंशिया का खतरा भी बढ़ जाता है|
खून की सप्लाई में कमी के कुछ कारण का चित्रण देखें|
बार-बार मिनी स्ट्रोक से भी हानि होती है|
कुछ लोगों को बहुत छोटे-छोटे स्ट्रोक (मिनी-स्ट्रोक, mini-stroke) हो सकते हैं , जिन का असर 24 घंटे या कम में चला जाता है|
अकसर लोग ऐसे मिनी-स्ट्रोक पहचान नहीं पाते, या उन्हें गंभीर नहीं समझते|
पर कभी-कभी इन से मस्तिष्क में हानि हो सकती है|
ऐसे कई मिनी-स्ट्रोक के बाद कुल मिला कर हुई हानि इतनी हो सकती है कि डिमेंशिया के लक्षण नज़र आने लगते हैं|
मिनी-स्ट्रोक और उस में पाए डिमेंशिया से संबंधित कुछ शब्द:
मिनी-स्ट्रोक: ट्रांसिऐंट इस्कीमिक अटैक्स (transient ischemic attack, TIA) या अस्थायी स्थानिक अरक्तता|
मस्तिष्क में हुई हानि: इनफार्क्ट (रोधगलितांश, infarct)
बार-बार के मिनी-स्ट्रोक से संबंधित डिमेंशिया: मल्टी- इनफार्क्ट डिमेंशिया (multi-infarct dementia), बहु-रोधगलितांश डिमेंशिया|
मस्तिष्क में कई छोटी वाहिकाएं हैं जो गहरे भागों (श्वेत पदार्थ) में खून पहुंचाती हैं|
इन में भी हानि हो सकती है, जैसे कि इनका सिकुड़ जाना, अकड़ जाना, इत्यादि। ऐसे में इन में खून का बहाव ठीक नहीं रहता| ऐसे नुकसान के कारक रोगों में उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, और मधुमेह शामिल हैं|
मस्तिष्क के गहरे भागों की छोटी वाहिकाओं में हानि के कारण उत्पन्न डिमेंशिया का नाम है सबकोर्टिकल संवहनी डिमेंशिया (Subcortical vascular dementia)|
संवहनी डिमेंशिया के लक्षण (Symptoms of Vascular Dementia)|
संवहनी डिमेंशिया में व्यक्ति के लक्षण इस बात पर निर्भर होते हैं कि मस्तिष्क के किस-किस भाग में क्षति हुई है, और यह क्षति कितनी गंभीर है|
संवहनी डिमेंशिया में शुरू के आम लक्षण हैं: शारीरिक कमजोरी और मनोदशा (मूड) में अस्थिरता/ उतार-चढ़ाव (mood fluctuations)|
याददाश्त की दिक्कत भी हो सकती हैं, पर यह इतनी नहीं हैं जितनी कि अल्ज़ाइमर (Alzheimer’s Disease) में|
अन्य लक्षण के उदाहरण हैं : काम करने की, या सोचने की गति कम होना, ध्यान लगाने में दिक्कत, निर्णय लेने में या समस्या का हल ढूंढ़ने में दिक्कत, भाषा संबंधी दिक्कत, भ्रम, अवसाद|
स्ट्रोक के केस में शरीर के एक तरफ कमजोरी भी हो सकती है|
हर व्यक्ति के लक्षण मस्तिष्क में हुई हानि के स्थान पर निर्भर हैं|
संवहनी डिमेंशिया में लक्षणों का बढ़ना (Progression of Vascular Dementia Symptoms)|
डिमेंशिया का होना और लक्षणों की प्रगति इस पर निर्भर है कि मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं में समस्या किस तरह बढ़ती है|
डिमेंशिया का शुरू होना धीरे धीरे या अचानक हो सकता है|
कुछ लोगों में संवहनी डिमेंशिया के लक्षण धीरे-धीरे नज़र आते हैं|
पर यदि व्यक्ति को स्ट्रोक हो, तो स्ट्रोक के बाद लक्षण अचानक प्रकट हो सकते हैं|
लक्षण का बढ़ना भी अलग-अलग तरह से हो सकता है|
अगर डिमेंशिया स्ट्रोक के कारण हुआ है तो आगे के स्ट्रोक रोक पाने से मस्तिष्क में और अधिक क्षति नहीं होगी और लक्षण बिगड़ेंगे नहीं। पर अगर एक और स्ट्रोक हो जाए, तो लक्षण अचानक बढ़ भी सकते हैं । यानि कि, लक्षण चरणों (स्टेप्स) में बदतर हो सकते हैं|
अगर व्यक्ति को बार-बार स्ट्रोक या मिनी स्ट्रोक हो रहे हैं या मस्तिष्क की कोशिकाएं लगातार नष्ट हो रही हों तो गिरावट भी धीरे-धीरे बढ़ती रहेगी|
सबकोर्टिकल संवहनी डिमेंशिया में लक्षण धीरे-धीरे बढ़ सकते हैं, या भागों में भी बढ़ सकते हैं।
संवहनी डिमेंशिया: उपचार (Treatment of Vascular Dementia)|
संवहनी डिमेंशिया में मस्तिष्क में हुई हानि दवाई से ठीक नहीं हो सकती| (जिन भागों में हानि हुई है वे फिर से सामान्य नहीं हो सकते|
पर हम इस डिमेंशिया के बिगड़ने को रोकने की या धीरे करने की कोशिश कर सकते हैं| हम यह कोशिश कर सकते हैं कि रक्त का प्रवाह ठीक बना रहे और रक्त वाहिकाएं और अधिक खराब न हों|
डॉक्टर सलाह और दवाई देते समय अन्य पहलुओं के साथ-साथ संवहन-संबंधी पहलुओं पर जोर देते है। इन के उदाहरण हैं:
उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह, दिल की समस्याएँ| इनसे बचें या इन्हें नियंत्रित रखें|
जीवन शैली बदलें| धूम्रपान बंद करें, व्यायाम करें, पौष्टिक भोजन लें, वज़न स्वस्थ सीमाओं में रखें, मद्यपान कम करें|
देखभाल के समय भी इन बातों पर विशेष ध्यान देना होता है|
यह भी जरूरी है कि स्ट्रोक के बाद खास तौर से सतर्क रहें कि फिर से स्ट्रोक न हो| डिमेंशिया के लक्षणों के लिए भी सतर्क रहें|
(नोट:अधिकांश डिमेंशिया में लक्षण धीरे-धीरे और लगातार बढ़ते हैं|)
संवहनी डिमेंशिया: मुख्य बिंदु (Salient Points of Vascular Dementia)|
संवहनी मनोभ्रंश एक प्रमुख प्रकार का डिमेंशिया है, जो डिमेंशिया के 20-30% केस के लिए जिम्मेदार है|
यह अकेले भी पाया जाता है, और अन्य डिमेंशिया के साथ भी मौजूद हो सकता है , जैसे कि अल्ज़ाइमर और लुई बॉडी डिमेंशिया के साथ|
लक्षणों में, और प्रगति संबंधी पहलू में यह अन्य प्रमुख डिमेंशिया से कई तरह से फर्क हैं|
हानि कहाँ और कितनी हुई है, लक्षण इस पर निर्भर हैं|
अल्ज़ाइमर के मुकाबले इसमें याददाश्त की समस्या शुरू में कम पाई जाती है|
लक्षणों की प्रगति धीरे-धीरे भी हो सकती है, या चरणों (स्टेप्स) में भी हो सकती है|
इस की संभावना कम करने के लिए कारगर उपाय मौजूद हैं|
स्वास्थ्य और जीवन शैली पर ध्यान दें तो रक्त वाहिकाओं में समस्याएं कम होंगी| इस से संवहनी डिमेंशिया की संभावना कम होगी, और यदि हो भी तो इसकी प्रगति धीमी कर सकते हैं|
हृदय स्वास्थ्य के लिए जो कदम उपयोगी है, वे रक्त वाहिका समस्याओं से बचने के लिए भी उपयोगी हैं|
श्रेय: (Public domain pictures) मस्तिष्क का चित्र: Henry Vandyke Carter [Public domain], via Wikimedia Commons, मस्तिष्क के वैस्क्यूलर सिस्टम का चित्र: National Institute of Aging.
किसी व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं, ये सिर्फ डॉक्टर बता सकते हैं, और वह भी सिर्फ उचित जांच के बाद. यदि आप किसी व्यक्ति में डिमेंशिया के लक्षण देखें, तो सही रोग-निदान (diagnosis) के लिए डॉक्टर से सलाह करें. डॉक्टर निर्धारित करेंगे कि व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं, और है तो किस रोग के कारण है, और उपचार क्या है.
इस पृष्ठ पर:
डिमेंशिया किसी को भी हो सकता है.
शुरू की अवस्था में ही निदान (early diagnosis) क्यों ज़रूरी है.
किस से सलाह करें>.
निदान (Diagnosis)
निदान-संबंधी समस्याएँ (Problems related to diagnosis)
निदान के बाद (After the diagnosis)
उपचार, शोध (Treatment and research)
बचाव (risk reduction)
आनुवंशिकी (यदि किसी करीबी रिश्तेदार को डिमेंशिया हो)(Genetics risk if close relatives have dementia)
किसी व्यक्ति को डिमेंशिया (मनोभ्रंश) है या नहीं, ये सिर्फ डॉक्टर बता सकते हैं, और वह भी सिर्फ उचित जांच के बाद। यदि आप किसी व्यक्ति में डिमेंशिया के लक्षण देखें, तो सही रोग-निदान (diagnosis) के लिए डॉक्टर से सलाह करें। डॉक्टर निर्धारित करेंगे कि व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं, और है तो किस रोग के कारण है, और उपचार क्या है।
डिमेंशिया किसी को भी हो सकता है। यह जात-बिरादरी, भाषा, प्रान्त, मज़हब, अमीरी-गरीबी, सामाजिक स्तर, नर-मादा, किसी का भी भेद-भाव नहीं करता। इसकी संभावना उम्र के साथ बढ़ती ज़रूर है, और 65 साल के बाद ज्यादा है, पर कुछ लोगों को डिमेंशिया 30, 40, या 50 की उम्र में भी हो सकता है।
लोगों में एक आम धारणा है कि बुद्धिमान और सक्रिय लोगों को डिमेंशिया नहीं होगा। वे कहते हैं, “हम तो रोज शब्द-पहेली (crossword)/ सू-डो-कू (sudoku) करते हैं, हमें डिमेंशिया नहीं होगा”। पर यह धारणा गलत है। कई ऐसे व्यक्ति, जो जिन्दगी भर शारीरिक और मानसिक रूप से सक्रिय रहे हैं, वे आज डिमेंशिया से ग्रस्त हैं।
मीडिया में डिमेंशिया को अकसर बुजुर्गों के रोग के तौर से पेश किया जाता है, या भूलने की बीमारी कहा जाता है। यह गलत है, और इससे व्यक्ति और आस-पास वालों की लक्षणों के प्रति सतर्कता कम हो सकती है। डॉक्टर भी इस भ्रम में हो सकते हैं, जिससे निदान मिलने में भी देर हो सकती है।
भारत में, क्योंकि डिमेंशिया के प्रति जागरूकता कम है, हमें डिमेंशिया के लक्षणों के प्रति अधिक सतर्क रहना चाहिए ताकि हम शुरुआती अवस्था में ही इसे पहचान सकें और इसका निदान करवा सकें, और व्यक्ति की देखभाल के लिए अपने-आप को ढाल सकें।
कुछ जाने-माने डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति: अमरीकन प्रेसिडेंट रोनाल्ड रीगन, इंग्लेंड की पूर्व प्रधान मंत्री मार्गरेट थैचेर । और भारत से: तेजी बच्चन (अमिताभ बच्चन के माँ), जोर्ज फर्नांडीस, अटल बिहारी वाजपई, नानी पालखीवाला, उद्योगपति श्रीचंद परमानंद हिंदुजा, सीमा देव।
शुरू की अवस्था में ही निदान (early diagnosis) क्यों ज़रूरी है।
डिमेंशिया के लक्षणों को शुरुआती चरण में न पहचान पाना एक आम समस्या है। याददाश्त में प्रॉब्लम हो भी तो इसे बढ़ती उम्र का नतीजा समझा जाता है, और व्यक्ति या परिवार डॉक्टर से सामान्य चेक-उप के वक्त इसका ज़िक्र तक नहीं करते। यह डर हो भी कि शायद समस्या गंभीर है, फिर भी डॉक्टर के पास जाने में संकोच होता है। अन्य समस्याओं में भी–जैसे कि कन्फ्यूशन, उदासीनता, चरित्र में बदलाव–लोग यह नहीं सोचते कि यह किसी बीमारी के कारण हैं, और डॉक्टर से सलाह नहीं करते। सोचते हैं, डॉक्टर कुछ नहीं कर पायेंगे।
प्रारंभिक अवस्था में निदान का सबसे बड़ा फायदा यह है कि कुछ रोग ऐसे हैं जिन में डिमेंशिया जैसे लक्षण होते हैं, पर इन रोगों का इलाज है (reversible causes), और इलाज करने से लक्षण दूर हो जाते हैं। यदि डॉक्टर के पास जाएँ, तो व्यक्ति की स्थिति फिर से सामान्य हो सकती है। ऐसे रिवर्सबल रोग के उदाहरण: थाइरोइड हार्मोन की कमी, अवसाद, तनाव, वगैरह। इस विषय पर विस्तृत चर्चा के लिए कुछ लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में हैं।
अधिकाँश डिमेंशिया इर्रिवर्सिब्ल है, यानि कि दवाई से रोग के कारण हुई हानि ठीक नहीं हो सकती। फिर भी, इन में से कुछ डिमेंशिया ऐसे हैं जिन में प्रारंभिक अवस्था में कुछ ऐसी दवाएं हैं जो रोग तो नहीं दूर कर सकतीं, पर प्रकट लक्षण कम कर सकती हैं, जिससे व्यक्ति को (और परिवार को) राहत मिल सकती है, और व्यक्ति का जीवन पहले से अधिक सामान्य हो सकता है। शायद याददाश्त थोड़ी बेहतर हो जाए, तो कुछ तो आराम मिले। निदान को टालते रहने से व्यक्ति और परिवार इस राहत से वंचित रहते हैं। अधिकांश ऐसी दवाएं प्रारंभिक अवस्थी में ज्यादा कारगर होती हैं। इसलिए डॉक्टर से सलाह कर लेनी चाहिए। निदान हो, तो व्यक्ति को कुछ तो राहत मिलने की संभावना है।
अगर डिमेंशिया किसी ऐसे रोग की वजह से है जो लाइलाज है, और जिसमे राहत भी संभव नहीं, फिर भी निदान होने से परिवार वाले स्थिति को समझ पायेंगे। वे आगे के बारे में सोच सकते हैं और देखभाल की योजना बना सकते हैं।
अकसर लक्षण प्रकट होने के बाद भी व्यक्ति और परिवार निदान करवाने की कोशिश नहीं करते।
याददाश्त में समस्या होना कई प्रकार के डिमेंशिया का एक शुरुआती लक्षण है। परन्तु कई लोग याददाश्त के कमज़ोर होने को उम्र-बढ़ने का सामान्य भाग समझते हैं, और इसलिए डॉक्टर से चेक-अप के दौरान इसका ज़िक्र नहीं करते और न ही सलाह लेते हैं। कुछ अन्य लोग, जिन्होंने डिमेंशिया के बारे में सुना है, वे डर के मारे किसी को अपनी समस्या के बारे में नहीं बताते क्योंकि डिमेंशिया की समाज में जानकारी अधूरी है, और कई लोग इसे मानसिक रोग या पागलपन कह देते हैं, और इसका होना शर्मनाक समझा जाता है। इसलिए, कई डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों का शुरुआती समय में निदान नहीं होता, और परिवार वाले व्यक्ति को डॉक्टर के पास तभी जाते हैं जब डिमेंशिया मध्य या अग्रिम अवस्था में होता है और इसके लक्षणों के कारण इतनी तकलीफ होने लगती है कि उन्हें नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता।
डिमेंशिया के अन्य प्रारंभिक लक्षण भी हो सकते हैं, जैसे कि व्यक्तित्व में बदलाव , बोलने में दिक्कत होना, सामाजिक तौर-तरीके भूल जाने, चलने या संतुलन में दिक्कत, लोगों से कटे कटे रहना, वगैरह। यह भी हो सकता है कि याददाश्त सही रहे, पर अन्य लक्षण नज़र आएँ। यदि व्यक्ति और परिवार वाले सतर्क हों, तो वे डॉक्टर से सलाह कर के सही निदान पा सकते हैं।
जब शुरू में व्यक्ति कठिनाई महसूस करते हैं, तो वे घबरा जाते हैं, या शर्म महसूस करते हैं, क्योंकि वे समझ नहीं पाते कि उन्हें क्या हो रहा है। या तो वे औरों से बच कर रहने लगते हैं और सहमे सहमे रहते हैं, या बात बात पर गुस्सा करते हैं या शक करते हैं कि अन्य लोग ही कुछ कर रहे होंगे जिससे उन्हें प्रॉब्लम हो रही हैं। यह भी एक कारण है जिसकी वजह से व्यक्ति डॉक्टर के पास जाने की नहीं सोचते। डिमेंशिया की जागरूकता फैलेगी तो यह समस्या कम होगी।
जब व्यक्ति और परिवार यह नहीं जानते कि व्यक्ति की दिक्कतें किसी बीमारी के कारण हैं, तो वे रहने का, बातचीत करने का, और मदद करने का तरीका नहीं बदलते, और व्यक्ति से उम्मीद की जाती है कि वे एक सामान्य स्वस्थ बुज़ुर्ग की तरह अपने सब काम कर पाएंगे और बातों को समझ पाएंगे। जब यह नहीं होता, तो सभी परेशान हो जाते हैं, और परिवार का माहौल बिगड़ने लगता है। लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं, या दुखी रहते हैं। परन्तु यदि सही समय पर व्यक्ति का निदान हो जाए, तो परिवार वाले भी अपने तरीके बीमारी की समस्याओं के अनुरूप बदल पाते हैं और घर में तनाव कम हो जाता है। देखभाल के सही तरीके सीखना और उपयोग में लाना तभी हो सकता है जब परिवार समझे कि व्यक्ति को डिमेंशिया है, और फिर उस के लिए बोलचाल और अन्य तरीके बदले।
स्पष्ट है कि इस तरह निदान देर से करने से व्यक्ति और परिवार, दोनों को नुक्सान होता है। अच्छा यही होगा कि परिवार वाले सतर्क रहें, और अगर लक्षण देखें तो डॉक्टर से जांच करा लें। शुरू की अवस्था में निदान हो जाए तो सालों का तनाव बच सकता है।
अगर आप देखें कि कोई व्यक्ति डिमेंशिया जैसे लक्षण दिखा रहा है, तो आप फैमिली डॉक्टर या GP से सलाह कर सकते हैं। डॉक्टर कुछ जांच करेंगे, और यदि ज़रूरी हो, तो विशेषज्ञ के पास भेज देंगे। पर अफ़सोस, कई डॉक्टर भी डिमेंशिया के बारे में अधिक नहीं जानते और बढ़ती उम्र के लोगों की समस्या को यह कह कर टाल देते हैं कि उम्र बढ़ेगी तो यह सब तो होगा ही। कुछ तो हंस कर मजाक भी उड़ा देते हैं। या अगर व्यक्तित्व में बदलाव है तो उसे घर का अंदरूनी मामला कह देते हैं या मानसिक रोग का निदान दे देते हैं। कम उम्र में शुरू होने वाले डिमेंशिया को पहचानने में अकसर देर होती है, क्योंकि डॉक्टर भी इसी भ्रमित ख़याल में रहते हैं कि डिमेंशिया सिर्फ बुजुर्गों में पाया जाता है।
यदि आप डॉक्टर की बात से संतुष्ट न हों, या आप देखें कि डॉक्टर आपकी बात को गंभीरता से नहीं ले रहा, तो अन्य किसी डॉक्टर के पास जाएँ। ऐसे डॉक्टर को ढूँढें जिन्हें डिमेंशिया का अनुभव हो। आप सीधे विशेषज्ञ के पास भी जा सकते हैं।
स्पष्ट निदान पाने के लिए अनेक टेस्ट ज़रूरी हैं, और अकसर ये विशेषज्ञ ही करेंगे। विशेषज्ञ यह भी बताएंगे कि डिमेंशिया किस रोग के कारण है। आप किसी भी अस्पताल के न्यूरोलॉजी (neurology) विभाग के बाह्य रोगी विभाग (OPD) से सम्पर्क करके मिलने का समय ले सकते हैं। अन्य डिपार्टमेंट जहाँ आपके उचित विशेषज्ञ मिल सकते हैं: मनोचिकित्सा (साईकाइट्री, psychiatry), जीरियाट्रिक्स (geriatrics)। कुछ अस्पतालों में मेमोरी क्लिनिक भी होते हैं। अगर आपके शहर में ARDSI का चैप्टर है, तो आप उनसे भी सम्पर्क कर सकते हैं। कुछ संस्थाओं में भी मेमोरी क्लिनिक हो सकते हैं, जहाँ सलाह मिल सकती है।
कभी कभी लक्षण वाले व्यक्ति यह नहीं मानते कि उन्हें कोई प्रॉब्लम है, और डॉक्टर के पास जाने से साफ़ इंकार कर देते हैं। ऐसे में परिवार वाले डॉक्टर से मिल कर निवेदन कर सकते हैं कि डिमेंशिया की जांच उस व्यक्ति के सामान्य, नियमित चेक-अप में जोड़ दी जाए, और जब व्यक्ति को अन्य चेक-उप के लिए डॉक्टर के पास ले जाएँ, तब डॉक्टर डिमेंशिया के टेस्ट भी कर लें।
कोविड स्थिति के कारण अस्पतालों और डॉक्टरों तक पहुँचने में विभिन्न चुनौतियां हो सकती हैं और अस्पताल/ क्लिनिक में कोविड संक्रमण का जोखिम भी है। ऐसे में प्रारंभिक परामर्श के लिए टेलीमेडिसिन का उपयोग किया जा सकता है। स्थिति को बेहतर ढंग से समझाने के लिए वीडियो परामर्श का उपयोग करने का प्रयास करें, और हो सके तो समस्याओं को प्रदर्शित करने के लिए वीडियो क्लिप शामिल करें। टेलीकंसल्टेशन से अधिक अंदाजा पड़ पायेगा कि क्या डॉक्टर के पास जाना आवश्यक है, क्या कुछ परीक्षणों की आवश्यकता है, इत्यादि। टेलीमेडिसिन पर अधिक विस्तृत चर्चा यहां उपलब्ध है: डिमेंशिया देखभाल और कोविड 19 (COVID 19) (भाग 3): दवा खरीदना, टेस्ट करवाना, टेलीमेडिसिन से सलाह लेना, अस्पताल जाना।
डिमेंशिया के निदान में कई कदम है, और अनेक टेस्ट होते हैं। सिर्फ एकाध सवाल पूछ कर डिमेंशिया का निदान नहीं किया जा सकता। डिमेंशिया का निदान सिर्फ डॉक्टर कर सकते हैं। यह एक क्लिनिकल (चिकित्सकीय) निदान है। यह निदान डॉक्टर व्यक्ति की सही प्रकार से जांच करने के बाद ही कर सकते हैं।
निदान करने के लिए डॉक्टर के लिए सबसे प्रमुख जानकारी है व्यक्ति का इतिहास और यह समझना कि व्यक्ति को किस किस प्रकार की समस्याएँ हैं और वे कौन सी दवाइयाँ ले रहे हैं, और क्या वे अपने काम कर पा रहे हैं या नहीं। परिवार वालों को सब फाइल और मेडिकल रिकॉर्ड पेश करने के लिए तैयार रहना चाहिए और लक्षण समझाने के लिए और उनके उदाहरण देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
डॉक्टर लक्षणों से पीड़ित व्यक्ति से कई सवाल पूछेंगे, जैसे कि तारीख क्या है, अपना नाम और पता बताएं, कुछ छोटे जोड़ने/ घटाने के सवाल। वे व्यक्ति से कुछ छोटे काम भी करायेंगे, जैसे कि कोई चित्र को कॉपी करना, चित्र पहचानना, एक सूची में दिए गए शब्द याद करके दोहराना। इन सबसे डॉक्टर उस व्यक्ति की संज्ञानात्मक बाधकता (cognitive impairment) का अंदाजा लगाएंगे। आपने जो लक्षण बताए हैं, और इस सवाल-जवाब का नतीजा देख कर, वे आगे के टेस्ट के बारे में तय करेंगे।
रक्त के टेस्ट करके डॉक्टर अन्य चीज़ों को देखेंगे, जैसे कि थाइरोइड हार्मोन (thyroid hormones) की कमी, विटामिन B12 की कमी, वगैरह।
दिमाग का स्कैन (MRI, PET scans, CT scans) करके डॉक्टर चेक करेंगे कि सामान्य दिमाग की तुलना में क्या इस व्यक्ति के दिमाग में कहीं कोई विकार है, या कुछ अधिक सिकुडन है, या अन्य कोई समस्या है जो लक्षणों का कारण हो सकती है। वे यह भी देखेंगे कि दिमाग के कौन से भाग सक्रिय हैं, और कौन से नहीं।
डॉक्टर यह समझने की कोशिश करेंगे कि प्रस्तुत लक्षण के क्या क्या कारण हो सकते हैं। यह कारण डिमेंशिया वाले रोग हैं, या अन्य रोग।
इन सब जांच के बाद ही डॉक्टर निदान करेंगे, और रोग के बारे में जानने पर, आगे क्या हो सकता है, परिवार वालों को यह अंदाजा मिलेगा।
परिवार वालों को डॉक्टर से अन्य संसाधन के बारे में भी पूछ लेना चाहिए, जैसे कि सपोर्ट ग्रुप, डिमेंशिया समर्थन संस्थाएं, सेवाएं देने वाली एजेंसी, कॉउसेलोर, इत्यादि। डॉक्टर का ध्यान अकसर सिर्फ दवाई और इलाज पर होता है, और वे बिना पूछे शायद यह जानकारी न दें।
कभी कभी निदान डिमेंशिया का नहीं, बल्कि मंद संज्ञानात्मक बाधकता (mild cognitive impairment) का होता है। यह डिमेंशिया नहीं है। मंद संज्ञानात्मक बाधकता से पीड़ित कुछ व्यक्ति सुधार दिखाते हैं या उसी स्तर पर रहते हैं, पर कुछ को डिमेंशिया हो सकता है। क्योंकि मंद संज्ञानात्मक बाधकता वाले व्यक्तियों में आगे बढ़कर डिमेंशिया होने की संभावना ज्यादा होती है, इसलिए इस निदान की स्थिति में अगला चेक-अप कब कराएं, यह डॉक्टर की सलाह से तय कर लेना चाहिए।
यह नोट करें कि जीन परीक्षा (genetic testing) निदान का भाग नहीं है, न ही कोई ऐसा खून का टेस्ट है जिससे अल्ज़ाइमर (Alzheimer’s Disease) का पक्का निदान हो सके। निदान के वक्त डॉक्टर यह देखते हैं कि क्या व्यक्ति को डिमेंशिया है (किसी भी रोग से होने वाला ऑल-कौज़ डिमेंशिया) (all-cause dementia, dementia that may be caused by anything) और यह भी देखने की कोशिश करते हैं कि डिमेंशिया का कौन सा कारक रोग है: अल्ज़ाइमर रोग (Alzheimer’s Disease), संवहनी मनोभ्रंश (नाड़ी-संबंधी, Vascular dementia), फ्रंटो-टेम्पोरल (Frontotemporal dementia), लुई बॉडी (Lewy Body Dementia), पार्किन्सन (Parkinson’s), इत्यादि)। कई बार डॉक्टर डिमेंशिया किस विशिष्ट रोग के कारण है, यह स्पष्ट रूप से नहीं बताते। यह बताना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि रोग की पक्की पहचान सिर्फ मरने के बाद मस्तिष्क खोल कर देखने से हो सकती है, उस से पहले का निदान मात्र एक अनुमान है।
निदान-संबंधी समस्याएँ (Problems related to diagnosis)।
भारत में डिमेंशिया का सही और पूरा निदान मिलना इतना आसान नहीं है, क्योंकि डिमेंशिया के बारे में कई डॉक्टरों को भी ठीक से जानकारी नहीं है, और उनका डिमेंशिया के निदान का अनुभव भी कम है। ऊपर से डिमेंशिया का निदान किसी एक टेस्ट या स्कैन से पक्की तरह से तय नहीं किया जा सकता। व्यक्ति को डिमेंशिया है या नहीं, और अगर है तो किस रोग के कारण है, और साथ में अन्य कौन कौन सी समस्याएं हैं, यह सब जान पाना पेचीदा काम है।
निदान में भूल-चूक कई प्रकार की हो सकती हैं। नीचे देखें कुछ उदाहरण (यह पूरी सूची नहीं है)।
लक्षण को अनदेखा करना। डिमेंशिया के आरम्भ में, जब लक्षण मंद होते हैं, तो आस-पास के लोग ही नहीं, डॉक्टर भी लक्षण यह कह कर टाल देते हैं कि यह तो बुढापे का सामान्य अंश है।
किसी (डिमेंशिया से भिन्न) रोग का निदान देना। यह खासकर तब होता है जब व्यक्ति की स्थिति और प्रारंभिक लक्षण आम स्थिति और लक्षण से अलग है। अधिकांश डिमेंशिया बड़ी उम्र में ही होता है, और शुरुआती चिह्न है याददाश्त की समस्या। इसलिए अगर डिमेंशिया 40-50 या उससे भी कम उम्र में हो, या जब शुरू के लक्षण उत्तेजना या अनुचित व्यवहार हों तो डॉक्टर शायद डिमेंशिया को न पहचान पाएँ। वे शायद कह दें कि समस्या मनोवैज्ञानिक है, या स्ट्रेस का प्रभाव है।
रोग ऐसा है जो इलाज से सुधर सकता है (reversible/ treatable cause), पर निदान किसी इर्रिवर्सबिल डिमेंशिया (irreversible dementia) का हो। डिमेंशिया के लक्षण कई कारण से पैदा हो सकते हैं। इन में ऐसे कारण भी हैं जो इलाज से ठीक हो सकते हैं, जैसे कि अवसाद (depression), थाइरोइड हार्मोन में कमी (hypothyroidism), कुछ प्रकार के संक्रमण (infections), और विटामिन B12 की कमी (vitamin B12 deficiency), वगैरह। जांच ठीक से न हो या पूरे न हो तो डॉक्टर गलत निदान दे सकते हैं, और इस गलत निदान के कारण व्यक्ति का सही इलाज नहीं होगा। व्यक्ति की समस्या दवाई से ठीक हो सकती थी, पर क्योंकि निदान गलत है, व्यक्ति को तकलीफ होती रहेगी।
किस इर्रिवर्सबिल डिमेंशिया (irreversible dementia) के कारण लक्षण हैं, इस पहचान में गलती। डिमेंशिया रोग कई तरह के हैं। डॉक्टर शायद यह तो पहचान पाएँ कि व्यक्ति के लक्षण का कारण कोई ऐसा रोग है जो इर्रिवर्सबिल (irreversible) है, पर इन में से कौन सा irreversible dementia है, यह गलत पहचानें। यह समस्या पैदा कर सकता है, क्योंकि कुछ ऐसी दवाइयाँ है जो एक प्रकार के डिमेंशिया रोग में मदद करती हैं, पर अन्य प्रकार के डिमेंशिया रोग में काम नहीं करतीं, बल्कि नुकसान भी कर सकती हैं। एक उदाहरण है लुई बॉडी डिमेंशिया वाले व्यक्ति को गलती से अल्ज़ाइमर रोग का निदान मिलना।
डिमेंशिया लक्षण कई रोगों के कारण हों, पर सिर्फ एक कारण पहचाना जाए। ऐसे में व्यक्ति का इलाज भी उसी पहचाने गए डिमेंशिया रोग के लिए करा जाएगा। हो सकता है कि अन्य रोग दवाई से सुधर सकते थे, जिससे लक्षण में सुधार हो सकता था, पर क्योंकि निदान पूरा नहीं है, व्यक्ति सही इलाज से वंचित रहेंगे। बढ़ती उम्र में अकसर लोगों को अनेक बीमारियां होती हैं। यह सोचना कि लक्षण सिर्फ एक ही कारण से हैं शायद गलत हो। समय के साथ, जब लक्षण बिगड़ते हैं, तब भी यह गलती हो सकती है। शायद लक्षण किसी अन्य रोग के कारण बिगड़ रहे हों पर ये रोग इसलिए न पहचाने जाएँ क्योंकि डॉक्टर और परिवार यह सोचते रहें कि बिगड़ती हालत पहले पहचाने गए रोग के ही कारण हैं।
व्यक्ति की जांच ठीक तरह से हो, और निदान पूरा और सही हो, इसके लिए परिवार वालों को सक्रिय रहना होगा। उन्हें डिमेंशिया के लक्षण और पैदा करने वाले रोगों के बारे में जानकारी होनी चाहिए, और जांच के समय सतर्क रहना चाहिए, और कुछ संदेह हो तो डॉक्टर से प्रश्न पूछने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। डॉक्टर के निदान करने के तरीके से, या निर्णय से संतोष न हो तो अन्य डॉक्टर से सलाह कर लेनी चाहिए। पर ध्यान रखें, निदान सिर्फ डॉक्टर से करवाएं, खुद न सोच लें कि यह तो डिमेंशिया ही है, और डिमेंशिया लाइलाज है तो डॉक्टर के पास जाने के कोई ज़रूरत नहीं।
निदान में दिक्कतें और गल्तियाँ किस प्रकार की हो सकती हैं, इस पर इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण पर अधिक विस्तार से चर्चा है: लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।
डिमेंशिया का निदान व्यक्ति और परिवार को हिला कर रख देता है, पर सही परामर्श के और समर्थन के साथ, व्यक्ति और परिवार सामान्य जिंदगी बिताने की कोशिश कर सकते हैं। डिमेंशिया है, इसका मतलब यह नहीं कि व्यक्ति अब कुछ नहीं कर पाएंगे। सिर्फ करने के तरीके बदलेंगे औद कुछ सीमायें होंगी, जिन को समझने से व्यक्ति और परिवार अपनी जिंदगी उसके अनुरूप बदल सकते हैं। उचित जानकारी प्राप्त करके और परामर्श प्राप्त करके निदान के साथ समन्वय किया जा सकता है, और आगे की ज़िंदगी नियोजित करी जा सकती है। कुछ डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्तियों ने अपनी ज़िंदगी के बारे में विस्तार से लिखा है, और कुछ ने निदान के प्रति अपनी प्रतिक्रिया का वर्णन भी करा है। निदान से समन्वय कैसे करें, इस पर कुछ पत्रिकाएँ भी हैं।
अकसर डॉक्टर परिवार के साथ निदान पर विस्तार से चर्चा नहीं कर पाते हैं। डिमेंशिया क्या है, आगे क्या-क्या हो सकता है, और देखभाल के लिए क्या करना होगा, परिवार को इस पर शायद जानकारी न दी जाए। अधिक जानकारी और सहायता कहाँ मिलेगी, यह भी शायद पता न चले।
क्योंकि डिमेंशिया का सफर लंबा और कठिन है, परिवारों को अधिक जानकारी और सहायता की जरूरत होगी। डिमेंशिया से जूझ रहे अन्य परिवारों से जुडने से, और साथ ही उचित काउन्सेलिंग से परिवार वाले स्थिति के लिए बेहतर तैयार हो सकते हैं, और व्यक्ति भी अधिक सक्रिय और संतोषजनक जीवन बिता पाएं, इस के लिए व्यक्ति को सहारा दे सकते हैं। निदान मिलने के बाद होने वाली घबराहट से बचा जा सकता है।
अधिक चर्चा के लिए इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण को देखें: लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।
फिलहाल अधिकांश डिमेंशिया के रोग लाइलाज हैं, पर कुछ दवाइयां हैं जो लक्षणों में आराम पंहुच सकता है। इस विषय पर लिंक के लिए इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण को देखें: लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।
इस हिंदी प्रेजेंटेशन में देखिये डिमेंशिया किसे हो सकता है, इस के जोखिम कारक क्या हैं, और आप इस की संभावना कम करने के लिए क्या कर सकते हैं। यह प्रस्तुति अब तक के शोध पर आधारित है और इस में अनेक ऐसे कारगर उपाय हैं, जिन से डिमेंशिया की संभावना के साथ-साथ अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना भी कम होगी। यदि प्लेयर नीचे लोड न हो रहा हो तो यहाँ क्लिक करें: डिमेंशिया/ अल्ज़ाइमर से कैसे बचें? Opens in new window।
इन विषयों पर अधिक चर्चा नीचे के सेक्शन में देखें [ऊपर]
डिमेंशिया से बचाव (risk reduction)।
वर्तमान जानकारी के अनुसार डिमेंशिया से पक्की तरह से बचे रहने का कोई तरीका नहीं है। परन्तु हम अपने जीवन में कुछ उचित बदलाव कर के डिमेंशिया होने की संभावना कम कर सकते हैं।
वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि अलग अलग कारकों का मस्तिष्क पर क्या असर होता है, और हम अपने मस्तिष्क को स्वस्थ कैसे रख सकते हैं। एक सम्बन्ध जो अब तक स्पष्ट है वह है कि उम्र बढ़ने से डिमेंशिया की संभावना बढ़ती है। शोध के आधार से वैज्ञानिकों ने कुछ जोखिम कारक (रिस्क फैक्टर, risk factor) पहचाने हैं और उन का मानना है कि इन को कम करने से डिमेंशिया की संभावना भी कम होगी। बचाव शत-प्रतिशत नहीं हो सकता, पर संभावना कम जरूर हो सकती है।
डिमेंशिया से संबंधित कारकों में एक कारक स्पष्ट है – बढ़ती उम्र। यानि कि, डिमेंशिया की संभावना उम्र बढ़ने के साथ अधिक होती है। पर अन्य भी कुछ आर्यक हैं जिन से शायद डिमेंशिया की संभावना बढ़े। जोखिम कारकों को दो श्रेणियों में बांटा जाता है: अपरिवर्तनीय जोखिम कारक, और परिवर्तनीय जोखिम कारक। अपरिवर्तनीय जोखिम कारक ऐसे कारक हैं जिन के बारे में हम कुछ नहीं कर सकते, हम इन को दूर नहीं कर सकते। उदाहरण: उम्र बढ़ना, परिवार में अन्य खून-के रिश्तेदारों को डिमेंशिया होना, हमारे जीन में ApoE4 अलील का होना, डाउन सिंड्रोम होना, इत्यादि। इस लिए डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि हम परिवर्तनीय कारकों पर ध्यान दें, और ऐसे बदलाव करें जिन से हमारी डिमेंशिया की संभावना कम हो।
डॉक्टरों के अनुसार, स्वस्थ जीवन शैली अपनाने से हम अपनी डिमेंशिया की संभावना कम कर सकते हैं। हम क्या कर सकते हैं, यह समझने और याद रखने के लिए एक उपयोगी मंत्र है: “What is good for your heart is good for your brain”। जो कदम स्वस्थ हृदय के लिए फायदेमंद हैं, वे स्वस्थ दिमाग के लिए भी अच्छे हैं। इसका मतलब यह नहीं कि डिमेंशिया होगा ही नहीं, पर स्वस्थ हृदय के लिए अपनाई जीवन शैली से डिमेंशिया की संभावना कुछ हद तक कम होगी। कुछ प्रमुख उदाहरण:
धूम्रपान बंद करें।
अपने वज़न को नियंत्रित रखें, और पौष्टिक भोजन लें, अच्छी मात्रा में ताज़े फल और सब्जी खाएं। मोटापे से बचें। अपने डॉक्टर से मेडिटरेनीयन डाइट (भूमध्यसागरीय आहार ) और DASH डाइट के बारे में पूछें, और सलाह करें कि आपके लिए क्या उचित होगा। मद्यपान कम करें।
शरीर में पौष्टिक पदार्थों की कमी न होने दें (जैसे कि विटामिन बी-12)।
नियमित व्यायाम करें, शारीरिक रूप से सक्रीय रहें।
उचित कदम लेकर हृदय रोग की संभावना कम करें।
मानसिक रूप से सक्रिय रहें(जैसे कि नई चीज़ें सीखते रहें)।
मेल-जोल और दोस्तियां बनाए रखें, सामाजिक अलगाव न होने दें।
मधुमेह (डायबिटीज), उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), उच्च कोलेस्ट्रॉल, नाडी संबंधी समस्याएँ, इत्यादि रोगों के प्रति सतर्क रहे। इन से बचने की कोशिश करें, और यदि यह हों, तो इन्हें दवा और जीवन शैली के बदलाव से नियंत्रण में रखें।
अवसाद (डिप्रेशन) के प्रति सतर्क रहें, और इस से बचने के लिए उचित कदम लें।
July 2017 की एक रिपोर्ट में एक अन्य महत्वपूर्ण जोखिम कारक को पहचाना गया है: सुनने की शक्ति में कमी होना/ बहरापन। इस समस्या के प्रति सतर्क रहें, और डॉक्टर से सलाह करें।
और हाँ, सर को चोट से बचाए रखें 🙂 सर पर गंभीर चोट से भी डिमेंशिया हो सकता है। ऐसे खेलों से बचें जिन में सर पर चोट लगने की संभावना अधिक है, वाहन में हेलमेट का प्रयोग करें, संतुलन बेहतर बनाएं और गिरने से बचें, इत्यादि।
यह भी जानें कि कुछ ऐसी बीमारियाँ हैं जिन का डिमेंशिया के साथ सम्बन्ध है, और जिन के होने पर डिमेंशिया की संभावना ज्यादा होती है। एक उदाहरण है डाउन सिंड्रोम। पार्किन्सन रोग से ग्रस्त व्यक्तियों में भी आगे जाकर करीब एक-तिहाई (1/3) व्यक्तियों में डिमेंशिया हो सकता है। स्ट्रोक के बाद करीब 20% लोगों को छह महीने के अन्दर डिमेंशिया हो जाता है। अवसाद (डिप्रेशन) और डिमेंशिया में भी सम्बन्ध है, और ये दोनों अकसर साथ साथ पाए जाते हैं, हलाकि इन के बीच यह सम्बन्ध किस प्रकार का है, इस पर अभी रिसर्च चल रहा है।
अन्य भी स्वास्थ्य-संबंधी समस्याएं हैं जिन से डिमेंशिया के लक्षण हो सकते है, और जिन के बारे में सतर्क रहना अच्छा होगा, जैसे कि थाइरोइड हॉर्मोन की कमी। ऊपर ऐसे कुछ विषयों पर चर्चा है।
हाल में कुछ रिसर्च में पाया गया है कि कुछ संक्रमण (जैसे कि कोविड) का डिमेंशिया के साथ संबंध (कोरीलैशन) है, और यह मानना है कि शायद ऐसे संक्रमणों से डिमेंशिया का जोखिम बढ़ सकता है। जाहिर है, गों को (खासकर बुजुर्गों को) गंभीर संक्रमणों से बचे रहना बेहतर होगा, क्योंकि वैसे भी संक्रमित होने पर उनमें जटिलताओं की संभावना अधिक होती है।
याद रखें, डिमेंशिया से बचने का कोई पक्का तरीका नहीं है। अखबारों में, पत्रिकाओं में, और अन्य मीडिया में हम कई बार सुनते हैं कि यदि आप फलां तरीका अपनाएँ तो डिमेंशिया नहीं होगा। यह दावा गलत है। हम सिर्फ अपनी जीवन शैली में बदलाव करके अपनी डिमेंशिया की संभावना कम कर सकते हैं, पर हमारी इस कोशिश के बावजूद हमें डिमेंशिया हो सकता है। यह सोचना भी गलत है कि जिन को डिमेंशिया है, वे लोग लापरवाह थे या अस्वस्थ और निष्क्रिय जीवन जी रहे थे।
डिमेंशिया की संभावना कम कैसे करें, और डिमेंशिया का किस कारक से कैसा सम्बन्ध है, इस विषय पर अधिक चर्चा के लिये इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण को देखें: लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।
आनुवंशिकी (यदि किसी करीबी रिश्तेदार को डिमेंशिया हो)(Genetics risk if close relatives have dementia).
घर में नज़दीकी रिश्तेदार में डिमेंशिया देखने पर घबराहट हो सकती है कि क्या डिमेंशिया अनुवांशिक है? फिलहाल डिमेंशिया के अनेक रोगों की आनुवंशिकी समझने के लिए शोध (रिसर्च) जोरों से चल रहा है। इस विषय पर लिंक्स और कुछ चर्चा और रिपोर्ट देखें हमारे इस पृष्ठ के अँग्रेज़ी संस्करण पर। लिंक नीचे “इन्हें भी देखें” सेक्शन में है।
इस विषय पर हिंदी सामग्री, कुछ अन्य साईट पर: यह याद रखें कि इन में से कई लेख अन्य देश में रहने वालों के लिए बनाए गए हैं, और इनमें कई सेवाओं और सपोर्ट संबंधी बातें, कानूनी बातें, इत्यादि, भारत में लागू नहीं होंगी।
Alzheimer’s Association USA द्वारा: अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया Opens in new window इस पृष्ठ पर अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया पर कुछ जानकारी है, जैसे कि स्मृतिलोप और अल्ज़ाइमर के अन्य लक्षण, अल्ज़ाइमर और मस्तिष्क, अल्ज़ाइमर के जोखिम कारक, अल्ज़ाइमर का निदान करना, देखभाल करना, इत्यादि।
इस पृष्ठ का नवीनतम अँग्रेज़ी संस्करण यहाँ उपलब्ध है: Diagnosis, Treatment, Prevention। अंग्रेज़ी पृष्ठ पर आपको विषय पर अधिक सामयिक जानकारी मिल सकती है। कई उपयोगी अँग्रेज़ी लेखों, संस्थाओं और फ़ोरम इत्यादि के लिंक भी हो सकते हैं। कुछ खास उन्नत और प्रासंगिक विषयों पर विस्तृत चर्चा भी हो सकती है। अन्य विडियो, लेखों और ब्लॉग के लिंक, और उपयोगी पुस्तकों के नाम भी हो सकते हैं। इस अँग्रेज़ी पृष्ठ पर डिमेंशिया से बचाव के लिए, और विभिन्न डिमेंशिया रोगों के निदान और उपचार के लिए अनेक उपयोगी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और अँग्रेज़ी वेबसाइट पर जानकारी है।